कभी साकेत पुरी तो कभी अवधपुरी के नाम से मशहूर अयोध्या एक बार फिर से गुलजार होने वाली है, क्योंकि लंबे समय के इंतजार के बाद अब भगवान श्री राम जी की प्राण प्रतिष्ठा का समय काफी ज्यादा नजदीक आ गया है। भगवान श्री राम जी की प्राण प्रतिष्ठा इनके विशाल मंदिर में की जाएगी। इसके लिए हिंदू समुदाय ने तकरीबन 3200 करोड रुपए का योगदान दिया हुआ है।
अयोध्या आज से ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से ही हिंदुओं के लिए एक पवित्र भूमि रही है, जिस पर प्राचीन काल में भी एक विशाल मंदिर का निर्माण हुआ था, जिसे तोड़ दिया गया था। चलिए आज जानते हैं कि आखिर उस शानदार मंदिर का निर्माण किसने करवाया था और आखिर वह मंदिर कैसा था। जानकारी के अनुसार भगवान श्री राम जी का जन्म 5144 ईसवी पूर्व हुआ था। हमारे देश में हर साल चैत्र मास की नवमी को रामनवमी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।
पुरातात्विक तथ्य
आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ़ इंडिया डिपार्टमेंट के द्वारा साल 2023 में अगस्त के महीने में इस बात की जानकारी दी गई थी कि, बाबरी मस्जिद का निर्माण जहां पर हुआ था, वहां पर बाबरी मस्जिद से पहले मंदिर होने के संकेत मिले हुए हैं। वहां पर जमीन के अंदर कई दबे हुए खंभे प्राप्त हुए हैं और इसके अलावा दूसरे अवशेष पर प्रिंट निशान और मिली पोटरी से मंदिर होने का सबूत मिला हुआ है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के द्वारा सर्वे की पूरी वीडियोग्राफी करवाई गई थी। सर्वे में शिव मंदिर भी दिखाई दिया था। इनका यह सर्वे भारत के हाई कोर्ट में भी दर्ज है। भारत के प्रयागराज हाईकोर्ट के द्वारा साल 2010 में 30 सितंबर के दिन विवादित ढांचे के मामले में एक महत्वपूर्ण डिसीजन सुनाया गया था, जिसमें तीनों न्यायाधीशों ने माना था कि जहां भगवान श्री राम जी के मंदिर होने का दावा किया जा रहा है वहीं पर भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था।
कैसी थी अयोध्या ?
प्राचीन काल में अयोध्या कौशल जनपद की राजधानी हुआ करती थी। रामायण के बालकांड में इस बात की जानकारी मिलती है कि, अयोध्या 12 योजन लंबी थी और तकरीबन 3 योजन चौड़ी थी।
रामायण को वाल्मीकि के द्वारा लिखा गया है, जिसमें इस बात का भी जिक्र है की सरयू नदी के किनारे अयोध्या स्थित है, जहां पर श्रीराम का राज चलता है। अयोध्या में बहुत से बगीचे और आम के पेड़ प्राचीन काल में थे, साथ ही चौराहे पर बड़े-बड़े स्तंभ भी लगे हुए थे। अयोध्या में रहने वाले हर व्यक्ति का घर काफी ज्यादा विशाल था।
क्या था जन्मभूमि का हाल
भगवान श्री राम जी के द्वारा जब जल समाधि ले ली गई थी, तो उसके पश्चात अयोध्या कुछ समय के लिए वीरान हो गई थी, परंतु जन्मभूमि पर जो महल निर्मित हुआ था, वह पहले की तरह ही सीना ताने खड़ा हुआ था।
बाद में श्री राम जी के पुत्र कुश के द्वारा अयोध्या को फिर से पुनर्निमित किया गया और इसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढी तक इसका अस्तित्व महाराजा बृहद्बल तक रहा। उनकी मृत्यु अभिमन्यु के हाथों होने के पश्चात एक बार अयोध्या फिर से वीरान हो गई थी परंतु इसके बावजूद राम जन्म भूमि का अस्तित्व फिर भी बरकरार रहा था।
किसने बनाया भव्य मंदिर
ऐतिहासिक जानकारी के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि, एक बार उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य घूमते घूमते अयोध्या आ पहुचे थे। वहां पर उन्होंने संतों से इसकी महिमा जानी और इसके बाद ही उन्हें पता चला कि, यह भगवान श्री राम जी की अवध भूमि है। संतों के आदेश के हिसाब से फिर विक्रमादित्य के द्वारा यहां पर कई सरोवर, महल, कूप इत्यादि का निर्माण करवाया गया और मंदिर भी बनवाया गया।
किसने करवाया जिर्णोद्धार
विक्रमादित्य के बाद भी समय-समय पर अनेक राजाओं ने अयोध्या का जीर्णोद्धार करवाया, जिसमे पुष्यमित्र शुंग का नाम भी आता है। इनका एक शिलालेख भी अयोध्या से मिला था, जिसमें पुष्यमित्र शुंग ने जो अश्वमेध यज्ञ किया था, उसका वर्णन है। जाने-माने कवि कालिदास ने भी कई बार रघुवंश में अयोध्या का जिक्र किया हुआ है।
किसने भव्य मंदिर की गवाही दी थी ?
फा-हियान नाम का एक चीनी साधु अयोध्या आया था, जहां उसने देखा कि, यहां पर बहुत सारे बौद्ध मठों के रिकॉर्ड रखे हुए हैं। इसके अलावा 7वी शताब्दी में यहां पर एक और चीनी यात्री हेनसांग भी आया था। उसके अनुसार यहां पर तब के समय में 20 से ज्यादा बौद्ध मंदिर थे और तकरीबन 3000 भिक्षु यहां पर निवास करते थे। इसके अलावा हिंदुओं के भी बड़े मंदिर यहां पर मौजूद थे, जहां पर लोग दर्शन करने के लिए लोग आते थे।
कब शुरु हुआ मंदिर का पतन
11वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान का ससुर जयचंद कन्नौज आया था, जहां पर उसने विक्रमादित्य के शिलालेख को हटा दिया और अपना नाम वहां पर लिखवा दिया। जयचंद की मृत्यु पानीपत के युद्ध में होने के बाद देश में इस्लामी आक्रमण काफी ज्यादा बढ़ने लगा। इस्लामी सेना ने काशी, मथुरा में भयंकर लूटपाट की और हजारों पुजारियो की हत्या की और इसी क्रम में आगे बढ़ते बढ़ते वह अयोध्या भी आ पहुंची।
हालांकि 14वी शताब्दी तक अयोध्या में वह राम मंदिर तोड़ने में सफल नहीं हो पाए थे। इसके बाद साल 1527-28 में इस्लामी सेना के द्वारा अयोध्या में मौजूद मंदिर को तोड़ दिया गया और मंदिर तोड़कर वहां पर बाबरी का ढांचा खड़ा कर दिया गया। यह बाबरी मस्जिद 1992 तक रही थी। 1992 में हिंदू दलों के कार्यकर्ताओं के द्वारा बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया गया और तब से यह मामला कोर्ट में चल रहा था, जिसकी अब समाप्ति हो चुकी है।