गोवर्धन पूजा क्यों की जाती हैं – Govardhan Puja in Hindi

दोस्तों, दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती हैं यह पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है पर क्या आपको पता है कि गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती हैं ?

हमारे हिंदू धर्म में कई सारे ऐसे त्यौहार है जिसे सभी लोग बहुत ही उत्साह और खुशी से मनाते हैं लेकिन उन्हें यह पता ही नहीं होता कि जो पूजा वो कर रहे हैं उसके पीछे का कारण क्या है और कहीं ना कहीं गोवर्धन पूजा भी उन्हीं में से एक है!

क्योंकि गोवर्धन की पूजा क्यों की जाती है इस बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है! अगर आप भी इस बारे में नहीं जानते हैं तो आप इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़िए।

गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती हैं (Govardhan Parvat Pooja)

लोक कथाओं में ऐसा सुनने को मिलता हैं कि गोवर्धन पूजा द्वापर युग के बाद से मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं में गोवर्धन पूजा मनाने के कारणों में एक कहानी काफी प्रचलित है। और ये कहानी कृष्ण की लीलाओं से ही संबंधित है।

यह तब की बात है जब श्रीकृष्ण अपनी बाल अवस्था में थे, दरअसल हुआ यूं था कि एक दिन भगवान इंद्र अपने शक्तियों के अभिमान में आकर सभी ब्रज वासियों से कहते हैं कि अगर आपको वर्षा चाहिए तो आपको मेरी पूजा करनी होगी और अगर आप मेरी पूजा नहीं करेंगे, तो वर्षा नहीं होगी।

जिससे डरकर सभी ब्रजवासी इंद्र की बात मानकर उनकी पूजा करने को तैयार हो जाते हैं लेकिन कृष्ण ब्रज वासियों को यह कहकर इंद्र की पूजा करने से रोक देते हैं कि वर्षा कराना इंद्रदेव का कार्य और उन्हें यह कार्य निस्वार्थ भाव से करना चाहिए।

इस तरह से जबरदस्ती अपनी पूजा कराना गलत है साथ ही कृष्ण गांव वालों को यह भी कहते हैं कि अगर आपको पूजा ही करनी है तो आपको गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि इससे हम एक नहीं बल्कि कई लाभ प्राप्त होते हैं और इसके बदले गोवर्धन पर्वत हमसे कभी कुछ मांगता भी नहीं है।

कृष्ण की बात सुनकर सभी गांव वाले गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए जाते हैं जिससे क्रोधित होकर इंद्रदेव ब्रज में तूफानी बारिश कर देते हैं जिससे कुछ ही देर में पूरा ब्रज पानी में डूब जाता है इसीलिए गांव वालों की रक्षा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी दाहिने हाथ की छोटी उंगली पर उठा लेते हैं।

इंद्रदेव का क्रोध और उनकी वर्षा दो-तीन दिनों तक लगातार होती रही। एक छोटे से बालक की इतनी शक्ति देखकर अंततः इंद्रदेव को भी समझ आ जाता है कि यह कोई साधारण बालक नहीं बल्कि साक्षात नारायण के अवतार है।

जिसके बाद इंद्रदेव सीधे श्री कृष्ण से जाकर क्षमा याचना करते हैं और वर्षा को भी रोक देते हैं। इस घटना के पश्चात दीपावली के अगले दिन कृष्ण की लीला को याद रखने के लिए और गोवर्धन पर्वत के सहायता के लिए हर साल गोवर्धन पूजा की जाने जाती है। जो धीरे-धीरे करके पूरे भारतवर्ष में फैल गई।

गोवर्धन पूजा करने के पीछे एक मान्यता यह भी है कि गोवर्धन की पूजा में भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा की जाती है और जो लोग गोवर्धन की पूजा करते हैं उन पर भगवान श्री कृष्ण का हाथ हमेशा बना रहता है व भगवान कृष्ण भगवान की मनोकामनाओं को भी पूरा करते हैं।

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व क्यों कहा जाता है (Annakut Puja in Hindi)

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन पूरे भारतवर्ष में लोग इस त्यौहार को गोवर्धन पूजा के नाम से ही मनाते हैं। जैसा कि मैंने आपको बताया कि गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है जिसके लिए 56 भोग तैयार किए जाते हैं। इसी छप्पन भोग को अन्नकूट कहा जाता है।

इस दिन मंदिरों में अन्नकूट का आयोजन किया जाता है। और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने के बाद अलग-अलग सामग्री से बनाई गई अन्नकूट को भोज के तरह प्रस्तुत किया जाता है। पुरानी परंपराओं में इस दिन तेल की पूरी बनाने का रिवाज है इसके साथ-साथ कुछ लोग इस त्यौहार को मनाने के लिए बाजरे की खिचड़ी का भोग लगाते है।

सिर्फ मसालेदार व्यंजन ही नहीं बल्कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को दूध दही मक्खन आदि से बना हुआ स्वादिष्ट व्यंजन पूजा के पश्चात भक्तों में भोग के रूप में वितरित किया जाता है।

गोवर्धन पूजा के लिए कौन सी सामग्री लगती हैं (Govardhan Pooja Samagri)

गोवर्धन पूजा के लिए साफ और ताजे फूलों से बनी माला, अगरबत्ती, मिठाई, रोली आदि के साथ साथ चावल व गाय के गोबर की भी आवश्यकता होती है। इसके अलावा पूजा करने के लिए छप्पन भोग अलग से तैयार किए जाते हैं। साथ ही दही चीनी का प्रयोग करके पंचामृत बनाई जाती है।

गोवर्धन पूजा की विधि क्या है (Govardhan Puja Vidhi)

गोवर्धन पूजा इसीलिए भी बहुत खास होती है क्योंकि इस दिन भक्त गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसे फूलों से सजा कर उसकी पूजा करते हैं। पूजा करने के लिए गोबर से बने गोवर्धन पर्वत पर गंगा जल छिड़का जाता है और फिर फूल, माला, मिठाई, जल व फल चढ़ाकर पूजा की जाती है।

गोवर्धन पर्वत के अलावा उस दिन उन पशुओं की भी पूजा की जाती हैं जो कृषि कार्य में इस्तेमाल किए जाते हैं और इन पशुओं में विशेष तौर पर गाय की पूजा की जाती हैं।

गोवर्धन पूजा करते समय गोवर्धन जी को एक लेटे हुए पुरुष के आकार में बनाया जाते हैं और उनके नाम भी के स्थान पर दीपक जलाया जाता है। उसके बाद दही बताशा आदि चढ़ाकर अगरबत्ती दिखाकर उनकी पूजा की जाती है और जब पूजा पूरी हो जाती हैं तब बताशे को प्रसाद के रूप में सभी को बांट दिया जाता है।

पूजा समाप्त हो जाने के बाद गोवर्धन की 7 बार परिक्रमा की जाती है और उनकी जय की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग अपने घर पर गोवर्धन की पूजा करते हैं उनका घर हमेशा धनधान्य से संपन्न रहता है और उनके सिर पर विश्वकर्मा जी की सदा कृपा बनी रहती है।

गोवर्धन पूजा में यह गलती कभी नहीं करनी चाहिए

अगर आप गोवर्धन पूजा करते हैं तो आपको गलती से भी यह गलती नहीं करनी है –

गोवर्धन पूजा कभी भी बंद कमरे में नहीं की जाती हैं!

गोवर्धन पूजा में अगर आप पशु की पूजा करते हैं तो साथ में आपको भी भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा करनी चाहिए।

गोवर्धन पूजा में समस्त परिवार को एक साथ मिलकर पूजा करनी चाहिए ना कि अलग-अलग।

गोवर्धन पूजा में काले कपड़े पहनने की मनाही है इसीलिए इस दिन हल्के रंग के कपड़े पहनने चाहिए।

FAQ

Q.गोवर्धन पूजा में किसकी पूजा होती है?

गोवर्धन पर्वत !

Q.गोवर्धन पूजा पर क्या खाना चाहिए?

गोवर्धन पूजा में प्रसाद के रूप में अन्नकूट की सब्जी खानी चाहिए।

Q. गोवर्धन पूजा पर क्या नहीं करना चाहिए?

बंद कमरे में पूजा नहीं करनी चाहिए।

Conclusion

दोस्तों इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद अब आप जान गए होंगे कि गोवर्धन पूजा क्यों की जाती हैं ? अगर आपको लेख अच्छा लगा हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर साझा करें।

यह भी पढ़ें :

भाई दूज की कहानी – Bhai Dooj in Hindi

भारतवर्ष में रक्षाबंधन के बाद भाई बहन के लिए भाई दूज का त्योहार सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं भाई-बहन के बीच के रिश्ते को अटूट माना जाता है और ऐसा माना जाता है कि भाई-बहन एक दूसरे के पूरक होते हैं।

इसीलिए भाई-बहन के बीच के पवित्र रिश्ते को और मजबूती देने के लिए भाई दूज के त्यौहार को हर घर में मनाया जाता है। पर भाई दूज मनाने का केवल यही कारण नहीं है भाई दूज क्यों मनाया जाता है ?

इसके बारे में कोई विशेष जानकारी लोगों के पास ना होने के कारण लोग इसके महत्व को नहीं समझ पाते हैं। अगर आप इस वर्ष भाई दूज का त्यौहार केवल मनाना ही नहीं चाहते बल्कि इसके महत्व को भी समझना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़िएगा।

भाई दूज का त्यौहार क्यों मनाया जाता है | Bhaidooj Kyo Manate Hain | Bhai Dooj Festival

भाई दूज हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है और इसे लोग बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। भाई दूज का त्यौहार दीपावली के 2 दिन बाद मनाया जाता है। भाई दूज के दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर यमराज से उनके लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं इसीलिए इस त्यौहार को भाई टिका के नाम से भी जाना जाता है।

स्कंद पुराण में ऐसा लिखा गया है कि भाई दूज के दिन जो बहन अपनी भाई की लंबी उम्र की प्रार्थना करने के लिए भाई दूज की पूजा करके यमराज को प्रसन्न करती हैं यमराज उनकी प्रार्थना जरूर पूरी करते हैं।

जिस तरह से हमारे हिंदू धर्म में हर त्योहार मनाने के पीछे का एक प्रमुख कारण है ठीक उसी प्रकार भाई दूज मनाने के पीछे भी एक बड़ा कारण है और इसके पीछे भी एक कथा छिपी हुई है।

पुराणों में कहा गया है कि सूर्य देव और उनकी पत्नी संज्ञा के दो बच्चे थे। उनके पुत्र का नाम यमराज और उनकी पुत्री का नाम यमुना था। एक समय ऐसा आया जब देवी संज्ञा, सूर्य देव का तापमान सहन नहीं कर पा रही थी।

इसीलिए उन्होंने अपने शरीर की एक छाया बनाकर उसे सूर्यलोक में छोड़कर स्वयं उत्तरी ध्रुव में चली गई। देवी संज्ञा के उत्तरी ध्रुव चले जाने के बाद संज्ञा की छाया और सूर्य देव के मिलन से ताप्ती और शनिदेव का जन्म हुआ।

यम और यमुना की असली माता संज्ञा के उत्तरी ध्रुव चले जाने के बाद छाया का यम और यमुना के प्रति व्यवहार थोड़ा भिन्न हो गया था। जिससे व्यथित होकर यमराज सूर्यलोक से हटकर अपनी नगरी यमपुरी बना लेते हैं।

जबकि यमुना अपनी भाई यमराज को पापियों को सजा देते हुए देखकर दुखी होने लगी और उन्होंने अंततः धरती लोक में आश्रय लेने का तय किया। एक दूसरे से दूर होने के बाद भी यमराज और यमुना में बहुत प्रेम था।

अलग-अलग स्थानों में चले जाने के बाद जैसे जैसे दिन बीतते चले गए वैसे वैसे यमराज को अपनी बहन यमुना की याद सताने लगी। यमराज सदैव अपनी बहन यमुना को याद करते रहते थे लेकिन पापियों के लेखा-जोखा में व्यस्त रहने के कारण वे चाह कर भी अपनी बहन से मिल नहीं पा रहे थे।

लेकिन कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन जब यमुना ने स्वयं यमराज को अपने घर भोजन के लिए निमंत्रण दिया। तब यमराज सोचने लगे कि लोगों के प्राण हरने के कारण उन्हें कोई भी अपने घर पर नहीं बुलाता लेकिन उनकी बहन सब कुछ जानने के बाद भी उन्हें अपने घर बुला रही है तो उन्हें अवश्य ही जाना चाहिए।

यमराज सीधे यमुना के घर के लिए निकल जाते हैं। जब यमराज यमुना के घर पहुंचते हैं तो अपने भाई को अपने घर पर आया देख यमुना बहुत ज्यादा खुश हो जाती है।

जिसके पश्चात यमुना स्नान करके अपने प्यारे भाई के लिए अच्छा सा व्यंजन तैयार करती हैं और उन्हें खाना परोसती हैं। यमुना के इतने अच्छे और प्यारे सत्कार से खुश होकर यमराज यमुना से कहते हैं मांगो तुम्हें क्या मांगना है आज तुम जो भी मांगोगी मैं तुम्हें वो दे दूंगा।

यमराज की बात सुनकर यमुना उनसे कहती हैं कि हे भाई, आप प्रत्येक वर्ष इसी दिन मेरे घर पर आया करें और इस दिन जो बहने अपने भाई के माथे पर तिलक करेगी आप से उनको भय नहीं होना चाहिए।

यमुना की बातें सुनकर यमराज उन्हें वरदान देकर और उनके लिए जो उपहार वो अपने साथ लाए थे वो उपहार उन्हें देखकर यमराज यमपुरी चले जाते हैं। और उस दिन के बाद से भाई दूज बनाने की यह परंपरा चलती आ रही है। यही कारण भी है कि भाई दूज के दिन यमराज और यमुना की पूजा की जाती है।

भाई दूज व्रत की पूरी कथा | Bhaai Dooj Vrat Katha

हम सभी जानते है कि यमराज और यमुना के कारण ही भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है लेकिन इस दिन व्रत रखने का कारण कुछ और है। भाई दूज के दिन व्रत रखने का मुख्य कारण ये माना जाता है कि इस दिन नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्री कृष्ण अपनी प्यारी बहन सुभद्रा से मिलने के लिए गए थे।

भाई के आने की खबर सुनकर बहन सुभद्रा व्रत रखकर अपने भाई के आने की प्रतीक्षा करती है और उनके आने के पश्चात उनका आदर सत्कार करके उनके माथे पर तिलक करके उनकी आरती की व उनकी पूजा करती हे।

जिसके बाद से बहनों द्वारा भाई दूज के अवसर पर व्रत रखकर व भाई के माथे पर तिलक लगाकर पूजा करने की परंपरा मनाई जाती हैं।

भाईदूज मंत्र क्या है | Bhai Duj Mantra

जैसा कि मैंने आपको बताया कि भाई दूज के अवसर पर यमराज और यमुना दोनों की पूजा की जाती है इसीलिए इस दिन पूजा के दौरान जो मंत्र बोले जाते हैं उसमें यमराज और यमुना दोनों का ही नाम आता है साथ ही साथ इस दिन कृष्ण और सुभद्रा की भी पूजा होती है तो उनके नाम का भी मंत्र में लिया जाता है –

भाई दूज के मंत्र का उच्चारण कुछ इस प्रकार से किया जाता है –

” गंगा पूजा यमुना को, यमी पूजे यमराज को !
सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई आप बढ़ें फूले फलें !! “

FAQ

प्रश्न: भाई दूज का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर: यम द्वितीया या भैया दूज ।

प्रश्न: भाई दूज के दिन किस देवता की पूजा की जाती है?

उत्तर: यमराज !

प्रश्न: भैया दूज कब मनाया जाता है ?

उत्तर: शुक्ला पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन भैया दूज मनाया जाता है।

अंतिम शब्द

उम्मीद करते हैं इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपको समझ आ गया होगा कि भाई दूज क्यों मनाया जाता है ? अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें।

राशि क्या है और कैसे होता है राशियाँ का निर्धारण (Rashi in Hindi)

हिंदू धर्म में राशि का बहुत महत्व होता है। राशि के आधार पर किसी व्यक्ति के स्वभाग, आचरण का पता लगाया जा सकता है। हर व्यक्ति की दो राशियां होती है, एक जन्म के आधार पर निर्धारित होती है और दूसरी पुकारने वाली राशि। राशि शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है समूह। आज के लेख में हम राशि क्या है, कितनी होती है राशियां, कैसे राशि का निर्धारण आदि के विषय में जानेंगे।

राशि क्या है (Rashi Kya Hai)

ब्रह्मांड अनगिनत तारों, ग्रहों, उपग्रहों और पिण्डों से भरा हुआ है। दूर से देखने से तारों के वहां ढेरो समूह हैं,। इन तारों की अलग-अलग आकृतियां प्रतीत होती हैं। तारों के इन्ही समूह को नक्षत्र कहा जाता है। आकाश मंडल में इस तरह के 27 समूह हैं, जिन्हें 27 नक्षत्र कहते हैं। इन नक्षत्रों के अलग-अलग गुण धर्म हैं। इन 27 नक्षत्रों को 12 भाग यानी नक्षत्रों के छोटे-छोटे समूह में विभाजित किया गया है। यही 12 भाग यानी नक्षत्रों के छोटे-छोटे 12 समूह राशि कहलाते हैं

rashi_in_hindi_jaishreeram

राशि का निर्धारण कैसे होता है | Rashi ka Nirdharan Kaise Hota Hai

ज्यादातर लोग राशि को लेकर असमंजस की स्थिति में रहते है। इसका कारण यह है कि कुछ लोग पुकारने वाले नाम के अनुसार राशि का अंदाजा लगाते हैं तो कुछ चंद्र राशि के अनुसार। वहीं पश्चिमी ज्योतिष में सूर्य राशि के अनुसार राशि का निर्धारण होता है, लेकिन इनमें से सबसे ज्यादा प्रभावी क्या है। इसको लेकर अलग-अलग लोगों में अलग-अलग अवधारणा है। भारतवर्ष में चंद्र राशि को ज्यादा अहमियत दी जाती है क्योंकि ज्योतिष में चंद्र ग्रह को मन का कारक माना गया है। वहीं सूर्य ग्रह को आत्मविश्वास और आत्मा का कारक माना गया है। यही कारण है कि भारतीय ज्योतिष व वैदिक ज्योतिष में चंद्र राशि को ज्यादा महत्व दिया जाता है। चंद्र राशि के द्वारा व्यक्ति की भावनाएं पता चलती है इसलिए इससे ज्यादा सटीक तरीके से व्यक्ति के गुणों और व्यक्तित्व के बारे में पता लगाया जा सकता है। इसके उलट पाश्चात्य ज्योतिष सूर्य राशि को राशि मानते हैं। यानी हमारे जन्म के समय सूर्य जिस राशि में विराजमान हो वही हमारी राशि माना जाएगा। सूर्य राशि से हम बाहरी व्यक्तित्व के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। पर मन, बुद्धि, घन, सफलता आदि के आकलन के लिए चंद्र राशि ही महत्वपूर्ण है।

राशि के प्रकार | Types of Rashi in Hindi | Types of Zodiac

राशि के 12 प्रकार होते हैं। ये राशियां होती है, मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन। इन सभी राशियों का स्वामी भी अलग-अलग होता है। ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक राशि के स्वामी ग्रह होते हैं। सूर्य और चंद्रमा दोनों एक-एक राशि के ग्रह माने जाते हैं, लेकिन गुरु, शुक्र, शनि, मंगल, बुध को दो-दो राशियों का अधिपत्य प्राप्त हैं।

1मेष राशि का स्वामी ग्रहमंगल
2वृषभ राशि का स्वामीशुक्र
3मिथुन राशि का स्वामीबुध
4कर्क राशि का स्वामीचंद्रमा
5सिंह राशि का स्वामीसूर्य
6कन्या का स्वामीगुरु,
7तुला का स्वामीशुक्र
8वृश्चिक का स्वामीमंगल
9धनु का स्वामीबुध
10मकर का स्वामीशनि
11कुंभ का स्वामीशनि
12रमीन का स्वामीगुरू

नाम के अनुसार राशी | Rashi by Name

1मेष राशि के वाले व्यक्तियों के नाम की शुरूआत – Kumbh Rashiअ,च, चू, चे, ला, ली, लू, ले स होती है।
2वृषभ वाले व्यक्तियों के नाम की शुरूआत – Vrishabha Rashiउ, ए, ई, औ, द, दी
3मिथुन राशि वाले जातकों के नाम की शुरूआत के, को, क, घ, छ, ह, ड से होती है। – Mithun Rashiके, को, क, घ, छ, ह, ड से होती है।
4कर्क राशि वाले व्यक्तियों के नाम की शुरूआत – Kark rashiह, हे, हो, डा, ही, डो से होती है।
5सिंह राशि वाले व्यक्तियों का नाम – Singh Rashiम, मे, मी, टे, टा, टी से
6कन्या वाले व्यक्ति के नाम – Kanya Rashiप, ष, ण, पे, पो, प से
7तुला राशि वाले व्यक्तियों के नाम – Tula Rashiरे, रो, रा, ता, ते, तू से
8वृश्चिक वाले व्यक्ति – Vrishchik rashiलो, ने, नी, नू, या, यी
9धनु वाले व्यक्ति के नाम – Dhanu Rashiधा, ये, यो, भी, भू, फा, ढा से
10मकर वाले व्यक्ति के नाम – Makar Rashiजा, जी, खो, खू, ग, गी, भो से,
11कुंभ वाले व्यक्ति के नाम – Kumbh Rashiगे, गो, सा, सू, से, सो, द,
12मीन वाले व्यक्तियों के नाम की शुरूआत – Meen Rashiदी, चा, ची, झ, दो, दू से होती है।

कैसे पता करें अपनी राशि | Apni Rashi Kaise Pata Kare | Apni Rashi Kaise Jane

बच्चे के जन्म लेकर करियर और विवाह सभी में राशि और कुंडली जरूरी होते हैं। हर व्यक्ति के मन में यह जिज्ञासा रहती है कि उसकी राशि क्या है? तो हम आपको बता दे कि किसी व्यक्ति की जन्मतिथि, जन्म का समय, वर्ष और स्थान आदि के आधार पर उसकी राशि का आसानी से पता लगाया जा सकता है। आप इस विवरण को किसी ज्योतिष को बताकर अपनी राशि और कुंडली के बारे में पता लगा सकते है। इतना ही नहीं आप स्वयं भी अपनी कुंडली बना सकते है। इसके लिए कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जिनमें अपना विवरण भरकर आप आसानी से अपनी कुंडली बना सकते हैं और राशि के बारे में जानकारी कर सकते हैं।

रशि का महत्व | Importance of Rashiya | Importance of Zodiac Signs Hindi

हर व्यक्ति की दो राशियां होती है एक वो जो उसके जन्म से जुड़ी है और दूसरी वह जो उसके बुलाने के नाम के अनुसार हो जाती है। इन दोनों राशियों का अपना-अपना महत्व है। ज्योंतिष शास्त्र में एक श्लोक वर्णित है जिसके आधार पर आसानी से आप जान सकते है कि किस राशि का कितना महत्व है।

“विद्यारम्भे विवाहे च सर्व संस्कार कर्मषु।

जन्म राशिः प्रधानत्वं, नाम राशि व चिन्तयेत्।।”

जन्म राशि और नाम राशि | Rashi by name | Rashi By Name

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस श्लोक का अर्थ है कि विद्या आरंभ करते समय, विवाह के समय, यज्ञोपवीत आदि संस्कारों में जन्म राशि को देखा जाता है, जबकि दैनिक राशिफल के लिए आप नाम राशि का प्रयोग कर सकते हैं। यहां आपको ये भी जानना जरूरी है कि दोनों राशियों में क्या अंतर होता है। जन्म के समय जिस बच्चे का जिस नक्षत्र में जन्म होता है उसके अनुसार रखे जाने वाले नाम से जो राशि बनती है उसे जन्म राशि कहा जाता है और जो नाम अपनी इच्छा से बुलाने का रखा जाता है उस नाम के पहले अक्षर से जो राशि बनती है उसे नाम राशि कहा जाता है।

तत्वों के आधार पर राशियों का वर्गीकरण | Rashi Tatva in Hindi

तत्वों के अनुसार राशियों का वर्गीकरण तत्वों के आधार पर सभी बारह राशियों को चार भागों में बाँटा गया है। यह चार तत्व अग्नि, पृथ्वी, वायु तथा जल है. जो राशि जिस तत्व में आती है उसका स्वभाव भी उस तत्व के गुण धर्म के अनुसार हो जाता हैं। अग्नि तत्व मेष, सिंह व धनु राशियां इस वर्ग में आती हैं। अग्नि तत्व वाले जातक दृढ़ इच्छा शक्ति वाले, कर्मशील और गतिशील रहते हैं। अग्नि के समान ज्वाला भी इनमें देखी जा सकती है और हर कार्य में ये जल्दबाजी करते है। किसी काम को टालते नहीं हे।

पृथ्वी तत्व में वृष, कन्या व मकर राशियां इस वर्ग में आती हैं। इस राशि वाले जातक पृथ्वी के समान ही सहनशील होता है,मेहनती होता है। जमीन से जुड़ा होता है। धैर्य भी बहुत रहता है, संतोषी होता है तथा व्यवहारिक भी होता है। सांसारिक सुख चाहता है लेकिन समस्याओं के प्रति उदासीन रहता है।

मिथुन, तुला तथा कुंभ राशियाँ वायु तत्व में आती हैं। इस राशि का व्यक्ति वायु की तरह हवा में बहुत बहता है अर्थात अत्यधिक विचारशील होता है, सोचना अधिक लेकिन करना कम। कल्पनाशील बहुत होता है लेकिन इन्हें बुद्धिमान भी कहा जाएगा। अनुशानप्रिय होने के साथ विचारों को हवा बहुत देते है. मन के घोड़े दौड़ाते ही रहते हैं।

जलतत्व में कर्क, वृश्चिक तथा मीन राशियाँ आती हैं। यह अत्यधिक भावुक तथा संवेदनाओं से भरे हुए रहते हैं। शीघ्र ही बातों में आने वाले होते हैं और खुद भी बातूनी होते हैं। स्वभाव से लचीले होते हैं और जिसने जो कहा वही ठीक है, अपने विचार इसी कारण ठोस आधार नहीं रखते हैं। मित्र प्रेमी होते हैं और स्वाभिमान भी इनमें देखा जा सकता है। इसे इस तरह समझते है कि जैसे उदाहरण के लिए किसी जातक की राशि जलतत्व है तब उसके स्वभाव में जल के गुण पाएं जाएंगे जैसे कि वह स्वभाव से लचीला हो सकता है और परिस्थिति अनुसार अपने को ढालने में सक्षम भी हो सकता है. जल की तरह नरम होगा तथा भावनाएँ भी कूट-कूटकर भरी होगी इसलिए शीघ्र भावनाओं में बहने वाला होगा। इसी तरह से अन्य राशियों के गुण भी उनके तत्वानुसार होगें।

आईये हम स्वभाव के अनुसार राशियों को समझने का प्रयास करते हैं।

स्वभाव के अनुसार राशियों का वर्गीकरण | Rashi By Swabhav | Rashi by Character

स्वभाव के अनुसार राशियों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है। चर, स्थिर तथा द्विस्वभाव राशि। हर श्रेणी में चार-चार राशियाँ आती है और इन श्रेणियों के अनुसार ही इनका स्वभाव भी होता है।

चर राशि | Char Rashi

मेष, कर्क, तुला व मकर राशियाँ इस श्रेणी में आती है. जैसा नाम है वैसा ही इन राशियों का काम भी है। चर मतलब चलायमान तो इस राशि के जातक कभी टिककर नहीं बैठ सकते हैं। हर समय कुछ ना कुछ करते रहते हैं। इस राशि के जातको में आलस बिल्कुल भी नहीं होता है। ये लोग क्रियाशील व गतिशील रहते है। इस राशि का जातक परिवर्तन पसंद करते हैं और एक स्थान पर टिककर नहीं रह पाते हैं। ये तुरन्त निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं।

स्थिर राशि | Sthir Rashi

वृष, सिंह, वृश्चिक व कुंभ राशियाँ इस श्रेणी में आती हैं.। इनमें आलस का भाव देखा गया है इसलिए अपने स्थान से ये आसानी से हटते नहीं हैं। इन्हें बार-बार परिवर्तन पसंद नहीं होता है। धैर्यवान होते हैं और यथास्थिति में ही रहना चाहते हैं। इनमें जिद्दीपन भी देखा जा सकता है। कोई भी काम जल्दबाजी में नहीं करते और बहुत ही विचारने के बाद महत्वपूर्ण निर्णय लेते है।

द्विस्वभाव राशि |

मिथुन, कन्या, धनु व मीन राशियाँ इस श्रेणी में आती है। इन राशियों में चर तथा स्थिर दोनों ही राशियों के गुण देखे जा सकते हैं। इनमें अस्थिरता रहती है और शीघ्र निर्णय लेने का अभाव रहता है. इनमें अकसर नकारात्मकता अधिक देखी जाती है।

मांगलिक दोष क्या होता है | Manglik Dosha Kya Hai | Manglik in Hindi | Manglik Meaning in Hindi

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल भारी होते हैं। वे मांगलिक या उनके ऊपर मंगल दोष रहता है। जन्म कुंडली के अध्ययन से कुंडली के प्रथम भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव तथा द्वादश भाव में से किसी भी भाव में मंगल का होना कुंडली को मांगलिक बना देता है। मांगलिक जातक का विवाह भी मांगलिक जातक से होता है। जब भी किसी जातक की कुंडली में मंगल ग्रह भारी होते है तब वह व्यक्ति मांगलिक कहलाता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में ऐसा वर्णित है कि जो जातक मांगलिक होते हैं, उनका स्वभाव गुस्सैल होता है। बात-बात में उन्हें जल्दी गुस्सा आ जाता है। लेकिन ऐसे जातकों में भूमि से संबंधित कोई भी कार्य करने पर उन्हें बहुत ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।

कुंडली में मंगल ग्रह भारी होने पर दांपत्य जीवन में कठिनाई आती है जिसके लिए बहुत से उपाय भी ज्योतिषाचार्य बताते है। अगर आपकी कुंडली में मंगल ग्रह भारी है तो इसके प्रभाव को कम करने के लिए मांगलिक लोगों को भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए।

मंगल के अशुभ प्रभाव को करने के लिए ज्योतिष में कुछ उपाय बताए गए हैं, जिनमें मुख्य रूप से मूंगे को धारण करना और गेहूं, मसूर की दाल, तांबा, सोना, लाल फूल, लाल वस्त्र, लाल चंदन, केशर, कस्तुरी, लाल बैल, भूमि आदि का दान करें।

राशि का प्रभाव व्यक्ति के गुण, स्वभाव, उसके आचरण आदि पर प्रभावी रूप से पड़ता है इसलिए ही जन्म के समय नाम रखते समय बहुत विचार किया जाता है। अगर आपको ये लेख अच्छा लगा तो इसे शेयर अवश्य करें।

यह भी पढ़ें :

राशिफल क्या है (Rashifal in Hindi)

क्या आप भी रोज पढ़ते है राशिफल, जानिए राशिफल कितना होता है सही कितना गलत

हिन्दू धर्म में राशिफल (Horoscope) के माध्यम से काल-खण्डों के बारे में भविष्यवाणी की जाती है। जहां दैनिक राशिफल रोजाना की घटनाओं को लेकर भविष्यवाणी करता है तो वहीं साप्ताहिक, मासिक एवं वार्षिक राशिफल में क्रमशः सप्ताह, महीने और साल की भविष्यवाणी की जाती है। रोजमर्रा के जीवन में हर व्यक्ति अपने राशिफल के बारे में जानने को उत्सुक रहता है। आईये जानते है कि राशिफल क्या है, कैसे निकाला जाता है व उसके अन्य पहलुओं को जानने और समझने की कोशिश करते है।

राशिफल क्या है (Rashifal Kya Hoti Hai)

हर रोज हम अखबारों और न्यूज चैनलों में अपनी राशि का राशिफल देखते है। इस दैनिक राशिफल में सभी 12 राशियों (मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन) के दैनिक भविष्यफल के विषय में विस्तार से बताया जाता है। दैनिक राशिफल में आमतौर पर आपके लिए नौकरी, व्यापार, लेन-देन, परिवार और मित्रों के साथ संबंध, सेहत और दिनभर में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं का भविष्यफल वर्णित होता है। इसके अलावा आप आज किस रंग के कपड़े पहने, क्या करें, क्या न करें। इसके बारे में बताया जाता है। कुछ ज्योतिषाचार्य दैनिक राशिफल में यह भी बता देते है कि आज आपका भाग्य कितना साथ देगा।

rashifal_in_hindi

राशिफल कैसे निकाला जाता है (Rashifal Kaise Dekhe | Rashifal Kaise Jane)

दैनिक राशिफल ग्रह-नक्षत्र की चाल पर आधारित फलादेश है, जिसमें सभी राशियों का दैनिक भविष्यफल विस्तार से बताया जाता है। इस राशिफल को निकालते समय ग्रह-नक्षत्र के साथ-साथ पंचांग की गणना का विश्लेषण भी किया जाता है। चंद्रमा सप्ताह भर में लग्न या राशि से जिस भाव में भ्रमण करता है, उस तरह से दैनिक व साप्ताहिक राशिफल निर्धारित किया जाता है।

चंद्रमा का अलग-अलग भाव में गोचर फल इस प्रकार है (Rashifal Kaise Banaya Jata Hai | Aaj Ka Rashifal | Today Rashifal | Rashifal Today)

प्रथम भाव:भाग्योदय, उपहार प्राप्ति, धन लाभ, उत्तम भोजन, कार्य की सफलता।
द्वितीय भाव:मन में अस्थिरता, असंतोष, नेत्र विकार, व्यर्थ की भागदौड़ व अपव्यय बताता है।
तृतीय भाव:पराक्रम में वृद्धि, धन का लाभ, प्रसन्नता, सम्मान, उन्नति के अवसरों का मिलना
चतुर्थ भाव:दिनचर्या अस्तव्यस्त होना, व्यर्थ की भागदौड़, परिवार में विवाद, अनिद्रा के बारे में पता चलता है।
पंचम भाव:शोक, संतान से कष्ट, वायु विकार, धन हानि
षष्ठ भाव:धन लाभ, शत्रुओं पर विजय, पारिवारिक सुख-शांति, स्वास्थ्य लाभ
सप्तम भाव:धन लाभ, यश, स्त्री व वाहन सुख, समस्या समाधान
अष्टम भाव:कष्ट, कार्य में बाधाएँ, धन हानि, अस्वस्थता
नवम भाव:अपयश, राज्य भय, व्यर्थ प्रवास, व्यापार में असफलता
दशम भाव:कार्य सिद्धि, सुख व लाभ की प्राप्ति, निरोगी काया
एकादश भाव:प्रसन्नता, धन लाभ, उत्तम भोजन व द्रव्य की प्राप्ति, परिजनों का सुख
द्वादश भाव:धन हानि, रोग, अपव्यय, दुर्घटना, वाद-विवाद


राशिफल का महत्व

राशिफल ने हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। राशिफल को पढ़कर ही हम अपनी दैनिक दिनचर्या को बनाते है। कुछ लोग राशिफल को नहीं मानते और उनका कहना है कि यह कोरी कल्पना है। यह उतना ही गलत है जैसे कि आप किसी धर्म विशेष को माने या ना माने लेकिन उस धर्म में बताई गई बाते कितनी सही है या गलत यह आपके विवेक पर निर्भर करता है। आपके मानने या ना मानने से उन बातों का अस्तित्व नष्ट नहीं हो जाता है। जो लोग राशिफल पर पूर्णतयः विश्वास करते है वे उसके अनुसार ही चलते है, जैसे दैनिक राशिफल में ग्रह-नक्षत्र की चाल के आधार पर आपको यह बताया जाता है कि आज के दिन आपके राशि के सितारे आपके अनुकूल हैं या नहीं। आज आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है या फिर किस तरह के अवसर आपको प्राप्त हो सकते हैं। दैनिक राशिफल को पढ़कर आप दोनों ही परिस्थिति (अवसर और चुनौतियों) के लिए तैयार हो सकते हैं।

दैनिक राशिफल मुख्यतः ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत ही आता है। हर जातक का उसकी राशि के आधार पर राशिफल होता है। वह प्रत्येक जातक का निजी होता है और उसका आधार प्रश्न कुंडली व नष्टजातकम् पद्धति होता है।

अंक ज्योतिष से राशिफल (Rashifal by Numerology)

अंक ज्योतिष पद्धति द्वारा भी दैनिक राशिफल निकाला जाता है। उस दैनिक राशिफल के लिए व्यक्ति को ज्योतिषी से प्रश्न करना होता है कि ‘मेरा आज का दिन कैसा रहेगा? (Aaj Ka Rashifal), तब ज्योतिषी प्रश्न कुंडली के आधार पर अथवा उस व्यक्ति से कोई अंक पूछकर उसके दिन के बारे गणना कर उस दिन का भविष्य संकेत उसे बताता है। इस तरह जो दैनिक राशिफल बताया जाता है वह पूर्ण रूप से व्यक्तिगत होता है न कि सार्वजनिक। अंक ज्योतिष के आधार पर निकाला गया राशिफल को गंभीरता से न लेते हुए अपनी राशि से निकाले गये राशिफल पर ज्यादा विश्वास करना चाहिए क्योंकि वह ग्रह स्थितियों, दशाओं व अपनी राशि गोचर देखकर निकाला जाता है। यदि किसी दिन के बारे में अधिक विस्तार से जानना बहुत आवश्यक हो तो किसी विद्वान ज्योतिष से प्रश्न कर इस संबंध में निर्णय करना अधिक श्रेयस्कर व लाभदायक रहता है।

नाम के अनुसार राशिफल (Rashifal by Name | Horoscope by Name in Hindi)

व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर उस राशि के अनुसार रखा जाता है जिसमें व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में होता है, और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी नाम का पहला अक्षर राशि चक्र का ही होता है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में नाम के पहले अक्षर को काफी महत्व दिया गया है क्योंकि इसके अनुसार ही आपकी राशि का निर्धारण होता है। 

12 राशियों में नाम के अनुसार आपकी राशि (Zodiac Sings by Name | Naam se Rashi Kaise Nikale)

मेष  -Aries (Mesha)अ,च, चू, चे, ला, ली, लू, ले
वृषभ –  Taurus (Vrishabha)उ, ए, ई, औ, द, दी, वो
मिथुन- Gemini (Mithuna)के, को, क, घ, छ, ह, ड
कर्क- Cancer (Karka)ह, हे, हो, डा, ही, डो
सिंह – Leo (Singha)म, मे, मी, टे, टा, टी
कन्या – Virgo (Kanya)प, ष, ण, पे, पो, प
तुला – Libra (Tula)रे, रो, रा, ता, ते, तू
वृश्चिक – Scorpio (Vrushchika)लो, ने, नी, नू, या, यी
धनु  – Sagittarius (Dhanu)धा, ये, यो, भी, भू, फा, ढा
मकर  – Capricorn (Makara)जा, जी, खो, खू, ग, गी, भो
कुंभ –   Aquarius (Kumbha)गे, गो, सा, सू, से, सो, द
मीन – Pisces (Meena)दी, चा, ची, झ, दो, दू

हर राशि के पहले अक्षर के आधार पर उस नाम के व्यक्ति के राशिफल का निर्धारण होता है।

जन्मतिथि के अनुसार राशिफल (Rashifal by Date of Birth in Hindi | Horoscope by Date of Birth in Hindi)

जन्मतिथि के अनुसार राशिफल की गणना के लिए हर माह के 30 दिन विभिन्न राशियों के निर्धारण है और उसी के अनुसार राशिफल निकाला जाता है। जैसे – Janmtithi Se Apni Rashi Kaise Pata Kare

  • 21 मार्च से 20 अप्रैल के बीच जन्म लेेने वाले जातकों की मेष राशि,
  • 21 अप्रैल से 21 मई के बीच वृषभ राशि,
  • 22 मई से 21 जून मिथुन राशि,
  • 22 जून से 22 जुलाई के बीच कर्क राशि,
  • 23 जुलाई से 21 अगस्त के बीच सिंह राशि,
  • 22 अगस्त से 23 सितम्बर तक कन्या राशि,
  • 24 सितम्बर से 23 अक्टूबर तक तुला राशि,
  • 24 अक्टूबर से 22 नवम्बर तक वृश्चिक राशि,
  • 22 नवम्बर से 22 दिसम्बर के बीच पैदा हुए जातकों की जन्मतिथि के अनुसार राशि मीन होती है।

राशिफल पर विश्वास करना चाहिए कि नहीं (Kya Rashifal Sahi Hota Hai)

कुछ लोगों का मानना है कि राशिफल पूर्णतयः असत्य है और उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए। उनका मतान्तर है कि कर्म पर विश्वास रखना चाहिए क्योंकि कर्म ही प्रधान है। अगर कर्म करोगे तो भाग्य अवश्य ही बदलेगा। यह सत्य है लेकिन पूर्णतयाः नहीं क्योंकि अगर भाग्य में कुछ लिखा है तो वह तो होकर ही रहेगा। उसे कोई नहीं बदल सकता। इसलिए राशिफल की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है क्योंकि वार्षिक राशिफल की मदद से हम यह जान पाते है कि अमुक साल हमारे साथ क्या घटना घटित होने वाली है।

बारह राशियाँ 125 करोड़ लोग भारत वर्ष में। यानी एक राशि के दस करोड़ से ज्यादा लोग। ऐसे में यह जरूरी नहीं कि जो राशिफल एक राशि में वर्णित है, वह सभी व्यक्तियों पर लागू हो जैसे कि राशिफल में अमुक राशि में लिखा है कि आपकी यात्रा सुखद रहेगी या फिर आपको आर्थिक हानि की सम्भावना है तो इस बात की संभावना नही होती है कि सभी को आर्थिक हानि हो जाये। अगर कोई व्यक्ति यात्रा ही नहीं कर रहा है तो फिर उसकी यात्रा अच्छी या बुरी होने का प्रश्न ही नहीं उठता है।
हां इंटेरनेट या यू ट्यूब पर जो राशिफल प्रसारित किया जाता है उसका कोई औचित्य नहीं होता है। वह पूर्ण रूप से भ्रामक होता है क्योंकि वह मनगढंत रूप से बनाया जाता है। ऐसे में आपको उसको मानने पर लाभ की जगह हानि ही होगी। इसलिए उस राशिफल को देखकर उस पर विषय नहीं करना चाहिए।

अपने राशिफल के बारे में हर व्यक्ति के मन में रोज जिज्ञासा रहती है। हर व्यक्ति रोज अपने राशिफल को जानना चाहता है। आज के लेख में हमने राशिफल के बारे में आपको अधिक से अधिक जानकारी देनी की कोशिश की। उम्मीद करते है यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। इस महत्वपूर्ण जानकारी को और लोगों को भी बताये ताकि लोगों के मन में राशिफल को लेकर जो सवाल उठता है कि राशिफल सही होता है या गलत इसको लेकर जो भ्रम की स्थिति हो वह दूर हो सके।

यह भी पढ़ें :

ज्योतिष शास्त्र क्या है (Jyotish Kya Hai in Hindi)

ज्योतिष का है हमारे जीवन में अहम स्थान, जानिए ज्योतिष से जुड़ी सभी बातें

ज्योतिष का हमारे जीवन में बड़ा ही उल्लेखनीय योगदान है। ज्योतिष के द्वारा व्यक्ति के जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के बारे में बताया जाता है। ज्योतिष न सिर्फ वर्तमान जीवन में क्या हुआ यह बताता है बल्कि भविष्य में भी हमारे जीवन में क्या होने वाला है, इसकी भी भविष्यवाणी करता है। यह गणना ग्रहों, नक्षत्रों की गति आदि का विचार करके निकाली जाती है। आज के लेख में हम ज्योतिष के सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

ज्योतिष किसे कहते हैं (Jyotish in Hindi)

ज्योतिष को हम इस श्लोक के माध्यम से समझ सकते है। ‘‘ज्योतिषां सूर्यादिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम’’ अर्थात सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र के रूप में परिभाषित किया गया है। ज्योतिष शास्त्र में मुख्य रूप से ग्रह, नक्षत्र आदि के स्वरूप, संचार, परिभ्रमण काल, ग्रहण और स्थिति संबधित घटनाओं का निरूपण एवं शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है। ज्योतिष को सभी लोग धर्मशास्त्र के रूप में जानते है, परंतु वास्तिवकता में ज्योतिष एक ऐसा विज्ञान है जिसका ज्ञान बहुत कम लोगों को होता है। ज्योतिष को कुछ लोग भाग्य बताने तक ही सीमित समझते है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है बल्कि ये एक ऐसा ज्ञान है जिसे जाननेवाला व्यक्ति अपने ज्ञान से किसी को भी प्रभावित कर सकता है और समाज में उच्च स्थान प्राप्त कर सकता है।

online_jyotish_shastra_Hindi

ज्योतिष का इतिहास (History of Jyotish Vidya | Jyotish Gyan)

ज्योतिष का इतिहास बहुत प्राचीन है। यह वेदों जितना ही प्राचीन है। प्राचीन समय में ग्रह, नक्षत्र और अन्य खगोलीय पिण्डों का अध्ययन करने के लिए ज्योतिष विज्ञान का सहारा लिया जाता था। इसके गणितीय भाग के बारे में वेदों में स्पष्ट रूप से बताया गया है। ज्योतिष वास्तव में यह एक ऐसी विद्या है जो प्राचीन विद्याओं में से एक मानी गई है, लेकिन प्राचीन समय और आधुनिक समय में इस विद्या के उपयोग में खासा अंतर आ चुका है, पहले इसका उपयोग ऋषि-मुनियों अथवा राज ज्योतिषियों द्वारा किया जाता था लेकिन वर्तमान समय में इसका उपयोग वृहद स्तर पर होने लगा है। ज्योतिष पर सबसे पहला ग्रंथ, भृगु संहिता, ऋषि भृगु द्वारा संकलित किया गया था। ऋषि भृगु को ‘हिंदू ज्योतिष का पिता‘ भी कहा जाता है, और वे सप्तऋषि या सात वैदिक संतों में से एक हैं। वैदिक ज्योतिष 5000 से 10,000 ईसा पूर्व के बीच से प्रचलित है।

वैदिक ज्योतिष में क्या है | Vedic Astrology in Hindi | Vedic Jyotish

वैदिक ज्योतिष वेदों का अंग हैं। अथर्ववेद में ज्योतिष से संबंधित 162 श्लोक, यजुर्वेद में 44 और ऋग्वेद में 30 श्लोक हैं। इन्हीं वेदों के श्लोकों पर आज ज्योतिष का रुप बदला हैं। ज्योतिष 6 वेदांगो में से एक हैं। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त छंद और ज्योतिष, जिनमे से वैदिक ज्योतिष को सबसे अधिक महत्व दिया गया हैं। वैदिक ज्योतिष में मुख्य रूप से ग्रह व तारों के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। पृथ्वी सौर मंडल का एक तरह का ग्रह है। ज्योतिष का ऐसा मानना है कि पृथ्वी के निवासियों पर सूर्य तथा सौर मंडल के ग्रहों का प्रभाव पड़ता हैै। पृथ्वी एक विशेष कक्षा में चलायमान है। पृथ्वी पर रहने वालों को सूर्य इसी में गतिशील नजर आता है। इस कक्षा के आसपास कुछ तारों के समूह हैं, जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है। इन्हीं 27 तारा समूहों यानी नक्षत्रों से 12 राशियों का निर्माण हुआ है। जिन्हें क्रमषः इन नामों से जाना जाता है। 1-मेष, 2-वृष, 3-मिथुन, 4-कर्क, 5-सिंह, 6-कन्या, 7-तुला, 8-वृश्चिक, 9-धनु, 10-मकर, 11-कुंभ, 12-मीन। हर राशि 30 अंश की होती है।

ज्योतिष का महत्व | Importance of Jyotish | Importance of Astrology in Hindi

आज के हमारे दैनिक जीवन में ज्योतिष का महत्व बहुत बढ़ गया है। ज्योतिष के आधार पर ही सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण, मौसम, तीज त्योहार, उत्सव, पर्व के विषय में भविष्यवाणी की जाती है। भारत के ग्रामीण जीवन में ज्योतिष के प्रभाव को विशेष रूप से देखा जा सकता है। यही कारण है कि एक अनपढ़ किसान भी यह जानता है कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है। उसे किस समय बीजों की बोवाई करनी हैे। ज्योतिष शास्त्र के उपयोग के द्वारा हम अपने जीवन में आने वाले कष्टों को दूर करते है। उनके उपाय करते है। इसके लिए कई ज्योतिषाचार्य हमें उपाय बताते है और हम उन उपायों को अपनाकर अपने जीवन के संकट को दूर करते है। ज्योतिष की मदद से कम प्रयास से अधिक सफलता प्राप्त की जा सकती है। ज्योतिष ये नहीं कहता कि सब कुछ तुरंत ठीक हो जायेगा क्योंकि जो भाग्य में लिखा है वह तो होकर रहेगा लेकिन ज्योतिष के उपायों को अपनाकर हम उन बाधाओं को कम जरूर कर सकते है। ज्योतिष में कई जप व मंत्र इसके लिए बताये गये है। रोग निदान में जहां विज्ञान विफल हो जाता है, उस जगह ज्योतिष काम आता है।

ज्योतिष के आधार पर ही दैनिक पंचांग का निर्माण किया जाता है जिसके माध्यम से हम विभिन्न तीज त्योहारी की जानकारी प्राप्त करते हैं।

ज्योतिष मंत्र | Jyotish Mantra

ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों के लिए नौ मंत्र बताए गए है। रोज सुबह रुद्राक्ष की माला से इन मंत्रों का जाप करने से आपके जीवन में चली आ रही समस्या दूर होती है।

ऐसे करें मंत्र जाप

सूर्य मंत्र – ऊँ सूर्याय नमः।
चंद्र मंत्र – ऊँ सोमाय नमः।
मंगल मंत्र – ऊँ भौमाय नमः।
बुध मंत्र – ऊँ बुधाय नमः।
गुरु मंत्र – ऊँ बृहस्पतये नमः।
शुक्र मंत्र – ऊँ शुक्राय नमः।
शनि मंत्र – ऊँ शनैश्चराय नमः।

ज्योतिष शास्त्र की मदद से ऐसे बनाएं कुंडली | ज्योतिष शास्त्र कुंडली | Kundli in Hindi

ज्योतिष शास्त्र की मदद से जब व्यक्ति जन्म लेते है तो उसकी जन्म कुंडली (Birth Kundali) बनाई जाती है। यह कुंडली उस समय की ग्रह दशा की गणना करके बनाई जाती है। आसान भाषा में समझे तो जन्मकुंडली वह पत्री है जिसके द्वारा आपके जन्म के समय आकाश मंडल में जो ग्रह, नक्षत्र व राशियों की स्थिति है, उन्हे दर्शाया जाता है। हर कुंडली में बारह खाने होते हैं और इन खानों में राशियां और ग्रह बैठे होते हैं जिनके माध्यम से व्यक्ति के भाग्य की गणना की जाती है। कुंडली में जो नंबर होते हैं वे राशियों (Horoscopes) को दर्शाते हैं। अगर आप कुंडली को देखे तो उसमें खाने बने होते हैं। इन्हीं खानों को भाव या घर कहते हैं। इनकी संख्या 12 है। ये बारह खाने या भाव में बैठे ग्रहों के द्वारा ही किसी व्यक्ति के संपूर्ण जीवन के बारे में जाना जाता है।

जन्मपत्री (Janampatri) के किसी भाव में एक, या दो अथवा इससे अधिक ग्रह बैठे हो सकते हैं। ग्रह के योग को युति कहते हैं। इन ग्रहों का आपस में संबंध है। ये संबंध शत्रुता, मित्रता और सम भाव का होता है। ज्योतिष में इन ग्रहों की संख्या नौ है। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु। इन ग्रहों का अपना-अपना स्वभाव होता है। इनमें चंद्र, बृहस्पति और शुक्र सौम्य ग्रह हैं।

वहीं सूर्य, मंगल, शनि और राहु-केतु क्रूर ग्रहों की श्रेणी में आते हैं। इसके साथ ही राशियों के साथ भी इनका संबंध होता है। राहु-केतु को छोड़कर सभी ग्रह एक या दो राशि के स्वामी होते हैं। इन सभी ग्रहों की कोई उच्च राशि होती है तो कोई नीच राशि होती है। इसी का अध्ययन कर ज्योतिषीचार्य आपके वर्तमान, भविष्य और भूत के विषय में बताते है।

कुंडली देखने का तरीका | Check Kundali in Hindi | Kundali Kaise Dekhe

कभी भी नीच राशि में ग्रह शुभ फल नहीं देते हैं। उच्च राशि में कोई भी ग्रह शुभ फलकारी होता है। शत्रु ग्रहों के साथ युति से नकारात्मक फल मिलता है। ग्रहों की दृष्टि का फल राशि और उसके संबंधानुसार पड़ता है। मित्र ग्रहों की युति शुभ फलकारी होती है। कुंडली में अगर कोई राजयोग बन रहा है तो इसकी भी जानकारी हमें जन्म कुंडली की मदद से मिल जाती है।

अंक ज्योतिष क्या है | Ank Jyotish | Number Astrology in Hindi | Numerology in Hindi

अंक ज्योतिष को अंग्रेजी में न्यूमरोलॉजी के नाम से पहचाना जाता है। इसे अंक विद्या या अंक शास्त्र और संख्या शास्त्र आदि के नाम से भी जाना जाता है। अंक ज्योतिष में मुख्य रूप से नौ ग्रहों सूर्य, चन्द्र, गुरू, यूरेनस, बुध, शुक्र, वरूण, शनि और मंगल को आधार बनाकर उनकी विशेषताओं के आधार पर गणना की जाती है। अंक ज्योतिष के माध्यम से भाग्यांक निकाला जाता है। भाग्यांक जानने के लिए जन्मतिथि, माह और जन्मवर्ष तीनों की गणना की जाती है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी व्यक्ति की जन्मतिथि 2 जुलाई 1979 हो तो इस उल्लेख में आए तारीख (2) मास (7) और वर्ष (1979) के तीनों अंकों को जोड़ा जाएगा। इन सभी अंको को जोड़ने से भाग्यांक आया (02 जोड़ 07 जोड़ 1979=35, 3 जोड़ 5=8) इस उदाहरण में मूलांक 2 और भाग्यांक 8 है।

ज्योतिष पर विश्वास करना चाहिए या नहीं | Astrology is Real or Fake

ज्योतिष पर कई लोगों की सबसे बड़ी गलतफहमी ये है कि ज्योतिषीय भविष्यवाणियां सही नहीं होती। जबकि कम ही लोग ज्योेतिष के बारे में ठीक से जानते हैं और न ही ये जानते हैं कि ज्योतिष काम कैसे करता है। विज्ञान की अन्य शाखाओं की तरह ज्योतिष भी एक विज्ञान है। विज्ञान का अर्थ होता है, किसी भी विषय का क्रमबद्ध ज्ञान। आप ज्योतिष पर विश्वास करें या न करें यह पूरी तरह आपके विवेक पर निर्भर होता है लेकिन यह पूर्णतयाः सत्य है कि ज्योतिष द्वारा जो बताया जाता है। वह अवश्य होता है। ज्योतिष पर विश्वास करना या न करना ऐसा ही है जैसे कि धर्म और ईश्वर पर आप विष्वास करें या ना करें। वास्तव में यह है ही। हां इतना जरूर कहा जा सकता है कि कुछ ज्योतिषी अपने कम ज्ञान से लोगों को बरगलाने का कार्य करते है। हमें इससे जरूर सचेत रहना चाहिए।

ज्योतिष का ज्ञान समुद्र की तरह विशाल है। आज के लेख में हमने ज्योतिष शास्त्र की जानकारी देने की कोशिश की है। उम्मीद करते है यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर करें जिससे अन्य लोगों को भी इस जानकारी का लाभ मिले।

यह भी पढ़ें :

Ancient History Ram Janmabhoomi Mandir : अयोध्या रामजन्मभूमि का प्राचीन इतिहास

अयोध्या! जिसे कभी अवध कहा गया तो कभी इसे बौद्ध काल में साकेत कहा गया। अयोध्या मूल रूप से भगवान श्री राम जी की जन्मस्थली है। इस शहर में बहुत से मंदिर आपको दिखाई पड़ते हैं, जो हिंदू धर्म के साथ ही साथ बौद्ध और जैन मजहब के भी है। जैन संप्रदाय के अनुसार अयोध्या में ही उनके आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था।

इसके अलावा जैन समुदाय का ऐसा भी मानना है कि भगवान बुद्ध ने यहां पर कुछ महीने तक भ्रमण किया था। बताना चाहते हैं कि भगवान श्री राम जी के पूर्वज विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु के द्वारा अयोध्या शहर को बसाया गया था और तब से लेकर के आज तक अयोध्या भारत के प्राचीन स्थलों में शामिल है।

Read Also :

Ancient History Ram Janmabhoomi Mandir

इस शहर में भगवान श्री राम जी का शासन था, जिनका विवाह जनकपुर की राजकुमारी सीता माता से हुआ था। भगवान श्री राम जी के द्वारा जब जल समाधि ले ली गई, तो उसके पश्चात अयोध्या विरान सी हो गई थी, परंतु भगवान श्री राम जी का भव्य महल वैसे का वैसा ही था। श्री राम जी के पुत्र कुश के द्वारा एक बार फिर से अयोध्या का पूरा निर्माण करवाना शुरू किया गया था। कालांतर में अयोध्या, महाभारत का युद्ध खत्म हो जाने के पश्चात एक बार फिर से उजड़ गई थी परंतु इसके बावजूद श्री राम जी का अस्तित्व वहां पर बरकरार था।

इसके पश्चात ऐसी जानकारी मिलती है कि, ईशा के लगभग 100 साल पहले उज्जैन के राजा सम्राट विक्रमादित्य एक बार अयोध्या पहुंचे थे और काफी थकान हो जाने की वजह से सरयू नदी के किनारे वह आम के पेड़ के नीचे अपनी सेना के साथ थोड़ी देर विश्राम कर रहे थे। तब के समय में सरयू के आसपास काफी बड़े-बड़े पेड़ और घने जंगल होते थे और यहां पर इंसानों का नामोनिशान नहीं था।

विक्रमादित्य को इस जगह पर कुछ अलौकिक एहसास हुआ और फिर उन्होंने अयोध्या का इतिहास जानने के लिए वहां के साधु-संतों से मुलाकात की। साधु संतों ने विक्रमादित्य को बताया कि अयोध्या ही भगवान श्री राम जी की जन्मस्थली है, साथ ही उन्होंने भगवान श्री राम जी के इतिहास की पूरी जानकारी विक्रमादित्य महाराज को दी। इसके पश्चात विक्रमादित्य के द्वारा संतों के निर्देश के बाद अयोध्या में बड़े मंदिर के साथ ही साथ सरोवर, महल इत्यादि का निर्माण करवाया गया।

विक्रमादित्य की मृत्यु हो जाने के पश्चात समय गुजरने के साथ अनेक राजा और महाराजाओं के द्वारा इस मंदिर की देखरेख की जाती थी, जिनमें प्रमुख नाम पुष्यमित्र शुंग का आता है। इनके द्वारा ही इस मंदिर का एक बार फिर से जीर्णोद्धार करवाया गया था।

इनका एक शिलालेख भी अयोध्या से हासिल हुआ था, जिसमें पुष्यमित्र शुंग के द्वारा अपने सेनापति को यह आदेश दिया गया था कि वह दो बड़े अश्वमेध यज्ञ करेंगे। शिलालेख से यह भी जानकारी मिलती है कि, गुप्त वंश के चंद्रगुप्त द्वितीय के समय और उसके बाद काफी लंबे समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी भी रही थी। जानकारी के लिए बताना चाहते हैं कि महाकवि कालिदास के द्वारा भी कई बार रघुवंश में अयोध्या का जिक्र किया गया है।

कई एक्सपर्ट इतिहासकारों के अनुसार 600 ईसा पूर्व के आसपास में अयोध्या में बड़े पैमाने पर बिजनेस से संबंधित गतिविधियों का संचालन होता था। अयोध्या को 5वी शताब्दी में प्रमुख बौद्ध केंद्र माना जाता था और तब के समय में अयोध्या का नाम अयोध्या नहीं बल्कि साकेत हुआ करता था।

7वी शताब्दी के आसपास में चीनी यात्री हेनत्सांग अयोध्या आया था और उसके द्वारा बताई गई बात के अनुसार अयोध्या में तब के समय में 20 बौद्ध मंदिर भी थे और तकरीबन 3000 बौद्ध समुदाय के भिक्षु यहां पर निवास करते थे। इसके अलावा यहां पर हिंदुओं का भी एक प्रमुख और काफी ज्यादा विशाल मंदिर था, जहां पर रोज श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते थे।

इसके पश्चात 11वीं शताब्दी के आसपास में राजपूत राजा जयचंद अयोध्या पहुंचे। यह कन्नौज के प्रतापी राजा थे। इनके द्वारा मंदिर पर विक्रमादित्य के शिलालेख को देखा गया और इन्होंने उसे वहां से हटवा दिया और शिलालेख पर अपना नाम लिखवा दिया। जयचंद का खात्मा भी पानीपत के युद्ध में हो चुका था। इसके बाद देश में लगातार इस्लामिक आक्रमणकारियो का आवागमन शुरू हो गया, जिससे हिंदू राजाओं को लगातार उनके साथ युद्ध करना पड़ा।

इस दौरान बहुत से मुगल आक्रमणकारी भी मारे गए और बहुत से हिंदू राजा भी शहीद हुए, साथ ही बहुत से हिंदू मंदिरों का विखंडन भी हुआ। इस्लामिक आक्रमणकारियों ने बड़े पैमाने पर काशी मथुरा में लूटपाट तो की ही, इसके अलावा उन्होंने अयोध्या में भी कई पुजारियो की हत्या की और कई मूर्तियों को तोड़ा और यहां पर भी जमकर लूटपाट की। हालांकि इस्लामिक आक्रमणकारी 14वी सदी तक अयोध्या में भगवान श्री राम जी के मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो सके थे।

ऐसा कहा जाता है कि, भगवान श्री राम जी का विशाल मंदिर सिकंदर लोदी के शासनकाल में यहां पर मौजूद था। 14वी शताब्दी के आसपास में हिंदुस्तान के अनेक इलाकों पर मुगलों का अधिकार हो चुका था।

और इसके पश्चात तो लगातार मुगल सल्तनत के अनेक राजाओं के द्वारा राम जन्मभूमि और अयोध्या को खत्म करने का अभियान समय समय पर किया जाता रहा और आखरी में साल 1527-28 के आसपास में विशाल मंदिर को मुगल आक्रमणकारियो के द्वारा तोड़ दिया गया और उसकी जगह पर बाबरी स्ट्रक्चर को खड़ा कर दिया गया, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है।

इस मस्जिद का नाम बाबरी इसलिए रखा गया, क्योंकि मुगल साम्राज्य की स्थापना करने वाले बाबर के सेनापति के द्वारा इस मंदिर को नष्ट किया गया था। इस बाबरी मस्जिद को साल 1992 में विश्व हिंदू परिषद और शिवसेना तथा बजरंग दल और अन्य हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं के द्वारा तोड़ दिया गया था।

हालांकि ऐसा भी कहा जाता है कि, अकबर के शासनकाल और जहांगीर के शासनकाल में हिंदू समुदाय के लोगों को इस जगह को एक चबूतरे के तौर पर सौंप दी गई थी, परंतु औरंगजेब जैसे खतरनाक शासक ने अपने पूर्वज बाबर के सपने को पूरा करने के लिए यहां पर भव्य मस्जिद का निर्माण करवा दिया था और मस्जिद का नाम बाबरी रख दिया था।

1992 में इस मस्जिद को तोड़ने के पहले देश में एक से दो बार हिंदू और मुसलमान समुदाय के बीच भीषण दंगे भी भड़क चुके थे, जिसमें कई लोगों की मृत्यु हो चुकी थी और 1992 में जब मस्जिद को तोड़ा गया, तो भी देश में अनेक जगहों पर हिंदू और मुसलमान समुदाय के बीच हिंसात्मक लड़ाइयां हुई थी, जिसमें 2000 के आसपास लोगों की मृत्यु हुई थी।

सबसे ज्यादा मृत्यु बंगाल और मुंबई के इलाकों में हुई थी। पिछले कई सालों से इस मंदिर मस्जिद विवाद पर भारत की अदालत में केस चल रहा था, जिसका फैसला आखिरकार साल 2020 में आ गया और सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सभी सबूतो पर ध्यान देते हुए श्री राम जन्मभूमि हिंदू समुदाय को सौंपने का आदेश दिया गया और मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में ही मंदिर से तकरीबन 25 से 30 किलोमीटर की दूरी पर 5 एकड़ की जमीन दी गई।

ताकि वहां पर मुस्लिम समुदाय के द्वारा मस्जिद का निर्माण करवाया जा सके और साल 2024 में अब 22 जनवरी के दिन श्री राम जी के मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम भी रखा गया है। इस मंदिर के लिए कोई भी सरकारी सहायता नहीं ली गई है बल्कि हिंदू समुदाय ने हीं तकरीबन 3200 करोड रुपए चंदे के तौर पर इकट्ठा किए, जिसके द्वारा मंदिर का निर्माण हो रहा है।

Shree Ram Mandir History : 1528 से 2024 तक…राम मंदिर का पूरा इतिहास जानिए

लंबे जमीनी और अदालती संघर्षों के बाद आखिरकार राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो चुका है और अयोध्या में भगवान श्री राम का विशाल मंदिर लगभग बनकर तैयार हो चुका है, जिसके प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम साल 2024 में 22 जनवरी के दिन रखा गया है। इस कार्यक्रम में देश के सामान्य लोगों के अलावा देश के कई बड़े-बड़े और प्रसिद्ध लोग साथ ही विदेश के भी कई लोग शामिल होने के लिए आ रहे हैं। देश में अभी से राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का उत्साह दिखाई पड़ रहा है।

हालांकि क्या आप जानते हैं की मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की यह घड़ी ऐसे ही नहीं आई है। इसके लिए कई सालों संघर्षों का सामना करना पड़ा है। 1528 से लेकर 2020 अर्थात 492 साल के इतिहास में अभी तक राम मंदिर में बहुत सारे मोड़ आ चुके हैं। इस बीच साल 2019 में 9 नवंबर के दिन तो ऐतिहासिक फैसले का दिन रहा। चलिए आर्टिकल में आगे बढ़ते हैं और विस्तार जानते हैं कि आखिर इस विवाद की नीव कब पड़ी और कौन से साल में कौन सी महत्वपूर्ण घटनाएं राम मंदिर से संबंधित हुई।

Shree Ram Mandir History

1. साल 1528

साल 1528 में मुगल बादशाह बाबर के सैनिक मीर बाकी के द्वारा एक विवादित जगह पर मस्जिद का निर्माण करवाया गया। इस विवादित जगह को हिंदू समुदाय भगवान श्री राम के जन्म का स्थान मानता है और उनका मानना था कि, यहां पर एक प्राचीन मंदिर था। हिंदू समुदाय के हिसाब से जो मुख्य गुंबद है, उसी के नीचे भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था।

2. साल 1853-1949 तक

साल 1853 में इस जगह पर कब्जा करने के लिए हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच भीषण दंगे भड़क चुके थे, जिसमें कई लोगों की मृत्यु हो चुकी थी। तब देश में अंग्रेजों का शासन था। अंग्रेजों ने इस दंगे को कंट्रोल करने के लिए विवादित जगह के आसपास बाड लगा दी थी और यह आदेश दे दिया था कि, हिंदू समुदाय चबूतरे के बाहर पूजा करेगा और मुसलमान समुदाय ढांचे के अंदर अपनी इबादत करेंगे।

3. साल 1949

साल 1949 में 23 दिसंबर के दिन उत्तर प्रदेश के अयोध्या में एक महत्वपूर्ण घटना घटित हुई। जानकारी के अनुसार इस दिन मस्जिद में भगवान श्री राम की मूर्ति हिंदू समुदाय को हासिल हुई, जिस पर हिंदू समुदाय के द्वारा कहा गया की भगवान श्री राम जी प्रकट हो चुके हैं, वही मुसलमान समुदाय के द्वारा यह आरोप लगाया गया कि हिंदू समुदाय के ही किसी व्यक्ति के द्वारा रात में चोरी छुपे यहां पर भगवान श्री राम जी की मूर्तियों को रख दिया गया है।

इस मामले में उत्तर प्रदेश गवर्नमेंट के द्वारा भगवान श्री राम की मूर्तियों को वहां से हटाने का आदेश दे दिया गया, परंतु तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर की वजह से इस आदेश का पालन करवाने में असमर्थता जता दी। इसके पश्चात सरकार ने महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए विवादित जगह को विवादित स्ट्रक्चर माना और वहां पर सरकारी ताला लगवा दिया।

4. साल 1950

 हिंदू समुदाय ने 1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें श्री राम की पूजा करने की परमिशन मिले और विवादित स्ट्रक्चर में भगवान श्री राम जी की मूर्ति रखी रहे, इसकी परमिशन मिले। इसके पश्चात निर्मोही अखाड़ा के द्वारा तीसरी अर्जी साल 1959 में दाखिल की गई।

5. साल 1961

मुस्लिम समुदाय की तरफ से उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के द्वारा साल 1961 में एक अर्जी दायर की गई। इसमें उन्होंने डिमांड की कि विवादित जगह से मूर्तियों को हटाया जाए।

6. साल 1984

अयोध्या के इस विवादित जगह पर मंदिर का निर्माण करवाने के लिए हिंदू संगठन विश्व हिंदू परिषद के द्वारा एक कमेटी का गठन साल 1984 में किया गया।

7. साल 1986

यूसी पांडे के द्वारा 1986 में विवादित जगह पर हिंदू समुदाय को पूजा करने की परमिशन देने के लिए एक याचिका दायर की गई थी। इस पर तत्कालीन फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे के द्वारा 1986 में 1 फरवरी को परमिशन दी गई और ढांचे पर से ताले को हटाने के भी आदेश दिए गए।

8. 6 दिसंबर 1992

विश्व हिंदू परिषद और शिवसेना के आवाहन पर लाखों हिंदुओं के द्वारा अयोध्या में बाबरी ढांचे पर चढ़कर के इस ढांचे को गिरा दिया गया। इसके पश्चात देश में भीषण सांप्रदायिक दंगे भड़क गए, जिसकी वजह से तकरीबन 2000 लोगों की मृत्यु हुई।

9. साल 2002

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भगवान श्री राम जी के दर्शन करके वापस लौट रही साबरमती ट्रेन को गुजरात के गोधरा में मुस्लिम समुदाय के 200-300 लोगों के द्वारा आग लगाई गई, जिसमें तकरीबन 58 हिंदू समुदाय के लोगों की मृत्यु हो गई, जिसमें महिला और बच्चे भी शामिल थे। इसके बाद गुजरात में भीषण दंगे भड़क गए, जिसमें 2000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई।

10. साल 2010

इस मामले में सुन्नी वर्क बोर्ड और रामलला विराजमान तथा निर्मोही अखाड़ा के बीच विवादित जगह को तीन बराबर-बराबर हिस्से में बांटने का आदेश प्रयागराज हाई कोर्ट के द्वारा साल 2010 में दिया गया।

11. साल 2011

इलाहाबाद हाई कोर्ट के द्वारा जो फैसला दिया गया था। इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2011 में रोक लगा दी थी।

12. साल 2017

साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया गया। वहीं भाजपा के कई नेता आपराधिक साजिश के आरोप से बहाल हो गए।

13. 8 मार्च 2019

2019 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा मामले को मध्यस्थता के लिए भेजने के साथ ही साथ पैनल को 8 सप्ताह के अंदर प्रक्रिया को खत्म करने के लिए कहा गया।

14. 1 अगस्त 2019

पैनल के द्वारा 2019 में 1 अगस्त को अपनी रिपोर्ट को प्रस्तुत कर दिया गया।

15. 2 अगस्त 2019

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को कहा कि मध्यस्थता पैनल कोई भी समाधान निकालने में सफल नहीं हो सका।

16. 6 अगस्त 2019

2019 में 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मैटर की रोज सुनवाई शुरू हो चुकी थी।

17. 16 अक्टूबर 2019

अयोध्या केस की सुनवाई कंप्लीट हो गई और सुप्रीम कोर्ट के द्वारा अपना फैसला सुरक्षित रख लिया गया।

18. 9 नवंबर 2019

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 2019 में 9 नवंबर के दिन अपना फैसला सुनाया गया। यह फैसला राम मंदिर के पक्ष में आया था। फैसले में कोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित जगह को हिंदू पक्ष को देने का आदेश दिया और मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन उपलब्ध करवाने का आदेश दिया।

19. 25 मार्च 2020

2020 में 28 साल के पश्चात रामलला को टेंट से निकालकर फाइबर के मंदिर में शिफ्ट किया गया।

20. 5 अगस्त 2020

पीएम मोदी जी के द्वारा मंदिर भूमि पूजन का कार्यक्रम किया गया। इसमें मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और साधु संतों समेत 175 लोग शामिल हुए थे।

21. 22 जनवरी 2024

प्रधानमंत्री मोदी जी की उपस्थिति में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होगा, जिसमें देश-विदेश के कई लोग शामिल होंगे। मंदिर निर्माण के लिए हिंदू समुदाय ने तकरीबन 3200 करोड रुपए का योगदान दिया।

Read Also :

जय श्री राम : Jai Shree Ram

हमारा देश भारत एक अध्यात्मिक देश है | लोगों का जीवन धर्म से जुड़ा है | हमारे देश में हिन्दू धर्म को मानने वाले सबसे अधिक हैं | इसीलिए इसे हिन्दुस्थान का नाम दिया गया  | हिन्दू धर्म में मुख्य रूप से भगवन श्री राम, श्री कृष्णा, श्री ब्रम्हा, श्री विष्णु, श्री महेश, सरस्वती माता, लक्ष्मी माता, वैष्णो देवी माता, काली माता, शेरोंवाली माता, सूर्य देवता, पवन देवता, और ऐसे ही अनेक देवताओं की पूजा की जाती है | हमारा हिन्दू धर्म वास्तव में बहुत ही प्राचीन धर्म है | हमने हिन्दू धर्म की महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए जय श्री राम (https://जयश्रीराम.net/) ब्लॉग की स्थापना की है |

हिन्दू धर्म के मूल सिद्धांत – Hindu Dharm Ke Mool Sidhant

किसी भी धर्म के कुछ सिद्धांत, मान्यताएं और नियम होते हैं जिनका आचरण करना उस धर्म को मानाने वालो के लिए जरुरी होता है | हिन्दू धर्म के भी अपने सिद्धांत और मूल मन्त्र हैं |

  1. ईश्वर एक है और उनके नाम अनेक हैं | जैसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश, श्री राम, श्री कृष्णा |
  2. ब्रह्म या परम तत्व सर्वव्यापी है | मतलब ब्रह्माण्ड के हर कण में उपस्थित है । इसीलिए हमें सभी का सम्मान करना चाहिए |
  3. ईश्वर से कभी डरें नहीं, बल्कि उनसे प्रेम करें और प्रेरणा लें |
  4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर होता है |
  5. हिन्दु धर्म में कोई एक पैगम्बर नहीं है बल्कि अनेक ईश्वर के रूप हैं ।
  6. धर्म की रक्षा करने के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं। जैसे श्री राम, श्री कृष्णा |
  7. परोपकार करना हिन्दू धर्म के लिए सबसे बड़ा पुण्य है, और दूसरों को कष्ट देना सबसे बड़ा पाप ।
  8. जीवमात्र की सेवा करना ही परमात्मा की सेवा माना जाता है। जीवों में मात्र मनुष्य ही नहीं आते बल्कि पशु, पक्षी,, पेड़ और पौधे भी आते हैं | इन सबकी रक्षा करना हिन्दू धर्म में सेवा माना गया है |
  9. हिन्दू धर्म में स्त्री का सम्मान बहुत आदरणीय माना जाता है उन्हें देवी के रूप में पूजा जाता है । इसीलिए नवरात्रों में कन्याओं की पूजा की जाती है |
  10. सती होने का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है।
  11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू धर्म को मानने वालों के मन, संस्कारों में और परम्पराओं में होता है | हिन्दू जिस जीवन शैली में जीते हैं वोही उनका धर्म है | धर्म ही जीने का तरीका सिखाता है |
  12. हिन्दू धर्म में पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता दी गई है. जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश को देवता माना जाता है |
  13. हिन्दू की दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी होती है.
  14. जीव की आत्मा अजर-अमर है।
  15. हमारे धर्म में सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र माना गया है .

ॐ भूर् भुवः स्वः।तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

हिन्दी में भावार्थ – Gayatri Mantra Hindi

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

  1. हिन्दुओं के सभी पर्व और त्योहार खुशियों और हर्षोल्लास से जुड़े हैं। हिन्दू धर्म सभी को खुश रहने और सभी को खुश रखने की प्रेरणा देता है |
  2. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ होता है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना जाता है।
  3. हिन्दुत्व में एकत्व का दर्शन है। मतलब ईश्वर के नाम अलग अलग हैं पर उन्हें एक माना गया है |

पर्यावरण की रक्षा हमारा उद्देश्य – Save Environment

हमारा मानना है की ब्रह्माण्ड के सभी जीव पर्यावरण के कारण ही जीवित हैं | यही हिन्दू धर्म का भी एक सिद्धांत है | हम सभी बिना जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी के बिना जीवित नहीं रह सकते | इसीलिए इनकी सुरक्षा करना भी हमारा धर्म है |

मनुष्य आज अपने स्वार्थ के कारण कुदरत की बनाई हुई प्रकृति का दोहन कर रहा है | जिसके कारण आज जल वायु परिवर्तन हो गया है | बेमौसम बरसात, आंधी तूफ़ान, भूकंप, सूखा आदि हो रहे हैं |

आज मनुष्यों पर यह कहावत सिद्ध हो रही है |

जिस थाली में खाता है, उसी में छेद कर रहा है |

ये सभी मनुष्य जानते हैं कि बिना जल, वायु, पृथ्वी के जीना एक पल भी संभव नहीं है | फिर भी इनका दोहन करता जा रहा है | इनको बचाने के लिए नामात्र के लोग सोचते हैं और कुछ करते हैं | बाकि 99% मनुष्य विनाश करने पर ही तुला हुआ है |

लेकिन हमें अपने हिन्दू धर्म के अनुसार चलना है | अपने धर्म को मानाने वाले लोगों को जगाना है | जो लोग प्रक्रति को बचाने का काम कर रहे हैं उनका सहयोग करना है | यह सहयोग किसी भी प्रकार से किया जा सकता है | आप भी इन तरीकों में से किसी को भी अपनाकर प्रकृति की रक्षा में अपना योगदान कर सकते हैं |

  • अपना समय देकर
  • धन देकर
  • लोगों को जागरूक करकर
  • प्रकृति के लिए काम करने वाले लोगों के विचार, खबरे, न्यूज़, पोस्ट, वीडियो आदि शेयर करकर |

Historical Facts About Ayodhya : अयोध्या नगरी – 10 रोचक तथ्य जो आपको हैरान कर देंगे

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के महान जीवन और ऊंचे कर्मों की वजह से हम सभी के दिलों में विशेष स्थान रखते हैं। हालांकि क्या वे एक ऐतिहासिक पुरुष हैं या नहीं इस बात को लेकर बहुत से लोगों के अलग अलग मत हैं, कुछ लोग कहते हैं की हमें प्रभु राम के जीवन से हमें सीखना चाहिए वहीं अधिकतर लोग ये कहते हैं की कोई चाहे माने या फिर ना माने, हम तो उन्हें ऐतिहासिक पुरुष मानेंगे और इस बात के पर्याप्त सबूत भी मौजूद हैं। लोगों की मानें तो आज से तकरीबन 7128 साल पहले अर्थात 5114 ईसवी पूर्व को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भगवान श्री राम जी का जन्म दशरथ जी के परिवार में हुआ था। चलिए आर्टिकल में अयोध्या और राम मंदिर के बारे में 10 महत्वपूर्ण बातें जानते हैं।

historical_facts_about_ayodhya.

1: जिस प्रकार से देश में सबसे पवित्र शहरों में या फिर स्थान में उज्जैन बनारस प्रयागराज की गिनती होती है, उसी प्रकार से पवित्र से पवित्र शहरों में अयोध्या की गिनती होती है। इसके अलावा अयोध्या देश का सबसे प्राचीन शहर भी माना जाता है। इसे सप्त पुरी में पहला माना जाता है। सप्त पुरी में अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, उज्जैन और द्वारका को शामिल करते हैं।

2: स्वायंभुव मनु के द्वारा इस पावन नगरी की बसावट की गई थी। हालांकि रामायण के नजरिए से देखा जाए तो सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज के द्वारा अयोध्या की स्थापना की गई थी। यह 6673 ईसा पूर्व हुए थे।

3: भगवान श्री हरि नारायण के चक्र पर अयोध्या जैसी नगरी स्थित है। यह बात हम नहीं बल्कि स्कंद पुराण के अनुसार हम आपको बता रहे हैं।

4: हिंदुओं के चार वेद में महत्वपूर्ण वेद अथर्ववेद में सर्वप्रथम अयोध्या का वर्णन किया गया था ऐसा जिक्र किया जाता है। अथर्ववेद के अनुसार अयोध्या को देवताओं की भूमि बताया गया है।

5:  सुरीरत्ना नी हु ह्वांग ओक अयुता नाम की एक महिला आज से तकरीबन 2000 साल पहले अयोध्या की राजकुमारी बनी थी।

6: अयोध्या में सिर्फ भगवान श्री राम का ही जन्म नहीं हुआ था बल्कि उनके तीनों भाई भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का भी जन्म अयोध्या में ही हुआ था। इसके अलावा यह भूमि जैन धर्म के लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां पर ही उनके प्रथम तीर्थंकर ऋषभ नाथ का भी जन्म हुआ था। ऋषभनथा भी भगवान श्री राम जी के ही खानदान के थे। इसके अलावा अभिनंदन नाथ, सुमति नाथ, अजीत नाथ और अनंतनाथ का जन्म भी इसी पावन भूमि पर हुआ था। इसलिए जैन धर्म के लोगों के लिए भी अयोध्या काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि जब भगवान श्री राम जी के मंदिर के निर्माण के लिए चंदा इकट्ठा करना शुरू किया गया, तो जैन धर्म के लोगों के लिए भी दिल खोलकर दान दिया गया।

7: तकरीबन 20 के आसपास में बौद्ध विहार होने का उल्लेख अयोध्या के आसपास में मिलता है। विभिन्न सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भगवान बुद्ध की मुख्य उपाशिका विशाखा के द्वारा बुद्ध के सानिध्य में अयोध्या में ही धम्म की दीक्षा ली गई थी। इसी की याद में विशाखा के द्वारा अयोध्या में मणि पर्वत के पास में बौद्ध विहार को स्थापित किया गया था, जो कि वर्तमान में भी मौजूद है और ऐसा भी कहा जाता है कि बुद्ध के महापरिनिर्वाण होने के पश्चात इसी बौद्ध विहार में उनके दांतों को रखा गया था।

8: हिंदू धर्म और जैन धर्म के अलावा सिख समुदाय के लिए भी अयोध्या काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह स्थल उनके लिए भी एक पवित्र स्थल माना जाता है, क्योंकि यहां पर ब्रह्म कुंड नाम का जो स्थान है, वहीं पर सिख धर्म के गुरु गुरु नानक देव जी के द्वारा तप किया गया था।

9: जब भगवान श्री राम जी का राज अयोध्या में चलता था, तब इसकी गिनती दुनिया के प्रमुख बिजनेस सेंटर में होती थी। जानकारी के अनुसार यहां पर बाहर के भी कई बड़े-बड़े व्यापारी आते थे और अयोध्या में व्यापार करते थे। इसके अलावा यहां पर शिल्प का भी निर्माण होता था और विभिन्न प्रकार के अस्त्र और शस्त्र का भी निर्माण अयोध्या में किया जाता था। इसके अलावा घोड़े के कारोबार के लिए भी यह एक प्रमुख केंद्र था। इसके अलावा विंध्याचल और हिमाचल के गजराज भी यहां पर मौजूद होते थे। ऐसा भी कहा जाता है कि, यहां पर तब के समय में हाथियों की हाइब्रिड नस्ल का भी कारोबार बड़े पैमाने पर व्यापारीयों के द्वारा किया जाता था।

10: बाल्मीकि रामायण में इस बात की जानकारी मिलती है कि, प्राचीन काल में अयोध्या में काफी ज्यादा बड़ी-बड़ी सड़क होती थी और रोजाना सड़कों पर ताजा पानी का छिड़काव किया जाता था और फूल भी सड़कों पर बिछाए जाते थे। दशरथ जी के द्वारा अयोध्या वासियों की खुशी का खास ख्याल रखा जाता था। यहां पर बड़े-बड़े तोरण द्वार होते थे। इसके अलावा बाजार काफी ज्यादा आकर्षक होते थे, साथ ही नगर की रक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के शस्त्र और यंत्र भी यहां पर रखे गए थे। अयोध्या के निवासी भी काफी ज्यादा सुखी संपन्न थे। इनके पास बड़े-बड़े मकान थे। काफी ज्यादा हरियाली भी अयोध्या में थी। जगह-जगह पर अयोध्या में सफेद फूलों के पेड़ के साथ ही साथ अशोक के पेड़ दिखाई पड़ते थे।

Ayodhya Ram Mandir History : राम मंदिर का ऐतिहासिक परिचय, किसने बनवाया अयोध्या का मंदिर?

कभी साकेत पुरी तो कभी अवधपुरी के नाम से मशहूर अयोध्या एक बार फिर से गुलजार होने वाली है, क्योंकि लंबे समय के इंतजार के बाद अब भगवान श्री राम जी की प्राण प्रतिष्ठा का समय काफी ज्यादा नजदीक आ गया है। भगवान श्री राम जी की प्राण प्रतिष्ठा इनके विशाल मंदिर में की जाएगी। इसके लिए हिंदू समुदाय ने तकरीबन 3200 करोड रुपए का योगदान दिया हुआ है।

अयोध्या आज से ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से ही हिंदुओं के लिए एक पवित्र भूमि रही है, जिस पर प्राचीन काल में भी एक विशाल मंदिर का निर्माण हुआ था, जिसे तोड़ दिया गया था। चलिए आज जानते हैं कि आखिर उस शानदार मंदिर का निर्माण किसने करवाया था और आखिर वह मंदिर कैसा था। जानकारी के अनुसार भगवान श्री राम जी का जन्म 5144 ईसवी पूर्व हुआ था। हमारे देश में हर साल चैत्र मास की नवमी को रामनवमी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।

ayodhya_ram_mandir_history

पुरातात्विक तथ्

आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ़ इंडिया डिपार्टमेंट के द्वारा साल 2023 में अगस्त के महीने में इस बात की जानकारी दी गई थी कि, बाबरी मस्जिद का निर्माण जहां पर हुआ था, वहां पर बाबरी मस्जिद से पहले मंदिर होने के संकेत मिले हुए हैं। वहां पर जमीन के अंदर कई दबे हुए खंभे प्राप्त हुए हैं और इसके अलावा दूसरे अवशेष पर प्रिंट निशान और मिली पोटरी से मंदिर होने का सबूत मिला हुआ है।

आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के द्वारा सर्वे की पूरी वीडियोग्राफी करवाई गई थी। सर्वे में शिव मंदिर भी दिखाई दिया था। इनका यह सर्वे भारत के हाई कोर्ट में भी दर्ज है। भारत के प्रयागराज हाईकोर्ट के द्वारा साल 2010 में 30 सितंबर के दिन विवादित ढांचे के मामले में एक महत्वपूर्ण डिसीजन सुनाया गया था, जिसमें तीनों न्यायाधीशों ने माना था कि जहां भगवान श्री राम जी के मंदिर होने का दावा किया जा रहा है वहीं पर भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था।

कैसी थी अयोध्या ?

प्राचीन काल में अयोध्या कौशल जनपद की राजधानी हुआ करती थी। रामायण के बालकांड में इस बात की जानकारी मिलती है कि, अयोध्या 12 योजन लंबी थी और तकरीबन 3 योजन चौड़ी थी।

रामायण को वाल्मीकि के द्वारा लिखा गया है, जिसमें इस बात का भी जिक्र है की सरयू नदी के किनारे अयोध्या स्थित है, जहां पर श्रीराम का राज चलता है। अयोध्या में बहुत से बगीचे और आम के पेड़ प्राचीन काल में थे, साथ ही चौराहे पर बड़े-बड़े स्तंभ भी लगे हुए थे। अयोध्या में रहने वाले हर व्यक्ति का घर काफी ज्यादा विशाल था।

क्या था जन्मभूमि का हाल

भगवान श्री राम जी के द्वारा जब जल समाधि ले ली गई थी, तो उसके पश्चात अयोध्या कुछ समय के लिए वीरान हो गई थी, परंतु जन्मभूमि पर जो महल निर्मित हुआ था, वह पहले की तरह ही सीना ताने खड़ा हुआ था।

बाद में श्री राम जी के पुत्र कुश के द्वारा अयोध्या को फिर से पुनर्निमित किया गया और इसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढी तक इसका अस्तित्व महाराजा बृहद्बल तक रहा। उनकी मृत्यु अभिमन्यु के हाथों होने के पश्चात एक बार अयोध्या फिर से वीरान हो गई थी परंतु इसके बावजूद राम जन्म भूमि का अस्तित्व फिर भी बरकरार रहा था।

किसने बनाया भव्य मंदिर

ऐतिहासिक जानकारी के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि, एक बार उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य घूमते घूमते अयोध्या आ पहुचे थे। वहां पर उन्होंने संतों से इसकी महिमा जानी और इसके बाद ही उन्हें पता चला कि, यह भगवान श्री राम जी की अवध भूमि है। संतों के आदेश के हिसाब से फिर विक्रमादित्य के द्वारा यहां पर कई सरोवर, महल, कूप इत्यादि का निर्माण करवाया गया और मंदिर भी बनवाया गया।

किसने करवाया जिर्णोद्धार

विक्रमादित्य के बाद भी समय-समय पर अनेक राजाओं ने अयोध्या का जीर्णोद्धार करवाया, जिसमे पुष्यमित्र शुंग का नाम भी आता है। इनका एक शिलालेख भी अयोध्या से मिला था, जिसमें पुष्यमित्र शुंग ने जो अश्वमेध यज्ञ किया था, उसका वर्णन है। जाने-माने कवि कालिदास ने भी कई बार रघुवंश में अयोध्या का जिक्र किया हुआ है।

किसने भव्य मंदिर की गवाही दी थी ?

फा-हियान नाम का एक चीनी साधु अयोध्या आया था, जहां उसने देखा कि, यहां पर बहुत सारे बौद्ध मठों के रिकॉर्ड रखे हुए हैं। इसके अलावा 7वी शताब्दी में यहां पर एक और चीनी यात्री हेनसांग भी आया था। उसके अनुसार यहां पर तब के समय में 20 से ज्यादा बौद्ध मंदिर थे और तकरीबन 3000 भिक्षु यहां पर निवास करते थे। इसके अलावा हिंदुओं के भी बड़े मंदिर यहां पर मौजूद थे, जहां पर लोग दर्शन करने के लिए लोग आते थे।

कब शुरु हुआ मंदिर का पतन

11वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान का ससुर जयचंद कन्नौज आया था, जहां पर उसने विक्रमादित्य के शिलालेख को हटा दिया और अपना नाम वहां पर लिखवा दिया। जयचंद की मृत्यु पानीपत के युद्ध में होने के बाद देश में इस्लामी आक्रमण काफी ज्यादा बढ़ने लगा। इस्लामी सेना ने काशी, मथुरा में भयंकर लूटपाट की और हजारों पुजारियो की हत्या की और इसी क्रम में आगे बढ़ते बढ़ते वह अयोध्या भी आ पहुंची।

हालांकि 14वी शताब्दी तक अयोध्या में वह राम मंदिर तोड़ने में सफल नहीं हो पाए थे। इसके बाद साल 1527-28 में इस्लामी सेना के द्वारा अयोध्या में मौजूद मंदिर को तोड़ दिया गया और मंदिर तोड़कर वहां पर बाबरी का ढांचा खड़ा कर दिया गया। यह बाबरी मस्जिद 1992 तक रही थी। 1992 में हिंदू दलों के कार्यकर्ताओं के द्वारा बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया गया और तब से यह मामला कोर्ट में चल रहा था, जिसकी अब समाप्ति हो चुकी है।