खरमास में पूजा-पाठ का है विशेष महत्व, भूलकर भी ना करें ये काम | Kharmas Kab Se Hai

हिन्दू धर्म में सूर्य देव एक ऐसे देव है जो प्रत्यक्ष रूप से विराजमान देवता है। सूर्य देवता हर माह एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते है। सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करने को संक्राति कहते है। हर वर्ष में 12 संक्रातियां पड़ती है। इनमें से धनु संक्राति और मीन संक्राति का बहुत महत्व है। सूर्यदेव के धनु राशि और मीन राशि में प्रवेश के समय को खरमास या मलमास कहते है। साल भर में दो खरमास पड़ते है। आज के लेख में हम खरमास क्या होता है, कब से है, इसके महत्व और अन्य सभी पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

खरमास क्या है | Kharmas Meaning | मलमास का अर्थ

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य धनु और मीन राशि में प्रवेश करते है तो उस समय को खरमास या मलमास कहते है। खरमास एक अशुद्ध माह है, इस माह में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्यों को करने की मनाही होती है। पंचांग के अनुसार साल भर में दो बार खरमास लगता है। एक बार खरमास मध्य मार्च से मध्य अप्रैल के बीच लगता है तो वहीं दूसरा खरमास दिसंबर मध्य से मध्य जनवरी तक रहता है। खरमास के समय सूर्य देव के घूमने की गति धीमी हो जाती है जिसके चलते सूर्य का प्रभाव कम हो जाता है।

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खरमास कब से है | Kharmas Kab Se Lag Raha Hai | Kharmas Kab Khatam Hoga

हिन्दू पंचांग के अनुसार जब सूर्य देव वृश्चिक राशि से निकलकर गुरू की आग्नेय राशि धनु में प्रवेश करते है तो उसे धनु संक्राति कहते है। इस समय को खरमास या मलमास कहते है। इसे अशुद्ध मास भी कहते है। मान्यता के अनुसार खरमास के दौरान सूर्यदेव के रथ के घोड़े आराम करते है और उनके रथ को खर अर्थात गधे खींचते है, इसलिए इसे खरमास कहते हैं।
खरमास 16 दिसंबर, 2022 शुक्रवार को प्रातः 10 बजकर 11 मिनट से प्रारंभ होगा। इस समय के बाद से सभी मांगलिक कार्य बंद हो जायेंगे। ऐसे में अगर आपको कोई शुभ कार्य करना है तो इस समय से पहले निपटा ले। खरमास 14 जनवरी, 2023 शनिवार को रात 8 बजकर 57 मिनट पर समाप्त होगा। जब भगवान सूर्यदेव मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के मकर राशि के प्रवेश के समय को मकर संक्रांति कहते है। मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। ऐसे में इस तिथि के बाद से शुभ और मांगलिक कार्य एक बार फिर शुरू हो जाते है।

प्रारंभ16 दिसंबर, 2022 शुक्रवार को प्रातः 10 बजकर 11 मिनट
समाप्त14 जनवरी, 2023 शनिवार को रात 8 बजकर 57 मिनट

खरमास में क्यों बंद होते हैं शुभ कार्य

हिन्दू धर्म में जब कभी भी कोई शुभ या मांगलिक कार्य किया जाता है तो पंचांग से शुभ मुहूर्त निकालकर ही किया जाता है। शुभ मुहूर्त में कोई भी कार्य करने से वह कार्य सफल होता है। खरमास में मांगलिक कार्य करने की मनाही होती है। इसके लेकर लोगों के मन में प्रश्न उठता है कि आखिर खरमास में मांगलिक कार्य क्यों नहीं किए जाते।

पंचांग के अनुसार बृहस्पति को धनु राशि का स्वामी माना गया है। ऐेसे में जब गुरू देव बृहस्पति अपनी ही राशि में प्रवेश कर जाते है तो हमारी कुंडली में सूर्य की स्थिति कमजोर हो जाती है जिसके चलते हमारे जीवन में किये गये शुभ कार्यों का नकारात्मक परिणाम मिलने की संभावना होती है। इसी कारण खरमास में मांगलिक कार्य नहीं किये जाते क्योंकि इस दौरान किये गये कार्यों का उत्तम परिणाम नहीं मिलता है। खरमास में सूर्य का स्वभाव उग्र हो जाता है जिसके चलते मांगलिक कार्यों को नहीं करना चाहिए।

खरमास की कहानी | Kharmas Ki Kahani | खरमास क्या होता है

खरमास की कहानी इसके नाम में ही निहित है। संस्कृत में खर का अर्थ होता है गधा और मास का अर्थ है महीना। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एकबार सूर्यदेव अपने सात घोड़ों के रथ पर बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा कर रहे थे। ब्रह्मांड की परिक्रमा के दौरान सूर्यदेव को कहीं भी रुकने की इजाजत नहीं थी क्योंकि वह अगर कहीं भी रुक जाते तो पूरा जनजीवन रुक जाता। रथ के घोड़ों को लगातार चलते रहने की वजह से प्यास लग आई और वे थककर रुक गए। घोड़े की ऐसी दुर्दशा देखकर सूर्यदेव भी चिंतित होने लगे, ऐसे में वह एक तालाब के किनारे रुक गए। तालाब के किनारे उन्होंने घोड़ों को पानी पिलाया और खुद भी रुक गए। तभी उनको ऐसा आभास हुआ कि ऐसा करने से कुछ अनर्थ न हो जाए तब उनको तालाब के किनारे दो गधे खड़े नजर आए। उन्होंने घोड़ों की जगह खरों अर्थात गधों को रथ से जोड़ दिया और घोड़ों को वहीं विश्राम के लिए छोड़ दिया। खरों की वजह से रथ की गति काफी धीमी हो गई। हालांकि जैसे-तैसे करके एक महीने का समय पूरा हुआ। तब सूर्यदेव ने विश्राम कर रहे घोड़ों को रथ में लगा दिया और खरों का निकाल दिया। इस तरह हर साल यह क्रम चलता रहता है जिसके चलते हर साल में दो बार खरमास का महीना आने लगा।

खरमास में इन कामों को न करें | खरमास में वर्जित कार्य

जैसा कि आपने जाना कि खरमास में सूर्य की स्थिति कमजोर हो जाती है जिसके चलते मांगलिक कार्य बंद हो जाते है। ऐसे में खरमास के दौरान किसी भी मांगलिक कार्य जैसे-शादी, मुंडन, यज्ञोपवित्र आदि कार्य को भूलकर भी नहीं करना चाहिए। धनु राशि संपन्नता प्रदान करने वाले राशि है। जब धनु राशि में सूर्य चला जाता है तो इसे शुभ नहीं माना जाता। किसी भी विवाह में संपन्नता बहुत आवश्यक है। ऐसे में अगर आप खरमास में विवाह करते हंै तो आपको वैवाहिक जीवन में कई तरह की समस्याएं का सामना करना पड़ सकता है। आपको भावनात्मक और शारीरिक सुख दोनों का नुकसान होगा और आपका विवाह एक असफल विवाह साबित होगा।

खरमास के दौरान किसी भी प्रकार के मकान का निर्माण कार्य भी नहीं करवाना चाहिए। ना ही किसी भी प्रकार की संपत्ति की खरीद फरोख्त करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान जिन मकानों का निर्माण होता है उन मकानों का निर्माण बीच में रुक जाते हैं। अगर किसी तरह यह मकान बन भी जाते है तो इनमें दुर्घटनाएं होने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं।
अगर आप किसी भी नये कार्य या व्यापार को शुरू करना चाहते है तो इस दौरान उसे भूलकर भी ना करें क्योंकि इस समय अगर आप कोई व्यापार शुरू करते हैं तो उसमें फायदे की बजाये नुकसान होने की संभावना ज्यादा होती है। हो सकता है आपका व्यापार बंद भी हो जाये।

खरमास में कोई भी नया अनुष्ठान जैसे यज्ञ, यज्ञोपवित्र आदि करनी की मनाही होती है। हां, आप जो पूजा रोज करते है उसे कर सकते है बल्कि इस माह में अधिक से अधिक जप, तप, साधना जरूर करना चाहिए।
खरमास के दौरान तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए। प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा का का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए।

तांबे के पात्र में पानी पीना शारीरिक व मानसिक दृष्टि से फायदेमंद होता है लेकिन खरमास के दौरान तांबे के पात्र में पानी बिल्कुल भी नहीं पीना चाहिए क्योंकि इस मास में तांबे के पात्र का दान किया जाता है।

इन कामों को अवश्य करें

खरमास में शुभ कार्य करनी की मनाही होती है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं खरमास के दौरान आप कोई काम ही नहीं कर सकते है। खरमास में विवाह करने की पाबंदी होती है लेकिन अगर आप प्रेम विवाह करना चाहते हैं तो आप इसे खरमास में कर सकते है।

खरमास में पितृकर्म पिंडदान का खास महत्व है। गया में जाकर आप पिंडदान कर सकते हैं।

दान धर्म को हमेशा से हिन्दू धर्म में पवित्र माना गया है। ऐसे में खरमास में आप अगर किसी गरीब व्यक्ति को वस्त्र, धन आदि चीजों का दान करते है तो आपको उसका पुण्य प्राप्त होगा और घर में मां लक्ष्मी का वास होता है। इस दौरान जप, तप, आराधना को भी सर्वोत्तम माना गया है। आस्था और श्रद्धा के साथ किये जप का कई गुना सर्वोत्तम फल प्राप्त होता है।

खरमास में सूर्य की स्थिति कमजोर हो जाती है। ऐसे में आपको सूर्यदेव की ज्यादा से ज्यादा अराधना करनी चाहिए। सूर्यदेव के मंत्र ऊँ आदित्यः नमः, ंऊँ सूर्याय नमः आदि मंत्रों का अधिक से अधिक जाप करना चाहिए। जाप करते समय ध्यान रहे कि जाप को तुलसी की माला का ही प्रयोग करें।

खरमास की अवधि दौरान धार्मिक अनुष्ठान करने से अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। खरमास में अगर आप किसी तीर्थ यात्रा पर जाते है तो आपको उसका पुण्य फल मिलता है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों रामायण, गीता आदि को पढ़ना भी इस मास में बहुत ही फलदायक साबित होता है। खरमास में आप जितनी अधिक देव अराधना करते है। उसका फल आपको भविष्य में मिलकर ही रहता है।

खरमास में विष्णु भगवान की पूजा करना विशेष रूप से फलदायक होता है। अगर आप खरमास में प्रतिदिन सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करते है और उनके शक्तिशाली मंत्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ का तुलसी की माला से जाप करना बहुत ही फलदायी होता है। इस मंत्र का वर्णन श्री विष्णु पुराण में दिया गया है। इस मंत्र का अर्थ है ओम, मैं भगवान वासुदेव या भगवान वासुदेव या भगवान विष्णु को नमन करता हूं‘‘। इस मंत्र का जाप करने वाले जातक को भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उस जातक से श्री हरि भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होकर उनकी हर कामना को पूर्ण करते हैं।

खरमास में भगवान विष्णु की पूजा के दौरान रोज भगवान विष्णु को तुलसी के पत्तों के साथ खीर या पंचामृत का भोग अवश्य लगाएं। खरमास के दौरान जो भी एकादशी पड़े उस पर व्रत जरूर रखें।

पुराणों में उल्लेखित है कि पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है। ऐसे में इस पूरे माह में अगर आप नियमित तौर पर पीपल के वृक्ष की पूजा कर उसमें जल अर्पित कर उसके नीचे दीपक जलाते है तो आपकी ग्रह दशा सुधरती है।
खरमास में किसी नदी या सरोवर में स्नान करते है तो आपका शरीर शुद्ध होता है लेकिन अगर आप नदी में स्नान करने नहीं जा सकते तो प्रतिदिन गंगाजल मिले जल से घर पर स्नान करें। इससे आपका शरीर शुद्ध हो जायेगा और आपकी भौतिक, अध्यात्मिक एवं अनेक मनोकामनाओं की पूर्ति स्वयं ही हो जाती हैं ।

खरमास के उपाय

अगर आप कोई व्यापार कर रहे है। व्यापार में घाटा हो रहा है और आर्थिक नुकसान मिल रहा है तो खरमास में एक छोटा सा उपाय कर ले। खरमास की नवमी तिथि को कन्याओं को भोजन करवाएं। इसके अलावा पशुओं को चारा खिलाएं। ऐसा करने से आपकी चली आ रही आर्थिक समस्याएं दूर हो जायेगी।

खरमास मुख्यतः दिसंबर के मध्य से जनवरी के मध्य तक रहता है। इस दौरान ठंड का प्रकोप अपनी चरम सीमा पर होता है। ऐसे में अगर आप अपने खानपान की आदतों को नहीं बदलते है तो आपके शरीर को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इस माह में अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए गेहूं, चावल, जौ और मूंग की दाल का सेवन अधिक से अधिक करें। इसके अलावा गुड़, तिल का सेवन करना भी फायदेमंद होता है।

आज के लेख में हमने खरमास से संबंधित सभी बातों को विस्तार से जाना। आशा करते है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। इस लेख को अपने प्रियजनों, इष्ट मित्रों के साथ शेयर अवश्य करें और ऐसी ही धार्मिक पोस्ट पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहें।

संकष्टी चतुर्थी पर इस तरह करें प्रथम पूज्य भगवान गणेश की आराधना | Sankashti Chaturthi Kya Hai

हिन्दू धर्म में भगवान गणेश जी की पूजा का बड़ा महत्व है। सनातन धर्म में गणेश जी प्रथम पूज्य भगवान है। किसी भी नये कार्य की शुरूआत करने से पहले भगवान गणेश की पूजा का विधान है। पुराणों में ऐसा उल्लिखित है कि जो भी जातक भगवान गणेश की सच्चे मन से पूजा करता है और व्रत करता है। भगवान गणेश उससे प्रसन्न होकर उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। भगवान गणेश की व्रतों में सबसे प्रसिद्ध व्रत गणेश चतुर्थी का व्रत है। ये चतुर्थी हर माह में दो बार आती है। पौष मास का प्रारम्भ हो सका है। इस पवित्र महीने में जो चतुर्थी पड़ती है उसे अखुरथ संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी का अर्थ होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’ है। इसे द्विजप्रिय संकष्टी के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए इस दिन विधि विधान से पूजा अर्चना करने से भगवान गणेश अपने भक्तों के हर दुख को हर लेते हैं। जो व्यक्ति संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखता है उसके जीवन में चल रही सभी समस्याएं खत्म होती हैं और भगवान गणेश द्वारा उनकी सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती है, क्योंकि भगवान गणेश ही बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य को देने वाले देवता है। आईये जानते है कि पौष मास में अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत कब है, कैसे इस व्रत में पूजा-पाठ करना चाहिए, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है आदि इस व्रत से जुड़ी बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत कब है | Sankashti Chaturthi Kab Hai

हिन्दू धर्म में प्रत्येक माह में पड़ने वाले संकष्टी चतुर्थी व्रत का विशेष महत्व है। संकष्टी चतुर्थी व्रत भगवान गणेश जी को समर्पित व्रत होता है। इस दिन भगवान गणेश की विधिवत पूजा की जाती है और अपनी मनोकामना की प्राप्ति के लिए जातक व्रत रखते हैं। महिलाएं इस दिन व्रत करके अपने संतान की लंबी आयु व जीवन के संकटों से छुटकारा पाने के लिए व्रत करती हैं। इस बार इस व्रत को लेकर भ्रम की स्थिति है। कुछ लोगों का कहना है कि संकटष्टी चतुर्थी व्रत 11 दिसंबर को है और कुछ 12 दिसंबर को व्रत करने को कह रहे है। गणेश चतुर्थी में चंद्रमा का दर्शन करने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। गणेश चतुर्थी का चंद्रोदय 11 दिसंबर को होगा। ऐसे में 11 दिसंबर, 2022, दिन रविवार को अखुरथी संकष्टी चतुर्थी व्रत रखना श्रेयस्कर होगा।

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संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त | Sankashti Chaturthi Muhurat

संकष्टी चतुर्थी तिथि 11 दिसंबर 2022 को शाम 4 बजकर 14 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 12 दिसंबर 2022 को शाम 6 बजकर 48 मिनट पर समाप्त होगी। संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत का पारण चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद किया जाता है। इस बार 11 दिसंबर को चंद्रोदय का समय शाम 7 बजकर 45 मिनट पर बताया गया है। ऐसे में व्रत करने वाले जातकों को शाम 7 बजकर 45 के बाद चंद्र दर्शन और चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद ही व्रत खोलना चाहिए।

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि | Sankashti Chaturthi Puja Vidhi

पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना बहुत फलदायी होता है। इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं तो आईये जानते है कि संकष्टी चतुर्थी वाले दिन कैसे प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।

संकष्टी चतुर्थी वाले दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठ जाये। नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान कर लें और उसके बाद साफ कपड़े पहने। संकष्टी चतुर्थी वाले दिन लाल रंग का वस्त्र धारण करना बेहद शुभ माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि लाल वस्त्र धारण करके पूजा करने से चतुर्थी व्रत सफल होता है। ऐसे में लाल वस्त्र पहनकर ही आपको चतुर्थी की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद अपने पूजा-स्थल की अच्छी तरीके से साफ-सफाई करने के बाद उस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर लें। उसके बाद एक चैकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। तत्पश्चा भगवान गणेश की विधि विधान से पूजा करें। गणपति की पूजा करते समय जातक को अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए। सबसे पहले भगवान गणेश की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें। पूजा में आप तिल, गुड़, लड्डू, फूल ताम्बे के कलश में पानी, धुप, चन्दन , प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रख लें। ध्यान रहे कि पूजा करते समय आप देवी दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति भी अपने पास रखें। ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है। भगवान गणेश को रोली लगाएं, फूल और जल अर्पित करें। उसके बाद भगवान गणेश जी के सामने बैठकर अपनी मनोकामना को रखे और व्रत का संकल्प लें। पूजा के समय गणेश चालीसा और गणेश जी का पाठ अवश्य करें। इसके गणेश चतुर्थी की व्रत कथा पढ़े। तत्पश्चात भगवान गणेश की आरती करें। आरती करने के बाद उनको फल, तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद अवश्य बांटे। शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा का दर्शन करें और चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद व्रत का पारण करें। इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण होता है।

इन बातों का रखें विशेष ध्यान | Sankashti Chaturthi Puja Vidhi

संकष्टी चतुर्थी के शुभ अवसर पर कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए तो आइए अब जानते है कि संकष्टी चतुर्थी पर क्या करें और क्या ना करें।

संकष्टी चतुर्थी वाले दिन क्या करें

इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा करते समय गणेश जी की आरती, मंत्र और गणेश चालीसा का पाठ अवश्य करें और भगवान श्री गणेश की पूजा के दौरान संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत की कथा अवश्य पढ़ें अथवा सुनें।

शाम को गणेश जी को शमी का पत्ता या बेलपत्र अर्पित करें। जिन व्यक्तियों का इस दिन व्रत होता है वे दिन में फलाहार में केवल फल, साबूदाना, मूँगफली और आलू ग्रहण करें।

संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने वाले जातकों को ‘ऊँ गं गणपतयै नमः’ मंत्र का 108 बार जाप अवश्य करना चाहिए। आप भगवान गणेश के मंत्र ओम गणेशाय नमः का भी जाप कर सकते हैं। साथ ही आप संकट मोचन का भी पाठ कर सकते हैं। आप गणेशजी के 12 नाम का जप भी कर सकते हैं। इसके अलावा आप गणेश भगवान के शक्तिशाली मंत्र ॐ एकदन्ताय विधामहे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् का भी जाप करें। ऐसा करने से गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।गणेश चतुर्थी वाले दिन अगर किसी ब्राह्मण को भोजन कराया जाए, साथ ही गाय को हरी घास खिलाई जाए तो व्यक्ति की कुंडली में मौजूद ग्रह दोष समाप्त हो जाता है।

संकष्टी चतुर्थी के दिन साबुत हरी मूंग दाल का दान करने को भी लाभकारी माना गया है, इससे व्यक्ति को सद्बुद्धि मिलती है।
संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश भगवान की पूजा करते समय लाल या हरे रंग के वस्त्र धारण करना अत्यन्त शुभ होता है।

संकष्टी चतुर्थी वाले दिन क्या न करें

गणेश जी को तुलसी की पत्तियों को भूलकर भी न चढ़ायें।
हमें हमेशा ही सभी मनुष्यों का सम्मान करना चाहिए लेकिन विशेष कर गणेश चतुर्थी वाले दिन किन्नरों का अपमान नहीं करना चाहिए।
गणेश चतुर्थी वाले दिन इस बात का भी ध्यान रखें कि इस दिन किसी भी व्यक्ति को उधार नहीं देना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस दिन उधार लेन-देन करने से संचित धन में कमी आती है।
पशु-पक्षी का कभी भी भूलकर अपमान नहीं करना चाहिए क्योंकि उनमें देवताओं का वास होता है। ऐसे में गणेश चतुर्थी वाले दिन किसी भी पशु को न तो मारें और ना ही उसे तंग करें।
संकष्टी चतुर्थी वाले दिन किसी के साथ अभद्र व्यवहार न करें ना ही किसी से उसे कटु शब्द बोलें।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
गणेश चतुर्थी का व्रत महीने में दो बार आता है, लेकिन इस बार रविवार के दिन संयोग पड़ने पर रवि वती संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत मनाया जाएगा। ऐसे में यदि किसी जातक की कुंडली में सूर्य ग्रह कमजोर हो तो सूर्य ग्रह को मजबूत करने के लिए भी रवि वती संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत किया जा सकता है। इस व्रत को करके और सूर्य को प्रणाम किया जाता है और गणेशजी की आराधना की जाती है। इससे आपकी कुंडली में सूर्य के द्वारा होने वाली परेशानियां समाप्त हो जाती हैं।
संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की आराधना करने से पर सभी संकट दूर हो जाते हैं और उनका आशीर्वाद व्रत करने वाले जातक पर हमेशा बना रहता है।
अगर संभव हो तो संकष्टी चतुर्थी वाले दिन निर्जल व्रत रखते है। पुराणों में उल्लिखित है कि अगर किसी किसी दंपति के संतान सुख में बाधा आ रही हो तो इस व्रत के करने से भगान गणेश का आर्शीवाद प्राप्त और व्रत करने वाले जातक को भगवान गणेश संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं। इसलिए धर्म शास्त्रों में इस व्रत को जनकल्याणकारी बताया गया है।
किसी भी व्रत में दान का विशेष महत्व होता है। ऐसे में गणेश संकष्टी चतुर्थी वाले दिन किसी निर्धन व्यक्ति को कपड़ा, भोजन का दान करना चाहिए। इस दिन तिल दान करने का महत्व होता है।
जिस जगह पर भगवान गणेश का वास होता है, वहां पर रिद्धि, सिद्धि, शुभ और लाभ का वास भी होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी वाले दिन भगवान गणेश का पूजन करने से सभी विघ्न और बाधाएं समाप्त हो जाते हैं।
अगर आप भगवान गणेश भगवान को अपनी ताकत बनाना चाहते है तो गणेश चतुर्थी के दिन एक छोटा सा उपाय कर लें। लाल गुड़हल का फूल उनके सिर पर चढ़ाएं और सूखने पर उसे पर्स में रख लें। ऐसा करने पर अगर आप किसी विपत्ति में फंस जाते है तो भगवान गणेश उस संकट को दूर कर देंगे।
तो यह थीं संकष्टी गणेश चतुर्थी से जुड़ी विशेष बातें जिनका ध्यान रख आज अपनी पूजा को सम्पन्न कर सकते हैं। हम आशा करते हैं कि गणेश जी की कृपा आप पर बनी रहे और आपका व्रत सफल हो। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने परिचितों व संबंधियों के साथ शेयर अवश्य करें।

सोम प्रदोष व्रत वाले दिन इस तरह करें भगवान भोलेनाथ की पूजा, पूरी होगी सभी मनोकामना | Som Pradosh Vrat Katha in Hindi

हिन्दू धर्म में व्रत रखने की परंपरा काफी पुरानी है। व्रत रखने के पीछे धार्मिक कारण भी है और वैज्ञानिक भी। धार्मिक कारण यह है कि लोग अपनी मन की शुद्धि और अपने भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते है तो वही विज्ञान कहता है कि अगर आप हफ्ते में एक दिन व्रत रखते है तो आपकी सेहत अच्छी रहती है। व्रत रखने से शरीर में स्फूर्ति आती है, साथ ही आत्मबल भी बढ़ता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में अनेक व्रतों का विधान है। इन्ही व्रतों में से एक है प्रदोष व्रत। प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित व्रत है। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। हर महीने में दो बार प्रदोष व्रत पड़ता है। एक कृष्ण पक्ष में दूसरा शुक्ल पक्ष में। आज के लेख में हम जानेंगे कि दिसम्बर महीने का पहला प्रदोष व्रत कब है, किस तरह प्रदोष व्रत में पूजा करनी चाहिए, प्रदोष व्रत का क्या महत्व है और इससे संबधित सभी बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

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प्रदोष व्रत कब है | Som Pradosh 2022

मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 5 दिसंबर, दिन सोमवार को है। सोमवार को प्रदोष तिथि पड़ने के चलते इसे सोम प्रदोष कहते है। जबकि जब मंगलवार को प्रदोष तिथि पड़ती है तो उसे भौम प्रदोष कहा जाता है। प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। अगर आप प्रदोष काल के बारे में नहीं जानते है तो हम आपको बता दे कि प्रदोष काल वह समय कहलाता है, जब सूर्यास्त हो रहा होता है और रात्रि आने के पूर्व समय को प्रदोष काल कहते है। अर्थात सूर्यास्त के 45 मिनट पहले से और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक के काल को प्रदोष काल कहा जाता है।

सोम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त | Som Pradosh Muhurat

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 5 दिसंबर 2022 को सुबह 05 बजकर 57 मिनट पर शुरू होगी। वहीं इसका समापन अगले दिन 06 दिसंबर 2022 को सुबह 06 बजकर 47 मिनट पर होगा। प्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त दिनांक 5 दिसंबर, 05 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 15 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में भगवान भोलेनाथ की पूजा-आराधना करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं। संतान की इच्छा रखने वाले दंपत्ति भी प्रदोष व्रत रखते हैं।

सोम प्रदोष व्रत की पूजा विधि | Som Pradosh Vrat Vidhi | Som Pradosh Puja Vidhi

सोम प्रदोष वाले दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करने के पश्चात शिव मंदिर में आकर ‘अहमद्य महादेवस्य कृपाप्राप्त्यै सोमप्रदोषव्रतं करिष्ये‘ कहकर प्रदोष व्रत का संकल्प करें। प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान लाल या गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान भोलेनाथ का षोडषोपचार पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात शिवलिंग पर बेलपत्र, अक्षत, धूप-दीप, जल, गंगाजल, फूल, मिठाई आदि अर्पित करें। भोलेनाथ को बेलपत्र बहुत ही प्रिय है। प्रदोष व्रत के दिन बिल्वपत्र चढ़ाने से बहुत ही शुभ फल प्राप्त होता है।

इसके बाद धूप-दीप से भगवान शिव की आरती उतारें और उनको भोग लगाएं। इसके बाद मंदिर में बैठकर एक माला ‘ऊँ नमः शिवाय‘ और महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। इसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें और प्रदोष व्रत की कथा सुनें। प्रदोष व्रत करने वाले साधक को पूरे दिन षिव जी का ध्यान करना चाहिए और षिव मंत्रों का निरन्तर जाप करना चाहिए। सोम प्रदोष व्रत पर शिवलिंग का अभिषेक करते समय ‘ऊँ सर्वसिद्धि प्रदाये नमः‘ मन्त्र का 108 जाप अवष्य करें।

प्रदोष व्रत वाले दिन क्या खाये | Som Pradosh Vrat Me Kya Khana Chahiye

प्रदोष व्रत में दिन में केवल एक ही समय फलाहार ग्रहण करना चाहिए। बार-बार मुंह झूठा नहीं करना चाहिए। प्रदोष व्रत में आप दूध का सेवन भी कर सकते हैं या दूध से बनी चीजें जैसे- दही, श्रीखंड या पनीर खा सकते हैं। व्रत का पारण अगले दिन करना चाहिए लेकिन आप चाहे तो प्रदोष व्रत वाले दिन शाम को भी व्रत खोल सकते है। शाम को भगवान शिव का अभिषेक पूजन करने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए। अगर आप अगले दिन व्रत का पारण कर रहे हैं तो हरे मूंग का सेवन अवश्य करें, क्योंकि हरा मूंग पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है।

कैसे करें प्रदोष व्रत का उद्यापन | Som Pradosh Vrat Udyapan Vidhi in Hindi

ग्यारह या 26 प्रदोष के व्रत को करने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन त्रयोदशी को ही करना चाहिए। उद्यापन से एक दिन पूर्व भगवान गणेश का विधिवत पूजन करना चाहिए। साथ ही रात्रि में जागरण भी करना चाहिए। प्रदोष व्रत की सारी सामग्री इकट्ठा करने के बाद घर के पूजा स्थल में मंडप बना ले। मंडप को वस्त्रों और रंगोली से तैयार करें। तत्पश्चात ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नमः’ मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन करें। हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग करें। हवन सम्पूर्ण होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती करें। इसके बाद ब्राहमणों को भोजन अवश्य करायें और अपने सामथ्र्य अनुसार दान दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके बाद अपनी मनोकामना को भोलेनाथ के सम्मुख रखें। सच्चे मन से जो भी जातक प्रदोष व्रत का उद्यापन करता है उस पर भगवान शिव शंकर प्रसन्न होकर उसकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।

सोम प्रदोष व्रत का महत्व | Som Pradosh Vrat Ka Mahatva

प्रदोष व्रत का बड़ा महत्व है। प्रदोष व्रत करने वाले जातकों पर भगवान भोलेनाथ की कृपा बनी रहती है। व्रत रखने वाले जातकों को जीवन में कभी भी हार का सामना नहीं करना पड़ता है।

ऐसी मान्यता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और उस समय सभी देवी-देवता उनके गुण का स्तवन करते हैं। ऐसे में जो भी जातक प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की सच्चे मन से पूजा करता है, उस व्यक्ति की सभी मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति होती है और व्यक्ति सभी प्रकार के दोषों से मुक्त हो जाता है।

सोम प्रदोष का व्रत रखने से आपकी कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है क्योंकि सोम प्रदोष व्रत का संबंध चंद्रमा से होता है।

सोम प्रदोष व्रत वाले दिन भोलेनाथ का अभिषेक, रुद्राभिषेक और श्रृंगार करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है। भगवान षिव शंकर प्रसन्न होकर उसकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।

जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष या ग्रहण दोष है, उन्हें सोम प्रदोष का व्रत जरूर रखना चाहिए। प्रदोष व्रत रखने और शिव पूजा करने से रोग, ग्रह दोष, कष्ट, पाप आदि दूर होते हैं।

सोम प्रदोष व्रत को करे ये उपाय | Som Pradosh Ke Upay

संतान की लालसा रखने वाले दंपत्ति अगर एक साथ मिलकर सोम प्रदोष का व्रत रखें और शिवलिंग का पंचगव्य से अभिषेक करें। अगर आप सोम प्रदोष वाले दिन ये उपाय करते हैं तो आप पर भोलेनाथ की कृपा बरसती है और आपको जल्द ही संतान की प्राप्ति होगी।

अगर आप आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं और इस समस्या को दूर करना चाहते हैं तो सोम प्रदोष वाले दिन दूध से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करे। इसके बाद शिवलिंग पर फूलों की माला अर्पित करें। ऐसा करने से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होते है और आपके जीवन में चली आ रही आर्थिक समस्याएं दूर हो जाती है।

घर-परिवार में सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए गाय के दूध से शिवलिंग का अभिषेक करें और शिव के मंत्रों का जाप करें। ऐसा करने से घर-परिवार में सुख-शांति और आपसी प्रेम बना रहेगा।

अगर आप लगातार बीमार पड़ रहे है और चली आ रही बीमारी को दूर करना चाहते है तो गाय के घी से शिवलिंग का अभिषेक करें और शिवलिंग पर बेला के फूल या हरसिंगार के फूलों को अर्पित करें। ऐसा करने से सुख-संपत्ति बढ़ती है और आपको आरोग्यता की प्राप्ति होती है।

अगर आपके जीवन में चली आ रही समस्याएं पीछा नहीं छोड़ रही है तो सोम प्रदोष के दिन जल में काले तिल मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करें और काले तिल का दान करें। ऐसा करने से आपके जीवन में चली आ रही सभी अड़चन दूर होती हैं और आपको पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

अगर आपका दांपत्य जीवन खुशहाल नहीं है। दांम्पत्य जीवन में कोई ना कोई समस्या लगी रहती है तो सोम प्रदोष के दिन गुलाब के 27 लाल फूल 27 बार ऊं नमः शिवाय का जाप करते हुए शिव जी को अर्पित करें। साथ ही भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर चंदन का इत्र अर्पित करें। अगर दोनों पति-पत्नी एक साथ मिलकर इस उपाय को करते हैं तो दांम्पत्य जीवन में चली आ रही सभी समस्याएं दूर हो जाती है।

प्रदोष व्रत वाले दिन आप किसी तालाब या नदी किनारे जाकर मछलियों को आटे की गोलियां खिलाये तथा गरीबों को अन्न, वस्त्र का दान अवष्य करें। ऐसा करने वाले जातक पर भोलेनाथ की कृपा बरसती है।

यदि कोई जातक 11 अथवा एक वर्ष तक सभी त्रयोदशी का व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं अवश्य और शीघ्रता से पूर्ण होती है।

प्रदोष व्रत वाले दिन ना करें ये काम | Som Pradosh Kya Kare Kya Na Kare

प्रदोष व्रत के दौरान सादा नमक, चावल, अनाज और लाल मिर्च का सेवन नहीं करना चाहिए।

प्रदोष व्रत करने वाले जातक को कभी भी कटे-फटे कपड़े नहीं पहनने चाहिए।

प्रदोष व्रत करने वाले जातक को क्रोध नहीं करना चाहिए। व्रत करने वाले जातक को शांत रहना चाहिए।

प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा करते समय कभी भी काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। काला रंग नकारात्मकता का प्रतीक होता है। भोलेनाथ की लाल या पीले रंगे कपड़े पहनकर पूजा करना अच्छा माना जाता है।

भगवान शिव को हल्दी के अलावा, केतकी के फूल, तुलसी की पत्तियां, नारियल का पानी, शंख का जल, कुमकुम या सिंदूर कभी भी नहीं चढ़ाना चाहिए।

आज हमने भगवान भोलेनाथ के सर्वोत्तम व्रत प्रदोष व्रत की महिमा जानी। प्रदोष व्रत जीवन की सारी समस्याओं को दूर करने वाला और जीवन में खुशहाली लाने वाला व्रत है।

मोक्षदा एकादशी पर किस तरह करें जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा, जाने मोक्षदा एकादशी का शुभ मुहूर्त व पूजा विधि

हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्व है क्योंकि एकादशी की तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। पुराणों में ऐसा वर्णित है कि एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। हर महीने में दो एकादशी पड़ती है। पहली कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। मार्ग शीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते है। इस बार मोक्षदा एकादशी 3 दिसम्बर, शनिवार को पड़ रही है। शास्त्रों में ऐसा उल्लिखित है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत रखने वाला जातक जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। 3 दिसम्बर को ही गीता जयंती भी है। आज ही के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरूक्षेत्र के मैदान में गीता का ज्ञान दिया था। मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप की पूजा-अर्चना चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए विष्णु सहस्त्रनाम और नारायण कवच का पाठ करना भी श्रेयस्कर होता है।

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मोक्षदा एकादशी का शुभ मुहूर्त –

किसी भी त्योहार की पूजा शुभ मुहूर्त में करने पर उसका विशेष फल प्राप्त होता है। हिंदू पंचांग और ज्योतिष के अनुसार मोक्षदा एकादशी की शुरुआत 3 दिसंबर, शनिवार की सुबह 5 बजकर 39 मिनट से प्रारंभ होकर 4 दिसंबर, रविवार की सुबह 5 बजकर 34 मिनट तक रहेगी। सूर्योदय का समय सुबह 6 बजकर 57 मिनट पर है। ऐसे में शाम को भद्रा काल शुरू होने से पहले पूजा कर लेना चाहिए क्योंकि भद्रा काल में की गई पूजा का फल नहीं मिलता है। भद्रा काल 3 दिसंबर की शाम 5 बजकर 33 मिनट से 4 दिसंबर की सुबह 5 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। मोक्षदा एकादशी पर इस साल रवि योग भी बन रहा है। इस योग को बेहद शुभ मान गया है। अगर आप इस योग में नर नारायण भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते है तो आपको विशेष फल प्राप्त होगा।

एकादशी के व्रत का पारण 4 दिसंबर को होगा। पारण के दिन यानि 4 दिसंबर को पूरा दिन सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। पारण का शुभ समय 4 दिसंबर की सुबह 07ः05 बजे से 09ः09 बजे तक रहेगा.। किसी भी व्रत को करने के बाद दान-दक्षिणा जरूर देना चाहिए। ऐसा करने से व्रत करने वाले जातक को व्रत का पूरा लाभ मिलता है।

इस तरह करे मोक्षदा एकादशी पर पूजा

एकादशी के दिन ब्रह्मवेला में भगवान को पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत से पूजन करना चाहिए। इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है। इस व्रत में दान करने से कई लाख गुना वृद्धि फल की प्राप्ति होती है। मोक्षदा एकादशी वाले दिन सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। अपने घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। इसके बाद भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें। भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी की पत्ती अर्पित करें। इसके बाद भगवान की आरती करें। तत्पश्चात भगवान को भोग लगाएं। अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।

मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा | Mokshada Ekadashi Vrat Katha

पौराणिक कथा के अनुसार वैखानस नामक राजा चंपकनगर शहर पर शासन करता था। वहीं चंपकनगर के वासी भगवान विष्णु में अटूट आस्था रखते थे। एक रात राजा को एक भयावह सपना आया कि उसके पिता को यमलोक में यातना दी जा रही है। इस विचित्र सपने के सम्बन्ध में राजा ने अपने मंत्रियों की सभा बुलाई और उन्हें अपने सपने के विषय में बताया। साथ ही सभी मंत्रियों से अपने पिता की मुक्ति का उपाय बताने के लिए कहा। सुझाव के रूप में मंत्रियों ने राजा को पर्वत मुनि के आश्रम जाकर उनसे सहायता मांगने के लिए कहा। जब राजा पर्वत मुनि के आश्रम पहुंचे और उनसे अपने सपने के विषय में बताया। तब पर्वत मुनि ने राजा को बताया कि ‘राजन! आपके पिता ने एक अपराध किया था, जिस वजह से उन्हें यमलोक में यातनाओं को भोगना पड़ रहा है।‘ जब राजा ने उनसे मुक्ति का उपाय पूछा तब पर्वत मुनि ने उन्हें सुझाव दिया कि वह मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी पर व्रत का पालन करें और श्रद्धापूर्वक दान-धर्म करें। इस दिन उपवास रखने से पितरों को यमलोक से मुक्ति मिल जाती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। पर्वत पुनि के सुझाव का पालन करते हुए राजा ने मोक्षदा एकादशी व्रत का पालन किया और दान-धर्म किया। इसके परिणाम स्वरूप राजा के सभी पूर्वज जो यमलोक में यातनाएं भोग रहे थे, उन्हें मुक्ति मिल गई और वह सभी जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो गए।

मोक्षदा एकादशी वाले दिन क्या खाये

मोक्षदा एकादशी वाले दिन सूर्योदय से लेकर अगले दिन व्रत के पारण करने तक उपवास रखना चाहिए। अगर आप उपवास नहीं रख सके तो एकादशी वाले दिन सात्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी वाले दिन आप सब्जियां, दूध और नट्स का भी सेवन कर सकते हैं। एकादशी वाले दिन चावल, राजमा और लहसुन भूलकर भी नहीं खाना चाहिए।

मोक्षदा एकादशी पर इन बातों का रखे विशेष ध्यान

एकादशी के भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाएं।

  • भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
  • एकादशी वाले भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
  • एकादशी वाले दिन भगवान विष्णु का अधिक से अधिक ध्यान करने के साथ ही साथ विष्णु सहस्त्रनाम और नारायण कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए।
  • एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल खाना कीड़े खाने के बराबर होता है।

इन नियमों का करें पालन

एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को एक दिन पूर्व यानि दशमी की रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए।

  1. एकादशी के दिन केवल फलों का ही भोग लगाना चाहिए और समय≤ पर भगवान विष्णु का सुमिरन करना चाहिए। रात्रि में पूजन के बाद जागरण करना चाहिए।
  2. अगले दिन द्वादशी को पारण करना चाहिए। किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दान-दक्षिणा देना चाहिए।
  3. सके बाद स्वयं को भोजन ग्रहण करके व्रत खोलना चाहिए।
  4. विष्णु जी के बीज मंत्र का करें जाप
  5. मोक्षदा एकादशी के दिन शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद एकादशी की कथा अवश्य सुननी चाहिए।
  6. भगवान विष्णु की आरती करें और कम से कम 108 बार भगवान विष्णु के बीज मंत्र का जाप करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों के सारे दुखों को दूर करते है और उनकी सारी मनोकामना पूर्ण करते है।