हिंदू धर्म में अनेक व्रत त्योहार होते हैं। हर त्योहार का एक विशेष महत्व होता है। 8 मार्च, 2023 से चैत्र मास की शुरूआत हो गई है। चैत्र मास में अनेक व्रत त्योहार पड़ते हैं। इन्ही त्योहारों में एक हैं शीतला अष्टमी का त्योहार। शीतला अष्टमी का त्योहार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इसे बसोडा के नाम से भी जाना जाता हैं। शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला की पूरे विधि विधान से पूजा-पाठ की जाती हैं। मान्यता अनुसार इस दिन माता शीतला को बासी खाने का भोग लगाया जाता है और शीतला माता को भोग लगाने के बाद परिवार के सभी लोग इस खाने को ग्रहण करते हैं। अधिकतर घरों में माता शीतला की पूजा से पहले घर का चूल्हा भी नहीं जलाया जाता है। तो आइए जानते हैं कि वर्ष 2023 में शीतला अष्टमी कब हैं, कैसे इस दिन माता शीतला की पूजा करनी चाहिए। इस लेख में हम आपको ये भी बताएंगे कि बसौड़े वाले दिन बासी भोजन क्यों किया जाता है।
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शीतला अष्टमी कब है | Sheetala Ashtami Kab Hai 2023
जैसा की मैंने ऊपर बताया शीतला अष्टमी या बसोडे का पर्व चैत्र मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष चैत्र मास की अष्टमी तिथि 15 मार्च को सुबह 6 बजकर 39 मिनट से शुरू होकर शाम को 6 बजकर 31 मिनट तक रहेगी। शीतला अष्टमी की पूजा का शुभ महूर्त सुबह 06 बजकर 20 मिनट से शाम 6 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। इस शुभ महूर्त में ही पूरे विधि विधान के साथ शीतला माता की पूजा करना श्रेयस्कर होगा।
इस तरह करे शीतला माता की पूजा | Sheetala Mata Ki Puja Kaise Kare
माता शीतला को दुर्गा का अवतार मन जाता है। शीतला अष्टमी के एक दिन पहले यानि सप्तमी को माताए और बहने बासी भोजन बना लेती हैं और अष्टमी को माता को भोग लगाती हैं। शीतला अष्टमी के दिन ब्रह्म महूर्त में उठ जाए। नित्य क्रियाओ से निवृत्त होकर स्वच्छ जल से स्नान कर ले। स्नान के पश्चात अपने पूजा घर में जाकर निम्न मंत्र को जपते हुए व्रत का संकल्प ले।
‘मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये‘
व्रत का संकल्प लेने के बाद शीतला माता के मंदिर में जाकर रोली, चावल, दही, राई, पुष्प आदि शीतला माता को अर्पित करे। सप्तमी के दिन बनाया हुआ बासी भोजन यथा मीठे चावल, पूड़ी, गुड़ के गुलगुले, हल्दी, चने की दाल का शीतला माता को भोग लगाया जाता है। एक तांबे के लोटे में जल लेकर शीतला माता के चरणों में अर्पित करें। कुछ जगहों पर पुरुष भी शीतला माता की करते हैं। पूजा करते समय ‘हृं श्रीं शीतलायै नमः‘ मंत्र का निरंतर उच्चारण करते रहे। माता शीतला को अर्पित किये जाये जल को अपने ऊपर डाले, अपनी दोनों आँखों और गले में लगाए। कुछ जल को बचाकर रख ले। तत्पश्चात शीतला स्तोत्र का पाठ करें और शीतला माता की कथा करे। शीतला माता रोगो को दूर करने वाली माता है। वट वृक्ष में शीतला माता का वास होता हैं , ऐसे में आज के दिन वट वृक्ष की भी पूजा आराधना करनी चाहिए। शीतला मंदिर में पूजा करने के बाद घर लौटते समय कोई हरी चीज बाजार से खरीद ले। जिस स्थान पर होली जली हो उस स्थान पर रोली , चावल , गुलगुले चढ़ाये। अपने घर के मुख्य दरवाजे के दोनों तरफ लोटे का पानी डाले और दीवार पर स्वस्तिक का चिन्ह बनाये। ततपश्चात घर में प्रवेश करे। घर के सभी लोगों को माता के मंदिर का जल दे , सभी लोग इसे अपनी आँखों और गले में लगाए। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती है और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है।
इस दिन घर के सभी सदस्यों को बासी भोजन ही करना चाहिए। इस दिन पूजा करने वाली सभी महिलाओं को पूरे दिन ‘वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरराम्, मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्।‘ मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र का अर्थ है मैं पूरी सच्ची श्रद्धा से गर्दभ पर विराजमान, दिगंबरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की वंदना करता/करती हूं। यह मंत्र रोग दूर करने वाला मंत्र हैं , इस मंत्र के जाप से निरोगी काया रहती हैं और व्यक्ति को कोई भी रोग नहीं छू पाता हैं।
शीतला अष्टमी की कथा | Sheetala Mata Ki Katha | Sheetala Ashtmi Story in Hindi
शीतला माता की पूजा को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है , इस कथा के अनुसार एक बार की बात है एक राजा के पुत्र को चेचक (शीतला) निकल गयी। उस राजा के राज्य में एक गरीब किसान का परिवार रहता था , उसके पुत्र को भी शीतला निकली। किसान परिवार ने बीमारी की दौरान किये जाने वाले नियमों को अपनाया। रात दिन माता की पूजा आराधना की, घर में साफ सफाई का विशेष ख्याल रखा। घर में नमक खाने पर पाबंदी थी। न तो किसी सब्जी में छौंक लगता था और न कोई वस्तु भुनी-तली बनाई जाती थी। न किसी गर्म वस्तु का सेवन वह स्वयं करता , न ही शीतला वाले लड़के को देता था। उसके द्वारा किये गए इस उपाय से उसका पुत्र जल्दी ही ठीक हो गया।
इधर जब से राजा के पुत्र को शीतला हुए , उस दिन से उसने भगवती माता की आराधना शुरू कर दी , हर रोज राजा के महल में हवन होता। उसने माता सतचंडी का पाठ शुरू करवा दिया। राजा के राजपुरोहित भी शीतला माता के मंत्रों का निरंतर पाठ करने लगे। राजमहल में रोज तरह-तरह के पकवान बनते , स्वादिष्ट भोजन बनते। इन भोजनो की सुगंध से राजा के पुत्र का इन भोजनों को करने का करता। राजपुत्र की जिद की चलते कोई उसे इन्हे खाने से नहीं रोक सका। चेचक की नियमो को न मानने की चलते उसकी बीमारी बढ़ने लगी , उसके सारे शरीर में बड़े-बड़े फोड़े निकलने लगे। ये देखकर राजा सोच में पड़ गया कि उसने माता की इतनी पूजा की , हवन किया व पाठ किया इसके बावजूद भी उसका पुत्र ठीक होने के बजाये और बीमार क्यों पड़ गया। एक दिन राजा को अपने गुप्तचरों से ज्ञात हुआ कि उसके राज्य के किसान पुत्र को भी शीतला निकली पर वह बिलकुल ठीक हो गया , राजा गहरी सोच में पड़ गया।
एक दिन राजा के गुप्तचरों ने उन्हें बताया कि किसान के पुत्र को भी शीतला निकली थी, पर वह बिलकुल ठीक हो गया है। यह जानकर राजा सोच में पड़ गया कि मैं शीतला की इतनी सेवा कर रहा हूं, पूजा व अनुष्ठान में कोई कमी नहीं, पर मेरा पुत्र अधिक रोगी होता जा रहा है जबकि किसान पुत्र बिना सेवा-पूजा के ही ठीक हो गया। इसी सोच में उसे नींद आ गई। राजा को स्वप्न में श्वेत वस्त्र धारिणी भगवती ने उसे दर्शन दिया। देवी ने कहा- ‘हे राजन्! मैं तुम्हारी सेवा-अर्चना से बहुत प्रसन्न हूं। इसीलिए ही तुम्हारा पुत्र जीवित है। इसके ठीक न होने का बड़ा कारण है वह यह कि जब तुम्हारे पुत्र को शीतला हुए उस समय तुमने शीतला के समय किये जाने वाले नियमों का उल्लंघन किया। तुम्हें ऐसी हालत में नमक का प्रयोग बंद करना चाहिए। नमक का प्रयोग करने से रोगी के फोड़ों में खुजली होती है। घर की सब्जियों में छौंक नहीं लगाना चाहिए था क्योंकि उन सब्जियों की गंध से रोगी का मन उन वस्तुओं को खाने के लिए ललचाता है। रोगी के आस पास किसी को आने जाने नहीं देना चाइये था क्योंकि यह रोग औरों को भी होने का भय रहता है। अब अगर तुम चाहते हो की तुम्हारा पुत्र ठीक हो गाये तो इन नियमों का पालन करो , तुम्हारा पुत्र अवश्य ही ठीक हो जाएगा।‘ राजा को विधि समझाकर देवी अंतघ्यान हो गईं। अगले दिन से ही राजा ने देवी की आज्ञानुसार सभी कार्यों की व्यवस्था कर दी। इससे राजकुमार की सेहत पर अनुकूल प्रभाव पड़ा और वह शीघ्र ही ठीक हो गया। अत जो भी जातक शीतला अष्टमी के दिन माता को शीतल भोजन का भोग लगता हैं और विधि-विधान से माता का पूजन करता हैं उस जातक का शरीर निरोगी रहता हैं उसके सभी कष्टों का निवारण होता है।
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शीतला अष्टमी का महत्व | Sheetala Ashtami Ka Mahatva
शीतला अष्टमी के दिन जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा भाव से देवी शीतला की आराधना करता हैं, उसकी सभी मनोकामना माता पूरी करती है। व्रत करने वाले जातक की काया निरोगी रहती हैं क्योंकि शीतला माता शीतलता प्रदान करने वाली माता हैं।
स्कंद पुराण में शीतला माता के महत्व के विषय में विस्तृत जानकारी दी गई है। इसके अनुसार शीतला माता गधे पर सवार हैं जो हाथों में कलश, सूप और झाडू पकड़े हैं। माता के गले में नीम के पत्तो की माला हैं।
शीतला माता को बासी भोजन अर्पित किया जाता है जो इस बात का प्रतीक होता है कि आज से ग्रीष्म ऋतु की शुरूआत हो गई है और आज के बाद से ताजा भोजन ही करना है। बासी भोजन भूलकर भी नहीं करना है।
शीतला माता शीतलता प्रदान करने वाली माता हैं। इनके पूजन से जातक के बुखार, चेचक, खसरा आदि रोग दूर हो जाते हैं। व्यक्ति की काया निरोगी रहती है। तो दोस्तो ये थी शीतला अष्टमी या बसोड़े से जुड़ी सारी जानकारी। अगर आपको ये लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ साझा अवश्य करें। अगर आपको शीतला अष्टमी के विषय में कोई भी जानकारी चाहिए तो कमेंट बाॅक्स में अवश्य लिखे। ऐसे ही धार्मिक और आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाईट से जुड़े रहे। जय श्री राम।
FAQ – ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्नः
Q. शीतला अष्टमी कब हैं?
Ans. शीतला अष्टमी या बसोड़े का पर्व 15 मार्च, दिन बुधवार को किया जायेगा। इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ शीतला माता की पूजा आराधना करनी चाहिए। शीतला माता सारे मनोरथ को पूरी करने वाली माता है।
Q. शीतला अष्टमी पर किस चीज का भोग लगाया जाता है?
Ans. शीतला अष्टमी पर माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इस भोजन को सप्तमी के दिन ही बना लिया जाता है।
Q. शीतला अष्टमी की पूजा क्यों की जाती है?
Ans. शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा करने से चेचक, खसरा, नेत्र विकार आदि बीमारियों से निजात मिलती है। माता की पूजा से गर्मियों में होने वाले सारे रोग दूर हो जाते हैं।
Q. शीतला अष्टमी पर क्या बनाते हैं?
Ans. शीतला अष्टमी की पूजा के लिए अलग-अलग लोग तरह-तरह के भोजन का भोग लगाते हैं। कुछ लोग मीठे चावल, मालपुआ, दही का भोग लगाते हैं, तो कई जगह पर माता को गुड के गुलगुले, चने की दाल, हलुवा का भोग शीतला माता को लगाया जाता है।
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