सभी पापों को नष्ट करता है पापमोचिनी एकादशी का व्रत, जाने व्रत की पूरी विधि व कथा
हिन्दू धर्म में व्रत, उपवास का बहुत अधिक महत्व है। व्रत को रखने के पीछे आध्यात्मिक व वैज्ञानिक दोनों कारण होते हैं। व्रत रखने से शरीर स्वस्थ और मन शांत होता है। अलग-अलग तिथियों पर अलग-अलग व्रतों को रखने की परंपरा है। हर व्रत का अलग-अलग महत्व भी होता है। इन्हीं व्रतों में से एक है एकादशी का व्रत। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। हर माह में दो एकादशी पड़ती है एक कृष्ण पक्ष में तो दूसरी शुक्ल पक्ष में। चैत्र मास का प्रारम्भ 8 मार्च से हो चुका है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहा जाता है। साल भर में पड़ने वाली 24 एकादशियों में पापमोचिनी एकादशी अंतिम होती है। पापमोचिनी एकादशी के दिन श्री हरि भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने और व्रत का पालन करने वाले जातक को जाने-अंजाने किये गये सभी पापों से मुक्ति मिलती है। आज के लेख में हम जानेंगे कि चैत्र मास में पापमोचिनी एकादशी कब है, कैसे इस दिन पूजा पाठ करना चाहिए और पापमोचिनी एकादशी का क्या महत्व है आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।
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पापमोचिनी एकादशी कब है | Papamochani Ekadashi Kab Hai 2023
पापमोचिनी एकादशी 18 मार्च, 2023 दिन शनिवार को पड़ेगी। पापमोचिनी एकादशी तिथि का आरंभ 17 मार्च रात्रि 11 बजकर 15 मिनट से प्रारंभ होकर 18 मार्च, दिन शनिवार को 11 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। हिन्दू धर्म में हर तिथि को करने से पहले उदया तिथि का मान किया जाता है। ऐसे में पापमोचिनी एकादशी का व्रत दिनांक 18 मार्च को करना ही श्रेयस्कर होगा। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी को किया जाता है। ऐसे में पारण 19 मार्च, दिन रविवार को करना चाहिए। पारण सुबह के समय ही करना चाहिए। पारण का शुभ समय दिनांक 19 मार्च को सुबह 6 बजकर 30 मिनट से 9 बजकर 27 मिनट है।
पापमोचिनी एकादशी पर ऐसे करे पूजा | Papamochani Ekadashi Puja Vidhi
पापमोचिनी एकादशी के दिन प्रातःकाल ब्रहम मुहूर्त में उठ जाएं। इसके बाद पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान कर लें। स्नान के बाद साफ वस्त्र पहन लें। ध्यान रखे जो भी वस्त्र आप धारण करें वह पीले या लाल हो। कभी भी काले वस्त्रों को धारण करके पूजा नहीं करनी चाहिए। अपने पूजा स्थल की पर्याप्त रूप से साफ-सफाई करने के बाद वहां पर भगवान श्री हरि विष्णु जी की तस्वीर स्थापित करें और उनके समक्ष बैठकर एकादशी के व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु को पीले फूल चढ़ाएं। श्री हरि भगवान विष्णु के सम्मुख देशी घी का दीपक जलाएं। पवित्र श्रीमद्भागवत गीता के ग्यारहवें अध्यान का पाठ करें। पूजा के दौरान पूरे समय भगवान विष्णु के पवित्र मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करते रहें। पापमोचिनी एकादशी की कथा करें। तत्पश्चात भगवान विष्णु की आरती करें। केले के पेड़ में जल दें। पूजन समाप्त होने के बाद सूर्य को अघ्र्य देना ना भूले। ऐसा करने से भगवान सूर्य और भगवान विष्णु दोनों का आर्शीवाद प्राप्त होता है। एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु को जो भी भोग लगाये उसमें तुलसी दल को जरूर डाले लेकिन ध्यान रहे कि कभी भी एकादशी के दिन तुलसी को ना तोड़े। तुलसी जी को दशमी के दिन ही तोड़ ले। आज के दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी के चतुर्भुज रूप का दर्शन करना सर्वोत्तम होता है।
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा | Papamochani Ekadashi Vrat Katha | Papamochani Ekadashi Story in Hindi
पापमोचिनी एकादशी की एक पुराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में चितस्थ नामक रमणिक वन में इंद्र देव, देवताओं और अप्सराओं के साथ भ्रमण कर रहे थे। वहीं पर मेधावी नाम के ऋषि भी कठोर तपस्या कर रहे थे। मेधावी ऋषि शिव जी के परम भक्त था। अप्सराएं अनुचरी थी वे देवताओं द्वारा किये भी उचित-अनुचित कार्य को करती थी। एक बार की बात है प्रेम के देवता कामदेव ने मंजूघोषा नाम की अप्सरा को ऋषि की तपस्या भंग करने की जिम्मेदारी सौंपी।
मंजूघोषा ने ऋषियों के सामने अपनी मुद्राओं, हाव भाव व कलाओं से अपनी ओर मोहित करने का प्रयास किया। अप्सरा की इन कामुक मुद्राओं से ऋषियों की तपस्या में कोई भंग नहीं पड़ा। इन्हीं ऋषियों में कुछ ऋषि ऐसे भी थे जो किशोरावस्था की दहलीज पर थे। वह अप्सरा की भाव-भंगिमाओं पर मोहित हो गए और रति क्रीडा में लीन हो गए। ऋषि और अप्सराओं को काम क्रीडा करते हुए 57 साल बीत गये। एक दिन मंजूघोषा अप्सरा ने ऋषि के सम्मुख वापस देवलोक जाने की इच्छा रखी। ऋषि को इस बात का एहसास हो गया कि अंजाने में उससे कितना बड़ा अपराध हो गया। उसे इस बात का आत्मज्ञान हो गया कि उससे यह घृणित काम अप्सरा मंजूघोषा के कारण ही हुआ। ऋषि पुत्र क्रोधित हो गया और क्रोध में आकर उसने मंजूघोषा को पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। ऋषि पुत्र के श्राप से अप्सरा दुखी हो गई। उसने ऋषि से इस योनि से मुक्ति का उपाय पूछा। अप्सरा की करुण व्यथा से ऋषि पुत्र का हृदय पिघल गया। ऋषि पुत्र ने अप्सरा को पापमोचनी एकादशी का व्रत करने को कहा। अप्सरा मंजुघोष ने ऋषि पुत्र की आज्ञानुसार पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत के प्रभाव अप्सरा पिशाच योनि से मुक्त होकर देवलोक में वापस चली गई। जो भी व्यक्ति पापमोचनी एकादशी का विधिपूर्वक पूजन व व्रत करता है, उसे उसके सभी पापो से मुक्ति मिलती है । साथ ही उसे उसके सारे संकटों से छुटकारा मिलता है और मृत्यु उपरांत मोक्ष फल की प्राप्ति होती है।
पापमोचनी एकादशी का महत्व | Papamochani Ekadashi Ka Mahatva
पापमोचनी एकादशी के महत्व के बारे में भविष्योत्तर पुराण और हरिवासर पुराण में उल्लेख मिलता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी जातक सच्ची श्रद्धा से पापमोचनी एकादशी का व्रत करता है, उसे 1000 गाय दान करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
पापमोचनी एकादशी का व्रत संतान सुख प्रदान करने वाला व्रत हैं। इस व्रत के प्रभाव से निःसंतान दंपति को संतान सुख की प्राप्ति होती है। जातक के घर में सुख समृद्धि बढ़ती है। जातक को सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।
पापमोचिनी एकादशी व्रत के नियम | Papamochani Ekadashi Vrat Ki Niyam
पापमोचिनी एकादशी के व्रत को आप दो तरह से रख सकते हैं जिसमें से पहला है निर्जल। इसके तहत उपासक को व्रत के दौरान पानी का सेवन नहीं करना होता है, जिसके चलते इसे सिर्फ स्वस्थ व्यक्तियों को ही रखने की सलाह दी जाती है. वहीं पर दूसरा तरीका फलाहार या जलीय व्रत का है जिसमें सिर्फ फलाहार या फिर पानी पीने की छूट होती है. सामान्य लोगों को इसी तरीके से व्रत रखने की सलाह दी जाती है.
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क्या न करें इस दिन | Papamochani Ekadashi Ke Din Kya Na Kare
पापमोचिनी एकादशी के दिन तामसिक भोजन, प्याज, लहसुन, मास मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
आज के दिन महिलाओं को बाल नहीं धोना चाहिए। न ही आज के दिन बालों में तेल लगाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन जो महिलाएं बाल धोती है उनके घर में कलह क्लेश का वातावरण बना रहता है। घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर जाती है। परिवार में लड़ाई झगड़े बढ़ते है, घर में लक्ष्मी की हानि होती है।
आज के दिन सुबह देर तक तक नहीं सोना चाहिए, ब्रहम मुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए। अगर आप देर तक सोते है तो आपके घर में दरिद्रता का वास हो जाता है।
एकादशी के दिन ब्रहमचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। पति-पत्नी को आपस में संबंध नहीं बनाना चाहिए। मान्यता है कि अगर आज दंपत्ति संबंध बनाते है तो उससे संतान होती है तो संतान का जीवन दुखदायी रहता है।
एकादशी के दिन दोपहर के समय कभी भी नहीं सोना चाहिए। अगर आप दोपहर में सो जाते है तो आपके घर में दरिद्रता आती है।
सारांश
पापमोचिनी एकदाशी का व्रत ररखने वाले जातक के मन में एकाग्रता आती है और मन शांत रहता है. इसके साथ ही धन, आरोग्य और संतान की प्राप्ति के लिए भी पापमोचिनी एकादशी का व्रत सर्वोत्तम हैं। . इस व्रत को रखने से व्यक्ति को मानसिक शांति भी मिलती है। पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखने वाले जातक से जाने-अंजाने में किये गये पापों से मुक्ति मिलती है। तो दोस्तों यह थी पापमोचिनी एकादशी के व्रत के बारे में पूरी जानकारी। उम्मीद करते हैं कि हमारे पिछले लेखों की तरह आपको यह लेख भी पसंद आयेगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ सोशल मीडिया पर साझा जरूर करें। इसी तरह के धार्मिक व अध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम।
FAQ | ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q. पापमोचिनी एकादशी कब है?
Ans. पापमोचिनी एकादशी 17 मार्च, को ही लग जायेगी लेकिन उदया तिथि के मान के चलते पापमोचिनी एकादशी का व्रत व पूजन दिनांक 18 मार्च दिन शनिवार को ही करना सर्वोत्तम होगा।
Q. पापमोचिनी एकादशी का क्या महत्व है?
Ans. पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने वाले जातक को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। उसके सभी कष्टों का निवारण होता है।
Q. पापमोचिनी एकादशी पर क्या न करें?
Ans.पापमोचिनी एकादशी के दिन तामसिक भोजन प्याज, लहसुन, मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन ब्रहमचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए।
Q. पापमोचिनी एकादशी व्रत के क्या नियम है?
Ans. पापमोचिनी एकादशी के व्रत को आप दो तरह से रख सकते हैं जिसमें से पहला है निर्जल। इसके तहत उपासक को व्रत के दौरान पानी का सेवन नहीं करना होता है, जिसके चलते इसे सिर्फ स्वस्थ व्यक्तियों को ही रखने की सलाह दी जाती है। दूसरा तरीके में आप दिन में फलाहार का सेवन कर सकते हैं।
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