षटतिला एकादशी पर इन छह तरीकों से करें तिल के उपाय, मिलेगी भगवान श्री हरि की असीम कृपा
हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्व है। हर माह में दो एकादशी पड़ती है। एक शुक्ल पक्ष में तो दूसरी कृष्ण पक्ष में। इस तरह साल भर में 24 एकादशियां पड़ती है। हर एकादशी का अपना नाम और महत्व है। माघ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी षटतिला एकादशी कहलाती है। इसे पापहारिणी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन तिल का दान-पुण्य करना श्रेष्ठतर होता है। आज के लेख में हम षटतिला एकादशी कब है, इसका पूजा मुहूर्त क्या है व इसका महत्व आदि पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
षटतिला एकादशी कब है | Shattila Ekadashi Kab Hai 2023
माघ मास दान, पुण्य के दृष्टिकोण से बहुत ही उत्तम महीना माना जाता है। इस दृष्टिकोण से इस माह पड़ने वाली एकादशी का बड़ा महत्व होता है। साल 2023 में षटतिला एकादशी 18 जनवरी दिन बुधवार को पड़ रही है। षटतिला एकादशी 17 जनवरी, दिन मंगलवार को शाम 06 बजकर 05 मिनट पर शुरू होकर 18 जनवरी, दिन बुधवार शाम 04 बजकर 03 मिनट तक रहेगी।
षटतिला एकादशी शुभ योग | Shattila Ekadashi Festival
षटतिला एकादशी पर तीन योग भी बन रहे है। यह योग हैं वृद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्ध योग। वृद्धि योग दिनांक 18 जनवरी को सुबह 05 बजकर 58 मिनट से 19 जनवरी सुबह 02 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। वृद्धि योग में पूजन करने से धन-संपदा में वृद्धि होती है। अमृत सिद्धि योग 18 जनवरी को सुबह 07ः02 से 18 जनवरी को शाम 05ः22 तक है। अमृत सिद्धि योग में पूजा करने से अमृत के समान फल की प्राप्ति होती । सर्वार्थ सिद्धि योग 18 जनवरी को सुबह 07 बजकर 02 मिनट से 18 जनवरी शाम 05 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। सर्वार्थ सिद्धि योग में पूजा करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं। इन योगों में एकादशी का पूजन करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है।
षटतिला एकादशी पूजा विधि | Shattila Ekadashi Pooja Vidhi
षटतिला एकादशी के दिन ब्रहम महूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान करें। चूंकि षटतिला एकादशी पर तिल का बहुत महत्व होता है। ऐसे में तिल और गंगाजल की कुछ बूदें अपने नहाने वाले जल में डालकर स्नान करें। इसके बाद साफ-सुथरे व धुले हुए वस्त्र धारण करें। अपने पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर ले। अपने पूजा घर में भगवान विष्णु की प्रतिमा लगाये और हाथ जोड़कर श्री हरि भगवान विष्णु का स्मरण करें। तत्पश्चात एकादशी के व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु को रोली, मौली, पीले चन्दन व पुष्प अर्पित करें। भगवान विष्णु को धूप दीप, नैवेद्य दिखायें। विष्णु सहस्नाम का पाठ करें। इसके बाद एकादशी की कथा पढ़े व भगवान श्री हरि की आरती करें। लक्ष्मी पति भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाये तथा यह प्रसाद समस्त परिजनों में वितरित करें। एकादशी वाले पूरे दिन भगवान विष्णु के मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ‘ का जप करें। इस मंत्र का जप करना बहुत फलदायी होता है। व्रत का पारण अगले दिन यानि 19 जनवरी को करें। इस दिन किसी ब्राहमण को भोजन करायें ओर उन्हें यथासंभव दान दक्षिणा भी दें।
षटतिला एकादशी व्रत कथा | Shattila Ekadashi Katha | Shattila Ekadashi Story
षटतिला एकादशी की कथा का वर्णन पद्य पुराण में दिया गया है। इस कथा के अनुसार एक शहर में एक महिला रहती थी। वह महिला भगवान श्री हरि विष्णु भगवान की नित्य पूजा-पाठ करती है। हर समय भगवान विष्णु की पूजा में लीन रहती थी। भगवान विष्णु का व्रत रखती थी लेकिन दान-पुण्य नहीं करती थी। मृत्यु के पश्चात जब वह बैकुंठ थाम पहुंची तो उसे रहने के लिए एक खाली कुटिया दी गई। वह महिला सोचने लगी। मैने तो भगवान श्री हरि की इतनी पूजा-पाठ की व्रत किया तो मुझे खाली कुटिया क्यों दी गई। तब भगवान बोले तुमने कभी भी किसी को कुछ भी दान नहीं दिया जिसके चलते तुम्हें उसका यह फल आज मिला है। मैं एक बार भिक्षुक बनकर तुम्हारे दरवाजे भिक्षा मांगने आया था तो तब तुमने मिट्टी का एक ठेला ही दे दिया। इस कारण तुम्हारा उद्धार नहीं हुआ। अगर तुम अपना उद्धार करना चाहती हो तो षटतिला एकादशी का व्रत करो। इसी दिन ब्राहमणों को भोजन कराओ और उन्हें दान दक्षिणा दो। विष्णु जी की बात सुनकर महिला ने षटतिला एकादशी का नियम पूर्वक व्रत पूजन किया। व्रत पूजन करने से उसकी कुटिया अन्न-धन से भर गई और वह महिला बैकुंठ लोक में खुशी-खुशी रहने लगी।
षटतिला एकादशी का महत्व | षटतिला एकादशी व्रत क्यों किया जाता है | Shattila Ekadashi Vrat Mahatva
जैसा कि नाम से जाहिर है षटतिला एकादशी। यानि कि इस एकादशी पर तिल का बड़ा महत्व है। षटतिला एकादशी के संबंध में पुराणों में वर्णित है कि आज के दिन भगवान विष्णु के पसीने से निकले तिल और गुड़ का व्यंजन बनाकर उसे ग्रहण करने और दान करने से सुख समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
षडतिला एकादशी वाले दिन तिल का छह तरीके से प्रयोग करना चाहिए। इस दिन तिल से शरीर पर मालिश करना स्वास्थ्य व अध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत लाभप्रद होता है। सर्दी का प्रकोप इस समय बढ़ा हुआ होता है। तिल गर्म होता है उससे शरीर में उत्पन्न रोग दूर होते हैं।
पुराणों में ऐसा वर्णित है कि आज के दिन जो जातक तिल से विष्णु जी के प्रिय मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करते हुए हवन करता है उस पर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा बरसती है। अगर आप सफेद तिल से हवन करते हैं तो ऐसा करने से माता लक्ष्मी का आर्शीवाद प्राप्त होता है। जातक के घर में आर्थिक समृद्धि आती है।
इस दिन दक्षिण दिशा की तरफ खड़े होकर तिल मिश्रित जल से पितरों का तर्पण करने से पितरों का आर्शीवाद प्राप्त होता है। व्यक्ति खूब फलता-फूलता है और परिवार में सुख-सौहार्द का वास होता है।
अगर आप इस दिन अपनी परेशानियों को खत्म करना चाहते है तो पंचामृत में तिल डालकर श्री हरि भगवान विष्णु को स्नान कराएं। ऐसा करने से आपके जीवन में चली आ रही परेशानियां दूर होगी व जीवन में खुशहाली का आगमन होगा।
दान करने से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है और मनुष्य इस संसार के सभाी सुखों को प्राप्त करता है। शास्त्रों में वर्णित है मनुष्य जितना अधिक दान करता है उसका सौ गुना उसके पास वापस लौट के आता है। षटतिला एकादशी वाले दिन तिल का सेवन करना और तिल का दान करना बहुत ही श्रेयस्कर होता है। इस दिन जो भी व्यक्ति तिल का दान करता है वह इस लोक में सुख भोगकर अन्त समय में स्वर्ग को जाता है। उसे यमराज का सामना नहीं करना पड़ता है। पुराणों में ऐसा वर्णित है कि तिल का दान करने वाले व्यक्ति के सभी पाप खत्म हो जाते है। इसलिए इस एकादशी को पापहारिणी एकादशी भी कहते है। इस दिन काले तिल का दान करने से शनि दोष दूर होता है।
एकादशी वाले दिन शाम को तिल का बना भोज्य पदार्थ बनाकर श्री हरि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को भोग लगाने से भगवान विष्णु की कृपा बरसती है। जो जातक एकादशी का व्रत न करें वह भी इस दिन तिल के बने व्यंजन जैसे लड्डू, गजक व अन्य पदार्थों का सेवन जरूर करें। इस दिन तिल का उबटन लगाने व तिल मिश्रित जल भी पीना चाहिए।
इस तरह छह कामों में तिल का उपयोग होने के चलते इस एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है। जातक को तीन ताप यानी दैहिक ताप ,दैविक ताप तथा भौतिक ताप से दूर रखती है। जितना अधिक पुण्य कन्यादान और हजारों वर्षों की तपस्या से भी नहीं मिलता उससे कही ज्यादा पुण्य षटतिला एकादशी का व्रत करने वाले जातक को मिलता है।
आज के दिन गौ माता की सेवा करनी चाहिए। गाय को गुड़ और रोटी अवश्य खिलानी चाहिए।
भूलकर भी एकादशी के दिन यह ना करें | Shattila Ekadashi Par Na Kare Ye Kam
एकादशी का व्रत रखने वाले जातक को एकादशी व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि से प्याज, लहसुन, मास, मदिरा का सेवन बंद कर देना चाहिए। दशमी तिथि को रात के बारह बजे के पश्चात कुछ नहीं खाना चाहिए।
जो जातक एकादशी का व्रत ना करें उन्हें भूलकर भी एकादशी वाले दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इस दिन चावल खाना कीड़े खाने के बराबर होता है।
निष्कर्ष
षटतिला एकादशी वाले दिन लक्ष्मी पति भगवान विष्णु की पूजा करने और उनके मत्रों का उच्चारण करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस दिन तिल के छह उपायों को करने से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि आती है और शरीर निरोगी रहता है।
तो दोस्तों आज के लेख में हमने षटतिला एकादशी के संबंध में सारी जानकारी आपको प्रदान की। उम्मीद करते हैं इस लेख के जरिए आपको षटतिला एकादशी के संबंध में सारी जानकारी मिल गई होगी। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ सोशल मीड़िया पर साझा अवश्य करें। ऐसे ही ज्ञानवर्द्धक और जानकारीपूर्ण धार्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहें।
जयश्रीराम
सम्बंधित स्टोरी :