अयोध्या! जिसे कभी अवध कहा गया तो कभी इसे बौद्ध काल में साकेत कहा गया। अयोध्या मूल रूप से भगवान श्री राम जी की जन्मस्थली है। इस शहर में बहुत से मंदिर आपको दिखाई पड़ते हैं, जो हिंदू धर्म के साथ ही साथ बौद्ध और जैन मजहब के भी है। जैन संप्रदाय के अनुसार अयोध्या में ही उनके आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था।
इसके अलावा जैन समुदाय का ऐसा भी मानना है कि भगवान बुद्ध ने यहां पर कुछ महीने तक भ्रमण किया था। बताना चाहते हैं कि भगवान श्री राम जी के पूर्वज विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु के द्वारा अयोध्या शहर को बसाया गया था और तब से लेकर के आज तक अयोध्या भारत के प्राचीन स्थलों में शामिल है।
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इस शहर में भगवान श्री राम जी का शासन था, जिनका विवाह जनकपुर की राजकुमारी सीता माता से हुआ था। भगवान श्री राम जी के द्वारा जब जल समाधि ले ली गई, तो उसके पश्चात अयोध्या विरान सी हो गई थी, परंतु भगवान श्री राम जी का भव्य महल वैसे का वैसा ही था। श्री राम जी के पुत्र कुश के द्वारा एक बार फिर से अयोध्या का पूरा निर्माण करवाना शुरू किया गया था। कालांतर में अयोध्या, महाभारत का युद्ध खत्म हो जाने के पश्चात एक बार फिर से उजड़ गई थी परंतु इसके बावजूद श्री राम जी का अस्तित्व वहां पर बरकरार था।
इसके पश्चात ऐसी जानकारी मिलती है कि, ईशा के लगभग 100 साल पहले उज्जैन के राजा सम्राट विक्रमादित्य एक बार अयोध्या पहुंचे थे और काफी थकान हो जाने की वजह से सरयू नदी के किनारे वह आम के पेड़ के नीचे अपनी सेना के साथ थोड़ी देर विश्राम कर रहे थे। तब के समय में सरयू के आसपास काफी बड़े-बड़े पेड़ और घने जंगल होते थे और यहां पर इंसानों का नामोनिशान नहीं था।
विक्रमादित्य को इस जगह पर कुछ अलौकिक एहसास हुआ और फिर उन्होंने अयोध्या का इतिहास जानने के लिए वहां के साधु-संतों से मुलाकात की। साधु संतों ने विक्रमादित्य को बताया कि अयोध्या ही भगवान श्री राम जी की जन्मस्थली है, साथ ही उन्होंने भगवान श्री राम जी के इतिहास की पूरी जानकारी विक्रमादित्य महाराज को दी। इसके पश्चात विक्रमादित्य के द्वारा संतों के निर्देश के बाद अयोध्या में बड़े मंदिर के साथ ही साथ सरोवर, महल इत्यादि का निर्माण करवाया गया।
विक्रमादित्य की मृत्यु हो जाने के पश्चात समय गुजरने के साथ अनेक राजा और महाराजाओं के द्वारा इस मंदिर की देखरेख की जाती थी, जिनमें प्रमुख नाम पुष्यमित्र शुंग का आता है। इनके द्वारा ही इस मंदिर का एक बार फिर से जीर्णोद्धार करवाया गया था।
इनका एक शिलालेख भी अयोध्या से हासिल हुआ था, जिसमें पुष्यमित्र शुंग के द्वारा अपने सेनापति को यह आदेश दिया गया था कि वह दो बड़े अश्वमेध यज्ञ करेंगे। शिलालेख से यह भी जानकारी मिलती है कि, गुप्त वंश के चंद्रगुप्त द्वितीय के समय और उसके बाद काफी लंबे समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी भी रही थी। जानकारी के लिए बताना चाहते हैं कि महाकवि कालिदास के द्वारा भी कई बार रघुवंश में अयोध्या का जिक्र किया गया है।
कई एक्सपर्ट इतिहासकारों के अनुसार 600 ईसा पूर्व के आसपास में अयोध्या में बड़े पैमाने पर बिजनेस से संबंधित गतिविधियों का संचालन होता था। अयोध्या को 5वी शताब्दी में प्रमुख बौद्ध केंद्र माना जाता था और तब के समय में अयोध्या का नाम अयोध्या नहीं बल्कि साकेत हुआ करता था।
7वी शताब्दी के आसपास में चीनी यात्री हेनत्सांग अयोध्या आया था और उसके द्वारा बताई गई बात के अनुसार अयोध्या में तब के समय में 20 बौद्ध मंदिर भी थे और तकरीबन 3000 बौद्ध समुदाय के भिक्षु यहां पर निवास करते थे। इसके अलावा यहां पर हिंदुओं का भी एक प्रमुख और काफी ज्यादा विशाल मंदिर था, जहां पर रोज श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते थे।
इसके पश्चात 11वीं शताब्दी के आसपास में राजपूत राजा जयचंद अयोध्या पहुंचे। यह कन्नौज के प्रतापी राजा थे। इनके द्वारा मंदिर पर विक्रमादित्य के शिलालेख को देखा गया और इन्होंने उसे वहां से हटवा दिया और शिलालेख पर अपना नाम लिखवा दिया। जयचंद का खात्मा भी पानीपत के युद्ध में हो चुका था। इसके बाद देश में लगातार इस्लामिक आक्रमणकारियो का आवागमन शुरू हो गया, जिससे हिंदू राजाओं को लगातार उनके साथ युद्ध करना पड़ा।
इस दौरान बहुत से मुगल आक्रमणकारी भी मारे गए और बहुत से हिंदू राजा भी शहीद हुए, साथ ही बहुत से हिंदू मंदिरों का विखंडन भी हुआ। इस्लामिक आक्रमणकारियों ने बड़े पैमाने पर काशी मथुरा में लूटपाट तो की ही, इसके अलावा उन्होंने अयोध्या में भी कई पुजारियो की हत्या की और कई मूर्तियों को तोड़ा और यहां पर भी जमकर लूटपाट की। हालांकि इस्लामिक आक्रमणकारी 14वी सदी तक अयोध्या में भगवान श्री राम जी के मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो सके थे।
ऐसा कहा जाता है कि, भगवान श्री राम जी का विशाल मंदिर सिकंदर लोदी के शासनकाल में यहां पर मौजूद था। 14वी शताब्दी के आसपास में हिंदुस्तान के अनेक इलाकों पर मुगलों का अधिकार हो चुका था।
और इसके पश्चात तो लगातार मुगल सल्तनत के अनेक राजाओं के द्वारा राम जन्मभूमि और अयोध्या को खत्म करने का अभियान समय समय पर किया जाता रहा और आखरी में साल 1527-28 के आसपास में विशाल मंदिर को मुगल आक्रमणकारियो के द्वारा तोड़ दिया गया और उसकी जगह पर बाबरी स्ट्रक्चर को खड़ा कर दिया गया, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है।
इस मस्जिद का नाम बाबरी इसलिए रखा गया, क्योंकि मुगल साम्राज्य की स्थापना करने वाले बाबर के सेनापति के द्वारा इस मंदिर को नष्ट किया गया था। इस बाबरी मस्जिद को साल 1992 में विश्व हिंदू परिषद और शिवसेना तथा बजरंग दल और अन्य हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं के द्वारा तोड़ दिया गया था।
हालांकि ऐसा भी कहा जाता है कि, अकबर के शासनकाल और जहांगीर के शासनकाल में हिंदू समुदाय के लोगों को इस जगह को एक चबूतरे के तौर पर सौंप दी गई थी, परंतु औरंगजेब जैसे खतरनाक शासक ने अपने पूर्वज बाबर के सपने को पूरा करने के लिए यहां पर भव्य मस्जिद का निर्माण करवा दिया था और मस्जिद का नाम बाबरी रख दिया था।
1992 में इस मस्जिद को तोड़ने के पहले देश में एक से दो बार हिंदू और मुसलमान समुदाय के बीच भीषण दंगे भी भड़क चुके थे, जिसमें कई लोगों की मृत्यु हो चुकी थी और 1992 में जब मस्जिद को तोड़ा गया, तो भी देश में अनेक जगहों पर हिंदू और मुसलमान समुदाय के बीच हिंसात्मक लड़ाइयां हुई थी, जिसमें 2000 के आसपास लोगों की मृत्यु हुई थी।
सबसे ज्यादा मृत्यु बंगाल और मुंबई के इलाकों में हुई थी। पिछले कई सालों से इस मंदिर मस्जिद विवाद पर भारत की अदालत में केस चल रहा था, जिसका फैसला आखिरकार साल 2020 में आ गया और सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सभी सबूतो पर ध्यान देते हुए श्री राम जन्मभूमि हिंदू समुदाय को सौंपने का आदेश दिया गया और मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में ही मंदिर से तकरीबन 25 से 30 किलोमीटर की दूरी पर 5 एकड़ की जमीन दी गई।
ताकि वहां पर मुस्लिम समुदाय के द्वारा मस्जिद का निर्माण करवाया जा सके और साल 2024 में अब 22 जनवरी के दिन श्री राम जी के मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम भी रखा गया है। इस मंदिर के लिए कोई भी सरकारी सहायता नहीं ली गई है बल्कि हिंदू समुदाय ने हीं तकरीबन 3200 करोड रुपए चंदे के तौर पर इकट्ठा किए, जिसके द्वारा मंदिर का निर्माण हो रहा है।