जया एकादशी व्रत कथा : Jaya Ekadashi Vrat Katha

हिन्दू धर्म में माघ माह का बहुत महत्व है। माघ महीने के शुक्ल पक्ष में पडने वाली एकादशी भी विशेष महत्व रखती है। इस एकादशी को जया एकादशी कहते है। जया एकादशी को भीष्म एकादशी या भूमि एकादशी के नाम से भी पुकारा जाता है। जया एकादशी के बारे में शास्त्रों में बताया गया कि जो भी जातक जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करता है और व्रत रखता है उसे मृत्यु के पश्चात पिशाच श्रेणी में नहीं जाना पड़ता अर्थात भूत-प्रेत नहीं बनना पड़ता है। तो आईये जानते है कि जया एकादशी कब है, इसकी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है, इसका महत्व और इस दिन विषयक कुछ उपाय भी आपको बतायेंगे।

जया एकादशी कब है | Jaya Ekadashi Kab Hai 2023 | Jaya Ekadashi Shubh Muhurat

फरवरी के महीने की शुरूआत जया एकादशी के व्रत के साथ हो रही है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि 31 जनवरी, 2023 दिन मंगलवार को रात्रि 11ः53 पर प्रारम्भ होकर 01 फरवरी 2023, दिन बुधवार को समाप्त होगी। उदया तिथि के चलते 01 फरवरी को ही जया एकादशी का पूजा-पाठ करना व व्रत करना शुभकारी होगा। जया एकादशी वाले दिन दो विशेष योग भी बन रहे है। यह है सर्वाथ सिद्धि योग और इंद्र योग। सर्वार्थ सिद्धि योग 01 फरवरी को 07ः10 मिनट से प्रारम्भ होकर 02 फरवरी को सुबह 03ः25 मिनट पर समाप्त होगा जबकि इंद्र योग 01 फरवरी को सुबह 07ः15 मिनट से शुरू होकर सुबह 11 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इन दोनों योगों में पूजा करना श्रेष्ठ फलदायी होता है। 

जया एकादशी पर इस बार भद्राकाल भी लग रहा है। भद्रा 01 फरवरी, 2023 को सुबह 07ः10 मिनट से शुरू होकर दोपहर बाद 02ः01 मिनट तक रहेगी। भद्रा काल में कोई भी मांगलिक कार्य, शुभ कार्य को करने की मनाही होती है लेकिन भद्रा काल में पूजा-पाठ की जा सकती है।

जया एकादशी पूजा विधि | Jaya Ekadashi Pooja Vidhi

जया एकादशी वाले दिन ब्रहम मुहूर्त में उठकर अपने पूजा स्थल को साफ कर ले। इसके बाद स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनकर एक अंजुलि में पानी लेकर भगवान श्री हरि के समक्ष बैठकर एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए। एक चैकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें और उस प्रतिमा पर पीले फूल व माला चढ़ाएं। भगवान विष्णु के समक्ष देशी घी का दीपक व धूपबत्ती जलाएं। श्री हरि के सामने बैठकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इसके बाद विधिवत एकादशी की कथा करें व भगवान विष्णु की आरती करें। भगवान विष्णु को पीपल के पत्ते पर दूध और केसर से बनाई हुई खीर या कोई मिठाई व फल का भोग लगाएं। इस भोग को घर के सभी लोगों में प्रसाद स्वरूप अर्पित करें। जया एकादशी के दिन दान पुण्य अवश्य करना चाहिए। इस दिन एक बात का ख्याल रखें भगवान विष्णु को चढ़ाएं हुए फल को किसी जरूरतमंद या गरीब को दान अवश्य करें। 

जया एकादशी व्रत कथा | Jaya Ekadashi Vrat Katha

प्राचीन समय में नंदन वन में एक उत्सव का आयोजन हुआ। इस उत्सव में देवताओं के साथ-साथ बड़े-बड़े ऋषि मुनियों ने भी शिरकत की। इस उत्सव में गायन के लिए माल्यावान नाम के एक गंधर्व को बुलाया गया। इस उत्सव में पुष्यवती नाम की नृत्यांगना भी नृत्य कर रही थी। पुष्पवती माल्यावान के रूप रंग को देखकर आकर्षित हो गई और ऐसा नृत्य करने लगी जिससे माल्यावान उसकी तरफ मोहित हो जाये। माल्यावान पुष्पवती के नृत्य को देखकर उसकी तरफ आकर्षित हो गया और गाते-गाते उसका सुर लय ताल बिगड़ गया। सुर ताल बिगड़ने के चलते उत्सव का आनन्द धूमिल होने लगा। जब इन्द्र ने यह देखा तो वह माल्यावान पर क्रोधित हो गए और उन्होंने क्रोध में आकर माल्यावान व उसकी पत्नी को पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप दे डाला। पिशाच योनि में जन्म लेने पर दोनों पति-पत्नी दुखी रहने लगे।

माल्यावान को अपनी गलती का एहसास हो गया और वह सोचने लगा कि आखिर क्यों वह पुष्पवती पर मोहित हुआ जिसके चलते उसे यह दुख सहना पड़ रहा है। दुखी होने के चलते एक दिन दोनों पति-पत्नी ने कुछ भी नहीं खाया। संयोग से उस दिन जया एकादशी थी। इस तरह उनसे जया एकादशी का व्रत हो गया। जया एकादशी के व्रत को करने के चलते भगवान विष्णु उनसे अत्यन्त प्रसन्न हुए और दोनों पति-पत्नी को पिशाच योनि से मुक्त करके वापस पृथ्वी लोक पर वापस भेज दिया। जब देवराज इन्द्र को इस बात की जानकारी हुई कि दोनों पति-पत्नी पिशाच योनि से मुक्त हो गए है तो वह आश्चर्यचकित हो गए। इन्द्र ने उन दंपत्ति से पूछा कि आखिर तुम दोनों पिशाच योनि से कैसे मुक्त हुए। तब उन दोनों ने इन्द्र को जया एकादशी के व्रत के बारे में बताया। उस दिन के बाद से ही ऐसा माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से जया एकादशी का व्रत करता है उसे कभी भी पिशाच योनि में भ्रमण नहीं करना पड़ता है। मृत्यु के प्श्चात उसे भूत-प्रेत नहीं बनना पड़ता है। उसे उसके सारे पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के पश्चात वह मोक्ष को प्राप्त करता है।

जया एकादशी व्रत का पारण | Jaya Ekadashi Vrat Paran

एकादशी का व्रत एकमात्र ऐसा व्रत होता है जिसके लिए एक दिन पहले यानि दशमी तिथि से व्रत के नियमों का पालन किया जाता है। दशमी तिथि को रात्रि 12 बजे के बाद कुछ खाना पीना नहीं चाहिए। इसके अलावा दशमी से ही सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए यानि प्याज, लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए। एकादशी वाले दिन विधिपूर्वक एकादशी का व्रत रखना चाहिए व व्रत का पारण अगले दिन यानि द्वादशी तिथि को करना चहिाए। व्रत के पारण के लिए सूर्योदय के बाद का समय उपयुक्त होता है। पारण ऐसे समय करना चाहिए जब एकादशी तिथि समाप्त न हुई हो। हरि वासर के दौरान भी व्रत का पारण नहीं करना चाहिए। द्वादशी तिथि की पहली एक चैथाई अवधि को हरि वासर कहा जाता है। ऐसे में व्रत का पारण सुबह के समय ही करना उपयुक्त होता है। भूलकर भी दोपहर में व्रत का पारण नहीं करना चाहिए। जया एकादशी व्रत के पारण का सबसे उपयुक्त समय 02 फरवरी, 2023 को सुबह 07 बजकर 09 मिनट से सुबह 09 बजकर 19 तक का है। पारण करने से पहले श्री हरि विष्णु भगवान से व्रत के दौरान अगर कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए क्षमा मांग लेनी चाहिए। 

जया एकादशी का महत्व | Jaya Ekadashi Ka Mahatva

जया एकादशी के महत्व के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने पद्य पुराण में बताया है। जो भी व्यक्ति इस व्रत को नियम से करता है उसे कष्टदायक पिशाच योनि में भ्रमण नहीं करना पड़ता है। इस एकादशी के महत्व को भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को भी बताया था। जो भी जातक जया एकादशी का नियमपूर्वक व्रत करता है और भगवान श्री हरि की पूजा पाठ करता है उसे ब्रहम हत्या समान पापों से मुक्ति मिलती है।

जया एकादशी के दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार के दुखों से छुटकारा मिलता है और व्यक्ति इस जन्म के कर्मों को भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करता है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा करने का भी विधान है। 

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जया एकादशी के उपाय | Jaya Ekadashi Upay

जया एकादशी का व्रत करने वाले जातक को आज के दिन घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए। तुलसी विष्णु जी को प्रिय है। ऐसे में अगर आप तुलसी माता का पौधा घर में लगाते है तो भगवान श्री हरि का आर्शाीवाद मिलता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। जया एकादशी के दिन उत्तर दिशा की ओर गेंदे के फूल का पौधा भी लगाना चाहिए।

माघ का पूरा महीना दान-पुण्य की दृष्टि से सर्वोत्तम होता है। ऐसे में जया एकादशी वाले दिन किसी गरीब, असहाय या जरूरतमंद को अन्न, वस्त्रों का दान करना चाहिए। इस कार्य को करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

जया एकादशी वाले दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु को केसर लगी जनेऊ और पीले पुष्प अर्पित करने वाले जातक को मृत्यु के पश्चात पिशाच योनि में नहीं जाना पड़ता। उसे भूत, प्रेत नहीं बनना पड़ता। 

पुराणों में वर्णित है कि पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु विराजमान होते है। इसलिए जया एकादशी के दिन पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाकर शाम को उसके समक्ष घी का दीपक अवश्य जलाना चाहिए। जो भी जातक इस उपाय को करता है उसको भगवान श्री हरि और माता लक्ष्मी का आर्शीवाद मिलता है। धन, यश, वैभव, मान, सम्मान की प्राप्ति होती है।

अगर शादी में विलम्ब हो रहा हो, विवाह की आयु होने के बाद भी विवाह न हो रहा हो तो जया एकादशी के दिन पीली वस्तुएं और केले का दान करने से विवाह संबंधी बाधाएं दूर हो जाती है।

जया एकादशी पर जरूर करें यह काम | Jaya Ekadashi Par Kare Yeh Kaam

जया एकादशी का व्रत करने वाले जातक को पूरे दिन भगवान विष्णु के मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ ‘ऊँ नमो नारायण’ मंत्रों का जाप करना चाहिए। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी दिन में कम से कम एक बार अवश्य करें। 

जया एकादशी वाले दिन किसी मंदिर में जाकर भगवद्गीता का पाठ करना चाहिए। गीता का पाठ करने से मन को शांति मिलती है और आत्मबल बढ़ता है।

द्वादशी के दिन व्रत का पारण करने से पहले किसी ब्राहमण को भोजन जरूर कराये और उन्हें यथासंभव दान-दक्षिणा भी अवश्य दें। इसके बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करें।

जया एकादशी पर यह ना करें | Jaya Ekadashi Par Kya Na Kare

जया एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन चावल खाना कीड़े खाने के बराबर होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि चावल में जल तत्व अधिक होता है। जल पर चंद्रमा का प्रभाव होता है और चंद्रमा मन का कारक होता है। इसलिए चावल खाने से मन भटकता है और मन विचलित हो जाता है। 

ऐसा कहा जाता है कि किसी की भलाई के लिए अगर झूठ बोलना पड़े तो वह झूठ गलत नहीं होता है लेकिन इस दिन किसी की भलाई के लिए भी झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलने से हमारे अच्छे कर्मों का प्रभाव क्षीर्ण हो जाता है और व्रत का पुण्य हमें नहीं मिलता है। 

जया एकादशी पर क्रोध भी नहीं करना चाहिए। जया एकादशी वाले दिन ब्रहम मुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए। देर तक नहीं सोना चाहिए। देर तक सोने से घर में दरिद्रता आती है।

जया एकादशी पर चने की दाल, बैगन, नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत करने वाले जातकों को बार-बार फलहार ग्रहण नहीं करना चाहिए। 

जया एकादशी का व्रत बहुत ही फलदायी होता है। जया एकादशी का नियमपूर्वक व्रत करने वाले जातक को अगले जन्म में नीच योगी यानि पिशाच योनि में भ्रमण नहीं करना पड़ता। पुराणों में वर्णित है कि इंद्रलोक की अप्सराओं को श्राप के चलते पिशाच योनि में जन्म लेना पड़ा तब उन्होंने नियमपूर्वक जया एकादशी का व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गई। जया एकादशी वाले दिन तुलसी के पौधे में दीपक जरूर जलाना चाहिए। तुलसी जी विष्णु जी को प्रिय है।

निष्कर्ष

दोस्तों आज के लेख में हमने आपको जया एकादशी के संबंध में सारी जानकारी प्रदान की। उम्मीद करते है कि आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ शेयर जरूर करें। ऐसे ही आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहें।

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जयश्रीराम

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माघ पूर्णिमा कब है, इन उपायों से बरसेगी माता लक्ष्मी की कृपा | Magh Purnima 2023

हिन्दू धर्म में हर महीना एक खास महत्व रहता है। इन्हीं महीनों में से एक माह है माघ मास। माघ माह में की गई पूजा-पाठ और दान-पुण्य कई गुना होकर वापस आता है। माघ महीने की हर तिथि अपने आप में महत्वपूर्ण होती है। इन्हीं तिथियों में से एक तिथि है माघी पूर्णिमा तिथि। माघी पूर्णिमा पर स्नान-दान का विशेष महत्व होता है। माघी पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहते है क्योंकि इस दिन किया गया दान बत्तीस गुना होकर वापस लौटता है। आज के लेख में हम माघी पूर्णिमा कब है, कैसे इस दिन पूजा करनी चाहिए, इसका महत्व क्या है आदि पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

माघी पूर्णिमा कब है | Magh Purnima Kab Hai

माघ पूर्णिमा 04 फरवरी 2023, दिन शनिवार को रात्रि 9ः29 मिनट से प्रारम्भ होकर 05 फरवरी 2023, दिन रविवार की रात्रि 11ः58 मिनट पर समाप्त होगी। चूंकि हिन्दू धर्म में हर पर्व को मनाने के लिए उदया तिथि का मान किया जाता है। ऐसे में माघी पूर्णिमा का पर्व 05 फरवरी, दिन रविवार को मनाना ही श्रेयस्कर होगा। माघी पूर्णिमा से संबंधित स्नान, व्रत-पूजा और दान का कार्य भी 05 फरवरी को ही किया जायेगा। माघी पूर्णिमा पर इस बार आयुष्मान योग, सौभाग्य योग, रवि पुष्प योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहे है। आयुष्मान योग 5 फरवरी को सुबह 6 बजकर 14 मिनट से दोपहर 02 बजकर 41 मिनट तक है जबकि सौभाग्य योग 05 फरवरी को दोपहर 02ः41 मिनट से 06 फरवरी को दोपहर 03 बजकर 25 मिनट तक है। रवि पुष्य योग 05 फरवरी को सुबह 07 बजकर 7 मिनट से प्रारम्भ होकर दोपहर 12 बजकर 13 मिनट पर समाप्त होगा। जबकि सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 7 बजकर 7 मिनट से शुरू होगा और दोपहर बाद 12 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगा। इन शुभ योगों में पूजा-पाठ और मांगलिक कार्य करने से दोगुना फल मिलता है। सौभाग्य योग 06 फरवरी को भी है लेकिन अगर आप उदया तिथि का मान करते है तो आपको 05 फरवरी को ही पूर्णिमा करनी चाहिए।

माघी पूर्णिमा पर ऐसे करें पूजा | Maghi Purnima Puja Kaise Kare

माघी पूर्णिमा के दिन ब्रहम मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें। पूर्णिमा के दिन किसी नदी में स्नान करना बहुत ही फलदायी होता है इसलिए आज के दिन किसी पवित्र नदी जैसे गंगा, यमुना, नर्मदा आदि में स्नान जरूर करें। अगर किन्ही कारणों से ऐसा करना संभव न हो तो अपने घर के स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान अवश्य करें। स्नान करते समय भगवान सूर्यदेव के मंत्रों का जाप करते रहे। स्नान करने के बाद साफ धूले हुए वस्त्र पहनकर पूर्णिमा की पूजा करें।

माघ माह में सूर्यदेव की उपासना विशेष फलदायी होती है। ऐसे में स्नान करने के बाद सूर्यदेव को अघ्र्य जरूर दे और उनके सम्मुख खड़े होकर उनके मंत्र ‘ऊँ आदित्य नम’ ‘ऊँ भास्कराय नमः’ आदि मंत्रों का 108 बार जप करें। माघी पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण के मधुसूदन रूप की आराधना की जाती है। माघी पूर्णिमा के दिन सबसे पहले अपने पूजा घर में आसन बिठाकर बैठ जाये। पूर्णिमा व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु को पुष्प, माला चढ़ाएं। जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु के समक्ष धूप, दीप जलाएं। इसके बाद माघी पूर्णिमा की कथा करें। कथा समाप्त होने के बाद श्री हरि की आरती करें और इस आरती को घर के सभी परिजन को दे। पंचामृत, फल, मिठाई, पंजीरी का भोग भगवान विष्णु को अर्पित करें। इस प्रसाद को घर के सभी लोगों में वितरित करें। रात्रि में चंद्रमा और माता लक्ष्मी के पूजन के पश्चात व्रत का पारण करें।

माघी पूर्णिमा की कथा | Magh Prunima Katha | Magh Purnima Story

प्राचीन समय में कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का ब्राहमण अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह बहुत गरीब था और भिक्षा मांगकर अपना जीवन गुजारता था। उनको बस एक ही बात का दुख था कि उनके कोई संतान नहीं थी जिसके चलते वह दम्पत्ति दुखी रहते थे। एक बार की बात है उसकी पत्नी एक नगर में भिक्षाटन के लिए गई लेकिन नगर वासियों ने बांझ कहकर उसका अपमान किया और भिक्षा नहीं दी। भिक्षा ना मिलने के चलते वह बहुत दुखी हुई। उसकी इस दशा को देखकर उसी के पड़ोस में रहने वाले व्यक्ति ने उसको 16 दिन तक मां काली की आराधना करने की सलाह दी। उस आदमी की सलाह को मानकर ब्राहमणी ने 16 दिन तक विधिवत माता काली की पूजा-आराधना की। उसकी भक्ति देखकर मां काली अत्यन्त प्रसन्न हो गई और माता काली ने प्रत्यक्ष उसके समक्ष प्रकट होकर उसे गर्भवती होने का वरदान दिया और उसे सलाह दी कि तुम हर पूर्णमासी के दिन 32 दीपक प्रज्वलित करो। कुछ दिन बाद पूर्णमासी पड़ी। ब्राहमण की पत्नी ने अपने पति से पेड़ से कच्चा फल लाने को कहा। ब्राहमण ने कच्चा फल उसे लाकर दिया। ब्राहमणी ने विधिपूर्वक मां काली पूजा की और माता के कहे अनुसार हर पूर्णिमा को 32 दीपक जलाने लगी। ब्राहमणी के ऐसा करने से मां काली बहुत प्रसन्न हुई और उनके आर्शीवाद से दम्पत्ती के घर पुत्र ने जन्म लिया। उस पुत्र का नाम उन्होंने देवदास रखा। बड़ा होने के बाद देवदास पढ़ने के लिए अपने मामा के घर काशी चला गया। काशी में देवदास के साथ एक दुर्घटना घट गई जिसके चलते देवदास का धोखे से विवाह हो गया। देवदास अल्पायु था उसने इस विवाह को रोकने की बहुत कोशिश की किन्तु होनी को कुछ और ही मंजूर था। कुछ समय बाद काल देवदास के प्राण हरने आ गया लेकिन चूंकि ब्राहमण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत पूजन किया हुआ था जिसके चलते काल देवदास के प्राण नहीं ले सका। उसी दिन के बाद से मान्यता है जो भी जातक माघी पूर्णिमा का व्रत रखता है उसके जीवन के सभी कष्ट दूर होते है और वह जातक अपने जीवन का सफलता पूर्वक निर्वहन करता है।

माघी पूर्णिमा का महत्व | Magh Prurnima Ka Mahatva

माघ का सम्पूर्ण महीना जप, तप व दान की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में माघी पूर्णिमा पर किया गया दान व तप विशेष महत्व रखता है। इस दिन गरीब व जरूरतमंदों को तिल, कंबल, फल, अनाज का दान अवश्य करना चाहिए। माघ पूर्णिमा पर किसी भी वस्तु दान करने से महायज्ञ करने से भी ज्यादा पुण्य फल की प्राप्ति होती है। माघी पूर्णिमा पर पितरो का श्राद्ध करने का भी विशेष महत्व होता है।

माघ पूर्णिमा पर गंगा स्नान बहुत महत्व रखता है। स्वयं भगवान विष्णु गंगा में निवास करते है। मान्यता है कि इस दिन गंगाजल छूने मात्र से व्यक्ति के जीवन के सारे पाप नष्ट हो जाते है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कई लोग एक महीने तक संगम के तट पर कल्पवास करते है वह लोग आज ही के दिन इस कल्पवास को खत्म करते हैं। पुराणों में ऐसी मान्यता है कि माघ माह में संगम स्नान करने पर दस हजार अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल मिलता है क्योंकि इस माह सभी देवतागण प्रयाग में निवास करते है।

मघा नक्षत्र के नाम से ही माघ पूर्णिमा का नाम पड़ा है। पुराणों में वर्णित है कि माघ माह में सभी देवतागण मनुष्य रूप धरकर पृथ्वी पर प्रकट होते है और पवित्र नदी गंगा में स्नान करते है इसलिए गंगा में स्नान करने से देवताओं का आर्शीवाद प्राप्त होता है। मान्यता है कि अगर माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ जाये तो इसका महत्व और बढ़ जाता है।

माघी पूर्णिमा के उपाय | Magh Prurnima Upay

माघी पूर्णिमा बहुत पवित्र तिथि होती है। इस दिन अगर आप माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए कुछ उपाय कर ले तो आपके जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाती है और आपको सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है। आईये उन उपायों के बारे में जानते हैं-

माघ पूर्णिमा के दिन घर के मुख्य द्वार पर अशोक या आम के पत्तों का तोरण लगाएं। घर की देहरी पर हल्दी लगाकर मुख्य द्वार के दोनों तरफ हल्दी से स्वास्तिक बनाकर उस स्वास्तिक पर रोली व अक्षत का छिड़काव करे। तत्पश्चात देहरी पर देशी घी का दीपक जलाये। घर में लगी तुलसी माता की पूजा करे। उनके समक्ष दीपक जलाएं व भोग लगाये। अगर आप इस उपाय को करते है तो माता लक्ष्मी की कृपा से आर्थिक समस्या दूर होगी और धन, यश, वैभव, ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी।

अगर आप अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करना चाहते है तो आज के दिन अपने घर में अखंड दीपक प्रज्जवलित करें। उस दीपक में लौंग डाल दे। अगर आप इस उपाय को करते है तो आपके घर में कभी भी धन की तंगी नहीं होगी और घर में सकारात्मक ऊर्जा फैलेगी।

माघी पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करने से घर में समृद्धि आती है और घर में धन की वर्षा होती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

माघी पूर्णिमा पर विष्णु सहस्त्रनाम, गजेन्द्र मोक्ष का पाठ करना बहुत सुखदायी होता है। इस दिन किसी भी समय भगवद्गीता का पाठ जरूर करना चाहिए। अगर आप इन पाठों को करते है तो आपको अपने जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन देखने को मिलेंगे। साथ ही आपकी चली आ रही समस्या और परेशानियां दूर हो जायेगी। घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होगा और नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी।

माघ पूर्णिमा के दिन अगर आप माता लक्ष्मी से संबंधित एक उपाय कर लेते है तो आपको अपने जीवन में कभी भी आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ेगा। आज के दिन आप माता लक्ष्मी को कोई भी सफेद चीज जैसे मिठाई या खीर का भोग लगाएं। ऐसा करने से आपके जीवन में माता लक्ष्मी की कृपा होगी और आप जीवन पर्यन्त धनवान बने रहेंगे।

माघ पूर्णिमा के दिन 11 कौड़िया ले। इन कौड़ियों को हल्दी से रंगकर उनको माता लक्ष्मी को अर्पित करें। तत्पश्चात इन कौड़ियों की पूजा करें। पूजा के बाद इन कौड़ियों को एक लाल रंग के कपड़े में बांधकर अपने घर की तिजोरी में रख दे। ऐसा करने से माता लक्ष्मी के आर्शीवाद से कभी भी आपको आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ेगा।

माघ माह में तिल का दान विशेष महत्व रहता है। अगर आप माघ माह में तिल या तिल से बनी किसी वस्तु का दान करते हैं तो आपके सभी कार्य बनने लगेंगे और चली आ रही समस्या का निदान होगा।

माघी पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ की पूजा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि पीपल के पेड़ में भगवान का वास होता है। मान्यता है कि अगर आप विधिपूर्वक पीपल के पेड़ की पूजा करते हैं तो आपके घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है। अगर आप इस दिन पीपल के पेड़ के नीचे देशी घी का दीपक जलाते है तो माता लक्ष्मी के आर्शीवाद से आपकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। पुराणों में मान्यता है कि आज के दिन मां लक्ष्मी को समर्पित श्रीसूक्त का पाठ अवश्य करना चाहिए।

माघी पूर्णिमा के दिन भगवान हनुमान की पूजा करने से जिन लोगों की कुंडली में मंगल की दशा अशुभ हो तो वह दूर होती है और हनुमान जी के आर्शीवाद से लाभफल की प्राप्ति होती है।

निष्कर्ष

दान-पुण्य और जप-तप के लिहाज से माघी पूर्णिमा विशेष महत्व रखती है। इस दिन भगवान विष्णु के स्वरूप भगवान सत्यनारायण, माता लक्ष्मी और चन्द्रमा की पूजा की जाती है। आज के दिन अगर आप कुछ विशेष उपाय करते हैं तो आप पर माता लक्ष्मी की कृपा बरसती है। इन उपायों को हमने आज के लेख में बताया है। उम्मीद करते है इन उपायों को माघी पूर्णिमा के दिन करकर आप अपनी धन की समस्या को दूर कर सकेंगे। अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तो, परिजनों के साथ शेयर जरूर करें। इसी तरह के आध्यात्मिक और शिक्षाप्रद लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

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गणपति जयंती का महत्व | Ganesh Jayanti Ka Mahatva

आज है गणेश जयंती का पर्व, इस तरह करें प्रथम पूज्य गणेश भगवान की आराधना

हिन्दू धर्म में गणेश जी को प्रथम पूज्य भगवान माना जाता है यानि किसी भी पूजा की शुरूआत गणेश जी की आराधना के साथ की जाती है। बुधवार और गणेश चतुर्थी का दिन भगवान गणेश जी की पूजा के लिए सर्वोत्तम दिन होता है। हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जयंती का पर्व मनाया जाता है। इसे माघ विनायक चतुर्थी और वरद चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता अनुसार इस दिन शिव और पार्वती के पुत्र भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इसलिए आज के दिन भगवान गणेश की विधिविधान से पूजा करने से भगवान गणेश का आर्शीवाद प्राप्त होता है और सारे दुख, संकट दूर हो जाते है। आज के लेख में हम गणेश जयंती कब है, कैसे इस दिन पूजा करें, इसका महत्व है आदि पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

गणेश जयंती कब है | Ganesh Jayanti Kab Hai

माघ मास के शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी 24 जनवरी 2023, दिन मंगलवार को दोपहर 03 बजकर 22 मिनट से प्रारम्भ होकर 25 जनवरी 2023, दिन बुधवार को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार 25 जनवरी को ही गणेश जयंती का पर्व मनाया जायेगा। गणपति आराधना का शुभ मुहूर्त 25 जनवरी को सुबह 11ः34 मिनट से प्रारम्भ होकर दोपहर 12ः34 मिनट तक रहेगा।

साल का पहला पंचक भी गणेश जयंती पर पड़ रहा है। अगर आप नहीं जानते कि पंचक क्या होता है तो हम आपको बता दे चंद्रमा के विभिन्न नक्षत्रों के भ्रमण काल को पंचक कहा जाता है। जब चंद्रमा धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण और उत्तराभाद्रपद, पूर्वाभाद्रपद, रेवती व शतभिषा नक्षत्र इन चारों चरणों में घूमता है तो पंचक काल कहलाता है। पंचक काल 23 जनवरी से प्रारम्भ होकर 27 जनवरी तक रहेगा। पंचक में किसी भी कार्य को करना अशुभ माना जाता है लेकिन ये पंचक राज पंचक है जिसमें की गई पूजा हर दृष्टिकोण से उचित फल देने वाली होती है। राज पंचक में किये गये कार्य राज्य सुख प्रदान करते हैं। इस बार गणेश जयंती पर भद्रा का साया भी रहेगा। भद्रा 25 जनवरी को सुबह 01ः53 मिनट से दोपहर 12ः34 मिनट तक रहेगी। भद्रा में किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य नही किया जाता है लेकिन पंचक और भद्रा एक साथ होने से पूजा-पाठ की जा सकती है।

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गणेश जयंती पर इस तरह करें पूजा | Ganesh Jayanti Ki Puja Kaise Kare

गणेश जयंती वाले दिन सबसे पहले स्नान करके साफ धुले हुए वस्त्र पहने। अपने घर के पूजाघर की साफ-सफाई करे। पूजा घर में एक आसन बिछाकर आदि देव गणेश जी की प्रतिमा के समक्ष दोनों हाथ जोड़कर गणेश जी के व्रत का संकल्प। एक चैकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर गणेश जी की प्रतिमा रखें। सिंदूर से गणेश जी को तिलक करे और इस तिलक को अपने माथे पर आर्शीवाद स्वरूप लगाये। गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें यह ध्यान रहे कि हमेशा साफ-सुथरी दुर्वा ही गणेश जी को अर्पित करें। दुर्वा 21 या 51 के क्रम में ही चढ़ाये। गणपति बप्पा को पुष्प, जनेऊ अर्पित करें। गणेश जी को मोदक अत्यन्त प्रिय है। ऐसे में उन्हें मोदक का भोग अवश्य लगाएं। पूजा समाप्त होने के बाद सपरिवार गणपति भगवान की आरती करें तथा उन्हें भोग लगाये। इस भोग को अपने परिजनों व आस-पड़ोस में वितरित करें।

गणेश जी के इन मंत्रों का करें जाप | Ganesh Ji Mantra

गणेश जयंती वाले दिन गणेश जी के मंत्र “ऊँ गणपते नमः” का अधिक से अधिक बार जाप करना चाहिए। इस मंत्र को जपने से गणपति प्रसन्न होते है और साधक के सारे कार्य निवृघ्न पूर्ण हो जाते है।

धन संपदा की प्राप्ति के लिए और माता लक्ष्मी की कृपा दृष्टि प्राप्त करने के लिए आज के दिन कुबेर जी के मंत्र ‘ऊँ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट स्वाहा’ का अपने पूजा घर में बैठकर 108 बार जाप करें। ऐसा करने वाले साधक को कभी भी आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता।

सारे संकटों को नाश करने के लिए ‘ऊँ नमो हेरम्ब मद मोहित मम संकटान निवारय-निवारय स्वाहा’ इस मंत्र को यथाशक्ति जाप करें। इसके जाप से सारे संकट दूर होते है।

गणेश जयंती पर माता लक्ष्मी का आर्शीवाद जरूर लें। शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी ने गणेश जी को वरदान दिया था जिस घर में गणेश जी की पूजा होगी उस घर में माता लक्ष्मी का वास जरूर होगा। इसलिए गणेश जयंती पर माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करें।

गणेश चतुर्थी पर क्यों नहीं देखते चांद |

कृष्ण पक्ष में जब गणेश चतुर्थी पड़ती है तो उसका चांद नहीं देखा जाता जबकि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का चांद देखने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। कृष्ण पक्ष की गणेश चैथ का चांद देखने से कलंक लगता है। इसके पीछे एक कथा भी प्रचलित है गणेश जी ने इंद्रदेव का मजाक उड़ाया था। क्रोध में आकर इंद्रदेव ने उन्हें श्राप दे दिया था। तभी से गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन करने से कलंक लगता है।

गणपति जयंती का महत्व | Ganesh Jayanti Ka Mahatva

बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है। गणपति जयंती बुधवार को पड़ रही है। ऐसे में गणेश जयंती का महत्व और भी बढ़ जाता है। गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहते है। इस दिन अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से प्रथम पूज्य भगवान गणेश की आराधना करता हैं तो उसके सारे कष्ट विघ्नहर्ता गणेश जी हर लेते है। इस दिन प्रेमपूर्वक गणेश जी की आराधना करने वाले जातक के सभी कष्ट दूर हो जाते है।

अगर कोई निःसंतान दम्पत्ति विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी की विधिवत पूजा-अर्चना करता है व गणेश जी का व्रत करता है तो गणेश जी के आर्शीवाद से संतान फल की प्राप्ति होती है। इसलिए इस चतुर्थी को वंश वृद्धि चतुर्थी भी कहा जाता है।

गणेश जयंती के उपाय | Ganesh Jayanti Upay

यदि आप अपने घर की कलह-क्लेश से परेशान है। नौकरी में बाधा आ रही है, स्वास्थ्य समस्या से परेशान है तो गणेश चतुर्थी के दिन किसी मंदिर में जाकर सफेद तिल का दान करें। ऐसा करने से चली आ रही परेशानी दूर होगी और गणपति बप्पा के आर्शीवाद से निरोगी काया बनेगी।

गणेश चतुर्थी के दिन बाजार से गणेश जी की एक मूर्ति खरीद लाये। इस मूर्ति की अपने घर में प्राण प्रतिष्ठा करें। नियमित रूप से इसकी पूजा करें। इस उपाय को करने से अगर आपकी कुंडली में बुध ग्रह की स्थिति कमजोर हो तो वह मजबूत होता है। बुध दोष की शांति होती है।

गणेश चतुर्थी के दिन किसी मंदिर में जाकर हरी वस्तुओं का दान अवश्य करना चाहिए। गरीब और जरूरतमंद लोगों को हरे रंग के वस्त्र या अन्य वस्तुओं का दान करना चाहिए। इस उपाय को करने से आपका अगर कोई काम अटका हुआ है तो वह पूरा होता है।

गणेश चतुर्थी वाले दिन हरी मूंग की दाल को चावल के साथ मिलाकर दान करने से कारोबार में बढ़ोत्तरी होती है। इस दिन पक्षियों को हरी मूंग की दाल अवश्य खिलाये।

इस दिन गणेश जी को तिल से स्नान कराएं और उनको तिल के लड्डू का भोग लगाये। इसके बाद अपनी मनोकामना को गणपति बप्पा के सम्मुख रखें। एक पान का पत्ता ले और उस पर इन लड्डुओं को रखकर गणेश जी को भोग लगाये। ऐसा करने से आपकी मनोवांछित मनोकामना पूर्ण होती हे। चतुर्थी के व्रत का पूरा फल मिलता है।

गणेश चतुर्थी के दिन गणपति भगवान के मंदिर में जाकर दुर्वा घास की 11, 21 या 51 गांठे अर्पित करें। ऐसा करने से आपके जीवन में खुशहाली और समृद्धि आयेगी।

गणेश चतुर्थी पर भोग से संबंधित भी कुछ उपाय है जिनको करने से गणेश जी की कृपा दृष्टि प्राप्त होती हे। गणेश जी को सफेद चीज जैसे तिल, खीर का भोग जरूर लगाना चाहिए। सफेद चीज में चंद्रमा का तत्व होता है। ऐसे में इसका भोग लगाना से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है।

अगर आप चाहते है कि गणेश जी आपके धन केे भंडार भरे रहे तो आज के दिन गणेश जी को केसर युक्त श्रीखंड का भोग लगाये। ऐसा करने से आपकी आर्थिक समस्या दूर होगी और धन की बरकत बढ़ेगी।

निष्कर्ष

गणेश जयंती का पर्व हिन्दू धर्म में बहुत महत्व रखता है। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने अपने उबटन से गणेश जी का जन्म किया था। बुधवार का दिन होने के चलते इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है। आज के लेख में हमने गणेश जयंती के विषय में सारी जानकारी आपको प्रदान की। उम्मीद करते है कि गणेश जयंती के विषय में जानकर आप भी विघ्नहर्ता गणेश जी की भक्तिपूर्ण ढंग से आराधना करेंगे। अगर यह जानकारी आपको पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ साझा अवश्य करें जिससे हिन्दू धर्म के व्रत, त्योहारों का व्यापक प्रचार-प्रसार हो। ऐसे ही धार्मिक और आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

जयश्रीराम

प्रतियोगी परीक्षा में सफलता के लिए बसंत पंचमी पर करें ये छोटा सा उपाय, परीक्षा में मिलेगी अपार सफलता | Basant Panchami in Hindi

हिन्दू धर्म में बसंत पंचमी पर्व का बहुत महत्व है। बसंत पंचमी का पर्व विद्या, कला और संगीत की देवी सरस्वती को समर्पित होता है। पुराणों के अनुसार इस दिन विद्या की देवी माता सरस्वती का जन्म हुआ था। माता सरस्वती एक हाथ में पुस्तक, दूसरे हाथ में वीणा, तीसरे हाथ में माला और चैथे हाथ में वर मुद्रा लिए प्रकट हुई थी। माता सरस्वती का यह दिव्य स्वरूप कमल के फूल पर विराजमान था।

बसंत पंचमी का पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी का जन्मदिन भी मनाया जाता है। बसंत पंचमी वाले दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है। इस दिन से बसंत ऋतु की शुरूआत हो जाती है इसलिए इसे बसंत पचमी कहते है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की लोग पूजा करते है और उनका आर्शीवाद प्राप्त करते है। आज के लेख में हम जानेंगे कि वर्ष 2023 में बसंत पंचमी कब है (Basant Panchami Kkab Hai 2023), बसंत पंचमी पर माता सरस्वती की पूजा कैसे करनी चाहिए, इसका क्या महत्व है आदि के विषय में विस्तार से चर्चा करेंगे।

बसंत पंचमी कब है | Vasant Panchmi Kab Hai 2023 | बसंत पंचमी कब की है

बसंत पंचमी को लेकर इस साल असमंजस का माहौल बना हुआ है। कुछ लोग बसंत पंचमी का पर्व 25 जनवरी 2023 को मनाने की बात कह रहे है तो कुछ का कहना है कि बसंत पंचमी का पर्व 26 जनवरी को है। ऐसे में हम आपको स्पष्ट कर दे कि बसंत पंचमी का पर्व इस बार 26 जनवरी को मनाया जायेगा। माघ शुक्ल पंचमी 25 जनवरी को दोपहर 12ः24 पर प्रारम्भ होकर 26 जनवरी को दोपहर 12ः34 तक रहेगी। हिन्दू धर्म में हर त्योहार को मनाने के लिए उदया तिथि का माना किया जाता है। ऐसे में बसंत पंचमी का त्योहार 26 जनवरी को मनाया जायेगा। बसंत पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त 26 जनवरी को सुबह 07ः07 से शुरू होकर दोपहर 12ः35 तक रहेगा। इस शुभ मुहूर्त में ही माता सरस्वती की पूजा करना श्रेयस्कर होगा।

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बसंत पंचमी पर योग | Basant Panchami Yog | Saraswati Puja 2023

बसंत पंचमी पर इस बार 4 शुभ योग भी बन रहे है। इन योगों में माता सरस्वती का पूजन करने से माता सरस्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आईये बसंत पंचमी पर पड़ने वाले इन योगों के बारे में जानते हैं।

शिव योग

बसंत पंचमी वाले दिन शिव योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का शास्त्रों में बहुत महत्व है। शिव योग 26 जनवरी की भोर में 03 बजकर 10 मिनट से प्रारम्भ होकर दोपहर 03 बजकर 29 मिनट तक रहेगा।

सिद्धि योग-

सिद्धि योग बसंत पंचमी पर पड़ने वाला दूसरा योग है। इस योग में कोई भी पूजा करने से वह पूजा सिद्ध हो जाती है और किये गये कार्य के सकारात्मक परिणाम मिलते है। सिद्धि योग 26 जनवरी की दोपहर 03 बजकर 30 मिनट से प्रारंभ होकर 26 जनवरी की पूरी रात रहेगा।

रवि योग-

जैसा कि नाम से ही जाहिर है रवि अर्थात सूर्य। ऐसे में रवि योग में पूजा करने से भगवान सूर्य देव का आर्शीवाद प्राप्त होता है और किये गये हर कार्य में सफलता मिलती है। रवि योग का निर्माण 26 जनवरी को दोपहर 03 बजकर 31 मिनट से प्राप्त होकर शाम को 06 बजकर 57 मिनट से प्रारंभ होकर 27 जनवरी को सुबह 07 बजकर 12 मिनट तक रहेगा।

सर्वार्थ सिद्धि योग-

सर्वार्थ सिद्धि योग में की गई पूजा हर मनोकामना को पूरी करने वाली तथा सभी कार्यों में सफलता दिलाने वाली होती है। सर्वार्थ सिद्धि योग 26 जनवरी की शाम 06 बजकर 57 मिनट से प्रारम्भ होकर 27 जनवरी को सुबह 07 बजकर 12 मिनट तक रहेगा।

बसंत पंचमी पर इस तरह करे माता सरस्वती की पूजा | Basant Panchami Par Maa Saraswati Puja

बसंत पंचमी वाले दिन स्नान करने के बाद अपने पूजा घर को गंगाजल से शुद्ध करें। “ऊं अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥” इस मंत्र को बोलते हुए पूजा स्थल को पवित्र कर ले। पीले रंग के वस्त्र पहन ले। पूजा स्थल पर माता सरस्वती की प्रतिमा को लगाये। माता सरस्वती के सामने धूप,दीप जलाने के बाद पूजा शुरू करें।

माता सरस्वती को पीले रंग के फूल तथा उसकी बनी माला चढ़ाएं। एक हाथ में तिल, अक्षत, मिठाई, फल को लेकर ‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः माघ मासे बसंत पंचमी तिथौ भगवत्याः सरस्वत्याः पूजनमहं करिष्ये।’ मंत्र को बोलते हुए माता सरस्वती को अर्पित करें। माता सरस्वती को बेर बहुत पसंद है इसलिए यह भी माता को अवश्य अर्पित करें। विद्या की देवी सरस्वती को पीले रंग के पेड़े या अन्य कोई पीली रंग की मिठाई का भी भोग लगाएं क्योंकि माता सरस्वती को पीला रंग बहुत पसन्द है। सम्पूर्ण पूजा के दौरान माता सरस्वती का ध्यान मंत्र जरूर बोले।

यह मंत्र है-

या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।

इसके बाद माता सरस्वती की चालीसा पढ़े व आरती करें। माता सरस्वती को लगाया हुए भोग घर परिवार में वितरित करें।
बसंत पंचमी वाले दिन कामदेव और रति की भी पूजा-आराधना की जाती है। शास्त्रों में वर्णित है इनकी पूजा करने से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है और पति-पत्नी के आपसी रिश्ते में कोई परेशानी चल रही हो तो वह दूर होती है।

बसंत पंचमी का महत्व | Basant Panchami Ka Mahatva

बसंत पंचमी पर किसी भी नये कार्य को प्रारम्भ करने के लिए सर्वोत्तम दिन माना जाता है। इसी कारण से बसंत पंचमी का दिन अबूझ मुहूर्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस दिन गृह प्रवेश, अन्नप्रासन, मुंडन आदि कार्य किये जा सकते है। इसके अलावा किसी नये घर को खरीदना, गाड़ी लेने या कोई कीमती वस्तु खरीदने के लिए भी आज का दिन बहुत उपयुक्त होता है। इस दिन किसी भी नये कार्य की शुरूआत करने से उसमे सफलता मिलती है और व्यक्ति सफलता की नई ऊँचाइयां छूता है।

बसंत पंचमी के दिन छात्र, कला और संगीत से जुड़े हुए लोग विशेष आयोजन करते है। बसंत पंचमी पर स्कूलों में भव्य आयोजन होता है। ज्ञान की देवी सरस्वती की कृपा पाने के लिए छात्र और शिक्षक उनकी विधिवत पूजा करते है और ज्ञान का भण्डार भरने का आर्शीवाद मांगते हैं।

कृषक समुदाय के लिए भी यह दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन से बसंत ऋतु (Basant Ritu) का आगमन होता है। किसान अपने खेतों में उगाई हुए नई फसल को अपने घर लाते है और अपने इष्ट देव को अर्पित करते है। इस दिन भगवान भोलेनाथ, सूर्यदेव और गणेश जी के लिए भी विशेष पूजा-आराधना की जाती है।

बसंत पंचमी से मनुष्य के अंदर एक नई नवचेतना जागृत हो जाती है। वातावरण में एक अलग प्रकार की शुद्धता आ जाती है।

बसंत पंचमी के दिन करे ये उपाय | Basant Panchami Upaay

बसंत पंचमी के दिन कुछ उपाय करने से माता सरस्वती की कृपा बरसती है। पढ़ाई करने वाले छात्र अपनी पढ़ाई को लेकर कुछ उपाय कर ले तो वे पढ़न-पाढ़न में दक्षता हासिल करते हैं। अगर किसी छात्र का पढ़ाई में मन ना लग रहा हो। पढ़ा हुआ याद न रह रहा हो। बार-बार भूल जा रहा हो तो बसंत पंचमी वाले दिन से ही उत्तर या पूर्व दिशा में बैठकर पढ़ाई करना शुरू कर दे। इस दिशा में बैठकर पढ़ाई करने से पढ़ा हुआ याद रहता है और विद्यार्थी अपने ज्ञान अर्जन में प्रवीणता प्राप्त करता है और कैरियर में नई बुलंदियों पर पहुंचता है।

अगर पढ़ाई में कोई समस्या आ रही तो बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती के मंत्र ‘ॐ ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः’ का अवश्य जाप करें। ऐसा करने से चली आ रही समस्या दूर होगी। इस मंत्र का जाप करने से बुद्धिबल बढ़ता है साथ ही वाणी भी शुद्ध होती है।

अगर शादीशुदा जिंदगी खुशहाल ना चल रही है। दांम्पत्य जीवन में टकराव चल रहा हो। पति-पत्नी का रिश्ता टूटने की कगार पर आ गया हो तो बसंत पंचमी के दिन रति और भगवान कामदेव की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है और दांम्पत्य जीवन में प्यार बढ़ेगा, तनाव दूर होगा।

माता सरस्वती को पीला रंग बहुत पसंद है इसलिए आज के दिन माता सरस्वती को पीले चंदन का टीका, पीले रंग के पुष्प और माला अवश्य चढ़ाएं। विद्या की देवी मां सरस्वती को केसर अथवा पीले चंदन का तिलक अर्पण करने के बाद इसी चंदन को अपने मस्तक पर प्रसाद के रूप में अवश्य धारण करें। मान्यता है कि इस उपाय को करने से माता सरस्वती की कृपा बरसती है और माता सरस्वती के आर्शीवाद से माता लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

बसंत पंचमी के दिन एक नया कलम अवश्य खरीदे और उस कलम को माता सरस्वती के सम्मुख रखकर उसकी पूजा करें। उसके बाद पूरे वर्ष कोई भी महत्वपूर्ण काम उसी कलम से करे।

बसंत पंचमी के दिन कुंवारी कन्याओं को पीले रंग के वस्त्र दान करना चाहिए। इस दिन कन्याओं को पीले और मीठे चावल अवश्य खिलाना चाहिए।

जो विद्यार्थी परीक्षा-प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे हो उन्हें अपने कमरे में माता सरस्वती का चित्र अवश्य लगाना चाहिए। ध्यान रहे यह चित्र घर की उत्तर दिशा की दीवार पर ही लगाये। इस उपाय को करने से देवी सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहती है और माता सरस्वती के आशीर्वाद से परीक्षा-प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त होती है।

भूलकर भी ना करें यह काम | Basant Panchami ko Na Kare Ye Kaam

  • बसंत पंचमी वाले दिन काले, लाल या रंग बिरंगे वस्त्रों को नहीं धारण करना चाहिए। अगर आप इस तरह के वस्त्रों को धारण करके माता सरस्वती का पूजन करते है तो माता सरस्वती रूष्ट हो जाती है और आपको माता सरस्वती के कोप का भाजन बनना पड़ता है। इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनकर ही माता सरस्वती का पूजन करना चाहिए। पीले रंग को पहनने के पीछे मान्यता है कि जब विद्या और विवेक की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था तब सम्पूर्ण ब्रहमांड लाल, पीली आभा से अभिसिंचित था। इसी के चलते माता सरस्वती को पीला रंग अत्यन्त प्रिय है।
  • बसंत पंचमी वाले दिन प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इस दिन शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए। शाकाहारी भोजन करने से विचारों में पवित्रता आती है व मन व आत्मा स्वच्छ होता है।
  • माता सरस्वती वाणी की देवी है। ऐसे में बसंत पंचमी के दिन किसी को भी गलत शब्द, अपशब्द नहीं बोलना चाहिए। यहां तक कि किसी भी व्यक्ति के लिए गलत विचार तक मन में नहीं लाना चाहिए। हम अगर कुछ भी गलत बोलते है तो उससे माता सरस्वती का अनादर होता है। इसलिए बसंत पंचमी के दिन घर के बड़ों का आदर-सत्कार करना चाहिए।
  • कुछ लोगों की आदत होती है कि वह बिना नहाए कुछ भी खा लेते है। बसंत पंचमी के दिन ऐसा बिल्कुल भी ना करें। इस दिन नहाने के बाद मां सरस्वती की पूजा करे उसके बाद ही कुछ अन्न ग्रहण करें। कुछ लोग इस दिन माता सरस्वती के निर्मित व्रत भी रखते हैं।
  • बसंत पंचमी से बसंत ऋतु की शुरूआत होती है। नई फसल आती है। ऐसे में आज के दिन भूलकर भी पेड़-पौधों को नहीं तोड़ना चाहिए, न ही उनकी कटाई-छटाई करनी चाहिए। बल्कि आज के दिन नये पेड़ लगाने चाहिए। यदि आज आप पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाते है तो इसका परिणाम भविष्य में आपको भुगतना पड़ेगा।

निष्कर्ष

बसंत पंचमी पर विद्या की देवी सरस्वती की पूजा आराधना से मनुष्य नित नई ऊँचाईयों को छूता है। जो विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हो। उनको आज के दिन माता सरस्वती की आराधना अवश्य करनी चाहिए। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको बसंत पंचमी के पर्व के संबंध में आपको सम्पूर्ण जानकारी देनी चाहिए। उम्मीद करते है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी और जिन उपायों को हमने बताया है, उनको अपनाकर आप अपने कैरियर को नई ऊँचाईयों पर ले जा सकेंगे। इस लेख को अपने दोस्तों, परिजनों के साथ साझा अवश्य करें। ऐसे ही धार्मिक और आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

जयश्रीराम

मौनी अमावस्या पर क्यों रहा जाता है मौन, जाने इसके पीछे का कारण | Mauni Amavasya Kya Hai

हिन्दू धर्म में माघ महीने में पड़ने वाली अमावस्या का बड़ा महत्व होता है। इसे मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस बार अमावस्या शनिवार के दिन पड़ रही है इसलिए इसे शनि अमावस्या भी कहा जायेगा। अमावस्या तिथि का शनिवार के साथ संयोग होना इसके महत्व को और भी बढ़ा देता है। इस शुभ संयोग को स्नान-दान का महापर्व भी कहा जाता है। इस दिन दान पुण्य करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। आज के लेख में हम आपको मौनी अमावस्या कब है, इसका शुभ मुहूर्त, इसके महत्व आदि के विषय में विस्तार से बताएंगे।

मौनी अमावस्या कब है | Mauni Amavasya Kab Hai 2023 | Shubh Muhurat

हिन्दू पंचांग के अनुसार मौनी अमावस्या 21 जनवरी, दिन शनिवार को सुबह 06 बजकर 17 मिनट से प्रारंभ होकर 22 जनवरी की सुबह 02 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार मौनी अमावस्या का पर्व 21 जनवरी को दिन भर रहेगा। ऐसे में मौनी अमावस्या से संबंधित पूजा-पाठ और दान-पुण्य का काम 21 जनवरी को ही किया जायेगा।

मौनी अमावस्या पर योग | Mauni Amavasya Yog 2023

मौनी अमावस्या पर इस वर्ष एक खास योग बन रहा है। इस योग का नाम है खप्पर योग। यह योग 30 सालों बाद बन रहा है अर्थात इससे पहले सन् 1993 में यह योग बना था। इस योग को धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस योग पर शनि संबंधी उपाय करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है। माघ मास में सूर्य मकर राशि में विद्धमान है शुक्र भी सूर्य के साथ विराजमान है जबकि शनि अपनी राशि परिवर्तन कर रहा है। मौनी अमावस्या से चार दिन पहले शनि ने अपनी प्रिय राशि कुंभ में प्रवेश किया है। इस त्रिकोण की स्थिति होने पर खप्पर योग का निर्माण होता है। जब भी यह योग बनता है तो विश्व पटल पर अप्रत्याशित घटनाएं होती है।

अमावस्या तिथि पर इस वर्ष पूर्वा अषाढ़ नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि योग, हर्षण योग, ब्रज योग, चतुर पाद करण योग भी बन रहा है। अमावस्या के दिन ही चंद्रमा मकर राशि में प्रवेश करेंगे जो कि शनि की राशि है। यह संयोग शनि अमावस्या का महत्व और भी बढ़ा देता है। ऐसे में शनि अमावस्या पर आप शनि के मंत्रों का जाप करे व अमावस्या की पूजा करें तो शनिदेव का आर्शीवाद प्राप्त होता है।

मौनी अमावस्या पर इस विधि से करें पूजन | Mauni Amavasya Poojan Vidhi

मौनी अमावस्या के दिन प्रातःकाल ब्रहम मुहूर्त में उठ जाएं। अपने घर के मंदिर की साफ-सफाई करें। मौनी अमावस्या पर किसी पवित्र नदी जैसे गंगा, यमुना, प्रयाग, नर्मदा आदि में स्नान करने की परम्परा करें। संभव हो तो अपने शहर की किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान अवश्य करें। अगर आप ऐसा ना कर सके तो अपने घर के नहाने वाले जल में पवित्र गंगाजल की बूंदे डालकर स्नान करें।

स्नान करते समय मंत्र ‘ऊँ हीं गंगायै, ऊँ हीं स्वाहा’ का निरन्तर जाप करते रहे। या फिर ‘गंगा च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन संनिधिम कुरु‘ मंत्र का जाप करें। इस मंत्र को बोलते हुए बेसन का बना हुआ उबटन अपने शरीर पर लगाएं। ऐसा करने से गंगा स्नान के बराबर पुण्य का लाभ मिलता है। स्नान करने के बाद पूजा घर में जाकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए मौन व्रत रखने का संकल्प करें। मौनी अमावस्या वाले दिन काले तिल, गुड़, चावल, गाय का घी, कपूर इन वस्तुओं का मिश्रण करके हवन करना भी श्रेयस्कर होता है।

माघी अमावस्या के दिन अगर आप भगवान ब्रहमा जी का पूजन करते हुए गायत्री मंत्र का जाप करते हैं तो आपको विशेष फल की प्राप्ति होगी। घर परिवार में भाई-बहिन, पति-पत्नी के आपसी रिश्ते सुदृढ़ होते है।

मौनी अमावस्या की कथा | Mauni Amavasya Katha | Mauni Amavasya Story

पुरातन समय में कांचीपुरी राज्य में एक ब्राहमण और ब्राहमणी रहते थे। उसकी 8 संताने थी जिसमें 7 पुत्र और 1 पुत्री थी। जब उस दम्पत्ति की पुत्री विवाह के योग्य हुई तो उनको उसके विवाह की चिंता हुई। उन्होंने उसकी कुंडली ज्योतिषी को दिखाई। ज्योतिषी ने पुत्री की कुंडली का अध्ययन किया और दम्पत्ति को बताया कि विवाहपोपरान्त उनकी पुत्री विधवा हो जायेगी क्योंकि उसकी कुंडली में दोष है। यह सुनकर पति-पत्नी व्याकुल हो गये। उन्होंने ज्योतिषाचार्य से इस दोष को दूर करने का उपाय पूछा। तब ज्योतिषी ने बताया कि पुत्री की ग्रह दशा दूर करने के लिए सिंहल द्वीप जाओ। वहां एक सोमा नाम की धोबिन रहती है। उसने अपने घर आमंत्रित करो और उसकी आतिथ्य सत्कार करो तो पुत्री का ग्रह दोष दूर हो जायेगा। ब्राहमण ने ज्योतिषी के कथनानुसार वैसा ही किया। धोबिन का आदर सत्कार किया। ब्राहमण के आदर सत्कार से धोबिन बहुत खुश हो गई और उसने ब्राहमण की पुत्री को अखंड सौभाग्य का आर्शीवाद दे दिया।

कुछ समय बाद उस कन्या की शादी हो गई। शादी के कुछ समय बाद उसके पति की मृत्यु हो गई लेकिन धोबिन के वरदान के चलते वह पुनः जीवित हो गया। कुछ समय बाद जब धोबिन का वरदार घटने लगा तो फिर उसके पति की मृत्यु हो गई। बेटी की इस दशा को देखकर ब्राहमण दंपत्ति दुखी हो गई। उन्होंने मौनी अमावस्या वाले दिन भगवान विष्णु की पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर आराधना की। ब्राहमण की पूजा पाठ से भगवान विष्णु प्रसन्न हो गये और उन्होंने कन्या के पति को जीवित कर दिया।

मौनी अमावस्या पर क्यों रहते हैं मौन | Mauni Amavasya Ko Mauni Kyo Kehte Hai

मौनी अमावस्या पर मौन रहा जाता है लेकिन क्या आप जानते है मौन रहने की पीछे क्या परम्परा है। दरअसल मौनी शब्द मुनि से बना है। पुराने समय में मुनि अर्थात साधु-सन्यासी मौन रहकर ईश्वर की आराधना करते थे। मौन रहकर वे ईश्वर की साधना करते थे, तप करते थे और इन तपों के द्वारा अनेक सिद्धियों को प्राप्त करते थे। तभी से मौन अमावस्या पर मौन रहने की परंपरा शुरू हो गई। एक और मान्यता के अनुसार इस दिन ऋषि मनु का जन्म हुआ था जिसके चलते मौनी अमावस्या नाम पड़ा।

मौनी अमावस्या पर मौन रहने का अर्थ यह नहीं होता है कि सिर्फ मुंह से नहीं बोलना है बल्कि अपनी मन और वाणी को पूरी तरह नियंत्रित कर शांत भी रहना है। किसी भी प्रकार के गलत विचारों को अपने मन में ना लाना और एकाग्रचित होकर श्री हरि की आराधना करना है। मौन रहना एक प्रकार का तप है। अगर आप भी इस दिन मौन रहकर ईश्वर की आराधना में लीन होते है तो आपको भी अपने अन्तर्मन में एक अदृश्य शक्ति प्राप्त होगी और आपके जीवन में सकारात्मकता का वास होगा, नकारात्मकता दूर होगी। मौनी अमाावस्या पर अगर आप पूरे दिन मौन नहीं रह सकते तो कम से कम स्नान करने तक तो मौन रहना बहुत फलदायी होता है।

मौनी अमावस्या का महत्व | Mauni Amavasya Ka Mehatva

मौनी अमावस्या पर पितरों के निर्मित श्राद्ध और पूजा पाठ करना चाहिए। पितरों का तर्पण करना चाहिए। इस अमावस्या पर किए गए श्राद्ध से पितर पूरे साल के लिए संतुष्ट हो जाते हैं और पितरों का आर्शीवाद प्राप्त होता है।
इस दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने से हर प्रकार के दोष दूर होते है।

शनि अमावस्या पर अगर कुंडली में शनि दोष है तो शनि के मंत्रों का जाप करने व उनकी पूजा करने से शनि की स्थिति सुदृढ़ होती है और शनि की कृपा बरसती है।

अमावस्या के दिन सफेद चीज जैसे दूध, दही का दान करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है। मौनी अमावस्या पर तिल, गुड़, का दान करना चाहिए। इस दिन किए गए दान से कई यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है। पुराणों में वर्णित है इस दिन आप जितना अधिक दान करते है उसका सौ गुना आपके पास लौटकर आताा है।

मौनी अमावस्या का व्रत करने वाले जातक के लिए गौ दान, स्वर्ण दान या भूमि दान बहुत उत्तम माना जाता है। ऐसा करने वाले जातक को हजार गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

मौनी अमावस्या पर करे ये उपाय | Mauni Amavasya Upaay

अगर आप पितृ दोष से ग्रसित है तो इससे मुक्ति पाने के लिए शनिवार अमावस्या के दिन दूध और चावल की खीर बना लें। जलते गोबर के उपलों पर इस खीर का भोग लगाये। ऐसा करने से पितृ दोष का निवारण होता है और पितरों के आर्शीवाद से घर में सुख समृद्धि आती है।

अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दिया जलाये। पीपल में शनिदेव का वास होता है। अगर शनि अमावस्या के दिन शनिदेव का आर्शीवाद प्राप्त करना चाहते हैं तो शनिदेव का व्रत रखे और किसी भूखे व्यक्ति को भोजन कराएं।

मौनी अमावस्या के दिन अगर आप पूरे दिन मौन व्रत रहते है और किसी जरूरत मंद को कंबल, वस्त्र, दान दक्षिणा देते से तो ऐसा करने से घर की दुख-दरिद्रता दूर होती है। इतना ही नहीं कालसर्प दोष भी दूर होता है। अगर आपकी राशि पर शनि की ढैय्या या फिर साढ़ेसाती चल रही है तो उसकी पीड़ा से भी मुक्ति मिलती है।

मौनी अमावस्या के दिन अगर आप गाय माता को चावल में दही मिलाकर खिलाते है तो आपकी राशि में चंद्रमा सुदृढ़ होता है और चंद्र दोष से मुक्ति मिलता है। चंद्रमा मन का कारक होता है। ऐसे में मन भी शान्त रहता है।

मौनी अमावस्या के दिन शंख में चावल और कुमकुल डालकर मां लक्ष्मी की आराधना करने और उनके मंत्रों का जाप करने से माता लक्ष्मी का आशीवाद प्राप्त होता है। आर्थिक तंगी दूर होती है।

मौनी अमावस्या के दिन शिव शंकर भोलेनाथ के मंत्र ऊँ नमः शिवाय व महामृत्युंजय मंत्रं का जाप करने से भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है। चली आ रही समस्या दूर होती है और सारे संकट दूर होते है। इस दिन अगर आप शिवलिंग पर केसर मिश्रित दूध चढ़ाते है तो ऐसा करना स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम फल देने वाला होता है। अगर कोई कुंवारी कन्या ऐसा करती है तो शिव शंकर के आर्शीवाद से उत्तम वर की प्राप्ति होती है।

भूलकर भी न करें ये काम | Mauni Amavasya Par Na Kare Ye Kaam

मौनी अमावस्या के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए। प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इस दिन केवल शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए।

मौनी अमावस्या का व्रत रखने वाले जातकों को इस दिन मौन रहना चाहिए। भूले से भी किसी का अहित करने का विचार मन में नहीं लाना चाहिए। किसी को अपशब्द नहीं बोलना चाहिए।

मौनी अमावस्या पर झूठ नहीं बोलना चाहिए। इस दिन झूठ बोलना पाप करने के समान माना जाता है। झूठ बोलने से इस दिन आप जो पुण्य कर्म करते है उनका फल क्षीर्ण हो जाता है।

निष्कर्ष

मौनी अमावस्या मौन रहने व दान पुण्य करने के उद्देश्य से श्रेष्ठ अमावस्या होती है। पुराणों में वर्णित है कि मौनी अमावस्या पर किसी पवित्र नदी में स्नान करने से चित्त शुद्ध होता है। दान किया गया लौटकर हजार गुना वापस आता है। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको मौनी अमावस्या के विषय में सारी जानकारी विस्तार से बताई। उम्मीद करते है कि अमावस्या संबंधी दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ साझा अवश्य करें ताकि हिन्दू धर्म के व्रत, त्योहारों का व्यापक रूप में प्रचार-प्रसार हो। ऐसे ही धार्मिक और जानकारीपूर्ण लेखों को पढ़ने के लिए को हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

जयश्रीराम

षटतिला एकादशी 2023 | Shattila Ekadashi Vrat Katha

षटतिला एकादशी पर इन छह तरीकों से करें तिल के उपाय, मिलेगी भगवान श्री हरि की असीम कृपा

हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्व है। हर माह में दो एकादशी पड़ती है। एक शुक्ल पक्ष में तो दूसरी कृष्ण पक्ष में। इस तरह साल भर में 24 एकादशियां पड़ती है। हर एकादशी का अपना नाम और महत्व है। माघ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी षटतिला एकादशी कहलाती है। इसे पापहारिणी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन तिल का दान-पुण्य करना श्रेष्ठतर होता है। आज के लेख में हम षटतिला एकादशी कब है, इसका पूजा मुहूर्त क्या है व इसका महत्व आदि पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

षटतिला एकादशी कब है | Shattila Ekadashi Kab Hai 2023

माघ मास दान, पुण्य के दृष्टिकोण से बहुत ही उत्तम महीना माना जाता है। इस दृष्टिकोण से इस माह पड़ने वाली एकादशी का बड़ा महत्व होता है। साल 2023 में षटतिला एकादशी 18 जनवरी दिन बुधवार को पड़ रही है। षटतिला एकादशी 17 जनवरी, दिन मंगलवार को शाम 06 बजकर 05 मिनट पर शुरू होकर 18 जनवरी, दिन बुधवार शाम 04 बजकर 03 मिनट तक रहेगी।

षटतिला एकादशी शुभ योग | Shattila Ekadashi Festival

षटतिला एकादशी पर तीन योग भी बन रहे है। यह योग हैं वृद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्ध योग। वृद्धि योग दिनांक 18 जनवरी को सुबह 05 बजकर 58 मिनट से 19 जनवरी सुबह 02 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। वृद्धि योग में पूजन करने से धन-संपदा में वृद्धि होती है। अमृत सिद्धि योग 18 जनवरी को सुबह 07ः02 से 18 जनवरी को शाम 05ः22 तक है। अमृत सिद्धि योग में पूजा करने से अमृत के समान फल की प्राप्ति होती । सर्वार्थ सिद्धि योग 18 जनवरी को सुबह 07 बजकर 02 मिनट से 18 जनवरी शाम 05 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। सर्वार्थ सिद्धि योग में पूजा करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं। इन योगों में एकादशी का पूजन करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है।

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षटतिला एकादशी पूजा विधि | Shattila Ekadashi Pooja Vidhi

षटतिला एकादशी के दिन ब्रहम महूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान करें। चूंकि षटतिला एकादशी पर तिल का बहुत महत्व होता है। ऐसे में तिल और गंगाजल की कुछ बूदें अपने नहाने वाले जल में डालकर स्नान करें। इसके बाद साफ-सुथरे व धुले हुए वस्त्र धारण करें। अपने पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर ले। अपने पूजा घर में भगवान विष्णु की प्रतिमा लगाये और हाथ जोड़कर श्री हरि भगवान विष्णु का स्मरण करें। तत्पश्चात एकादशी के व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु को रोली, मौली, पीले चन्दन व पुष्प अर्पित करें। भगवान विष्णु को धूप दीप, नैवेद्य दिखायें। विष्णु सहस्नाम का पाठ करें। इसके बाद एकादशी की कथा पढ़े व भगवान श्री हरि की आरती करें। लक्ष्मी पति भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाये तथा यह प्रसाद समस्त परिजनों में वितरित करें। एकादशी वाले पूरे दिन भगवान विष्णु के मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ‘ का जप करें। इस मंत्र का जप करना बहुत फलदायी होता है। व्रत का पारण अगले दिन यानि 19 जनवरी को करें। इस दिन किसी ब्राहमण को भोजन करायें ओर उन्हें यथासंभव दान दक्षिणा भी दें।

षटतिला एकादशी व्रत कथा | Shattila Ekadashi Katha | Shattila Ekadashi Story

षटतिला एकादशी की कथा का वर्णन पद्य पुराण में दिया गया है। इस कथा के अनुसार एक शहर में एक महिला रहती थी। वह महिला भगवान श्री हरि विष्णु भगवान की नित्य पूजा-पाठ करती है। हर समय भगवान विष्णु की पूजा में लीन रहती थी। भगवान विष्णु का व्रत रखती थी लेकिन दान-पुण्य नहीं करती थी। मृत्यु के पश्चात जब वह बैकुंठ थाम पहुंची तो उसे रहने के लिए एक खाली कुटिया दी गई। वह महिला सोचने लगी। मैने तो भगवान श्री हरि की इतनी पूजा-पाठ की व्रत किया तो मुझे खाली कुटिया क्यों दी गई। तब भगवान बोले तुमने कभी भी किसी को कुछ भी दान नहीं दिया जिसके चलते तुम्हें उसका यह फल आज मिला है। मैं एक बार भिक्षुक बनकर तुम्हारे दरवाजे भिक्षा मांगने आया था तो तब तुमने मिट्टी का एक ठेला ही दे दिया। इस कारण तुम्हारा उद्धार नहीं हुआ। अगर तुम अपना उद्धार करना चाहती हो तो षटतिला एकादशी का व्रत करो। इसी दिन ब्राहमणों को भोजन कराओ और उन्हें दान दक्षिणा दो। विष्णु जी की बात सुनकर महिला ने षटतिला एकादशी का नियम पूर्वक व्रत पूजन किया। व्रत पूजन करने से उसकी कुटिया अन्न-धन से भर गई और वह महिला बैकुंठ लोक में खुशी-खुशी रहने लगी।

षटतिला एकादशी का महत्व | षटतिला एकादशी व्रत क्यों किया जाता है | Shattila Ekadashi Vrat Mahatva

जैसा कि नाम से जाहिर है षटतिला एकादशी। यानि कि इस एकादशी पर तिल का बड़ा महत्व है। षटतिला एकादशी के संबंध में पुराणों में वर्णित है कि आज के दिन भगवान विष्णु के पसीने से निकले तिल और गुड़ का व्यंजन बनाकर उसे ग्रहण करने और दान करने से सुख समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

षडतिला एकादशी वाले दिन तिल का छह तरीके से प्रयोग करना चाहिए। इस दिन तिल से शरीर पर मालिश करना स्वास्थ्य व अध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत लाभप्रद होता है। सर्दी का प्रकोप इस समय बढ़ा हुआ होता है। तिल गर्म होता है उससे शरीर में उत्पन्न रोग दूर होते हैं।

पुराणों में ऐसा वर्णित है कि आज के दिन जो जातक तिल से विष्णु जी के प्रिय मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करते हुए हवन करता है उस पर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा बरसती है। अगर आप सफेद तिल से हवन करते हैं तो ऐसा करने से माता लक्ष्मी का आर्शीवाद प्राप्त होता है। जातक के घर में आर्थिक समृद्धि आती है।

इस दिन दक्षिण दिशा की तरफ खड़े होकर तिल मिश्रित जल से पितरों का तर्पण करने से पितरों का आर्शीवाद प्राप्त होता है। व्यक्ति खूब फलता-फूलता है और परिवार में सुख-सौहार्द का वास होता है।

अगर आप इस दिन अपनी परेशानियों को खत्म करना चाहते है तो पंचामृत में तिल डालकर श्री हरि भगवान विष्णु को स्नान कराएं। ऐसा करने से आपके जीवन में चली आ रही परेशानियां दूर होगी व जीवन में खुशहाली का आगमन होगा।

दान करने से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है और मनुष्य इस संसार के सभाी सुखों को प्राप्त करता है। शास्त्रों में वर्णित है मनुष्य जितना अधिक दान करता है उसका सौ गुना उसके पास वापस लौट के आता है। षटतिला एकादशी वाले दिन तिल का सेवन करना और तिल का दान करना बहुत ही श्रेयस्कर होता है। इस दिन जो भी व्यक्ति तिल का दान करता है वह इस लोक में सुख भोगकर अन्त समय में स्वर्ग को जाता है। उसे यमराज का सामना नहीं करना पड़ता है। पुराणों में ऐसा वर्णित है कि तिल का दान करने वाले व्यक्ति के सभी पाप खत्म हो जाते है। इसलिए इस एकादशी को पापहारिणी एकादशी भी कहते है। इस दिन काले तिल का दान करने से शनि दोष दूर होता है।

एकादशी वाले दिन शाम को तिल का बना भोज्य पदार्थ बनाकर श्री हरि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को भोग लगाने से भगवान विष्णु की कृपा बरसती है। जो जातक एकादशी का व्रत न करें वह भी इस दिन तिल के बने व्यंजन जैसे लड्डू, गजक व अन्य पदार्थों का सेवन जरूर करें। इस दिन तिल का उबटन लगाने व तिल मिश्रित जल भी पीना चाहिए।

इस तरह छह कामों में तिल का उपयोग होने के चलते इस एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है। जातक को तीन ताप यानी दैहिक ताप ,दैविक ताप तथा भौतिक ताप से दूर रखती है। जितना अधिक पुण्य कन्यादान और हजारों वर्षों की तपस्या से भी नहीं मिलता उससे कही ज्यादा पुण्य षटतिला एकादशी का व्रत करने वाले जातक को मिलता है।

आज के दिन गौ माता की सेवा करनी चाहिए। गाय को गुड़ और रोटी अवश्य खिलानी चाहिए।

भूलकर भी एकादशी के दिन यह ना करें | Shattila Ekadashi Par Na Kare Ye Kam

एकादशी का व्रत रखने वाले जातक को एकादशी व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि से प्याज, लहसुन, मास, मदिरा का सेवन बंद कर देना चाहिए। दशमी तिथि को रात के बारह बजे के पश्चात कुछ नहीं खाना चाहिए।

जो जातक एकादशी का व्रत ना करें उन्हें भूलकर भी एकादशी वाले दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इस दिन चावल खाना कीड़े खाने के बराबर होता है।

निष्कर्ष

षटतिला एकादशी वाले दिन लक्ष्मी पति भगवान विष्णु की पूजा करने और उनके मत्रों का उच्चारण करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस दिन तिल के छह उपायों को करने से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि आती है और शरीर निरोगी रहता है।

तो दोस्तों आज के लेख में हमने षटतिला एकादशी के संबंध में सारी जानकारी आपको प्रदान की। उम्मीद करते हैं इस लेख के जरिए आपको षटतिला एकादशी के संबंध में सारी जानकारी मिल गई होगी। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ सोशल मीड़िया पर साझा अवश्य करें। ऐसे ही ज्ञानवर्द्धक और जानकारीपूर्ण धार्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहें।

जयश्रीराम

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हिन्दी कैलेडर का नया वर्ष, जानिए हिन्दू मासों का महत्व | Hindu Months Name in Hindi

जय श्री राम मित्रों ! आज हम आपको हिन्दू धर्म के मासों यानी महीनों के नाम बताने जा रहे हैं. आज आपको पता चल जायगा कि कब से शुरू होता है हिन्दी कैलेडर का नया वर्ष, तो आइये जानते हैं हिन्दू मासों का महत्व.

नव वर्ष 2023 के आगमन के साथ ही सभी लोग एक-दूसरे को नव वर्ष की शुभकामनाएं दे रहे है लेकिन क्या वास्तव में नव वर्ष आ गया है। तो आपका जवाब होगा हां लेकिन सच्चाई यह है कि यह नव वर्ष अंग्रेजी महीने के हिसाब से है। जबकि हिन्दी महीने के हिसाब से नव वर्ष तो चैत्र से शुरू होता है। हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार ही व्रत, त्योहार और तिथियां पड़ती है। इस हिसाब से हिन्दी महीने का बहुत महत्व है लेकिन हिन्दी महीनों को जानने वालों की संख्या बहुत कम है। आज के लेख में हम ना सिर्फ आपको हिन्दी कैलेण्डर के महीनो के नाम बताएंगे बल्कि हर महीने में पड़ने वाले व्रत, त्योहार के विषय में भी बताएंगे। इतना ही नही हम आपको यह भी बताएंगे कि अंग्रेजी कैलेण्डर हिन्दी महीने के साथ-साथ किस तरह चलता है।

हिन्दी महीनो के नाम | Hindi Mahino Ke Naam | Hindu Calendar Months

अंग्रेजी कैलेण्डर की तरह ही हिन्दी कैलेण्डर में भी बारह महीनो होते है। यह महीने है-

S. NOHINDI MONTHS NAMEENGLISH MONTHS
1चैत्र (Chaitra)मार्च-अप्रैल
2बैशाख (Baisakh)मार्च-अप्रैल
3जेठ, Jyaisthaमई-जून
4आषाढ़, Asadhaजून-जुलाई
5सावन, Shravanaजुलाई-अगस्त
6भादो, Bhadraअगस्त-सितम्बर
7अश्विन, Asvinaसितम्बर-अक्टूबर
8कार्तिक, Kartikaअक्टूबर-नवम्बर
9अगहन, Agrahayana नवम्बर-दिसम्बर
10पौष, Pausaदिसम्बर-जनवरी
11माघ, Maghaजनवरी-फरवरी
12फागुन, Phalguna फरवरी-मार्च


हर माह 30 दिन का होता है जिसमें चंद्रमा की कलाओं के अनुसार 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। जब चंद्रमा अपनी तेजी में होता है उसका आकार गोल होता है उस दिन पूर्णिमा होती है जबकि जब चंद्रमा घटता जाता है तो उस दिन अमावस्या होती है। पूर्णिमा से अमावस्या के बीच के समय को कृष्ण पक्ष जबकि अमावस्या से पूर्णिमा के बीच के समय को शुक्ल पक्ष कहते है। इन सभी महीनों का अलग-अलग महत्व होता है। तो आईये इन महीनों के विषय में विस्तार से जानते हैं।

चैत्र का महिना | Hindu Month Chaitra

हिन्दी कैलेंडर की शुरूआत चैत्र के महीने से होती है। इसी माह से मौसम में भी व्यापक बदलाव आता है। शरद ऋतु खत्म हो जाती है और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होने लगता है। इसी माह के पहले दिन से विक्रम संवत भी शुरू हो जाता है। ज्योतिष के हिसाब से भी यह महीना उत्तम फल देने वाला होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से देखे तो यह मार्च-अप्रैल का महीना होता है। इसी माह के पहले दिन से देवी मां के नवरात्रि की शुरूआत होती है। इसे चैत्र नवरात्रि कहते हैं। चैत्र माह की नवमी वाले दिन भगवान श्री राम का जन्मदिन होता है जिसे रामनवमी के नाम से जाना जाता है। इस माह की पूर्णिमा को हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है। चूंकि इस महीने में मौसम में व्यापक बदलाव आता है। ऐसे में इस माह कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। इस माह से अनाज खाना कम कर देना चाहिए, ग्रीष्म ऋतु के आगमन के चलते प्यास अधिक लगने लगती है इसलिए पानी अधिक पीना शुरू कर देना चाहिए। बासी भोजन भूलकर भी नहीं खाना चाहिए। फल, ड्राई फ्रूट का सेवन करना सर्वोत्तम होता है।

बैसाख का महिना | Hindu Month Vaisakha

हिन्दी कैलेडर का दूसरा महीना बैशाख होता है। अंग्रेजी कैलेडर के हिसाब से देखे तो यह अप्रैल-मई का महीना होता है। इस माह में बैशाखी पर्व मनाया जाता है। पंजाब में बैशाखी के साथ ही नया साल मनाते है। इस महीने में गौतम बुद्ध का जन्मोत्सव बुद्ध पूर्णिमा भी मनाया जाता है। पूजा-पाठ के दृष्टिकोण से बैशाख माह का बहुत महत्व है। इस माह में श्री हरि भगवान विष्णु और कृष्ण जी का विधान है। इस माह में गंगा स्नान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

ज्येष्ठ का महिना | Hindu Month Jyaistha

जैसा कि नाम से ही जाहिर है ज्येष्ठ यानि बड़ा। यह महीना काफी बड़ा होता है। इस माह में गर्मी अपनी चरम सीमा पर होती है। अंग्रेजी कैलेडर के हिसाब से ये महीना मई-जून में पड़ता है। शनि जयंती, वट सावित्री व्रत, गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी जैसे कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार ज्येष्ठ मास में पड़ते है। उत्तर भारत के कुछ शहरों में जेठ मास के मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिरों में भंड़ारा लगता है।

ज्येष्ठ मास की दशमी तिथि पर गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाता है। इस दिन गंगा के तट पर लाखों श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं। पुराणों में वर्णित है कि गंगा दशहरा वाले दिन गंगा जी धरती पर अवतरित हुईं थी। निर्जला एकादशी अर्थात इस दिन लोग निर्जल रहकर एकादशी का व्रत रखते है। साल भर में 24 एकादशी पड़ती है जिनमें निर्जला एकादशी का सबसे ज्यादा महत्व होता है। इसी माह जगन्नाथ पुरी में जगन्नाथ यात्रा भी निकलती है। ज्येष्ठ माह की अमावस्या वाले दिन शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है।

आषाढ का महिना | Hindu Month Asadha

आषाढ़ मास से मौसम में बदलाव आता है। इस मास से वर्षा ऋतु का आगमन होता है। इस लिहाज से इसे किसानों का मास कहा जाता है। अंग्रेजी कैलेडर के अनुसार से देखे तो यह महीना जून-जुलाई में आता है। इसी माह गुरू पूर्णिमा और देवशयनी एकादशी पड़ती है। देवशयनी एकादशी अर्थात इस तिथि के बाद से देव सो जाते है और सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाते है। इस मास में सूर्यदेव और मंगल की विशेष उपासना करनी चाहिए। इस माह में कुछ चीजों का विशेष ख्याल रखना चाहिए। बारिश होने के चलते पानी में जीव-जंतु आने लगते हैं। ऐसे में पानी को छानकर या उबालकर ही पीना चाहिए। इस मास से जलयुक्त फल जैसे पपीता, तरबूज का सेवन करना चाहिए।

सावन का महिना | Shravan Month Importance | Hindu Shravan Maas | Sawan Month

सावन का महीना बहुत पवित्र माना गया है। यह पूरा माह भगवान शिव की आराधना को समर्पित है। इस मास में भगवान शिव के साथ माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। यह महीना जुलाई-अगस्त में पड़ता है। इस महीने में कुंवारी कन्याएं उत्तम वर की प्राप्ति के लिए सावन के सोमवार का व्रत रखती हैं। कुछ लोग पूरे सावन माह में व्रत रखते हैं। इस महीने में कई त्योहार पड़ते हैं। भाई-बहन के रिश्तों के बीच के बंधन का त्योहार रक्षाबंधन, श्रीकृष्ण जी का जन्मोत्सव जन्माष्टमी का पर्व इसी माह आता है। नागपंचमी व हरियाली तीज का त्योहार भी सावन मास में पड़ता है।

भादो का महिना | Hindu Month Bhadra

भादो माह हिन्दू कैलेडर का छठा महीना होता है। अंग्रेजी कैलेडर के हिसाब से यह महीनो अगस्त-सितम्बर में आता है। इस महीने गणेश पूजा का उत्सव मनाया जाता है। लोग मन्दिरों और घरों में गणेश प्रतिमा की स्थापना करते हैं और अनंत चैदस के दिन गणेश जी की प्रतिमा को पवित्र नदी में विसर्जित किया जाता है। इस महीने में हरितालिका तीज और ऋषि पंचमी का पर्व भी पड़ता है। इस माह की अष्टमी को राधा अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस माह में श्रीकृष्ण जी की आराधना से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। इसी माह से 15 दिन के पितृ पक्ष भी शुरू हो जाते है। पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पितरों को याद करते हैं और उनके निर्मित तर्पण करते हैं।

अश्विन का महिना | Hindu Month Asvina

इस महीने को कई जगह कुंवार के नाम से भी पुकारा जाता है। अग्रेजी कैलेडर के हिसाब से यह माह सितम्बर-अक्टूबर में पड़ता है। अश्विन मास बहुत ही पवित्र माह माना गया है क्योंकि इस मास हिन्दू धर्म के कई व्रत त्योहार पड़ते हैं। अश्विन मास में माता दुर्गा की नवरात्रि, दुर्गा पूजा, विजया दशमी और दीपावली का त्योहार पड़ता है। इसी माह की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा का पर्व पड़ता है। इस दिन आकाश से अमृत वर्षा होती है।

कार्तिक का महिना | Hindu Month Kartika

कार्तिम मास में की गई पूजा से सभी तीर्थ स्थलों के बराबर पूजा का फल मिलता है। यह माह अंग्रेजी कैलेडर के दिसाब से अक्टूबर-नवम्बर में पड़ता है। इस माह भी कई पर्व-त्योहार पड़ते है। गोवर्धन पूजा, भाई दूज और कार्तिक पूर्णिमा का पर्व इसी माह में पड़ता है। कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से पुकारा जाता है। इस दिन संध्या काल में दीपदान किया जाता है। देवउठनी एकादशी भी इसी माह पड़ती है। इस दिन देव उठ जाते हैं और विवाह आदि मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।

अगहन का महिना | Hindu Month Agrahayana

हिन्दू कैलेंडर का नौवा महीना अगहन का होता है। अंग्रेजी कैलेडर के अनुसार यह माह नवम्बर-दिसम्बर में पड़ता है। यह मास भगवान श्रीकृष्ण को बहुत प्रिय होता है। इस माह में शंख की पूजा करनी चाहिए क्योंकि शंख में मां लक्ष्मी का वास होता है। भगवान विष्णु शंख को धारण करते हैं। इस माह में पवित्र यमुना नदी में स्नान करने से हर दोष से छुटकारा मिलता है। इसी महीने में वैकुण्ठ एकादशी का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

पौष का महिना | Hindu Month Pausa

इस माह को पूष के नाम से भी पुकारा जाता है। इस महीने में ऋतु परिवर्तन होता है। ठण्ड का असर बढ़ने लगता है। अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से यह माह दिसम्बर-जनवरी में पड़ता है। इस महीने लोहड़ी, पोंगल, मकर संक्रान्ति जैसे पर्व पड़ते है। इस माह में सूर्य देव की उपासना करने का विधान है। स्नान-दान के दृष्टिकोण से भी यह महीना बहुत पवित्र माना गया है।

माघ का महिना | Hindu Month Magha

माघ महीना अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से जनवरी-फरवरी में आता है। इस माह विद्या की देवी माता सरस्वती की आराधना का पर्व बसंत पंचमी मनाया जाता है। इसी माह महाशिवरात्रि का पर्व भी पड़ता है। शिवरात्रि वाले दिन भगवान शिव शंकर के निर्मित व्रत रखा जाता है। कई जगहों पर शंकर जी की बारात भी निकाली जाती है। उत्तर भारत में माघ मेला लगता है।

फाल्गुन का महिना | In Which Hindu Month Holi is Celebrated | Hindu Month Phalguna

हिन्दू पंचांग के अनुसार यह 12वां महीना होता है। इस माह में रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेडर के अनुसार यह फरवरी-मार्च महीने में आता है। फाल्गुन मास से ही ऋतु परिवर्तन भी होने लगता है। सर्दी का प्रकोप कम होने लगता है। गर्मी आरम्भ हो जाती है। इस माह को आनंद और उल्लास का माह भी कहते है क्योंकि इस माह में एकता का त्योहार होली मनाया जाता है।

पुरूषोत्तम मास (अधिक मास) | Adhik Maas | Purshottam Months in Hindu Dharm

हर तीन साल में एक बार पुरूषोत्तम मास या अधिक मास आता है। इसे मलमास भी कहते हैं। अधिक मास में शुभ व मांगलिक कार्य वर्जित होते है क्योंकि यह मलिन मास होता है। अधिक मास भगवान विष्णु को समर्पित मास होता है। इस मास में भगवान विष्णु की आराधना करने वाले जातक को भगवान विष्णु का आर्शीवाद मिलता है और उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।

निष्कर्ष

हिन्दू धर्म के व्रत, त्योहार और तिथियों का निर्धारण हिन्दी कैलेंडर से ही होता है। पंचाग के निर्माण में भी हिन्दी कैलेडर अग्रणी भूमिका निभाता है। इतना ही नहीं सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण की सही गणना भी इसी कैलेंडर से होती है। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको हिन्दी कैलेंडर के विषय में सारी जानकारी विस्तार से प्रदान की। उम्मीद करते है उक्त जानकारी आपके लिए लाभदायक साबित होगी। अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगी हो तो इसे सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों, परिजनों के साथ साझा अवश्य करें। ऐसे ही धार्मिक और जानकारीपूर्ण लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहें।

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सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व है मकर संक्रान्ति, जानिए इस पर्व का महत्व | Makar Sakranti in Hindi

हिन्दू धर्म में सूर्य देव ऐसे देव है जो प्रत्यक्ष रूप में विराजमान है। सूर्य देव हर माह एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते है। इस भ्रमण काल को संक्रान्ति कहते है। साल भर में 12 संक्रान्ति होती है। इनमें मेष, तुला और कर्क संक्रान्ति के साथ मकर संक्रान्ति का बहुत महत्व है। सूर्य जब धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते है तो इसे मकर संक्रान्ति कहते हैं। मकर संक्रान्ति से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगता है अर्थात मौसम मंे बदलाव होने लगता है। सूर्य छह माह दक्षिणायन रहते हैं और छह माह उत्तरायण। सूर्य के उत्तरायण होने से शीत ऋतु से राहत मिलने लगती है। ठंड का असर कम हो जाता है। दिन बड़े होने लगते है और रात्रि छोटी होने लगती है। आज के लेख में हम जानेंगे कि वर्ष 2023 में मकर संक्रान्ति कब है, इस दिन किस तरह पूजा करनी चाहिए, इसका क्या महत्व है आदि पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

मकर संक्रान्ति कब है | Makar Sankranti Kab Hai 2023 | Harvest Festival

मकर संक्रान्ति को लेकर इस वर्ष असमंजस का माहौल बना हुआ है। कुछ लोगों का कहना है कि मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को है तो कुछ 15 जनवरी को बता रहे हैं। ऐसे स्थिति में आम जनमानस के बीच मकर संक्रान्ति को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। तो आईये हम आपको बताते है कि मकर संक्रान्ति का पर्व 2023 में कब मनाया जायेगा। जैसा कि हमने आपको बताया कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मकर सक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है। सूर्य 14 जनवरी, दिन शनिवार को रात्रि 8 बजकर 44 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेगा। चूंकि हिन्दू धर्म में हर तिथि को करने के लिए उदया तिथि का मान होता है। ऐसे में मकर संक्रान्ति का पर्व 15 जनवरी, 2023 दिन रविवार को मनाना श्रेयस्कर होगा। मकर संक्रान्ति से संबंधित स्नान, दान के कार्य भी 15 जनवरी को ही किया जायेगा।

मकर संक्रान्ति शुभ मुहूर्त | Makar Sankranti 2023 Muhurat

मकर संक्रान्ति पर शुभ मुहूर्त दिनांक 15 जनवरी को सुबह 06 बजकर 47 मिनट से सायंकाल 05 बजकर 40 मिनट तक रहेगा अर्थात 10 घण्टा 53 मिनट तक शुभ योग है। मकर संक्रान्ति का पुण्य काल दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से शाम 05 बजकर 45 मिनट तक रहेगा अर्थात 3 घण्टा और 02 मिनट तक। महापुण्य काल दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से 04 बजकर 28 मिनट तक है अर्थात 01 घंटा 45 मिनट तक है। मकर संक्रान्ति पर इस बार सुकर्मा योग भी पड़ रहा है। यह योग सुबह 11ः51 तक रहेगा। यह योग 14 जनवरी को भी रहेगा जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। किसी भी त्योहार को शुभ मुहूर्त में करने से उसका दोगुना फल मिलता है। अतः मकर संक्रान्ति की पूजा शुभ मुहूर्त में करना ही श्रेयस्कर होगा।

मकर संक्रान्ति पर ऐसे करे पूजा | Makar Sankranti Puja Kaise Kare

उत्तर भारत में मकर संक्रान्ति पर घरों में विशेष पूजा-पाठ की जाती है। चूंकि मकर संक्रान्ति का पर्व सूर्य देव को समर्पित है इसलिए इस विशेष दिन सूर्य भगवान की आराधना करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। मकर संक्रान्ति वाले दिन ब्रहम मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद अपने पूजा-घर को साफ कर लें। इसके बाद तांबे के लोटे में जल लेकर शुभ मुहूर्त में सूर्य देव को अघ्र्य दें। इसके बाद सूर्य भगवान को तिल, गुड़ और खिचड़ी का भोग लगाएं। सूर्य देव के मंत्र ‘ओम आदित्याय नमः, ऊँ भाष्कराय नमः, ऊँ हरं हीं हौं सह सूर्याय नमः’ आदि मंत्र का सूर्य देव के सम्मुख बैठकर 108 बार जप करें। सूर्य देव की आरती उतारें। अगर संभव हो तो सूर्य देव के निमित्त हवन भी कर सकते हैं। इस तरह से सूर्य देव की आराधना करने से सूर्य देव का आर्शीवाद प्राप्त होता है और जातक की मनोकामना पूर्ण होती है। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति कमजोर हो उन्हें आज के दिन सूर्य के बीज मंत्र ‘ऊँ हां हीं हौं सः सूर्याय नमः का 108 बार अवश्य जाप करना चाहिए। मकर संक्रान्ति पर अपने पितरों का ध्यान कर उनके निमित्त तर्पण भी करना चाहिए। कई जगहों पर तो पितरों के निमित्त खिचड़ी का दान भी किया जाता है।

मकर संक्रान्ति का महत्व | Makar Sankranti Importance

मकर संक्रान्ति पर स्नान और दान का बहुत महत्व होता है। इस दिन पवित्र गंगा, यमुना या संगम के तट पर स्नान करने से सूर्य देव की कृपा मिलती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन शुभ मुहूर्त में अन्न, वस्त्र, का दान करना श्रेयस्कर होता है। तिल या तिल के बने लड्डुओं का दान करना भी शुभदायक होता है। इस दिन जितना अधिक आप दान करेंगे उसका दोगुना फल आपको भविष्य में प्राप्त होगा।

मकर संक्रान्ति पर शनि से संबंधी चीजे जूता, छाता, काले वस़्त्र का दान करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है।

इस दिन जल में तिल डालकर स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से शरीर शुद्ध और स्वच्छ होता है।

मकर संक्रान्ति पर कुछ जगह पतंग उत्सव भी मनाया जाता है। लोग स्वच्छ आकाश में ऊँची-ऊँची पतंगे उड़ाते है। पतंग उड़ाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी और आध्यात्मिक भी। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होने लगता है जिसके चलते चटक धूप निकलती है। पतंग उड़ाने के दौरान सूर्य की तेज रोशनी से विटामिन डी की प्राप्ति होती है व शरीर को नई ऊर्जा मिलती है। आध्यात्मिक कारण देखे तो पतंग ऊँची उड़ाकर व्यक्ति अपनी सोच को ऊंचा करता है। अपने विचारों को नया आयाम देता है।

मकर संक्रान्ति को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना है। उत्तर भारत में इसे खिचड़ी के नाम से जानते है। आज के दिन उड़द की दाल की खिचड़ी बनाई जाती है। असम में इसे ‘माघ बिहू’ के नाम से जाना जाता है। राजस्थान में मकर संक्रान्ति वाले दिन बाटी, चूरमा खाया जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है।

मकर संक्रान्ति पर चूंकि सूर्य उत्तरायण हो जाते है। उत्तरायण के समय को देवताओं का मास कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन देवता धरती पर प्रवास करने जमीन पर उतर जाते है इसलिए आज के दिन से खरमास खत्म हो जाता है। मांगलिक कार्य जैसे गृह प्रवेश, मुंडन, विवाह आदि शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं।

मकर संक्रान्ति की पौराणिक कथा | Makar Sankranti Story | Makar Sankranti Katha

एक पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए आज ही का दिन चुना था। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था जब अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में उन्हें बाणों से भेद दिया तो वह छह माह तक उस बाणों की शैय्या पर रहे। उस समय सूर्य दक्षिणायन था। वह सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते रहे। जब सूर्य मकर राशि में आया और सूर्य उत्तरायण हुआ तो उन्होंने अपनी देह त्यागी क्योंकि वे जानते थे कि उत्तरायण में देह त्यागने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।

एक अन्य कथा के अनुसार आज ही दिन भगवान श्रीकृष्ण के मामा कंस ने श्रीकृष्ण जी को मारने के लिए राक्षसनी लोहिता को भेजा था जिसका श्रीकृष्ण जी ने वध कर दिया। इसी घटना के चलते यह पर्व मनाया जाने लगा।

मकर संक्रान्ति पर क्यों खाई जाती है खिचड़ी | Makar Sankranti Khichdi Recipe

भारत एक कृषि प्रधान देश है। मकर संक्रान्ति के दिन से चावल की नई फसल आती है जिसके चलते किसान चावल, मूंग की दाल को मिलाकर खिचड़ी बनाते है और उसका भोग लगाते है। बाद में प्रसाद स्वरूप स्वयं खाते हैं।

मकर संक्रान्ति पर खिचड़ी खाने के पीछे एक कथा भी प्रचलित है। प्राचीन समय में खिलजी (Khilji) ने भारत पर आक्रमण कर दिया। खिलजी के आक्रमण के चलते हर जगह उथल पुथल मच गई। युद्ध लड़ने के चलते नाथ योगी भोजन भी नहीं बना पा रहे थे। भोजन ना बना पाने के चलते वे कमजोर होने लगे। तब बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ मिलाकर भोजन बनाने का कहा। यह भोजन ना सिर्फ जल्दी पक जाता था बल्कि शरीर को आवश्यक ऊर्जा भी देता था। योगियों ने जब इस भोजन को किया तो इससे उनका पेट भर गया। बाबा गोरखनाथ ने इसका नाम खिचड़ी रखा। जब भारत खिलजी के शासन से मुक्त हो गया तो योगियों ने मकर संक्रान्ति के दिन से ही खिचड़ी बनाने और उसे बांटने की प्रथा की शुरूआत की। तब से ही मकर संक्रान्ति का पर्व खिचड़ी कहलाने लगा। आज भी गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे प्रसाद के रूप में आम जनमानस में वितरित किया जाता है।

मकर संक्रान्ति पर क्या न करें | Makar Sankranti Par Kya Na Kare

मकर संक्रान्ति एक पवित्र त्योहार होता है। इस दिन भूलकर भी तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन का सेवन न करें। ना ही कोई व्यसन करें। सिगरेट, शराब, गुटखे का सेवन ना करें। इस दिन ज्यादा मसालेदार खाना भी नहीं खाना चाहिए।

इस दिन किसी का अपमान नहीं करना चाहिए, उसे अपशब्द, कटु वचन नहीं बोलने चाहिए। घर के बड़ों का आदर सत्कार करना चाहिए।

मकर संक्रान्ति दान-पुण्य का दिन होता है। ऐसे में इस दिन अगर घर पर कोई असहाय, जरूरतमंद आ जाये तो उसे अपनी साम्थ्र्यनुसार दान-दक्षिणा अवश्य देना चाहिए। भूखे व्यक्ति को भोजन कराना चाहिए।

यह दिन सूर्य भगवान को समर्पित दिन है। ऐसे में ब्रहम मुहूर्त में स्नान करके सूर्य देव को अघ्र्य देने के बाद ही कुछ खाना चाहिए। बिना स्नान किये कुछ भी नहीं खाना चाहिए। सबसे पहले तिल और गुड़ ही खाएं। उसके पश्चात ही कोई भोजन ग्रहण करें।

पेड़-पौधों में ईश्वर का निवास होता है। अगर आप इस दिन किसी भी पेड़ को काटते हैं तो आपको ईश्वर के दंड का भागी बनना पड़ेगा।

मकर संक्रान्ति के दिन शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि कुछ ऐसी तिथियां होती हैं जिनमें शारीरिक संबंध बनाना पाप करने के समान होता है जैसे संक्राति, पूर्णिमा और अमावस्या।

निष्कर्ष

मकर संक्रान्ति पर्व सूर्य के मकर राशि में जाने का पर्व है। सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण जाने पर यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर अगर संभव हो तो किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान, दान अवश्य करना चाहिए। मकर संक्रान्ति का पर्व इतना पवित्र है कि स्वयं श्रीकृष्ण जी ने गीता में इस पर्व के महत्व के बारे में बताया है। गीता में लिखा है कि सूर्य के उत्तरायण होने पर जो व्यक्ति देह त्यागता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज के लेख में हमने मकर संक्रान्ति पर्व के बारे में आपको सम्पूर्ण जानकारी दी। इस जानकारी को सोशल मीडिया पर अपने परिजनों, मित्रों के साथ साझा अवश्य करें जिससे हिन्दू धर्म के त्योहारों का व्यापक प्रचार प्रसार हो। ऐसे ही धार्मिक और शिक्षाप्रद लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

माघ महीना कब से शुरू हो रहा है | Magh Ka Mahina Kab Se Shuru Hai

जय श्री राम मित्रो ! जैसा कि आप जानते हैं कि हम अपने ब्लॉग जयश्रीराम.net में आपको हिन्दू धर्म से सम्बंधित जानकारियां देते रहते हैं. आज हम आपको हिन्दू धर्म के एक और महीने माघ मास के बारे बताने जा रहे हैं. क्योंकि हिन्दू धर्म का पवित्र माह है माघ मास है तो आइये जानिए माघ मास का महत्व और उसके नियम.

माघ महीना 2023 | Magh Month 2023 | Magh Kab Se Lagega

नये वर्ष 2023 की शुरूआत हो चुकी है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह ग्यारहवां महीना होता है। इसे माघ मास कहते है। माघ मास 07 जनवरी, 2023 से शुरू होकर 05 फरवरी 2023 तक रहेगा। माघ महीना हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है। इस माघ में की गई पूजा-पाठ और दान-पुण्य का बहुत महत्व होता है। आज के लेख में हम माघ मास का क्या महत्व है, उसके नियम क्या है आदि अन्य विषयों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

माघ मास का महत्व | Magh Mahine Ka Mehtva

हिन्दू पंचांग के हर माह का धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व होता है। माघ का महीना एक ऐसा महीना होता है जिसमें स्नान-दान, भगवान की आराधना करने वाले को अद्वितीय फल की प्राप्ति होती है। माघ मास में भगवान सूर्यदेव की आराधना करने से यश, सम्मान में बढ़ोत्तरी होती है। तुलसी पूजा का भी इस मास में बहुत महत्व है। इस मास में नियम से तुलसी के पौधे में सुबह जल चढ़ाना चाहिए और शाम को तुलसी के पौधे में दीपक जलाना चाहिए और आरती करनी चाहिए। तुलसी के पौधे को एक चुनरी से ढककर रखना चाहिए क्योंकि इस मौसम में आसमान से ओस की बूदें टपकती है।

माघ मास में संगम के तट पर कल्पवास किया जाता है। कल्पवास अर्थात एक मास तक संगम के तट पर संयम पूर्वक निवास करना। कल्पवास करने से व्यक्ति का शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाता है और उसे असीम सुख की प्राप्ति होती है। पुराणों में वर्णित है कि कल्पवास करने से एक हजार यज्ञों के बराबर का लाभ मिलता है।

Magh Ka Mahina Kab Se Shuru Hai

माघ मास में नियमित रूप से भगवत भजन करना चाहिए। हरि का भजन करने से आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है। इस मास के मध्य में ठंड ढलान पर होती है अर्थात ठंडक कम होने लगती है। ऐसे में अपनी सेहत को लेकर भी जागरूक रहना चाहिए। इस पूरे माह में तिल और गुड़ का सेवन करना चाहिए। इस पूरे मास में अपने नहाने के पानी में काला तिल मिलाकर स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से आपका शरीर स्वस्थ रहता है। इस मास के मध्य से गर्म पानी से स्नान करना भी बंद कर देना चाहिए।

माघ मास में किसी पवित्र नदी जैसे गंगा, यमुना आदि में जाकर स्नान करना चाहिए। किसी पवित्र नदी में डुबकी लगाने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते है। अगर संभव हो तो प्रयाग में संगम तट पर जाकर स्नान अवश्य करें। संगम में स्नान करने से आपको भगवान श्री हरि का आर्शीवाद प्राप्त होता है और असीम पुण्य की प्राप्ति होती है। सुख समृद्धि, सौभाग्य में वृद्धि होती है। माघ मास में हर जल में गंगाजल जैसा प्रताप होता है। अगर आप किसी नदी में जाकर स्नान न कर सके तो अपने घर पर ही नहाने के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए।

पुराणों में ऐसा वर्णित है कि माघ मास में देवता धरती पर उतर आते है। माघ मास में पड़नी वाली पूर्णिमा का भी खासा महत्व होता है और यदि पूर्णिमा पर पुष्य नक्षत्र हो तो उसका महत्व और बढ़ जाता है। पद्य पुराण में एक श्लोक वर्णित है –

माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।‘

इस श्लोक के अनुसार माघ मास में पूजा करने से भी भगवान विष्णु को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति अर्थात लगन प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ मास में रोजाना स्नान करना चाहिए।

एक अन्य श्लोक के अनुसार –

‘प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापानुत्तये। माघ स्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानवः॥‘

अर्थात माघ मास में पूर्णिमा के पर्व के दिन जो भी व्यक्ति ब्रह्मावैवर्तपुराण का दान करता है, उसे मृत्यु के प्श्चात ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। इस मास में माघ में ब्रह्मवैवर्तपुराण की कथा अवश्य सुननी चाहिए और यदि यह संभव न हो सके तो इस माह माघ महात्म्य का श्रवण अवश्य करना चाहिए।

माघ मास में रोजाना भगवतगीता का पाठ अवश्य करना चाहिए। गीता का पाठ करने से भगवान विष्णु का आर्शीवाद प्राप्त होता है और हमारे अंदर की नकारात्मक ऊर्जा का हास होता है। हमारे सोचने समझने की क्षमता का विकास होता है। व्यक्ति तरक्की के पथ पर बढ़ता है।

इस पूरे माह श्री हरि भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। गुरूवार के दिन विष्णु सहसत्रनाम का पाठ करना चाहिए। विष्णु सहसत्रनाम का पाठ करने वाले व्यक्ति को यश, सम्मान, कीर्ति, सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। गुरू ग्रह का प्रभाव बढ़ता है।

इस मास को भगवान श्री कृष्ण की उपसना के लिए बहुत उत्तम मास माना जाता है। नियमित रूप से उन्हें पीले रंग का पुष्प और पंचामृत अर्पित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त रोजाना मधुराष्टक का पाठ करना चाहिए। यह पाठ श्रीकृष्ण जी को बहुत प्रिय है। श्रीकृष्ण जी के मंत्र “ऊँ नमो भगवते नन्दपुत्राय, ऊँ नमो भगवते गोविन्दाय” मंत्रों का नियमित जाप करना चाहिए।

माघ मास में कई धार्मिक पर्व पड़ते है जैसे-सकट चतुर्थी, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और माघी पूर्णिमा। इन सभी तिथियों पर स्नान-दान करने से पुण्य फल प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि इस मास में सत्यनारायण भगवान की पूजा करने से और उनकी कथा का श्रवण करने से भगवान प्रसन्न होते है और अपने भक्तों के सभी कष्टों को हर लेते हैं।

माघ मास के नियम | Magh Mas Ke Niyam | Rules of Magh Month

इस मास से जुड़े कुछ नियम है जिनको पालन करने से ना सिर्फ चित बल्कि आत्मा भी स्वच्छ होती है। आईये इन नियमों को जानते हैं-

  • इस मास में ब्रहमचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए, जमीन पर कंबल बिछाकर सोना चाहिए।
  • इस माह में आलस्य का त्याग करना चाहिए। सबेरे देर तक नहीं सोना चाहिए। ब्रहम मुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए। रोजाना स्नान करना चाहिए क्योंकि इस मास में पूजा-पाठ और हरि भजन किया जाता है। ऐसे में जातक को स्वच्छ रहना चाहिए। अगर आप इस मास में अधिक देर तक सोते है और स्नान नहीं करते है तो आपकी सेहत बिगड़ सकती है।
  • अगर आपकी कुंडली शनि दोष से पीड़ित है तो इस माह एक छोटा सा उपाय करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है। शनि दोषों से मुक्ति के लिए इस माह काले तिल और शनि संबंधी वस्तुओं का दान करना चाहिए। अगर आप राहु दोष से पीड़ित है तो आपको गर्म कपड़े या कंबल का दान करना चाहिए। तिल का दान करना भी उत्तम माना गया है।
  • इस मास में किये गये कल्पवास का विशेष महत्व होता है। कल्पवास की शुरुआत मां तुलसी और भगवान शालिग्राम के पूजन से होती है। माघ माह में पवित्र गंगा में स्नान करने से पाप मिट जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • इस मास में एक ही समय भोजन करना चाहिए। अगर आप ऐसा करने में असमर्थ है तो एक पक्ष सिर्फ फल, दूध का ही सेवन करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि एक समय भोजन करने से आरोग्यता और एकाग्रता बढ़ती है।
  • माघ मास में मोटे अनाज जैसे मक्का, बाजरा का सेवन करना चाहिए। इसकी तासीर गर्म होती है और ये सेहत के लिए भी फायदेमंद होती है।

माघ मास में क्या न करें | Magh Ke Mahine Me Kya Na Kare

  • माघ मास में तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • इस माह में किसी तरह का व्यसन भी नहीं करना चाहिए। मांस, मदिरा का प्रयोग करना, जुआं खेलना नहीं चाहिए।
  • इस मास को बहुत पवित्र मास माना गया है। ऐसे में इस मास अधिक से अधिक दान पुण्य करना चाहिए। अगर घर के दरवाजे पर कोई जरूरतमंद आये तो उसे खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। उसे अपनी साम्यर्थ अनुसार दान-दक्षिणा देनी चाहिए।
  • इस माह में झूठ बोलना, अभद्र भाषा बोलना, अभद्र व्यवहार किसी के साथ नहीं करना चाहिए। इन गलत आदतों का सर्वथा त्याग करना चाहिए।
  • माघ मास के शुरूआती चरणों में सर्दी अपने चरम पर होती है। ऐसे में इस महीने मूली और धनिया का सेवन नहीं करना चाहिए। मूली की तासीर ठंडी होती है। धनिया का सेवन मूली के साथ करना सेहत के लिए हानिकारक होता है। कुछ लोग मूली के पराठे में धनिया डालकर बनाते है। ऐसे भोजन का सेवन करने से पेट संबंधी बीमारियां, कफ बनना, जुकाम, बुखार की बीमारी हो सकती है।

निष्कर्ष

माघ मास का महीना दान-पुण्य, पूजा-पाठ करने के लिए बहुत पवित्र महीना माना गया है। इस माह में विशेष रूप से श्रीकृष्ण भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी आराधना करने का विधान है। आज के लेख में हमने हिन्दू धर्म के पवित्र माह माघ माह की विशेषता के बारे में विस्तार से आपको जानकारी प्रदान की। आशा करते है यह जानकारी आपको लाभप्रद लगी होगी। इस जानकारी को अपने दोस्तों, परिजनों के साथ सोशल मीड़िया पर साझा अवश्य करें जिससे हिन्दू धर्म के व्रत, त्योहारों का व्यापक प्रचार प्रसार हो। ऐसे ही जानकारीपूर्ण लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

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संतान प्राप्ति के लिए सकट चौथ पर करें यह छोटा उपाय | Sakat chauth Vrat Katha

हिन्दू धर्म में चतुर्थी तिथि का बहुत महत्व है। हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। नया साल 2023 शुरू हो चुका है। हिन्दू महीने के अनुसार यह माघ माह कहलाता है। माघ मास की चतुथी तिथि हिन्दू धर्म में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इसे संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ, तिलकुट, माघी चैथ, तिल चैथ के नाम से पुकारा जाता है। यह व्रत प्रथम पूज्य भगवान गणेश को समर्पित है। इस व्रत में गणेश जी की पूजा के साथ शाम को चंद्रमा को अघ्र्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। आज के लेख में हम सकट चौथ व्रत कब है, उसकी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है, कैसे पूजा करनी चाहिए आदि के विषय में विस्तार से जानेंगे।

सकट चौथ कब है | Sakat Chauth Kab Hai 2023

सकट चौथ का व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है। इस व्रत को महिलाएं अपनी संतान की लम्बी आयु के लिए करतीं है। मान्यता है कि जो भी महिला सकट चौथ के व्रत को करती है उसकी संतान निरोगी, दीर्घायु होती है। भगवान गणेश जी की कृपा से संतान के सारे संकट दूर हो जाते है। नये साल 2023 का संकष्टी चतुर्थी व्रत 10 जनवरी, 2023 दिन-मंगलवार को मनाया जायेगा। संकष्टी चतुर्थी तिथि 10 जनवरी, 2023 को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट से शुरू होगी और इसका समापन 11 जनवरी को दोपहर 02 बजकर 31 मिनट पर होगा। हिन्दू धर्म में उदया तिथि का महत्व होता है लेकिन सकट चैथ का व्रत 10 जनवरी को करना चाहिए क्योंकि सकट चौथ पर चंद्रमा की पूजा होती है और चंद्रमा के अनुसार 10 जनवरी को ही चौथ के चंद्रमा का मान होगा इसलिए सकट चौथ की पूजा 10 जनवरी को करना ही श्रेयस्कर होगा। सकट चौथ पर चंद्रमा का उदय रात 8 बजकर 50 मिनट पर होगा।

सकट चौथ की पूजा कैसे करें | सकट चौथ की पूजा विधि | Sakat Chauth Pooja

सकट चौथ के दिन प्रातःकाल ब्रहम मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ वस्त्र पहनकर घर के पूजा स्थल पर बैठकर सकट चौथ के व्रत को करने का संकल्प लें। अगर संभव हो तो सकट चौथ का व्रत निराजल रखें। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो इस दिन फलाहार में सिर्फ मीठी चीज खाये। सेंधा नमक का प्रयोग भी ना करें। व्रत का संकल्प लेने के बाद सबसे पहले अपने मंदिर में एक साफ लकड़ी की चैकी रखें, उस पर पीले रंग का साफ वस्त्र बिछा दे और गणेश जी की प्रतिमा को उस चैकी पर स्थापित करें। गणेश जी की प्रतिमा के साथ मां लक्ष्मी की प्रतिमा भी जरूर रखें। गणेश जी और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को रोली और अक्षत लगाएं। तत्पश्चात फूल अर्पित करें। गणेश भगवान के शक्तिशाली मंत्र ‘ऊँ गं गणपते नमः’ का जाप करते हुए 11, 21 या 51 दुर्वा गणेश भगवान को चढ़ाए। इसके बाद सकट चौथ की कथा सुने। भोग में गणेश जी को लड्डू, मोदक का भोग लगाये। चूंकि यह चैथ तिल चैथ कहलाती है। ऐसे में गणेश जी को तिल से बनी वस्तुएं जैसे तिल के लड्डू, तिल कुटा आदि का भोग लगाना बहुत ही शुभकारी होता है। पूजा समाप्त होने के बाद भगवान गणेश जी की आरती करें और उस आरती को सबको दें। रात्रि में चंद्रमा की पूजा करें। चंद्रमा की पूजा करने के बाद, तीन बार अघ्र्य दिया जाता है – एक बार चतुर्थी तिथि के लिए, एक बार महागणपति के लिए और उसके बाद एक बार संकष्टनाशन श्री गणपति महाराज के लिए। अंत में चैथा अघ्र्य चंद्रमा को दिया जाता है। चंद्रदेव को अघ्र्य देते समय इस मंत्र का जप करना चाहिए।

गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥

अर्घ्य देते समय इस मंत्र के जप करने से घर में सुख व शांति आती है।

सकट चौथ व्रत कथा | Sakat Chauth Ki Katha | Sakat Chauth Ki Kahani

एक गांव में देवरानी जेठानी रहती थीं। जेठानी बहुत गरीब थी। वह अपना गुजारा करने के लिए देवरानी के घर काम करती थी। देवरानी के घर से उसे जो भी मिलता था, उसी से अपने परिवार का गुजारा करती थी। देवरानी गणेश जी की बहुत बड़ी भक्त थी। वह उनकी हर समय पूजा-पाठ करती थी। माघ माह में जब गणेश चौथ पड़ी तो देवरानी ने गणेश चौथ का व्रत रखा। उस दिन वह जेठानी के घर नहीं गई। उसने गुड़ का तिलकुटा बनाकर गणेश जी की पूजा की। शाम को उसका पति काम से घर वापस लौटा। उसने देखा घर में कुछ बना नहीं है। उसने गुस्से में आकर अपनी पत्नी को पीट दिया। पिटने के बाद जेठानी गणेश जी को याद करते-करते रोते-रोते सो गई। रात में गणेश जी आए उसने जेठानी से कहा ‘मुझे बहुत भूख लगी है, खाने के लिए कुछ दे दो। जेठानी बोली ‘महाराज मेरे घर में अन्न का एक भी दाना नहीं है, थोड़ा तिलकुट रखा है, वही खा लो। गणेश जी ने वह तिलकुट खाया। उसके बाद बोले मुझे निपटना है, कहां निपटू। देवरानी बोली ‘महाराज पूरी झोपड़ी पड़ी है, कही भी निपट लो। वह बोले -अब पोंछू कहा। देवरानी गुस्से में बोली मेरे सर पर पोंछ दो। उन्होंने ऐसा ही किया। सुबह जब जेठानी उठी तो वह यह देखकर चकित रह गई कि पूरा घर हीरे-मोतियों से भर गया है।

अगले दिन जेठानी देवरानी के यहां काम करने नहीं गई तो देवरानी जेठानी के यहां देखने गई कि वह आई क्यों नहीं। वहां जाकर उसने देखा कि उसका घर हीरे-मोतियों से भरा हुआ है। तब देवरानी ने जेठानी से पूछा यह सब तुम्हें कैसे मिला। जेठानी ने कहा मुझे यह धन गणेश जी के आर्शीवाद से मिला है और उसने सारी आप-बीती देवरानी को बता दी। अगले साल जब सकट चौथ आई तो देवरानी ने भी सकट चौथ वाले दिन तिलकुटा बनाया। घर में कुछ खाना नहीं बनाया। अपने पति से कहा कि मुझे पीट दो। रात में गणेश जी आये उन्होंने देवरानी से भी खाने को मांगा, देवरानी ने तिलकुटा दिया। गणेश जी ने निपटने को पूछने पर घर में निपटने को कहा और जब गणेश जी ने पूछा कहां पोछू तो उसने भी अपना माथा दिखा दिया। इसके बाद गणेश जी चले गए। अगले सुबह जब देवरानी उठी तो उसने देखा कि सारा घर बदबू से भरा पड़ा है। उसने जेठानी से पूछा तुम्हें तो गणेश जी ने सब कुछ दे दिया लेकिन मुझे नहीं दिया क्यों। तब जेठानी बोले तुमने स्वार्थवश ये सब किया इसलिए तुम्हें ये नहीं मिला जबकि मैने निःस्वार्थ भाव से गणेश जी की सेवा की इसलिए मुझे धन-धान्य मिला। इस तरह सकट माता ने जैसी जेठानी की सुनी वैसे सबकी सुने। बोलो सकट माता की जय।

सकट चौथ का महत्व | Sakat Chauth Ka Mahatva

सकट चौथ का व्रत भगवान गणेश को समर्पित व्रत है। इस व्रत को करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते है और व्रत करने वाले के सभी संकटों को हर लेते है।

संतान की सुख-समृद्धि, दीर्घायु के लिए महिलाएं सकट का व्रत रखती है। जो भी महिला सच्चे मन से गौरी पुत्र गणेश की पूजा करती है। विघ्नहर्ता गणेश उसकी संतान के सभी कष्टों को दूर कर देते है और उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
पुराणों में ऐसा वर्णित है कि सकट चौथ वाले दिन भगवान गणेश ने भगवान शंकर और माता पार्वती की परिक्रमा की थी। सकट चौथ का व्रत रखने वाले जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय बीतता है। संतान प्राप्ति के दृष्टिकोण से सकट का व्रत बहुत ही फलदाई है। संतान को लंबी उम्र मिलती है। यदि आपके घर में तनाव, नकारात्मकता का वातावरण हो तो वह भी दूर होता है।

सकट चौथ पर नवविवाहिता करती है उजमन (उद्यापन) |

जिस वर्ष लड़के का विवाह हुआ हो उसी वर्ष उसकी धर्मपत्नी सकट का उजमन (उद्यापन) करती है। इस उद्यापन में सवा किलो तिल को गुड़ के साथ मिलाकर तिलकुट बना लिया जाता है। तिलकुट बनाने के बाद उसकी पूजा करने के बाद प्रसाद को अपने सगे-संबंधियों और पास-पड़ोस में वितरित कर दिया जाता है। नवविवाहिता को जिस वर्ष पुत्र की प्राप्ति हो उसी वर्ष से वह सकट चतुर्थी का व्रत रख सकती है। इस व्रत को करने से भगवान गणेश के आर्शीवाद से उसका पुत्र गुणवान और तेजस्वी होता है।

सकट चौथ पर संतान प्राप्ति के लिए करें यह उपाय |

जिन दंपत्तियों को काफी प्रयासों के बाद भी संतान की प्राप्ति न हो रही हो। उन दंपत्ती को सकट चौथ वाले दिन भगवान श्री गणेश को अपनी उम्र के बराबर लड्डू अर्पित करे और उनके सामने आसन लगाकर ‘ऊँ नमो भगवते गजाननाय’ मंत्र का अधिक से अधिक बार जाप करें। ऐसा करने से भगवान गणेश के आर्शीवाद से उनको संतान सुख प्राप्त होता है। अगर दोनों पति-पत्नी साथ बैठकर इस मंत्र का जाप एक साथ करते है तो उसका अधिक फल प्राप्त होता है।

भूलकर भी ना करें ये गलती

गणेश पूजन में तुलसी का प्रयोग वर्जित है। एक पुराणिक कथा के अनुसार तुलसी जी ने गणेश जी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा था जिसे गणेश जी ने ठुकरा दिया था, जिसके बाद तुलसी माता ने गणेश जी को दो विवाह करने का श्राप दे दिया था। गणेश जी ने भी तुलसी माता को एक राक्षस के साथ विवाह होने का श्राप दे दिया था। तब से ही गणेश जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग होना बंद हो गया था।

सकट चौथ वाले दिन महिलाओं को लाल, हरे रंग के वस्त्र पहनकर ही गणेश भगवान की पूजा करनी चाहिए। भूलकर भी इस दिन काले रंग के वस्त्र नहीं धारण करना चाहिए। ऐसा करने से गणेश भगवान नाराज हो जाते हैं।

गणेश जी का वाहन मूषक अर्थात चूहा होता है। ऐसे में सकट चैथ वाले दिन मूषक को भूलकर भी परेशान नहीं करना चाहिए, ना ही मारना चाहिए।

सकट चौथ वाले दिन चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद ही व्रत पूरा होता है। चंद्रमा को जल में दूध और अक्षत डालकर अघ्र्य दिया जाता है। जब आप व्रत का पारण करते समय चंद्रमा को अघ्र्य दे रहे हो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जल की छीटें आपके पैर पर ना पड़े। अगर छीटें पैर पर पड़ जाती है तो इससे चंद्रदेव का अपमान होता है। ऐसे में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

सकट चौथ का व्रत महिलाओं द्वारा संतान प्राप्ति के लिए किया जाने वाला व्रत है। इस व्रत को करने से गौरी पुत्र गणेश की कृपा मिलती है और संतान की खुशहाली, समृद्धि बढ़ती है। आज के लेख में हमने आपको सकट चौथ के व्रत विषयक पूरी जानकारी आपको दी। उम्मीद करते है सकट चौथ के बारे में जो भी प्रश्न आपके मन में थे उनका उत्तर आपको मिल गया होगा।

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