सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व है मकर संक्रान्ति, जानिए इस पर्व का महत्व | Makar Sakranti in Hindi

हिन्दू धर्म में सूर्य देव ऐसे देव है जो प्रत्यक्ष रूप में विराजमान है। सूर्य देव हर माह एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते है। इस भ्रमण काल को संक्रान्ति कहते है। साल भर में 12 संक्रान्ति होती है। इनमें मेष, तुला और कर्क संक्रान्ति के साथ मकर संक्रान्ति का बहुत महत्व है। सूर्य जब धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते है तो इसे मकर संक्रान्ति कहते हैं। मकर संक्रान्ति से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगता है अर्थात मौसम मंे बदलाव होने लगता है। सूर्य छह माह दक्षिणायन रहते हैं और छह माह उत्तरायण। सूर्य के उत्तरायण होने से शीत ऋतु से राहत मिलने लगती है। ठंड का असर कम हो जाता है। दिन बड़े होने लगते है और रात्रि छोटी होने लगती है। आज के लेख में हम जानेंगे कि वर्ष 2023 में मकर संक्रान्ति कब है, इस दिन किस तरह पूजा करनी चाहिए, इसका क्या महत्व है आदि पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

मकर संक्रान्ति कब है | Makar Sankranti Kab Hai 2023 | Harvest Festival

मकर संक्रान्ति को लेकर इस वर्ष असमंजस का माहौल बना हुआ है। कुछ लोगों का कहना है कि मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को है तो कुछ 15 जनवरी को बता रहे हैं। ऐसे स्थिति में आम जनमानस के बीच मकर संक्रान्ति को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। तो आईये हम आपको बताते है कि मकर संक्रान्ति का पर्व 2023 में कब मनाया जायेगा। जैसा कि हमने आपको बताया कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मकर सक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है। सूर्य 14 जनवरी, दिन शनिवार को रात्रि 8 बजकर 44 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेगा। चूंकि हिन्दू धर्म में हर तिथि को करने के लिए उदया तिथि का मान होता है। ऐसे में मकर संक्रान्ति का पर्व 15 जनवरी, 2023 दिन रविवार को मनाना श्रेयस्कर होगा। मकर संक्रान्ति से संबंधित स्नान, दान के कार्य भी 15 जनवरी को ही किया जायेगा।

मकर संक्रान्ति शुभ मुहूर्त | Makar Sankranti 2023 Muhurat

मकर संक्रान्ति पर शुभ मुहूर्त दिनांक 15 जनवरी को सुबह 06 बजकर 47 मिनट से सायंकाल 05 बजकर 40 मिनट तक रहेगा अर्थात 10 घण्टा 53 मिनट तक शुभ योग है। मकर संक्रान्ति का पुण्य काल दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से शाम 05 बजकर 45 मिनट तक रहेगा अर्थात 3 घण्टा और 02 मिनट तक। महापुण्य काल दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से 04 बजकर 28 मिनट तक है अर्थात 01 घंटा 45 मिनट तक है। मकर संक्रान्ति पर इस बार सुकर्मा योग भी पड़ रहा है। यह योग सुबह 11ः51 तक रहेगा। यह योग 14 जनवरी को भी रहेगा जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। किसी भी त्योहार को शुभ मुहूर्त में करने से उसका दोगुना फल मिलता है। अतः मकर संक्रान्ति की पूजा शुभ मुहूर्त में करना ही श्रेयस्कर होगा।

मकर संक्रान्ति पर ऐसे करे पूजा | Makar Sankranti Puja Kaise Kare

उत्तर भारत में मकर संक्रान्ति पर घरों में विशेष पूजा-पाठ की जाती है। चूंकि मकर संक्रान्ति का पर्व सूर्य देव को समर्पित है इसलिए इस विशेष दिन सूर्य भगवान की आराधना करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। मकर संक्रान्ति वाले दिन ब्रहम मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद अपने पूजा-घर को साफ कर लें। इसके बाद तांबे के लोटे में जल लेकर शुभ मुहूर्त में सूर्य देव को अघ्र्य दें। इसके बाद सूर्य भगवान को तिल, गुड़ और खिचड़ी का भोग लगाएं। सूर्य देव के मंत्र ‘ओम आदित्याय नमः, ऊँ भाष्कराय नमः, ऊँ हरं हीं हौं सह सूर्याय नमः’ आदि मंत्र का सूर्य देव के सम्मुख बैठकर 108 बार जप करें। सूर्य देव की आरती उतारें। अगर संभव हो तो सूर्य देव के निमित्त हवन भी कर सकते हैं। इस तरह से सूर्य देव की आराधना करने से सूर्य देव का आर्शीवाद प्राप्त होता है और जातक की मनोकामना पूर्ण होती है। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति कमजोर हो उन्हें आज के दिन सूर्य के बीज मंत्र ‘ऊँ हां हीं हौं सः सूर्याय नमः का 108 बार अवश्य जाप करना चाहिए। मकर संक्रान्ति पर अपने पितरों का ध्यान कर उनके निमित्त तर्पण भी करना चाहिए। कई जगहों पर तो पितरों के निमित्त खिचड़ी का दान भी किया जाता है।

मकर संक्रान्ति का महत्व | Makar Sankranti Importance

मकर संक्रान्ति पर स्नान और दान का बहुत महत्व होता है। इस दिन पवित्र गंगा, यमुना या संगम के तट पर स्नान करने से सूर्य देव की कृपा मिलती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन शुभ मुहूर्त में अन्न, वस्त्र, का दान करना श्रेयस्कर होता है। तिल या तिल के बने लड्डुओं का दान करना भी शुभदायक होता है। इस दिन जितना अधिक आप दान करेंगे उसका दोगुना फल आपको भविष्य में प्राप्त होगा।

मकर संक्रान्ति पर शनि से संबंधी चीजे जूता, छाता, काले वस़्त्र का दान करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है।

इस दिन जल में तिल डालकर स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से शरीर शुद्ध और स्वच्छ होता है।

मकर संक्रान्ति पर कुछ जगह पतंग उत्सव भी मनाया जाता है। लोग स्वच्छ आकाश में ऊँची-ऊँची पतंगे उड़ाते है। पतंग उड़ाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी और आध्यात्मिक भी। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होने लगता है जिसके चलते चटक धूप निकलती है। पतंग उड़ाने के दौरान सूर्य की तेज रोशनी से विटामिन डी की प्राप्ति होती है व शरीर को नई ऊर्जा मिलती है। आध्यात्मिक कारण देखे तो पतंग ऊँची उड़ाकर व्यक्ति अपनी सोच को ऊंचा करता है। अपने विचारों को नया आयाम देता है।

मकर संक्रान्ति को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना है। उत्तर भारत में इसे खिचड़ी के नाम से जानते है। आज के दिन उड़द की दाल की खिचड़ी बनाई जाती है। असम में इसे ‘माघ बिहू’ के नाम से जाना जाता है। राजस्थान में मकर संक्रान्ति वाले दिन बाटी, चूरमा खाया जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है।

मकर संक्रान्ति पर चूंकि सूर्य उत्तरायण हो जाते है। उत्तरायण के समय को देवताओं का मास कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन देवता धरती पर प्रवास करने जमीन पर उतर जाते है इसलिए आज के दिन से खरमास खत्म हो जाता है। मांगलिक कार्य जैसे गृह प्रवेश, मुंडन, विवाह आदि शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं।

मकर संक्रान्ति की पौराणिक कथा | Makar Sankranti Story | Makar Sankranti Katha

एक पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए आज ही का दिन चुना था। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था जब अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में उन्हें बाणों से भेद दिया तो वह छह माह तक उस बाणों की शैय्या पर रहे। उस समय सूर्य दक्षिणायन था। वह सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते रहे। जब सूर्य मकर राशि में आया और सूर्य उत्तरायण हुआ तो उन्होंने अपनी देह त्यागी क्योंकि वे जानते थे कि उत्तरायण में देह त्यागने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।

एक अन्य कथा के अनुसार आज ही दिन भगवान श्रीकृष्ण के मामा कंस ने श्रीकृष्ण जी को मारने के लिए राक्षसनी लोहिता को भेजा था जिसका श्रीकृष्ण जी ने वध कर दिया। इसी घटना के चलते यह पर्व मनाया जाने लगा।

मकर संक्रान्ति पर क्यों खाई जाती है खिचड़ी | Makar Sankranti Khichdi Recipe

भारत एक कृषि प्रधान देश है। मकर संक्रान्ति के दिन से चावल की नई फसल आती है जिसके चलते किसान चावल, मूंग की दाल को मिलाकर खिचड़ी बनाते है और उसका भोग लगाते है। बाद में प्रसाद स्वरूप स्वयं खाते हैं।

मकर संक्रान्ति पर खिचड़ी खाने के पीछे एक कथा भी प्रचलित है। प्राचीन समय में खिलजी (Khilji) ने भारत पर आक्रमण कर दिया। खिलजी के आक्रमण के चलते हर जगह उथल पुथल मच गई। युद्ध लड़ने के चलते नाथ योगी भोजन भी नहीं बना पा रहे थे। भोजन ना बना पाने के चलते वे कमजोर होने लगे। तब बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ मिलाकर भोजन बनाने का कहा। यह भोजन ना सिर्फ जल्दी पक जाता था बल्कि शरीर को आवश्यक ऊर्जा भी देता था। योगियों ने जब इस भोजन को किया तो इससे उनका पेट भर गया। बाबा गोरखनाथ ने इसका नाम खिचड़ी रखा। जब भारत खिलजी के शासन से मुक्त हो गया तो योगियों ने मकर संक्रान्ति के दिन से ही खिचड़ी बनाने और उसे बांटने की प्रथा की शुरूआत की। तब से ही मकर संक्रान्ति का पर्व खिचड़ी कहलाने लगा। आज भी गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे प्रसाद के रूप में आम जनमानस में वितरित किया जाता है।

मकर संक्रान्ति पर क्या न करें | Makar Sankranti Par Kya Na Kare

मकर संक्रान्ति एक पवित्र त्योहार होता है। इस दिन भूलकर भी तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन का सेवन न करें। ना ही कोई व्यसन करें। सिगरेट, शराब, गुटखे का सेवन ना करें। इस दिन ज्यादा मसालेदार खाना भी नहीं खाना चाहिए।

इस दिन किसी का अपमान नहीं करना चाहिए, उसे अपशब्द, कटु वचन नहीं बोलने चाहिए। घर के बड़ों का आदर सत्कार करना चाहिए।

मकर संक्रान्ति दान-पुण्य का दिन होता है। ऐसे में इस दिन अगर घर पर कोई असहाय, जरूरतमंद आ जाये तो उसे अपनी साम्थ्र्यनुसार दान-दक्षिणा अवश्य देना चाहिए। भूखे व्यक्ति को भोजन कराना चाहिए।

यह दिन सूर्य भगवान को समर्पित दिन है। ऐसे में ब्रहम मुहूर्त में स्नान करके सूर्य देव को अघ्र्य देने के बाद ही कुछ खाना चाहिए। बिना स्नान किये कुछ भी नहीं खाना चाहिए। सबसे पहले तिल और गुड़ ही खाएं। उसके पश्चात ही कोई भोजन ग्रहण करें।

पेड़-पौधों में ईश्वर का निवास होता है। अगर आप इस दिन किसी भी पेड़ को काटते हैं तो आपको ईश्वर के दंड का भागी बनना पड़ेगा।

मकर संक्रान्ति के दिन शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि कुछ ऐसी तिथियां होती हैं जिनमें शारीरिक संबंध बनाना पाप करने के समान होता है जैसे संक्राति, पूर्णिमा और अमावस्या।

निष्कर्ष

मकर संक्रान्ति पर्व सूर्य के मकर राशि में जाने का पर्व है। सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण जाने पर यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर अगर संभव हो तो किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान, दान अवश्य करना चाहिए। मकर संक्रान्ति का पर्व इतना पवित्र है कि स्वयं श्रीकृष्ण जी ने गीता में इस पर्व के महत्व के बारे में बताया है। गीता में लिखा है कि सूर्य के उत्तरायण होने पर जो व्यक्ति देह त्यागता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज के लेख में हमने मकर संक्रान्ति पर्व के बारे में आपको सम्पूर्ण जानकारी दी। इस जानकारी को सोशल मीडिया पर अपने परिजनों, मित्रों के साथ साझा अवश्य करें जिससे हिन्दू धर्म के त्योहारों का व्यापक प्रचार प्रसार हो। ऐसे ही धार्मिक और शिक्षाप्रद लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

माघ महीना कब से शुरू हो रहा है | Magh Ka Mahina Kab Se Shuru Hai

जय श्री राम मित्रो ! जैसा कि आप जानते हैं कि हम अपने ब्लॉग जयश्रीराम.net में आपको हिन्दू धर्म से सम्बंधित जानकारियां देते रहते हैं. आज हम आपको हिन्दू धर्म के एक और महीने माघ मास के बारे बताने जा रहे हैं. क्योंकि हिन्दू धर्म का पवित्र माह है माघ मास है तो आइये जानिए माघ मास का महत्व और उसके नियम.

माघ महीना 2023 | Magh Month 2023 | Magh Kab Se Lagega

नये वर्ष 2023 की शुरूआत हो चुकी है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह ग्यारहवां महीना होता है। इसे माघ मास कहते है। माघ मास 07 जनवरी, 2023 से शुरू होकर 05 फरवरी 2023 तक रहेगा। माघ महीना हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है। इस माघ में की गई पूजा-पाठ और दान-पुण्य का बहुत महत्व होता है। आज के लेख में हम माघ मास का क्या महत्व है, उसके नियम क्या है आदि अन्य विषयों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

माघ मास का महत्व | Magh Mahine Ka Mehtva

हिन्दू पंचांग के हर माह का धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व होता है। माघ का महीना एक ऐसा महीना होता है जिसमें स्नान-दान, भगवान की आराधना करने वाले को अद्वितीय फल की प्राप्ति होती है। माघ मास में भगवान सूर्यदेव की आराधना करने से यश, सम्मान में बढ़ोत्तरी होती है। तुलसी पूजा का भी इस मास में बहुत महत्व है। इस मास में नियम से तुलसी के पौधे में सुबह जल चढ़ाना चाहिए और शाम को तुलसी के पौधे में दीपक जलाना चाहिए और आरती करनी चाहिए। तुलसी के पौधे को एक चुनरी से ढककर रखना चाहिए क्योंकि इस मौसम में आसमान से ओस की बूदें टपकती है।

माघ मास में संगम के तट पर कल्पवास किया जाता है। कल्पवास अर्थात एक मास तक संगम के तट पर संयम पूर्वक निवास करना। कल्पवास करने से व्यक्ति का शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाता है और उसे असीम सुख की प्राप्ति होती है। पुराणों में वर्णित है कि कल्पवास करने से एक हजार यज्ञों के बराबर का लाभ मिलता है।

Magh Ka Mahina Kab Se Shuru Hai

माघ मास में नियमित रूप से भगवत भजन करना चाहिए। हरि का भजन करने से आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है। इस मास के मध्य में ठंड ढलान पर होती है अर्थात ठंडक कम होने लगती है। ऐसे में अपनी सेहत को लेकर भी जागरूक रहना चाहिए। इस पूरे माह में तिल और गुड़ का सेवन करना चाहिए। इस पूरे मास में अपने नहाने के पानी में काला तिल मिलाकर स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से आपका शरीर स्वस्थ रहता है। इस मास के मध्य से गर्म पानी से स्नान करना भी बंद कर देना चाहिए।

माघ मास में किसी पवित्र नदी जैसे गंगा, यमुना आदि में जाकर स्नान करना चाहिए। किसी पवित्र नदी में डुबकी लगाने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते है। अगर संभव हो तो प्रयाग में संगम तट पर जाकर स्नान अवश्य करें। संगम में स्नान करने से आपको भगवान श्री हरि का आर्शीवाद प्राप्त होता है और असीम पुण्य की प्राप्ति होती है। सुख समृद्धि, सौभाग्य में वृद्धि होती है। माघ मास में हर जल में गंगाजल जैसा प्रताप होता है। अगर आप किसी नदी में जाकर स्नान न कर सके तो अपने घर पर ही नहाने के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए।

पुराणों में ऐसा वर्णित है कि माघ मास में देवता धरती पर उतर आते है। माघ मास में पड़नी वाली पूर्णिमा का भी खासा महत्व होता है और यदि पूर्णिमा पर पुष्य नक्षत्र हो तो उसका महत्व और बढ़ जाता है। पद्य पुराण में एक श्लोक वर्णित है –

माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।‘

इस श्लोक के अनुसार माघ मास में पूजा करने से भी भगवान विष्णु को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति अर्थात लगन प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ मास में रोजाना स्नान करना चाहिए।

एक अन्य श्लोक के अनुसार –

‘प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापानुत्तये। माघ स्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानवः॥‘

अर्थात माघ मास में पूर्णिमा के पर्व के दिन जो भी व्यक्ति ब्रह्मावैवर्तपुराण का दान करता है, उसे मृत्यु के प्श्चात ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। इस मास में माघ में ब्रह्मवैवर्तपुराण की कथा अवश्य सुननी चाहिए और यदि यह संभव न हो सके तो इस माह माघ महात्म्य का श्रवण अवश्य करना चाहिए।

माघ मास में रोजाना भगवतगीता का पाठ अवश्य करना चाहिए। गीता का पाठ करने से भगवान विष्णु का आर्शीवाद प्राप्त होता है और हमारे अंदर की नकारात्मक ऊर्जा का हास होता है। हमारे सोचने समझने की क्षमता का विकास होता है। व्यक्ति तरक्की के पथ पर बढ़ता है।

इस पूरे माह श्री हरि भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। गुरूवार के दिन विष्णु सहसत्रनाम का पाठ करना चाहिए। विष्णु सहसत्रनाम का पाठ करने वाले व्यक्ति को यश, सम्मान, कीर्ति, सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। गुरू ग्रह का प्रभाव बढ़ता है।

इस मास को भगवान श्री कृष्ण की उपसना के लिए बहुत उत्तम मास माना जाता है। नियमित रूप से उन्हें पीले रंग का पुष्प और पंचामृत अर्पित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त रोजाना मधुराष्टक का पाठ करना चाहिए। यह पाठ श्रीकृष्ण जी को बहुत प्रिय है। श्रीकृष्ण जी के मंत्र “ऊँ नमो भगवते नन्दपुत्राय, ऊँ नमो भगवते गोविन्दाय” मंत्रों का नियमित जाप करना चाहिए।

माघ मास में कई धार्मिक पर्व पड़ते है जैसे-सकट चतुर्थी, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और माघी पूर्णिमा। इन सभी तिथियों पर स्नान-दान करने से पुण्य फल प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि इस मास में सत्यनारायण भगवान की पूजा करने से और उनकी कथा का श्रवण करने से भगवान प्रसन्न होते है और अपने भक्तों के सभी कष्टों को हर लेते हैं।

माघ मास के नियम | Magh Mas Ke Niyam | Rules of Magh Month

इस मास से जुड़े कुछ नियम है जिनको पालन करने से ना सिर्फ चित बल्कि आत्मा भी स्वच्छ होती है। आईये इन नियमों को जानते हैं-

  • इस मास में ब्रहमचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए, जमीन पर कंबल बिछाकर सोना चाहिए।
  • इस माह में आलस्य का त्याग करना चाहिए। सबेरे देर तक नहीं सोना चाहिए। ब्रहम मुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए। रोजाना स्नान करना चाहिए क्योंकि इस मास में पूजा-पाठ और हरि भजन किया जाता है। ऐसे में जातक को स्वच्छ रहना चाहिए। अगर आप इस मास में अधिक देर तक सोते है और स्नान नहीं करते है तो आपकी सेहत बिगड़ सकती है।
  • अगर आपकी कुंडली शनि दोष से पीड़ित है तो इस माह एक छोटा सा उपाय करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है। शनि दोषों से मुक्ति के लिए इस माह काले तिल और शनि संबंधी वस्तुओं का दान करना चाहिए। अगर आप राहु दोष से पीड़ित है तो आपको गर्म कपड़े या कंबल का दान करना चाहिए। तिल का दान करना भी उत्तम माना गया है।
  • इस मास में किये गये कल्पवास का विशेष महत्व होता है। कल्पवास की शुरुआत मां तुलसी और भगवान शालिग्राम के पूजन से होती है। माघ माह में पवित्र गंगा में स्नान करने से पाप मिट जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • इस मास में एक ही समय भोजन करना चाहिए। अगर आप ऐसा करने में असमर्थ है तो एक पक्ष सिर्फ फल, दूध का ही सेवन करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि एक समय भोजन करने से आरोग्यता और एकाग्रता बढ़ती है।
  • माघ मास में मोटे अनाज जैसे मक्का, बाजरा का सेवन करना चाहिए। इसकी तासीर गर्म होती है और ये सेहत के लिए भी फायदेमंद होती है।

माघ मास में क्या न करें | Magh Ke Mahine Me Kya Na Kare

  • माघ मास में तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • इस माह में किसी तरह का व्यसन भी नहीं करना चाहिए। मांस, मदिरा का प्रयोग करना, जुआं खेलना नहीं चाहिए।
  • इस मास को बहुत पवित्र मास माना गया है। ऐसे में इस मास अधिक से अधिक दान पुण्य करना चाहिए। अगर घर के दरवाजे पर कोई जरूरतमंद आये तो उसे खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। उसे अपनी साम्यर्थ अनुसार दान-दक्षिणा देनी चाहिए।
  • इस माह में झूठ बोलना, अभद्र भाषा बोलना, अभद्र व्यवहार किसी के साथ नहीं करना चाहिए। इन गलत आदतों का सर्वथा त्याग करना चाहिए।
  • माघ मास के शुरूआती चरणों में सर्दी अपने चरम पर होती है। ऐसे में इस महीने मूली और धनिया का सेवन नहीं करना चाहिए। मूली की तासीर ठंडी होती है। धनिया का सेवन मूली के साथ करना सेहत के लिए हानिकारक होता है। कुछ लोग मूली के पराठे में धनिया डालकर बनाते है। ऐसे भोजन का सेवन करने से पेट संबंधी बीमारियां, कफ बनना, जुकाम, बुखार की बीमारी हो सकती है।

निष्कर्ष

माघ मास का महीना दान-पुण्य, पूजा-पाठ करने के लिए बहुत पवित्र महीना माना गया है। इस माह में विशेष रूप से श्रीकृष्ण भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी आराधना करने का विधान है। आज के लेख में हमने हिन्दू धर्म के पवित्र माह माघ माह की विशेषता के बारे में विस्तार से आपको जानकारी प्रदान की। आशा करते है यह जानकारी आपको लाभप्रद लगी होगी। इस जानकारी को अपने दोस्तों, परिजनों के साथ सोशल मीड़िया पर साझा अवश्य करें जिससे हिन्दू धर्म के व्रत, त्योहारों का व्यापक प्रचार प्रसार हो। ऐसे ही जानकारीपूर्ण लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

जयश्रीराम

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संतान प्राप्ति के लिए सकट चौथ पर करें यह छोटा उपाय | Sakat chauth Vrat Katha

हिन्दू धर्म में चतुर्थी तिथि का बहुत महत्व है। हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। नया साल 2023 शुरू हो चुका है। हिन्दू महीने के अनुसार यह माघ माह कहलाता है। माघ मास की चतुथी तिथि हिन्दू धर्म में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इसे संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ, तिलकुट, माघी चैथ, तिल चैथ के नाम से पुकारा जाता है। यह व्रत प्रथम पूज्य भगवान गणेश को समर्पित है। इस व्रत में गणेश जी की पूजा के साथ शाम को चंद्रमा को अघ्र्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। आज के लेख में हम सकट चौथ व्रत कब है, उसकी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है, कैसे पूजा करनी चाहिए आदि के विषय में विस्तार से जानेंगे।

सकट चौथ कब है | Sakat Chauth Kab Hai 2023

सकट चौथ का व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है। इस व्रत को महिलाएं अपनी संतान की लम्बी आयु के लिए करतीं है। मान्यता है कि जो भी महिला सकट चौथ के व्रत को करती है उसकी संतान निरोगी, दीर्घायु होती है। भगवान गणेश जी की कृपा से संतान के सारे संकट दूर हो जाते है। नये साल 2023 का संकष्टी चतुर्थी व्रत 10 जनवरी, 2023 दिन-मंगलवार को मनाया जायेगा। संकष्टी चतुर्थी तिथि 10 जनवरी, 2023 को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट से शुरू होगी और इसका समापन 11 जनवरी को दोपहर 02 बजकर 31 मिनट पर होगा। हिन्दू धर्म में उदया तिथि का महत्व होता है लेकिन सकट चैथ का व्रत 10 जनवरी को करना चाहिए क्योंकि सकट चौथ पर चंद्रमा की पूजा होती है और चंद्रमा के अनुसार 10 जनवरी को ही चौथ के चंद्रमा का मान होगा इसलिए सकट चौथ की पूजा 10 जनवरी को करना ही श्रेयस्कर होगा। सकट चौथ पर चंद्रमा का उदय रात 8 बजकर 50 मिनट पर होगा।

सकट चौथ की पूजा कैसे करें | सकट चौथ की पूजा विधि | Sakat Chauth Pooja

सकट चौथ के दिन प्रातःकाल ब्रहम मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ वस्त्र पहनकर घर के पूजा स्थल पर बैठकर सकट चौथ के व्रत को करने का संकल्प लें। अगर संभव हो तो सकट चौथ का व्रत निराजल रखें। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो इस दिन फलाहार में सिर्फ मीठी चीज खाये। सेंधा नमक का प्रयोग भी ना करें। व्रत का संकल्प लेने के बाद सबसे पहले अपने मंदिर में एक साफ लकड़ी की चैकी रखें, उस पर पीले रंग का साफ वस्त्र बिछा दे और गणेश जी की प्रतिमा को उस चैकी पर स्थापित करें। गणेश जी की प्रतिमा के साथ मां लक्ष्मी की प्रतिमा भी जरूर रखें। गणेश जी और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को रोली और अक्षत लगाएं। तत्पश्चात फूल अर्पित करें। गणेश भगवान के शक्तिशाली मंत्र ‘ऊँ गं गणपते नमः’ का जाप करते हुए 11, 21 या 51 दुर्वा गणेश भगवान को चढ़ाए। इसके बाद सकट चौथ की कथा सुने। भोग में गणेश जी को लड्डू, मोदक का भोग लगाये। चूंकि यह चैथ तिल चैथ कहलाती है। ऐसे में गणेश जी को तिल से बनी वस्तुएं जैसे तिल के लड्डू, तिल कुटा आदि का भोग लगाना बहुत ही शुभकारी होता है। पूजा समाप्त होने के बाद भगवान गणेश जी की आरती करें और उस आरती को सबको दें। रात्रि में चंद्रमा की पूजा करें। चंद्रमा की पूजा करने के बाद, तीन बार अघ्र्य दिया जाता है – एक बार चतुर्थी तिथि के लिए, एक बार महागणपति के लिए और उसके बाद एक बार संकष्टनाशन श्री गणपति महाराज के लिए। अंत में चैथा अघ्र्य चंद्रमा को दिया जाता है। चंद्रदेव को अघ्र्य देते समय इस मंत्र का जप करना चाहिए।

गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥

अर्घ्य देते समय इस मंत्र के जप करने से घर में सुख व शांति आती है।

सकट चौथ व्रत कथा | Sakat Chauth Ki Katha | Sakat Chauth Ki Kahani

एक गांव में देवरानी जेठानी रहती थीं। जेठानी बहुत गरीब थी। वह अपना गुजारा करने के लिए देवरानी के घर काम करती थी। देवरानी के घर से उसे जो भी मिलता था, उसी से अपने परिवार का गुजारा करती थी। देवरानी गणेश जी की बहुत बड़ी भक्त थी। वह उनकी हर समय पूजा-पाठ करती थी। माघ माह में जब गणेश चौथ पड़ी तो देवरानी ने गणेश चौथ का व्रत रखा। उस दिन वह जेठानी के घर नहीं गई। उसने गुड़ का तिलकुटा बनाकर गणेश जी की पूजा की। शाम को उसका पति काम से घर वापस लौटा। उसने देखा घर में कुछ बना नहीं है। उसने गुस्से में आकर अपनी पत्नी को पीट दिया। पिटने के बाद जेठानी गणेश जी को याद करते-करते रोते-रोते सो गई। रात में गणेश जी आए उसने जेठानी से कहा ‘मुझे बहुत भूख लगी है, खाने के लिए कुछ दे दो। जेठानी बोली ‘महाराज मेरे घर में अन्न का एक भी दाना नहीं है, थोड़ा तिलकुट रखा है, वही खा लो। गणेश जी ने वह तिलकुट खाया। उसके बाद बोले मुझे निपटना है, कहां निपटू। देवरानी बोली ‘महाराज पूरी झोपड़ी पड़ी है, कही भी निपट लो। वह बोले -अब पोंछू कहा। देवरानी गुस्से में बोली मेरे सर पर पोंछ दो। उन्होंने ऐसा ही किया। सुबह जब जेठानी उठी तो वह यह देखकर चकित रह गई कि पूरा घर हीरे-मोतियों से भर गया है।

अगले दिन जेठानी देवरानी के यहां काम करने नहीं गई तो देवरानी जेठानी के यहां देखने गई कि वह आई क्यों नहीं। वहां जाकर उसने देखा कि उसका घर हीरे-मोतियों से भरा हुआ है। तब देवरानी ने जेठानी से पूछा यह सब तुम्हें कैसे मिला। जेठानी ने कहा मुझे यह धन गणेश जी के आर्शीवाद से मिला है और उसने सारी आप-बीती देवरानी को बता दी। अगले साल जब सकट चौथ आई तो देवरानी ने भी सकट चौथ वाले दिन तिलकुटा बनाया। घर में कुछ खाना नहीं बनाया। अपने पति से कहा कि मुझे पीट दो। रात में गणेश जी आये उन्होंने देवरानी से भी खाने को मांगा, देवरानी ने तिलकुटा दिया। गणेश जी ने निपटने को पूछने पर घर में निपटने को कहा और जब गणेश जी ने पूछा कहां पोछू तो उसने भी अपना माथा दिखा दिया। इसके बाद गणेश जी चले गए। अगले सुबह जब देवरानी उठी तो उसने देखा कि सारा घर बदबू से भरा पड़ा है। उसने जेठानी से पूछा तुम्हें तो गणेश जी ने सब कुछ दे दिया लेकिन मुझे नहीं दिया क्यों। तब जेठानी बोले तुमने स्वार्थवश ये सब किया इसलिए तुम्हें ये नहीं मिला जबकि मैने निःस्वार्थ भाव से गणेश जी की सेवा की इसलिए मुझे धन-धान्य मिला। इस तरह सकट माता ने जैसी जेठानी की सुनी वैसे सबकी सुने। बोलो सकट माता की जय।

सकट चौथ का महत्व | Sakat Chauth Ka Mahatva

सकट चौथ का व्रत भगवान गणेश को समर्पित व्रत है। इस व्रत को करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते है और व्रत करने वाले के सभी संकटों को हर लेते है।

संतान की सुख-समृद्धि, दीर्घायु के लिए महिलाएं सकट का व्रत रखती है। जो भी महिला सच्चे मन से गौरी पुत्र गणेश की पूजा करती है। विघ्नहर्ता गणेश उसकी संतान के सभी कष्टों को दूर कर देते है और उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
पुराणों में ऐसा वर्णित है कि सकट चौथ वाले दिन भगवान गणेश ने भगवान शंकर और माता पार्वती की परिक्रमा की थी। सकट चौथ का व्रत रखने वाले जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय बीतता है। संतान प्राप्ति के दृष्टिकोण से सकट का व्रत बहुत ही फलदाई है। संतान को लंबी उम्र मिलती है। यदि आपके घर में तनाव, नकारात्मकता का वातावरण हो तो वह भी दूर होता है।

सकट चौथ पर नवविवाहिता करती है उजमन (उद्यापन) |

जिस वर्ष लड़के का विवाह हुआ हो उसी वर्ष उसकी धर्मपत्नी सकट का उजमन (उद्यापन) करती है। इस उद्यापन में सवा किलो तिल को गुड़ के साथ मिलाकर तिलकुट बना लिया जाता है। तिलकुट बनाने के बाद उसकी पूजा करने के बाद प्रसाद को अपने सगे-संबंधियों और पास-पड़ोस में वितरित कर दिया जाता है। नवविवाहिता को जिस वर्ष पुत्र की प्राप्ति हो उसी वर्ष से वह सकट चतुर्थी का व्रत रख सकती है। इस व्रत को करने से भगवान गणेश के आर्शीवाद से उसका पुत्र गुणवान और तेजस्वी होता है।

सकट चौथ पर संतान प्राप्ति के लिए करें यह उपाय |

जिन दंपत्तियों को काफी प्रयासों के बाद भी संतान की प्राप्ति न हो रही हो। उन दंपत्ती को सकट चौथ वाले दिन भगवान श्री गणेश को अपनी उम्र के बराबर लड्डू अर्पित करे और उनके सामने आसन लगाकर ‘ऊँ नमो भगवते गजाननाय’ मंत्र का अधिक से अधिक बार जाप करें। ऐसा करने से भगवान गणेश के आर्शीवाद से उनको संतान सुख प्राप्त होता है। अगर दोनों पति-पत्नी साथ बैठकर इस मंत्र का जाप एक साथ करते है तो उसका अधिक फल प्राप्त होता है।

भूलकर भी ना करें ये गलती

गणेश पूजन में तुलसी का प्रयोग वर्जित है। एक पुराणिक कथा के अनुसार तुलसी जी ने गणेश जी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा था जिसे गणेश जी ने ठुकरा दिया था, जिसके बाद तुलसी माता ने गणेश जी को दो विवाह करने का श्राप दे दिया था। गणेश जी ने भी तुलसी माता को एक राक्षस के साथ विवाह होने का श्राप दे दिया था। तब से ही गणेश जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग होना बंद हो गया था।

सकट चौथ वाले दिन महिलाओं को लाल, हरे रंग के वस्त्र पहनकर ही गणेश भगवान की पूजा करनी चाहिए। भूलकर भी इस दिन काले रंग के वस्त्र नहीं धारण करना चाहिए। ऐसा करने से गणेश भगवान नाराज हो जाते हैं।

गणेश जी का वाहन मूषक अर्थात चूहा होता है। ऐसे में सकट चैथ वाले दिन मूषक को भूलकर भी परेशान नहीं करना चाहिए, ना ही मारना चाहिए।

सकट चौथ वाले दिन चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद ही व्रत पूरा होता है। चंद्रमा को जल में दूध और अक्षत डालकर अघ्र्य दिया जाता है। जब आप व्रत का पारण करते समय चंद्रमा को अघ्र्य दे रहे हो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जल की छीटें आपके पैर पर ना पड़े। अगर छीटें पैर पर पड़ जाती है तो इससे चंद्रदेव का अपमान होता है। ऐसे में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

सकट चौथ का व्रत महिलाओं द्वारा संतान प्राप्ति के लिए किया जाने वाला व्रत है। इस व्रत को करने से गौरी पुत्र गणेश की कृपा मिलती है और संतान की खुशहाली, समृद्धि बढ़ती है। आज के लेख में हमने आपको सकट चौथ के व्रत विषयक पूरी जानकारी आपको दी। उम्मीद करते है सकट चौथ के बारे में जो भी प्रश्न आपके मन में थे उनका उत्तर आपको मिल गया होगा।

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नाम से राशि कैसे जाने | Naam Se Rashi Kaise Jane

हिन्दू धर्म में राशि के नाम को लेकर लोगों में बहुत उत्सुकता रहती है। हर व्यक्ति यह जानना चाहता है कि उसकी राशि कौन सी है। राशि दो प्रकार से निकालते है एक जन्म नाम के अनुसार तो दूसरी नाम के अनुसार। आज के लेख में हम आपको नाम के अनुसार अपनी राशि को कैसे पता करें इस विषयक विस्तृत जानकारी देंगे।

नाम से अपनी राशि कैसे पता करें | Naam Se Apni Rashi Kaise Jane

हर व्यक्ति की जिन्दगी में उसके नाम का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है इसलिए बच्चे का नाम रखते समय बहुत ध्यान रखा जाता है। जन्म के समय जो नाम रखा जाता है वह कुंडली में वर्णित होता है लेकिन उस नाम से उसे पुकारा नहीं जाता है। पुकारने वाला नाम अलग होता है जिसे उसके परिजन अपनी पसंद के अनुसार रखते है। इस नाम के अनुसार ही उसकी राशि का निर्धारण होता है। कभी-कभी किसी व्यक्ति के दो नाम भी होते है। घर का नाम अलग और बाहर का नाम अलग। इस तरह नाम के अनुसार उसकी दो राशियां हो जाती है। आपके नाम के पहले अक्षर के आधार पर ही आपकी राशि का निर्धारण होता है। ज्योतिष में 12 राशियां बताई गई है।

बारह राशियां निम्न है | 12 Zodiac Signs in Hindi | Zodiac Sign by Name

नाम का अक्षर राशि स्वामी
चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो और आमेष राशिमंगल
ई, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे और वोवृषभ शुक्र
का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को और हमिथुनबुध
ही, हू, हे, हो, डा, डी, डु, डे और डोकर्क राशिचन्द्रमा
मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टेसिंह राशिसूर्य
ढो, प, पी, पू, ष, ण, ठ, पे और पोकन्या राशिबुध
र, री, रू, रे, रो, ता, ति, तू और तेतुला राशिशुक्र
तो, न, नी, नू, ने, नो, या, यि और यूवृश्चिक राशि मंगल
य, यो, भा, भि, भू, ध, फा, ढ और भेधनु राशिबृहस्पति
भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा और गीमकर राशि शनि
गू, गे, गो, स, सी, सू, से, सो और दकुंभ राशिशनि
दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, च और चीमीन राशिब्रहस्पति

मेष राशि |

इस राशि का चित्र एक भेड़ समान होता है। इस राशि का स्वामी मंगल होता है। मेष राशि राशि ज्योतिष में पहली राशि होती है। यदि किसी व्यक्ति के नाम की शुरूआत चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो और आ अक्षर से शुरू हो तो उस व्यक्ति की राशि मेष होगी।

वृषभ राशि:

इस राशि का चित्र बैल होता है और इस राशि का स्वामी शुक्र है। वृषभ राशि द्वितीय राशि होती है। जिस व्यक्ति के नाम की शुरूआत ई, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे और वो हो तो उसकी राशि वृषभ होती है।

मिथुन राशि |

इस राशि के चित्र में नारी और पुरुष का जोड़ होता है, इस चित्र में नारी हाथ में वीना धारण किये हुए होती है। इस राशि का स्वामी बुध होता है। यह तृतीय राशि होती है। यदि किसी व्यक्ति के नाम की शुरूआत का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को और ह से हो तो उस व्यक्ति की राशि मिथुन होती हैं।

कर्क राशि:

इस राशि का स्वरूप केकड़े जैसा होता है। इस राशि का स्वामी चन्द्रमा होता है। यह राशि चैथी राशि होती है। यदि किसी व्यक्ति के नाम की शुरूआत ही, हू, हे, हो, डा, डी, डु, डे और डो अक्षर से हो, तो उस व्यक्ति की राशि कर्क होती है।

सिंह राशि:

इस राशि का चिन्ह शेर जैसे होता है। इस राशि का स्वामी सूर्य होता है। यह पांचवी राशि है। जिस जातक के नाम की शुरूआत मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे से तो उस जातक की राशि सिंह होती है।

कन्या राशि:

इस राशि के चित्र में एक कन्या हाथ में फुल लिए दिखाई देती है। इस राशि का स्वामी बुध होता है। यह छठी राशि है। जिन लोगों का नाम ढो, प, पी, पू, ष, ण, ठ, पे और पो से शुरू होता है, उन लोगों की राशि कन्या होती है।

तुला राशि:

इस राशि के चिन्ह में एक पुरुष होता है, जो अपने हाथ में तराजू लिए खड़ा है। इस राशि का स्वामी शुक्र होता है। यह सातवीं राशि है। जिन जातकों के नाम का पहला अक्षर र, री, रू, रे, रो, ता, ति, तू और ते अक्षर से हो तो उनकी राशि तुला होती है।

वृश्चिक राशि:

इस राशि की आकृति एक बिच्छू के समान होती है। इस राशि का स्वामी मंगल होता है। यह आठवीं राशि है। जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर तो, न, नी, नू, ने, नो, या, यि और यू हो, उसकी राशि वृश्चिक होती है।

धनु राशि:

इस राशि के चित्र में एक पुरुष अपने हाथ में धनुष लिए दिखता है। इस राशि का स्वामी बृहस्पति होता है। यह नौवीं राशि है। जिन व्यक्तियों के नाम का पहला अक्षर य, यो, भा, भि, भू, ध, फा, ढ और भे से शुरू होता है, उनकी राशि धनु होती है।

मकर राशि:

इस राशि के चित्र में हिरण का मुख दिखाई देता है। इस राशि का स्वामी शनि होता है। यह दसवीं राशि है। जिन जातकों के नाम का पहला अक्षर भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा और गी अक्षर से शुरू हो, उनकी राशि मकर होती है।

कुंभ राशि:

इस राशि की आकृति में पुरुष अपने कंधे पर कलश लिए होता है। इसका स्वामी शनि होता है। यह ग्यारवीं राशि है। जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर गू, गे, गो, स, सी, सू, से, सो और द अक्षर से शुरू होता है उसकी राशि कुंभ होती है।

मीन राशि:

इस राशि की आकृति में दो मछलियां होती है, जो इस प्रकार होती है कि एक की पूंछ दूसरी मछली के मुंह में होती है। इस राशि का स्वामी ब्रहस्पति होता है। यह बारहवीं राशि होती है। जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, च और ची अक्षर से शुरू होता है, उनकी राशि मीन होती है।

इस तरह आप अपने नाम के पहले अक्षर को देखकर नाम से अपनी राशि जान सकते है और अपना राशिफल देख सकते है। हर राशि का राशिफल हर दिन अलग-अलग होता है। आज के समय में लोगों में अपनी राशि के अनुसार राशिफल जानने की उत्सुकता रहती है। हर रोज सोशल मीडिया, अखबार और टीवी पर कई ज्योतिषाचार्य राशिफल बताते है। यदि आपको अपनी राशि का नाम पता है तो आप उसके अनुसार अपना राशिफल की जानकारी हो जायेगी। नाम से राशि में एक बड़ी दिक्कत होती है क्योंकि अगर एक व्यक्ति के दो नाम होंगे तो उनकी राशि भी अलग-अलग होगी। जैसे अगर किसी व्यक्ति के घर का नाम गोविन्द और बाहर का नाम आशुतोष है तो गोविन्द नाम से उसकी राशि कुंभ हुई जबकि आशुतोष नाम से उसकी राशि मेष हुई। इस तरह एक ही व्यक्ति के नाम के अनुसार दो अलग-अलग राशि हुई।

राशि का महत्व

हिंदू धर्म में अनेक संस्कारों जैसे-यज्ञोपवित्र, विवाह आदि के समय राशि की बहुत बड़ी भूमिका होती है। जब कभी भी किसी हिंदू व्यक्ति को विवाह करना होता है तो उसकी और उसकी होने वाली पत्नी की राशि मिलाई जाती हैं। इन दोनों राशियां का आपस में मेल करना आवश्यक होता है तभी वह विवाह सफल साबित होता है। अगर राशि में आपस में मैत्री नहीं होती तो इसका मतलब होता है कि भविष्य में अच्छे वैवाहिक जीवन का संकेत नहीं है तो ज्योतिषाचार्य ऐसी शादी नहीं करने की सलाह देते है। शादी का दिन निर्धारित करने के लिए भी कुंडली का महत्व होता है लेकिन यदि किसी व्यक्ति की कुंडली नहीं है तो पंडित राशि के नाम के अनुसार लड़का और लड़की की शादी का दिन तय कर देते है। इस तरह शादी का दिन निकालने में भी नाम का महत्ता होती है।

नाम से ही व्यक्ति की पहचान बनती है और नाम का हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ता है। इन बारह राशियों का हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। बारह राशियों के अनुसार ही हमारे जीवन के गुण, अवगुण और चरित्र का निर्माण होता हैं।

राशिफल का महत्व

राशि के अनुसार ही राशिफल देखा जा सकता है। राशिफल दैनिक, मासिक और वार्षिक होता है। आपकी राशि को देखकर ही ज्योतिषाचार्य आपके विषय में सम्पूर्ण जानकारी देते है। वह ना सिर्फ वर्तमान में क्या चल रहा है। इसके विषय में बताते है बल्कि भविष्य में आपके साथ क्या होने वाला है इसके संबंध में भी आपको जानकारी देते है।

अगर आप किसी ज्योतिषी को अपना नाम बताते तो कुछ ही मिनटो में वह आपके नाम के प्रथम अक्षर से यह पता लगा लेता है कि आपकी राशि क्या है, आपका जन्म नक्षत्र क्या है, नक्षत्र का चरण कौन सा है। इतना ही नहीं वह यह भी बता देता है कि आपके जन्म के समय कौन सी दशा चल रही थी। उस दशा का भोगकाल कितना था। वर्तमान में आपकी राशि पर कौन सी दशा चल रही है, वह कब तक चलेगी आदि के बारे में विस्तार से बता देता है।

राशियां और नक्षत्र

ऊपर के लेख में हमने बारह राशियों के बारे में जाना। अब उन राशियों में जो नक्षत्र होते है उनके बारे में जानते है। ज्योतिष में 12 राशियां में 27 नक्षत्र बताये गये हैं। हर राशि में 2 या 3 नक्षत्र आते हैं। हर नक्षत्र के 4 भाग होते हैं। नक्षत्र के हर भाग को चरण बताया गया कहते है और हर चरण में नाम के 4 अक्षर विद्यमान होते हैं।

मेष राशि में अश्विनि, भरणी, कृतिका आते है। वृष राशि में कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा नक्षत्र जबकि मिथुन राशि में मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु आते है। कर्क राशि में पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा नक्षत्र जबकि सिंह राशि में मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र आते है। कन्या राशि में उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा नक्षत्र जबकि तुला राशि में चित्रा, स्वाती, विशाखा नक्षत्र आते है। वृश्चिक राशि में विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा नक्षत्र जबकि धनु राशि में मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र आते है। मकर राशि में उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा नक्षत्र, कुंभ राशि में घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र मीन राशि में पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती नक्षत्र आते हैं।

इन नक्षत्रों की स्थिति देखकर ही कोई ज्योतिषी आपका भविष्यफल बताते है। नाम के अनुसार राशि कैसे पता करें इस संबंध में हमने आपको आज के लेख में बताने की पूरी कोशिश की। उम्मीद करते है इस लेख को पढ़कर आप आसानी से अपने नाम के अनुसार राशि को पता कर सकेंगे। आपको यह लेख कैसा लगा कमेंट बाॅक्स में कमेंट करके अवश्य बताये। हमें आपके कमेंट का इंतजार रहेगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगे तो अपने दोस्तों, परिजनों के साथ इसे सोशल मीडिया पर साझा अवश्य करें। ऐसे ही जानकारीपूर्ण लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

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पौष पूर्णिमा कब है | Paush Purnima Vrat

पौष पूर्णिमा विशेष: पौष पूर्णिमा पर जरूर करें ये उपाय, जाग उठेगा सोया हुआ भाग्य

हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का बहुत महत्व है। पूर्णिमा को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, कुछ लोग पूर्णमासी तो कुछ लोग इसे पौर्णिसी के नामों से भी पुकारते हैं। हर माह के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा कहलाती है। इस तरह 12 माह में 12 पूर्णिमा पड़ती है। इसे हिन्दू महीनों के हिसाब से अलग-अलग नाम दिये गये है।

पूर्णिमा की रात वह रात होती है जब चंद्रमा अपनी संपूर्ण 16 कलाओं से युक्त होकर पृथ्वी पर अपनी चांदनी बिखेरता है। पूर्णिमा वाले दिन चन्द्रमा काफी प्रभावशाली होता है जिसका मानव के मन और मस्तिष्क पर विशेष प्रभाव पड़ता है। नया साल 2023 शुरू हो चुका है। ऐसे में सभी लोग वर्ष की पहली पूर्णिमा के बारे में जानना चाहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि नए साल की पहली पूर्णिमा होगी। यह पौष पूर्णिमा कहलायेगी। पूर्णिमा की रात चंद्रमा और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। आज के लेख में हम जानेंगे कि पौष पूर्णिमा कब है, पूर्णिमा के दिन क्या है पूजा का शुभ-मुहूर्त, पूर्णिमा के दिन कैसे पूजा करें आदि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

पौष पूर्णिमा कब है | Paush Purnima Kab Hai 2023

साल 2023 की पहली पूर्णिमा 06 जनवरी 2023, दिन शुक्रवार को मनाई जायेगी। पौष माह भगवान सूर्य देव का माह होता है। पूर्णिमा चंद्रमा की तिथि है। ऐसे में सूर्य और चंद्रमा का अद्भूत संगम पौष पूर्णिमा की तिथि को ही होता है। पौष पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों की पूजा करने से मनोवांछित कामना की पूर्ति होती है व जीवन में चली आ रही हर बाधा का निवारण होता है। पौष पूर्णिमा शुक्रवार को पड़ने के कारण इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने से भी आपके जीवन में चली आ रही सभी बाधाएं दूर होगी। पौष पूर्णिमा के दिन स्नान व दान का बड़ा महत्व होता है। इस दिन दान करने से मनुष्य के इस लोक के साथ-साथ परलोक में भी कल्याण होता है।

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पौष पूर्णिमा शुभ मुहूर्त | Paush Purnima Timing

पौष पूर्णिमा दिनांक 06 जनवरी 2023 को रात 02 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 07 जनवरी 2023 को सुबह 04 बजकर 37 मिनट पर होगा। हिन्दू धर्म में किसी भी तिथि का मान उदया तिथि को देखकर ही किया जाता है। ऐसे में पौष पूर्णिमा इस बार 06 जनवरी को ही मनाई जाएगी।

पौष पूर्णिमा पर इस बार तीन शुभ योग भी पड़ रहे है। ब्रह्म योग, इंद्र योग और सर्वार्थ सिद्धि योग। इन शुभ योगों में पूजा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इंद्र योग 06 जनवरी 2023, सुबह 08 बजकर 11 मिनट से प्रारम्भ होकर 07 जनवरी 2023, सुबह 08 बजकर 55 मिनट तक रहेगा। वहीं ब्रह्म योग 05 जनवरी 2023, सुबह 07 बजकर 34 मिनट से शुरू होकर 06 जनवरी 2023, सुबह 08 बजकर 11 मिनट तक तथा सर्वार्थ सिद्धि योग- सुबह 12 बजकर 14 मिनट से लेकर 7 दिसंबर सुबह 06 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। ऐसा माना जाता है कि शुभ योग में पूजा करने से पूजा का दोगुना लाभ मिलता है। इसलिए पूर्णिमा तिथि पर शुभ योग में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करना श्रेयस्कर होगा।

पौष पूर्णिमा पर इस तरह करें पूजा | Paush Purnima Pooja Kaise Kare

पौष पूर्णिमा वाले दिन ब्रहम मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें। अगर ऐसा संभव ना हो तो नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर सभी पवित्र नदियों का ध्यान करके स्नान करें। स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनकर पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लें। तत्पश्चात तांबे के लोटे में जल भरकर सूर्य देव को अघ्र्य दें। इसके बाद श्री हरि भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी की पूजा करें। भगवान को पुष्प, धूप, दीप, गंध अर्पित करें। उसके बाद भगवान सत्यनारायण भगवान की कथा करें। कथा समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु की आरती करें और पंचामृत, फल, मिठाई का भोग भगवान विष्णु को लगाएं। संध्या काल में चंद्रमा का दर्शन करें और उन्हें कच्चे दूध में चीनी व चावल मिलाकर अर्पित करें और रात्रिकाल में माता लक्ष्मी की पूजा करें।

पौष पूर्णिमा व्रत में क्या खाये | Paush Purnima Vrat Ke Niyam

पौष पूर्णिमा का व्रत करने वाले जातक को सूर्योदय से लेकर पूर्णिमा की समाप्ति तक अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। अगर आप निराजल व्रत करने में असमर्थ हैं तो दिन में एक बार फल और दूध का सेवन कर सकते हैं। कई बार फलाहार ना करें क्योंकि इससे व्रत की पवित्रता भंग होती है। किसी भी प्रकार के अनाज, दालें और नमक का सेवन भी व्रत के दौरान नहीं करना चाहिए।

पौष पूर्णिमा का महत्व | Paush Purnima Ka Mehetva

पौष पूर्णिमा का शास्त्रों में बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा का पाठ करने वाले व्यक्ति को अपने जीवन के सभी संकटों से छुटकारा मिलता है और पाठ करने वाले श्रृद्धालु को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पौष पूर्णिमा के दिन यदि कोई मनुष्य किसी पवित्र नदी जैसे गंगा, यमुना, त्रिवेदी आदि में जाकर डुबकी लगाता है तो उसे पापों से छुटकारा मिलता है और मोक्ष प्राप्ति का द्वार खुल जाता है। पौष पूर्णिमा का दिन मनुष्य को अपने भीतर के अंधकार को समाप्त करने और आत्मज्ञान के मार्ग पर चलने का एक अवसर है।

पौष पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। ऐसे में इस दिन किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन अवश्य कराएं। इस दिन कंबल, गुड़, तिल जैसी चीजों का दान करना भी शुभ कल्याणकारी माना जाता है।

पौष पूर्णिमा के उपाय | Paush Purnima Ke Upaay

पौष पूर्णिमा पर लोग अपनी किस्मत चमकाने को कई उपाय करते है। इन उपायों को करने से भगवान श्री हरि विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी का भी आर्शीवाद प्राप्त होता है। आईये हम इन्हीं उपायों को जानते है-

पौष माह में सर्दी जोरों पर रहती है। ऐसे में इस दिन सर्दी से बचाव वाली चीजे जैसे गर्म कपड़े, कंबल आदि को किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को अवश्य दान करना चाहिए। आप अनाज, फल, सब्जी का दान भी कर सकते हैं। अगर आप दान करने में समर्थ नहीं हैं तो आप किसी मंदिर में जाकर अपनी इच्छा अनुसार रुपए भी दान कर सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने वाले व्यक्ति को अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

घर में किसी कार्य में बाधा आ रही हो, तमाम प्रयास करने के बाद भी कार्य में सफलता ना मिल रही हो तो पौष पूर्णिमा के दिन घर के मुख्य द्वार पर अशोक या आम के पत्ते का तोरण बनाकर घर के दरवाजे पर लगाएं। ऐसा करने से माता लक्ष्मी की कृपा बरसती है और बिगड़ा कार्य बन जाता है।

पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी चमक बिखेरता है। इस दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व होता है। रात्रि जागरण करने वाले श्रद्धालु को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आर्शीवाद प्राप्त होता है। पुराणों में ऐसी मान्यता है कि पूर्णिमा की रात जो भी मनुष्य सो जाता है तो उसका भाग्य भी सो जाता है। हजारों वर्षों की तपस्या के बराबर फल की प्राप्ति इस रात जागरण करने से मिलती है।

पूर्णिमा के दिन विष्णु सहसत्रनाम और कनकधारा स्रोत का पाठ करने से आर्थिक समस्या दूर होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।

पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की सच्चे मन से पूजा-पाठ करने से सभी संकट और बाधाओं से छुटकारा मिलता है। इस दिन माता लक्ष्मी के किसी भी मंत्र का जाप करने वाले जातक पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है।

पौष पूर्णिमा पर क्या न करें | Paush Purnima Me Kya Nahi Karna Chahiye

पौष पूर्णिमा पर कुछ कार्यों को करने से जहां भगवान श्री हरि और माता लक्ष्मी का आर्शीवाद प्राप्त होता है। वही कुछ ऐसे कार्य भी होते है जिनको पूर्णिमा के दिन करने की मनाही होती है। यदि आप इन कार्यों को करते हैं तो माता लक्ष्मी आपसे नाराज हो जाती है और आपको आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आईये जानते है कि पूर्णिमा के दिन किन कार्यों को करना वर्जित होता है-

पूर्णिमा वाले दिन शाम को या रात को घर में झाडू नहीं लगाना चाहिए। झाड़ू को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में शाम को झाडू लगाने से माता लक्ष्मी नाराज हो जाती है और उनके क्रोध का सामना करना पड़ता है। सूर्यास्त के बाद भूलकर भी घर में झाडू नहीं लगाना चाहिए।

पूर्णिमा वाले दिन माता लक्ष्मी को भूलकर भी तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाने चाहिए। तुलसी जी भगवान श्री हरि विष्णु प्रिया है लेकिन माता लक्ष्मी को अप्रिय है। ऐसे में यदि आप माता लक्ष्मी को तुलसी के पत्ते अर्पित करते हैं तो आपकी तरक्की बाधित होगी।

पूर्णिमा वाले दिन भूलकर भी आपको तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे माता लक्ष्मी नाराज हो जाती है और आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इस दिन किसी गरीब, असहाय व्यक्ति को अपशब्द या बुरा बोल भी नहीं बोलना चाहिए।

पूर्णिमा की रात में दही का सेवन न भूलकर भी ना करें। रात में दही का सेवन करने से सेहत खराब होती है। साथ ही धन की हानि भी हो सकती है।

पूर्णिमा या किसी भी दिन यदि आप अपने घर के बड़े-बुजुर्गो से व्यर्थ का वाद-विवाद करते है। उनका सम्मान नहीं करते है तो आपको चंद्र दोष का सामना करना पड़ेगा। चंद्र दोष के चलते आपकी मानसिक व आर्थिक समृद्धि बाधित होती है। चंद्र दोष को दूर करने के लिए पूर्णिमा की तिथि को चंद्रमा की विशेष पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से चंद्र दोष दूर होता है। चंद्रमा मन का कारक होता है। यदि चंद्रमा प्रबल होगा तो आपकी सुख-समृद्धि में वृद्धि होगी।

पूर्णिमा तिथि के देव चंद्रमा हैं और उनके आराध्य हैं भगवान शिव। पूर्णिमा वाले दिन इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि आप भगवान भोलेनाथ शिव शंकर का किसी भी तरह से अपमान ना करें। अगर भूलवश आपसे ऐसा हो जाता है तो आपको भोलेनाथ के कोप का भाजन बनना पड़ेगा।

पूर्णिमा की तिथि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित तिथि है। इस दिन श्री हरि के साथ माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है। पूर्णिमा का व्रत करने वाले जातक पर भगवान विष्णु और चंद्रमा की कृपा प्राप्त होती है और व्रत करने वाले जातक की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। मित्रों, आज के लेख में हमने पौष पूर्णिमा विषयक सारी जानकारी आपको प्रदान की। उम्मीद करते है उक्त जानकारी आपके जीवन के लिए कल्याणकारी साबित होगी। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ सोशल मीड़िया पर साझा अवश्य करें, जिससे हिन्दू धर्म के व्रत, त्योहारों का व्यापक प्रचार-प्रसार हो। ऐसे ही अन्य धार्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

तुलसी पूजन दिवस विशेष: बड़ी गुणकारी है तुलसी की पत्ती, जानिए क्यों मुरझाता है तुलसी का पौधा | Tulsi Diwas Kab Hai

हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि तुलसी के पौधे में माता लक्ष्मी स्वयं विराजमान होती है। इसे घर में लगाना हर दृष्टिकोण से शुभ माना जाता है। जिन घरों में तुलसी का पौधा होता है उन घरों में शुभता आती है। हिन्दू धर्म में तुलसी को माता कहा जाता है। पुराणों में तुलसी पूजा का बहुत महत्व है। हर वर्ष दिसम्बर माह की 25 तारीख को तुलसी पूजन दिवस मनाया जाता है। वैसे तो हर रोज ही तुलसी जी की पूजा करनी चाहिए लेकिन अगर आप 25 दिसम्बर को विशेष तुलसी पूजा करते है तो आपके घर में सुख समृद्धि आती है और घर में सकारात्मक वातावरण का संचार होता है। आईये के लेख में हम 25 दिसम्बर को किस तरह तुलसी पूजा करें, तुलसी पूजा का महत्व व अन्य सभी बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

तुलसी पूजन दिवस कब से प्रारम्भ हुआ | Tulsi Pujan Diwas Kab Shuru Hua | तुलसी दिवस क्यों मनाया जाता है?

पुरातन काल से ही तुलसी पूजन की परंपरा चली आ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी के पौधे में मां लक्ष्मी का वास होता है। पिछले कुछ सालों से भारत में तुलसी पूजन एक खास दिन को मनाने की परंपरा शुरू की गई है। इस परंपरा की शुरूआत 2014 से हुई। इसके बाद कई बुद्धिजीवी और राजनीतिज्ञ लोग भी इसके समर्थन में आये गये। तब से लगातार 25 दिसंबर के दिन तुलसी पूजन दिवस को मनाने की शुरूआत हो गई।

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इस तरह करें तुलसी की पूजा | Tulasi Jayanti Par Kaise Kare Pooja

तुलसी पूजन दिवस के दिन ब्रहम मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के पश्चात स्नान करके साफ कपड़े पहने। तत्पश्चात तांबे के लोटे में जल भरकर तुलसी जी के पौधे में चढाएं। जल चढ़ाते समय निम्न मंत्र का जाप करें-

महाप्रसादजननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी।
आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

इसके बाद तुलसी जी में सिंदूर अर्पित करें व फूल चढ़ाए। तुलसी जी को धूप, दीप दिखाएं। तुलसी माता की आरती करें। आरती करने के बाद तुलसी की माला से जप करके हुए माता तुलसी का ध्यान करें और अपनी उन्नति के लिए उनसे प्रार्थना करें। इसके बाद तुलसी जी की 7, 11, 21 या अपनी सुविधानुसार परिक्रमा करें। तुलसी माता के विभिन्न नाम वृंदा, वृंदावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी का भी उच्चारण पूजा के दौरान करना चाहिए।

तुलसी के प्रकार | Tulsi Kitne Prakar Ki Hoti Hai

तुलसी दो प्रकार की होती है। रामा तुलसी और श्यामा तुलसी। रामा तुलसी हरे रंग की होती है जिसे हम अपने घर में लगाते है जबकि श्यामा तुलसी काले रंग की होती है जिसका आयुर्वेद में दवाई बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।

तुलसी पूजा का महत्व | Tulsi Puja Ka Mehtva | Tulsi Ka Mahatva in Hindi

तुलसी के पौधे की पत्तियां धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से मनुष्य पर प्रभाव डालती है। जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां सम्पन्नता का वास होता है क्योंकि तुलसी जी में माता लक्ष्मी का स्वरूप होता है। साथ ही तुलसी जी भगवान विष्णु की प्रिय है। इस दृष्टिकोण से हर परिवार को तुलसी का पौधा जरूर लगाना चाहिए।

25 दिसंबर के दिन तुलसी पूजन करने से जीवन में चली आ रही बड़ी से बड़ी परेशानी दूर होती है। आज के दिन यदि आप विधि विधान से माता तुलसी का पूजन करते है तो माता लक्ष्मी के साथ जगत के पालनहार भगवान विष्णु का आर्शीवाद भी आपको प्राप्त होता है। विधिविधान सें तुलसी पूजा करने से भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होकर आपकी मनोवांछित इच्छा पूर्ण होती है। तुलसी की महत्ता इसी बात से सिद्ध है कि भगवान के प्रसाद में तुलसी दल जरूर डाला जाता है। तुलसी के पत्ते के बिना भगवान श्री हरि विष्णु भगवान जी भोग स्वीकार नहीं करते हैं।

जिस घर में तुलसी का पौधा होता है उस घर में धन-धान्य, ऐश्वर्य की कमी नहीं होती है। तुलसी दल में नियम से धूप व आरती जरूर करना चाहिए।

25 दिसम्बर को तुलसी पूजन करना किसी धार्मिक तीर्थ स्थल की यात्रा से भी ज्यादा पुण्य का लाभ प्राप्त होता है। तुलसी पूजा करने से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य का लाभ प्राप्त होता है। आज के दिन तुलसी माता का स्मरण करके सच्चे मन से जो भी मांगते है, तुलसी माता की कृपा से आपकी मनोवांछित इच्छा पूर्ण होती है।

पुराणों में ऐसा वर्णित है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है उस घर में स्वयं लक्ष्मी जी रहती है। अगर आप विधिविधान से रोज माता तुलसी की पूजा करते हैं तो आपके घर में यमदूत का प्रवेश नहीं होगा।

स्त्रियों को प्रतिदिन तुलसी जी की पूजा अवश्य करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि जो महिला रोज नियम से तुलसी माता का पूजन करती है व तुलसी के पौधे में जल चढ़ाती है और दीपक जलाती है। उसके घर में सकारात्मक वातावरण बना है और उस महिला के सौभाग्य में वृद्धि होती है।

शीत ऋतु में तुलसी के पौधे को किसी चुनरी से अवश्य ढ़क देना चाहिए क्योंकि इस मौसम में ओस पड़ती है जिसके चलते तुलसी का पौधा मुरझा सकता है।

सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण पड़ने पर अनाज में तुलसी दल डाल दिया जाता है जिससे वह अशुद्ध नहीं होता है।

तुलसी दल है बहुत उपयोगी | तुलसी का औषधीय महत्व

तुलसी के पौधे का जितना धार्मिक दृष्टि से महत्व है उतना ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी तुलसी का पौधा बहुत उपयोगी है। अनेक बीमारियों में तुलसी दल कारगर साबित होता है। खांसी, जुकाम, बुखार होने पर तुलसी की पत्तियां का काढ़ा बनाकर पीने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है। पाचन की समस्या को भी तुलसी की पत्ती चबाने से लाभ होता है। तुलसी की पत्तियों में एक विशिष्ट क्षार होता है जिससे मुँह से आने वाली दुर्गन्ध दूर होती है। अगर आप रोज तुलसी के पत्ते चबाते है तो आपके मुंह की दुर्गन्थ दूर हो जाती है।

रोज सुबह खाली पेट तुलसी का रस पीने अथवा इसकी पत्तियों को चबाकर खाने से स्मरण शक्ति तीव्र होती है।
जिस घर में तुलसी का पौधा रहता है वहां का वातावरण शुद्ध रहता है और उस घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
तुलसी के पत्ते से निकला हुआ जल यदि कोई मनुष्य अपने सिर पर लगाता है तो इतना करने मात्र से उस मनुष्य को गंगास्नान के बराबर पुण्य का लाभ प्राप्त होता है।

अगर किसी जातक की कुंडली में ग्रह दोष हो तो उसे तुलसी की जड़ की नियमित पूजा करनी चाहिए। नियम से ऐसा करने से ग्रह दशा बदलती है तो ग्रह दोष समाप्त हो जाता है।

अगर आपके पास धन की तंगी है, आर्थिक परेशानियां घेरे रहती है तो आप तुलसी की जड़ को किसी कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी में रखे, ऐसा करने से चली आ रही आर्थिक समस्या खत्म होगी।

श्राद्ध, यज्ञ, पूजा-पाठ, कथा आदि कार्यों में तुलसी की एक पत्ती का उपयोग महान पुण्य देने वाला होता है। तुलसी का नाम इतना पवित्र है कि मात्र उसके उच्चारण से ही मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

तुलसी पूजन में न करे ये गलती | Tulsi Puja Ke Niyam

तुलसी पूजन करते समय कुछ सावधानियों को जरूर ध्यान रखना चाहिए। नियम से तुलसी के पौधे में दीपक जलाना चाहिए लेकिन ध्यान रहे दीपक को तुलसी के पेड़ में नहीं रखना चाहिए बल्कि जमीन पर अक्षत रखकर उस पर रखना चाहिए। तुलसी पूजन करते समय अपने सर को रूमाल या कपड़े से ढक लेना चाहिए।

रविवार व एकादशी के दिन तुलसी के पौधे का ना तो स्पर्श करना चाहिए ना ही तुलसी जी को तोड़ना चाहिए। मान्यता है कि एकादशी के दिन माता तुलसी का शालिग्राम के साथ विवाह हुआ था। माता तुलसी हर एकादशी को भगवान श्री हरि विष्णु भगवान के लिए निर्जल व्रत रखती है इसलिए इस दिन तुलसी के पौधे में जल नहीं अर्पित करना चाहिए। रविवार को तुलसी जी में जल तो चढ़ा सकते है लेकिन तुलसी के नीचे दीपक नहीं जलाना चाहिए।

भगवान गणेश और माता दुर्गा की पूजा में तुलसी वर्जित होती है। उनकी पूजा में तुलसी का उपयोग नहीं करना चाहिए।
तुलसी जी की पूजा में शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। हमेशा यह ध्यान रखे जहां तुलसी का पौधा लगा हो वहां गंदगी ना होने पाये।

क्यों मुरझाता है तुलसी का पौधा | Tulsi Ka Paudha Murjha Jaaye to Kya Karen

यह प्रकृति की खूबी होती है कि वह आने वाले किसी भी खतरे को पहले से ही भाप लेती है लेकिन शायद आपको यह ना पता हो कि पेड़-पौधों में भी एक विशेषता होती है कि वह भी आने वाले संकट का आपको संकेत दे देती है। अगर आपने इसे भांप लिया तो घर के सदस्यों पर आने वाले कष्टों को पहले ही टाल सकते है। तुलसी का पौधा भी आपको आने वाले संकट से पहले ही सचेत कर देता है। कई बार हम तुलसी के पौधे में नियम से रोज जल चढ़ाते है, खाद देते है। फिर भी उसका पौधा अचानक मुरझाने लगता है। ऐसा होना परिवार के किसी सदस्य पर संकट को इंगित करता है। चूंकि तुलसी के पौधे में माता लक्ष्मी का वास होता है। ऐसे में घर की लक्ष्मी जाने लगती है, दरिद्रता का प्रवेश होने लगता है। ज्योतिष में बताया गया है कि ऐसा बुध ग्रह की वजह से होता है क्योंकि बुध का रंग हरा होता है और वह पेड़-पौधों का भी कारक माना जाता है। घर में सकारात्मक वातावरण होने पर जहां पेड़-पौधे में वृद्धि होने लगती है। वहीं घर में अगर लड़ाई झगड़े या नकारात्मक माहौल हो तो तुलसी का पौधा मुरझाने लगता है।

शीत ऋतु (सर्दियों) में तुलसी के पौधे को किसी चुनरी से अवश्य ढ़क देना चाहिए. क्योंकि इस मौसम में ओस पड़ती है और जिसके चलते तुलसी का पौधा मुरझा सकता है।

निष्कर्ष

तुलसी के पौधे का न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से बड़ा महत्व है। तुलसी पूजन से न सिर्फ घर का वातावरण शुद्ध होता है बल्कि सकारात्मक ऊर्जा का भी संचार होता है। आज के लेख में हमने आपको तुलसी पूजन के बारे में सारी जानकारी देनी की कोशिश की। अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर जरूर करें और इसी प्रकार के अन्य धार्मिक और उद्देश्यपरक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

पितृ शांति के लिए खास है पौष अमावस्या का दिन, इन उपायों को करने से मिलेगा पितरों का आर्शीवाद | Paush Amavasya Kab Hai

पितृ शांति के लिए खास है पौष अमावस्या का दिन, इन उपायों को करने से मिलेगा पितरों का आर्शीवाद

हिन्दू धर्म में हर दिन कोई न कोई तिथि होती है। इन तिथियों का अलग-अलग महत्व होता है। इन्हीं तिथियों में से एक है अमावस्या तिथि। अमावस्या का दिन वह दिन होता है जब आकाश में घना अंधेरा होता है जब चन्द्रमा पूर्ण रूप से दिखाई नहीं देता है। अमावस्या की रात काली रात होती है। हर 30 दिन बाद अमावस्या आती है। पंचांग के अनुसार हर माह में दो पक्ष होते हैं, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। अमावस्या तिथि कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन पड़ती है। पौष मास (Paush Month) में पड़ने वाली अमावस्या को पौष अमावस्या कहा जाता है। ये साल 2022 की अंतिम अमावस्या भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पौष अमावस्या का बहुत महत्व है। अमावस्या पर पितृ शांति और काल सृप दोष निवारण के लिए पूजा-पाठ की जाती है। आज के लेख में पौष अमावस्या पर किस तरह पूजा-पाठ करें, पौष अमावस्या का महत्व और उसके उपायों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

पौष अमावस्या कब है | पौष अमावस्या 2022 | Paush Amavasya 2022 Date and Time

पौष अमावस्या 23 दिसंबर, 2022, दिन शुक्रवार को मनाई जायेगी। पौष अमावस्या 22 दिसंबर, 2022 को शाम 07 बजकर 13 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 23 दिसंबर 2022 को दोपहर 03 बजकर 48 मिनट तक रहेगी। ऐसे में इस शुभ मुहूर्त अमावस्या में पूजा करना श्रेष्ठ होता है। पौष अमावस्या के दिन वृद्धि योग भी पड़ रहा है। शास्त्रों में वर्णित है कि वृद्धि योग में किसी भी कार्य को करने से उस कार्य में वृद्धि होती है और उस कार्य में बढ़ोत्तरी होती है। वृद्धि योग 23 दिसंबर को दोपहर 1 बजकर 42 मिनट से 24 दिसंबर सुबह 09 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।

अमावस्या तिथि को दान, पुण्य करना तथा पितरो के निर्मित तर्पण करना शुभ माना जाना है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, अमावस्या तिथि का धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व है क्योंकि अमावस्या तिथि के दिन स्नान-दान व कई अन्य धार्मिक कार्यों को किया जाता है। साथ ही इस दिन पितृ तर्पण भी किया जाता है।

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Is post me apko bataya gaya hai ki Paush Amavasya Kab Hai. Paush Amavasya list bhi batai gai hai

पौष अमावस्या पूजन विधि | Paush Amavasya Pooja Vidhi

पौष अमावस्या के दिन प्रातःकाल उठकर किसी पचित्र नदी, जलाशय में जाकर स्नान करना चाहिए। अगर किसी नदी में जाकर स्नान न कर सके तो घर में नहाने वाले पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद तांबे के बर्तन में शुद्ध जल लेकर उसमें लाल चंदन और लाल रंग के फूल डालकर सूर्य देव को अघ्र्य देना चाहिए क्योंकि पौष माह (Paush Mahina) में सूर्यदेव की उपासना का विशेष महत्व होता है। सूर्यदेव को अघ्र्य देने के बाद पितरों का तर्पण करना चाहिए। अगर आप चाहे तो पितरों के निर्मित इस दिन उपवास भी रख सकते हैं। पुराणों में वर्णित है कि अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। .पौष अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा और तुलसी के पौधे की परिक्रमा करनी चाहिए। पीपल के पेड़ में देवताओं का निवास होता है। ऐसे में अमावस के दिन पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाना सर्व हितकारी होता है।

पौष अमावस्या का महत्त्व | Paush Amavasya Ka Mehtva

पौष अमावस्या पर पितरों का श्राद्ध, तर्पण करने का बड़ा महत्व है, इसलिए इसे छोटी श्राद्ध भी कहते है। इस दिन ब्राहमणों को भोजन कराने से पितरों का आर्शीवाद प्राप्त होता है और कुंडली में अगर पितृ दोष हो तो वह समाप्त हो जाता है। पौष अमावस्या के दिन नदी स्नान के बाद तिल तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
पौष अमावस्या के दिन गरीबों और जरूरतमंद को अपनी साम्थ्र्य के अनुसार दान-पुण्य करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।

अगर आपकी कुंडली में कालसर्प दोष हो तो इस दोष से मुक्ति के लिए पौष अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी के जल से स्नान कर शिव जी के मंदिर में जाकर घी का दीपक जलाएं और शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करें। ऐसा करने से कालसृप दोष समाप्त होता है और पितरों के आर्शीवाद से जीवन में समृद्धि व खुशहाली आती है।

पौष अमावस्या पर पूजा-पाठ करने से गंभीर से गंभीर रोग भी दूर हो जाता है। इतना ही नहीं पौष अमावस्या पर विशेष अनुष्ठान व पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। इस दिन व्रत रखने से घर में समृद्धि आती है और परिवार में सकारात्मक वातावरण का संचार होता है। पूर्वजों के साथ-साथ देवताओं का भी आर्शीवाद प्राप्त होता है।

पौष अमावस्या के उपाय |

पौष अमावस्या शुक्रवार के दिन पड़ रही है। शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी को समर्पित होता है। ऐसे में मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए पीपल के पेड़ पर तिल, गुड़ चढ़ाएं। उसके बाद पीपल के पेड़ के समक्ष हाथ जोड़कर उसका पत्ता तोड़ ले। उस पत्ते को घर ले आएं और उस पत्ते पर केसर से ‘श्रीं‘ लिखे और माता लक्ष्मी के चरणों में चढ़ा दें। अमावस्या के अगले दिन इस पत्ते को अपने पर्स में रख लें। इस अचूक उपाय को करने से माता लक्ष्मी का आर्शीवाद प्राप्त होता है और कभी धन की कमी नहीं होती। माता लक्ष्मी से जुटा एक और उपाय है जिसे करने से माता लक्ष्मी आपके घर में धन के भंडार भरती है। अमावस्या वाले दिन रात्रि में स्नान करने के बाद घर के ईशान कोण में अष्ट लक्ष्मी के समक्ष घी का दीपक लगाएं और 108 बार इस मंत्र का जाप करे।

ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीयै ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा।

अमावस्या वाले दिन इस महाउपाय को करने से धन-दौलत में कमी नहीं होती और बरकत बढ़ती है।

हिन्दू धर्म में गाय को माता समान माना गया है। गाय में ईश्वर का वास होता है। ऐसे में पौष अमावस्या के दिन अगर आप गाय को रोटी या हरा चारा खिलाते है तो पूर्वजों का आर्शीवाद मिलता है और घर की आर्थिक परेशानी दूर होती है।
पौष अमावस्या पर सफेद चीज जैसे-दूध, दही आदि का दान अवश्य करना चाहिए। सफेद चीज का दान करने से चंद्रमा मजबूत होता है।

पौष अमावस्या पर कई धार्मिक अनुष्ठान किये जाते है। इन अनुष्ठानों को मंदिरों के पुजारियों द्वारा कराया जाना चाहिए जिससे वह सही तरीके से संपादित हो सके। पितृ तर्पण का कार्य मंत्रोच्चार द्वारा करने से पितरों का विशेष आर्शीवाद प्राप्त होता है। पौष अमावस्था पर तिल दान, वस्त्र दान, अन्न दान, या किसी भी अन्य प्रकार के दान का बड़ा महत्व होता है। ध्यान रहे यह दान किसी नदी के किनारे या तीर्थ स्थल पर जाकर ही करना चाहिए।

अगर आपका कोई काम बनते-बनते बिगड़ जा रहा है। घर में तनाव का वातावरण बना रहता है तो अवश्य ही आपकी कुंडली में पितृ दोष व्याप्त है। ऐसे में पितृ दोष से मुक्ति के लिए पौष अमावस्या के दिन दूध, चावल की खीर बना लें। गोबर के उपले जलाकर उन उपलों पर पितरों का ध्यान कर खीर निकाल दे। उसके बाद दाये हाथ में थोड़ा-सा पानी लेकर बाई तरफ छोड़ दें।

यह जरूरी नहीं है कि आप दूध की खीर से ही यह उपाय करें। पौष अमावस्या के दिन घर में जो भी शुद्ध ताजा खाना बना हो उसको ही पितरों को भोग लगा दें।

पितरों का तर्पण कैसे करें

एक लोटे में जल भरकर, उसमें गंगाजल, कच्चा दूध, चावल के दाने और तिल डालकर दक्षिण दिशा में मुंह करके पितरों को याद करके उनका तर्पण किया जाता है।

पौष अमावस्या पर भूलकर न करें ये काम

  • पौष अमावस्या को आकाश में अंधकार होता है। चंद्रमा पूर्ण रूप से दिखाई नहीं है। ऐसे में रात में अंधेरा छाया रहता है। मान्यता के अनुसार इसलिए इस दिन रात में अकेले घर से नहीं निकलना चाहिए। इतना ही नहीं शमशान के पास से भी नहीं गुजरना चाहिए।
  • पौष अमावस्या के दिन सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए। ऐसा माना गया है कि जो जातक अमावस्या के दिन देर तक सोता है। ब्रहम मुहूर्त में नहीं उठता है उसे पितरों का आर्शीवाद नहीं मिलता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर पूजा-पाठ कर लेना चाहिए।
  • पौष अमावस्या के दिन तामसिक भोजन अर्थात प्यास, लहसुन, मास-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। ना ही शराब पीना चाहिए।
  • पौष अमावस्या के दिन पति-पत्नी को ब्रहमचर्य का पालन करना चाहिए। इस दिन अपने तन-मन को शुद्ध करकर पूर्वजों के निर्मित तर्पण करना चाहिए।
  • अमावस्या के दिन अपने बड़ों का आदर करना चाहिए। किसी को भी बुरा-भला नहीं कहना चाहिए। आपस में लड़ाई झगड़ा भी नहीं करना चाहिए। जिस घर में लड़ाई-झगड़ा होता है वहां पितरों की कृपा नहीं बरसती है।
  • पौष अमावस्या के दिन किसी निर्धन की यथासंभव मदद करनी चाहिए। कभी भूलकर भी उसका अपमान नहीं करना चाहिए।
  • आईये अब जानते है नये साल 2023 में किस-दिन अमावस्या पड़ रही है। नया साल आने में कुछ ही शेष है। ऐसे में सभी लोगों के अंदर यह जानने के उत्सुकता है कि नये साल 2023 में अमावस्या किस-किस दिन पड़ेगी तो आईये देखते है साल

2023 की अमावस्या की पूरी लिस्ट | Amavasya List 2023 in Hindi

अमावस्याअमावस्या तिथि शुरूअमावस्या तिथि समापन:दिन
1माघ अमावस्या-21 जनवरी 2023, सायं 06ः17 22 जनवरी 2023, रात्रि 02ः 23शनिवार
(शनि अमावस्या)
2फाल्गुन माह –19 फरवरी 2023, सायं 04ः1820 फरवरी 2023, दोपहर 12ः35रविवार
3चैत्र अमावस्या –21 मार्च 2023, रात्रि 01ः481 मार्च 2023, सायं 10ः 52मंगलवार
4वैशाख अमावस्या –19 अप्रैल 2023, प्रातः 11ः2320 अप्रैल 2023, प्रातः 09ः41बुधवार
5ज्येष्ठ अमावस्या –18 मई 2023, सायं 09ः4219 मई 2023, सायं 09ः22शुक्रवार
6आषाढ़ अमावस्या –17 जून 2023, प्रातः 09ः1118 जून 2023, प्रातः 10ः06शनिवार
(शनि अमावस्या)
7सावन अमावस्या –16 जुलाई 2023, सायं 10ः0918 जुलाई 2023, रात्रि 12ः01सोमवार
8अधिक दर्श अमावस्या –15 अगस्त 2023, दोपहर 12ः4416 अगस्त 2023, दोपहर 03ः07मंगलवार
9भाद्रपद अमावस्या –14 सितंबर 2023, प्रातः 04ः4815 सितंबर 2023, प्रातः 07ः09गुरूवार
10अश्विन अमावस्या – 13 अक्टूबर 2023, रात्रि 09ः5014 अक्टूबर 2023, रात्रि 11ः24शनिवार
11कार्तिक अमावस्या –12 नवंबर 2023, दोपहर 02ः4413 नवंबर 2023, दोपहर 02ः56सोमवार
(सोमवती अमावस्या)
12मार्गशीर्ष अमावस्या –12 दिसंबर 2023, प्रातः 06ः2413 दिसंबर 2023, प्रातः 05ः01मंगलवार

पौष अमावस्या पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा और सूर्य उपासना के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पूर्वजों के निर्मित दान-पुण्य करने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि आती है और उसका भाग्योदय होता है। आज के लेख में हमने पौष अमावस्या संबंधित सारी जानकारी आपके सम्मुख रखी। आशा करते है यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा तो इस लेख को लाइक, शेयर जरूर करें जिससे पौष अमावस्या संबंधित सारी जानकारी अन्य लोगों तक भी पहुंचे। इसी प्रकार के अन्य धार्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जय श्री राम

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हिन्दू धर्म में हर दिन किसी न किसी भगवान को समर्पित है। सोमवार से लेकर रविवार तक अलग-अलग भगवानों की पूजा-पाठ की जाती है और उन भगवानों की कृपा पाने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनके निर्मित व्रत रखा जाता है। इन्ही व्रतों में एक व्रत है, प्रदोष व्रत। प्रदोष व्रत हर माह की त्रयोदशी को रखा जाता है। हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का खासा महत्व है। यह भगवान भोलेनाथ, शिव शंकर को समर्पित व्रत है। हर माह में दो पक्ष होते हैं, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। प्रदोष व्रत दोनों पक्षों में रखा जाता है। इस तरह साल भर में 24 प्रदोष व्रत रखे जाते है। आज के लेख में हम जानेंगे कि साल 2022 का आखिरी प्रदोष व्रत कब है, इसकी महिमा, पूजा विधि और प्रदोष व्रत के उपायों के बारे में विस्तार से बतायेंगे।

प्रदोष व्रत कब है | Budh Pradosh Vrat Kab Hai

साल 2022 का अन्तिम प्रदोष व्रत दिनांक 21 दिसंबर, दिन बुधवार को पड़ रहा है। बुधवार के दिन पड़ने के कारण इसे बुध प्रदोष कहते है। इस दिन व्रत करने वाले जातक को भगवान गणेश की कृपा भी प्राप्त होती है। प्रदोष वाले दिन प्रदोष काल में माता पार्वती और शिव जी की पूजा करना कई गुना ज्यादा फलदायी होती है।

इस बार प्रदोष वाले दिन सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग भी पड़ रहा है। ये दोनों योग दिनांक 21 दिसंबर को सुबह 08 बजकर 33 मिनट से लेकर अगले दिन 22 दिसंबर को सुबह 06 बजकर 33 मिनट तक रहेगे। सर्वाथ सिद्धि योग में भगवान भोलेनाथ की पूजा-पाठ करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है, जबकि अमृत सिद्धि योग में पूजा करने से अमृत के समान फल प्राप्त मिलता है। ऐसे में इन दोनों ही योग में भगवान शिव शंकर की पूजा करना उत्तम फलदायक है।

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प्रदोष व्रत पूजन विधि | Budh Pradosh Vrat Pooja Vidhi

प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल वह समय होता है सूर्यास्त होने के 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद के समय को प्रदोष काल किसे है। पुराणों में ऐसा वर्णित है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और सभी देवी-देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। ऐसे समय में जो भी जातक भगवान शिव की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही साथ भगवान शिव शंकर का आर्शीवाद भी प्राप्त होता है। आईये जानते है प्रदोष वाले दिन किस विधि से भोलेनाथ की उपासना करें।

बुध प्रदोष वाले दिन सबसे पहले नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर प्रातःकाल स्नान करने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनकर भगवान भोलेनाथ के मंदिर जाकर व्रत का संकल्प ले। इसके बाद शाम को दोबारा स्नान करने के बाद अपने घर के मंदिर में बैठकर भगवान भोलेनाथ का ध्यान करके उनकी विधिविधान से पूजा करें। सबसे पहले शिवलिंग को गंगाजल से स्नान कराये। उसके बाद कच्चे दूध से भोलेनाथ का अभिषेक करें। तत्पश्चात शिवलिंग पर सफेद चंदन लगाएं। शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा चढ़ाए। ध्यान रहे बेलपत्र की संख्या 11, 21 और 51 के क्रम में ही हो। प्रदोष व्रत में शिवलिंग का बेलपत्र से श्रृंगार अवश्य करना चाहिए। इसके बाद शिवलिंग पर शहद, भस्म व शक्कर अर्पित करे। सम्पूर्ण पूजा के दौरान भोलेनाथ के मंत्र ओम नमः शिवाय, ओम शिव शिवाय मंत्रों का लगातार जप करते रहे। बुध प्रदोष वाले दिन भगवान गणेश जी के सम्मुख घी का दीया जलाकर गं मन्त्र का 108 बार जाप अवश्य करें। इसके बाद भगवान भोलेनाथ की आरती करें और उन्हें भोग लगाएं। पूजा करने के बाद इस प्रसाद को घर के सभी लोगों को बांटे और स्वयं भी ग्रहण करें।

बुध प्रदोष व्रत कथा | Budh Pradosh Vrat Katha in Hindi

स्कंद पुराण की कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक पुरूष का नया-नया विवाह हुआ। गौना होने के बाद वह अपनी पत्नी को लेने ससुराल गया। ससुराल में उस व्यक्ति को उसकी सास मिली। उसने अपनी सास से कहा कि वह बुधवार को ही अपनी पत्नि को लेकर जाना चाहता है। यह सुनकर उसक सास-ससुर और अन्य परिजनों ने उसे बहुत समझाया कि बुधवार को पत्नी को विदा कराकर ले जाना शुभ नहीं होता है लेकिन वह नहीं माना। थक हारकर उसके ससुराल वालो को अपनी जमाई की बात माननी पड़ी और उन्होंने अपनी लड़की को अपने जमाई के साथ विदा कर दिया। ससुराल से विदा होने के बाद दोनों दंपत्ति बैलगाड़ी से वापस अपने घर जा रहे थे। रास्ते में उसकी पत्नी को प्यास लगी। पति लोटा लेकर अपनी पत्नी के लिए पानी लेने गया। जब पति पानी लेकर वापस लौटा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी पराये व्यक्ति द्वारा लाए पानी को पी रही थी और उससे हंस हंसकर बात कर रही थी। उस पुरूष की सूरत हूबहू उसी से मिल रही थी। यह देखकर वह क्रोधित हो गया और उस व्यक्ति से लड़ने लगा। थोड़ी देर में वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई और सिपाही भी वहां आ गए। सिपाही ने उस व्यक्ति की पत्नी से पूछा कि सच-सच बताओ इन दोनों में से तुम्हारा पति कौन सा है। लेकिन वह स्त्री भ्रम में पड़ गई और कोई जवाब नहीं दे पाई क्योंकि दोनों व्यक्ति एक जैसी शक्ल के थे। इतना देखकर उसका पति बहुत परेशान हो गया और मन ही मन भगवान भोलेनाथ की आराधना करने लगा और अपने और अपनी पत्नी को इस मुसीबत से बचाने की प्रार्थना करने लगा। पति को अपनी गलती का अहसास हो गया और भोलेनाथ भगवान से बोला कि मैने अपनी पत्नी को बुधवार के दिन विदा कराने का जो अपराध किया है उसके लिए मुझे क्षमा कर दो। भविष्य में मैं ऐसी गलती कभी भी नही करूंगा। भगवान शिव उसकी प्रार्थना से भ्रवित हो गए और दूसरा व्यक्ति तुरंत उसी समय गायब हो गया। तत्पश्चात उस व्यक्ति ने भगवान भोलेनाथ को धन्यवाद दिया और अपनी पत्नी के साथ अपने नगर को चल पड़ा। नगर पहुंचने के बाद दोनों पति पत्नी ने नियमपूर्वक बुधवार के दिन प्रदोष व्रत को करने का संकल्प लिया और प्रदोष व्रत को किया।

बुध प्रदोष का महत्व | Budh Pradosh Vrat Ka Mehtva

हर प्रदोष व्रत का फल अलग-अलग होता है। सोम से रविवार तक पड़ने वाले प्रदोष को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है, जैसे सोमवार को सोम प्रदोष, मंगलवार को भौम प्रदोष, बुधवार को बुध प्रदोष, गुरूवार को गुरू प्रदोष, शुक्रवार को शुक्र प्रदोष, वहीं शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष कहा जाता है। इन सभी का अलग-अलग महत्व है।

चूंकि बुध प्रदोष का व्रत बुद्धि के देवता भगवान को समर्पित होता है इसलिए बुध प्रदोष पर व्रत करने से भगवान भोलेनाथ के साथ-साथ भगवान गणेश की कृपा भी प्राप्त होती है। बुध प्रदोष का व्रत रखने वाले जातक की कुंडली में बुध की स्थिति मजबूत होती है और कुंडली का दोष दूर होता है।

बुध प्रदोष का व्रत करने से गंभीर से गंभीर बीमारी से छुटकारा मिलता है। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का बड़ा महत्व है। जिस भी दंपत्ति के संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो अगर वह बुध प्रदोष का व्रत रखें तो भगवान गणेश और भोलेनाथ के आर्शीवाद से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। संतान की इच्छा रखने वाले दंपत्ति को प्रदोष व्रत वाले दिन पंचगव्य से महादेव का अभिषेक करना चाहिए।

भगवान शिव का प्रदोष व्रत बहुत ही कल्याणकारी और उत्तम माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से संसार के सभी कष्टों से भी मिलती है।

बुध प्रदोष को क्या करें | Budh Pradosh Vrat Me Kya Kare

बुध प्रदोष वाले दिन प्रदोष व्रत की पूजा करने के बाद शाम के समय आटे का पांच मुखी घी का दीपक इस मंत्र को जपते हुए जलाये। ऐसा करने से जातक से भूलवश किये गये पापों का नाश होता है।
मंत्र है
‘करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसंवापराधं ।
विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ।।‘

बुध प्रदोष वाले दिन किसी साफ आसन पर बैठकर भगवान भोलेनाथ के सामने शिवाष्टक का पाठ जरूर करें। ऐसा करने से भगवान भोलेनाथ का आर्शीवाद प्राप्त होता है और भोलेनाथ की कृपा से जीवन में चल रहे सारे विघ्न और दोष खत्म होते हैं।

बुध प्रदोष को करे ये उपाय | Budh Pradosh Me Kare Ye Upay

अगर आपके बच्चे की सेहत अच्छी नहीं रहती है तो बुध प्रदोष वाले दिन शिवलिंग के समक्ष देसी घी का चैमुखी दीपक जलाये और शिव चालीसा का पाठ करें। ऐसा करने से बच्चे की स्वास्थय संबंधी समस्या दूर होगी।

बुध प्रदोष बुद्धि के देवता भगवान गणेश को समर्पित है। कुशाग्र बुद्धि प्राप्त करने के लिए बुध प्रदोष वाले दिन सुबह और शाम के समय भगवान गणेश को हरी इलायची चढ़ाएं। साथ ही 27 बार ऊँ बुद्धिप्रदाये नमः मन्त्र का जाप करें। बुध प्रदोष पर इस उपाय को करने से जातक की बुद्धि तीक्ष्ण हो जाती है और वह अपने हर कार्य में सफलता प्राप्त करता है।

आर्थिक तंगी दूर करने के लिए करे ये उपाय

अगर आप आर्थिक तंगी से गुजर रहे हो। पैसे में बरकत न हो रही हो तो बुध प्रदोष के दिन चली आ रही आर्थिक तंगी दूर करने के लिए हरी वस्तओं का दान करें। साथ ही शाम को गणेश जी की प्रतिमा के सम्मुख बैठकर ऊँ गं गणपतये नमः का 108 बार जाप करें। ऐसा लगातार तीन दिन तक करने से घर में धन की वृद्धि होती है और आर्थिक तंगी दूर होती है और घर में सम्पन्नता का वास होता है।

घर की सुख-समृद्धि के लिए करे ये उपाय

घर की सुख-समृद्धि बठाने के लिए बुध प्रदोष वाले दिन थोड़ा चावल लेकर उसे दो हिस्सो में बांट लें। एक हिस्से को भगवान शिव शंकर को चढ़ा दे और दूसरे हिस्से को किसी जरूरतमंद को दान कर दे। शाम को प्रदोष व्रत की पूजा करने के बाद भगवान को चढ़ाएं हुए चावल को अपने घर की तिजोरी में रख दे। ऐसा करने से घर में माता लक्ष्मी का आगमन होता है और घर में खुशहाली व समृद्धि आती है।

अगर वैवाहिक जीवन में परेशानियां चल रही हो तो बुध प्रदोष वाले दिन पूर्व दिशा में मुंह करके ऊँ शब्द का अधिक से अधिक बाद उच्चारण करें। इसके बाद एक सफेद कागज पर लाल सिन्दूर से क्लीं लिखे। इस कागज को अपने जीवन साथी की अलमारी में संभालकर रख दे। ध्यान रहें इस बात का पता आपके जीवनसाथी को कभी भी ना चले।

अगर घर में कोई न कोई परेशानी लगी रहती है। घर में कलह-क्लेश का वातावरण बना रहता हो। घर में नकारात्मक ऊर्जा भर गई है तो बुध प्रदोष के दिन कच्चे दूध में थोड़ा पानी मिलकाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। इसके बाद शिवलिंग के समक्ष तिल के तेल का चैमुखी दीपक जलाएं। दीपक जलाने के बाद भगवान भोलेनाथ के सम्मुख बैठकर सच्ची श्रद्धा भाव से ऊँ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करें। इस उपाय को करने से घर की चली आ रही परेशानी दूर होगी और घर में सकारात्मकता का वास होगा।

दान-पुण्य का होता है बड़ा महत्व

दान-पुण्य का हमेशा से बड़ा महत्व रहता है। दान पुण्य करने वाले जातक को इस लोक के साथ-साथ परलोक में भी सुख की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत वाले दिन दान देना हर दृष्टि से बहुत शुभकारी होता है। अगर आप घर के किसी बुजुर्ग या बच्चे से हरी वस्तु, दवाई या अन्य वस्तुएं को किसी जरूरतमंद को दान देते हैं तो ऐसा करने से घर में शुभता आती है।

बुध प्रदोष का व्रत हर सुख को प्रदान करने वाला है। मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है जो भी स्त्री पुरूष अपनी जो भी कामना को लेकर इस व्रत को करते है उनकी सभी कामनाएं कैलाशपति भगवान शिव शंकर जी पूरी करते है। प्रदोष व्रत को करने से सौ गऊ दान से ज्यादा का फल प्राप्त होता है।

आज हमने आपके समक्ष बुध प्रदोष की महिमा का वर्णन किया। आपको ये जानकारी कैसी लगी। कमेंट बाक्स में कमेंट करके हमें जरूर बताएं। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ शेयर अवश्य करें। ऐसे ही ज्ञानवर्द्धक और धार्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

साल 2023 में 24 नहीं 26 पड़ेगी एकादशी, देखिए साल 2023 में पड़ने वाली एकादशी की पूरी लिस्ट | Ekadashi 2023 List in Hindi

हिन्दू धर्म में अनेक व्रत व त्योहार पड़ते है। इन्ही व्रत व त्योहारों में से एक है एकादशी का व्रत। एकादशी एक संस्कृत शब्द होता है जिसका अर्थ ग्यारह होता है। एकादशी का व्रत हर माह की ग्यारस तिथि को मनाया जाता है। हर माह में दो एकादशी पड़ती है। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। इस तरह हर वर्ष में 24 एकादशी पड़ती है लेकिन जिस वर्ष में अधिक मास या पुरूषोत्तम मास पड़ता है उसमें एकादशी की संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। कुछ ही दिनों में नया वर्ष 2023 आने वाला है। आज के लेख में हम आपको नये साल में पड़ने वाली एकादशियों के बारे में बतायेंगे।

साल 2023 की एकादशी तिथि |एकादशी लिस्ट 2023 | Ekadashi List 2023

हर माह में दो 2 एकादशी पड़ती है, इस तरह साल में 24 एकादशी पड़ती है लेकिन अधिक मास या पुरूषोत्तम मास होने की स्थिति में इनकी संख्या 26 हो जाती है। पुराणों में उल्लेखित है कि हर तीन वर्ष में एक बार अधिक मास पड़ता है। साल 2023 में अधिक मास पड़ेगा। इस तरह साल 2023 में एकादशी की संख्या 26 हो जायेगी। यानी अधिक मास होने के कारण इस बार 2 अतिरिक्त एकादशी पड़ेंगी। आईये जानते है कि साल 2023 में किस माह में कौन-कौन सी एकादशी पड़ेगी।

एकादशी लिस्ट 2023 | Ekadashi Kab Hai 2023दिन और तिथि
पौष मास
पुत्रदा एकादशी (शुक्ल पक्ष) –
2 जनवरी 2023, दिन-सोमवार
माघ मास
षटतिला एकादशी (कृष्ण पक्ष) –
जया एकादशी (शुक्ल पक्ष) –
18 जनवरी 2023, दिन-बुधवार
1 फरवरी 2023, दिन- बुधवार
फाल्गुन मास
विजया एकादशी (कृष्ण पक्ष) –
आमलकी एकादशी (शुक्ल पक्ष) –
16 फरवरी 2023, दिन- गुरूवार
3 मार्च 2023, दिन- शुक्रवार
चैत्र मास
पापमोचिनी एकादशी (कृष्ण पक्ष) –
कामदा एकादशी (शुक्ल पक्ष) –
18 मार्च 2023, दिन- शनिवार
01 अप्रैल 2023, दिन- शनिवार
वैशाख मास
वरूथिनी एकादशी (कृष्ण पक्ष) –
मोहिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) –
16 अप्रैल 2023, दिन- रविवार
01 मई 2023, दिन- सोमवार
ज्येष्ठ मास
अपरा एकादशी (कृष्ण पक्ष) –
निर्जला एकादशी (शुक्ल पक्ष) –
15 मई 2023, दिन- सोमवार
31 मई 2023, दिन- बुधवार
आषाढ़ मास
योगिनी एकादशी (कृष्ण पक्ष)-
देवशयनी एकादशी (शुक्ल पक्ष)-
14 जून 2023, दिन- बुधवार
29 जून 2023, दिन- गुरूवार
सावन मास
कामिका एकादशी (कृष्ण पक्ष) –
पुत्रदा एकादशी –
13 जुलाई 2023, दिन- गुरूवार
27 अगस्त 2023, दिन- रविवार
अधिक मास
पद्मिनी एकादशी (कृष्ण पक्ष) –
परम एकादशी (शुक्ल पक्ष) –
29 जुलाई 2023, दिन- शनिवार
12 अगस्त 2023, दिन- शनिवार
भाद्रपद मास
अजा एकादशी (कृष्ण पक्ष) –
परिवर्तिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) –
10 सितंबर 2023, दिन- रविवार
25 सितंबर 2023, दिन- सोमवार
आश्विन मास
इंदिरा एकादशी (कृष्ण पक्ष) –
पापांकुशा एकादशी (शुक्ल पक्ष) –

10 अक्टूबर 2023, दिन- मंगलवार
25 अक्टूबर 2023, दिन- बुधवार
कार्तिक मास
रमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) –
देवउठनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) –
9 नवंबर 2023, दिन- गुरूवार
23 नवंबर 2023, दिन- गुरूवार
मार्गशीर्ष माह (अगहन)
उत्पन्ना एकादशी (कृष्ण पक्ष) –
मोक्षदा एकादशी (शुक्ल पक्ष) –
8 दिसंबर 2023, दिन- शुक्रवार
22 दिसंबर 2023, दिन- शुक्रवार

साल 2023 में पड़ने वाली सभी एकादशियों का अपना-अपना महत्व है। अधिक मास होने पर पद्मिनी एकादशी व परम एकादशी ये दो एकादशी पड़ती है। सभी एकादशियों में देवउठनी एकादशी का सबसे ज्यादा महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन से क्षीर सागर में विश्राम कर रहे भगवान विष्णु जागते है और सभी प्रकार के शुभ कार्य संचालित होने लगते है।

एकादशी व्रत का महत्व

एकादशी का व्रत एक कठिन व्रत है जिसे भक्त पूरी श्रद्धा के साथ एकादशी वाले दिन करते है लेकिन क्या आप जानते है एकादशी का व्रत तीन दिनों तक चलता है। एकादशी करने वाले भक्त उपवास के एक दिन पहले दोपहर में भोजन कर लेते है जिससे एकादशी वाले दिन पेट में अन्न न रहे। एकादशी वाले दिन कठिन उपवास रखते हे और द्वादशी को व्रत का पारण करते है। इस तरह यह व्रत तीन दिनों का हो जाता है।

हिन्दू धर्म में हर तिथि दो दिन तक रहती है इसी के चलते कुछ लोग एकादशी के व्रत को भी दो दिन रखने की सलाह देते है। पहले दिन परिवार वालों के लिए तो वहीं दूसरे दिन साधु, सन्यासियों के लिए। अगर आपको भगवान विष्णु का अपार आर्शीवाद चाहिए तो आप दोनों दिन एकादशी का व्रत रख सकते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत की महिमा का वर्णन स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। एकादशी का व्रत रखने वाले के सभी कार्य सम्पूर्ण होते है। घर में आर्थिक उन्नति होती है, दरिद्रता दूर होती है। अकाल मृत्यु नहीं होती है। धन, सम्मान, यश, कीर्ति में वृद्धि होती है।

एकादशी व्रत को निर्जल रखना हर दृष्टि से श्रेष्ठ होता है लेकिन अगर आप ऐसा करने में असमर्थ है तो दिन में फलाहार कर सकते है। ध्यान रहे फलाहार एक ही बार करे। बार-बार मुंह झूठा न करे। कुछ जातक व्रत वाले ही दिन ही पारण कर लेते हैं लेकिन शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि किसी भी व्रत का पारण अगले दिन ही करना चाहिए। इसलिए एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि को ही करना हर दृष्टि से उत्तम फलदायक होता है।

एकादशी का मतलब उसके नाम में ही वर्णित है। एकादशी अर्थात हमें अपनी 10 इंद्रियों और 1 मन को नियंत्रित करना चाहिए। एकादशी का व्रत करने वाले जातक को अपने मन में काम, क्रोध, लोभ आदि के नकारात्मक विचार नहीं लाने चाहिए। शुद्ध रूप से सात्विक विचारों को अपने मन में लाना चाहिए। एकादशी का व्रत एक तपस्या है जो केवल श्री हरि भगवान विष्णु को महसूस करने और प्रसन्न करने के लिए की जानी चाहिए। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी तिथि भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है। पुराणों में इसका वर्णन है कि जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। एकादशी का व्रत उन सभी के लिए महत्वपूर्ण है जिनमें ईश्वर की आस्था है।

आज हमने साल 2023 में पड़ने वाली एकादशियों के बारे में आपको बताया। किस माह में कौन सी एकादशी पड़ेगी। उसके विषय में आपको जानकारी दी। उम्मीद करते है ये लेख आपको पसंद आया होगा। अगर आपको ये लेख अच्छा लगा हो तो इसे लाइक, शेयर जरूर करें। इसी तरह के धार्मिक लेख पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे

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सफला एकादशी का व्रत, जानिए व्रत की पूरी जानकारी | Ekadashi Kab Hai

हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्व है। हर माह में दो एकादशी पड़ती है। एक शुक्ल पक्ष में दूसरी कृष्ण पक्ष। हिन्दू धर्म के अनेक व्रतों में एकादशी का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। हर माह पड़ने वाली एकादशी का अलग-अलग महत्व होता है। पौष माह के कृष्ण पक्ष को जो एकादशी पड़ती है उसे सफला एकादशी कहा जाता है। साल 2022 में सफला एकादशी का व्रत 19 दिसंबर 2022 को रखा जायेगा। आज के लेख में हम सफला एकादशी के शुभ मुहूर्त, व्रत की विधि, पूजा, महत्व आदि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

क्यों कहते है सफला एकादशी | Safal Ekadashi

जैसा कि नाम से ही जाहिर है सफला एकादशी। यानि हर कार्य को सफल करने वाली एकादशी। यदि आप जीवन में निरन्तर संघर्ष कर रहे है। आर्थिक स्थिति सुदृढ़़ नहीं है, कारोबार में नुकसान हो रहा है। नौकरी में सफलता नहीं मिल रही है तो सफला एकादशी के दिन अगर आप व्रत रखते है तो आपको हर कार्य में सफलता मिलेगी। सफला एकदशी का दिन एक ऐसा दिन होता है, जिस दिन व्रत रखने वाले जातक के सभी दुःख समाप्त होते हैं और उसका भाग्योदय होता है। सफला एकदशी का व्रत रखने से व्यक्ति की सारी इच्छाएं और सारे सपने पूरे होते है। जीवन में समृद्धि आती है।

सफला एकादशी के दिन अगर आप अपनी सेहत से जुड़ा महाप्रयोग कर लें तो आपको उसका लाभ होता है। इस दिन व्रत करने से धन, कारोबार में लाभ मिलता है। साथ ही साथ जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित है। अगर वह सफला एकादशी का व्रत रख ले तो श्री हरि विष्णु भगवान की कृपा से उत्तम संतान की प्राप्ति होगी।

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सफला एकादशी व्रत कथा | Safla Ekadashi Vrat Katha in Hindi | Safla Ekadashi Vrat Ki Kahani

प्राचीन काल में चंपावती राज्य में महिष्मती नाग का राजा था। राजा के पांच पुत्र थे। उस राजा का बड़ा बेटा लुंभक गलत कामों में लिप्त रहता था। नशा करना, गुरूओं का अनादर करना आदि कार्यों से राजा की प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहा था। वह चरित्रहीन था। राजा ने उसे समझाकर सही राह पर लाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह सुधर नहीं रहा था। एक दिन उससे परेशान होकर राजा ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। पिता ने जब उसे राज्य से निकाल दिया तो वह जंगल में रहने लगा। एक दिन उसे तीन दिन तक भोजन नहीं मिला। भोजन की तलाश में वह एक साधु की झाोपड़ी में पहुंचा। साधु ने उससे शिष्ट व्यवहार करते हुए उसे भोजन दिया। साधु के मधुर व्यवहार से उसकी बुद्धि बदल गई। वह साधु के साथ ही रहने लगा। साधु की संगति से उसका आचरण बदल गया। वह पूजा-पाठ करने लगा और साधु के आदेश से उसने एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव के चलते धर्म मार्ग पर चलने लगा। राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने लुंभक को राज्य वापस बुला लिया और राज्य का कार्यभार सौंप दिया। उसी दिन से सर्व कार्य में सफलता दिलाने वाला सफला एकादशी का व्रत किया जाने लगा।

सफला एकादशी शुभ मुहूर्त | Safla Ekadashi Vrat Shubh Muhurat

सफला एकादशी का प्रारम्भ 19 दिसंबर दिन सोमवार को सुबह 03 बजकर 32 मिनट से लेकर 20 दिसंबर मंगलवार को सुबह 02 बजकर 32 मिनट तक सफला एकादशी रहेगी। हिन्दू धर्म में किसी भी व्रत त्योहार पर उदया तिथि का मान रहता है। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर सफला एकादशी का व्रत 19 दिसंबर को रखना उत्तम होगा। इस दौरान दो योग भी बन रहे हैं। सफला एकादशी का अभिजित मुहूर्त 19 दिसंबर सुबह 11 बजकर 58 मिनट से दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा जबकि चित्रा नक्षत्र में मुहूर्त 18 दिसंबर को सुबह 10 बजकर 18 मिनट से 19 दिसंबर सुबह 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।

सफला एकादशी पूजा विधि | Ekadasi Puja Vidhi

सफला एकादशी के दिन श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा-आराधना की जाती है। सफला एकादशी वाले दिन नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान करके धुले हुए साफ वस्त्र पहनकर भगवान श्री हरि विष्णु जी के सम्मुख बैठकर एकादशी व्रत का संकल्प ले। इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनना चाहिए। तत्पश्चात भगवान विष्णु के सम्मुख धूप, दीप जलाए और भगवान विष्णु की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले भगवान विष्णु को जल चढ़ाएं। जल चढ़ाने के बाद भगवान को पीले रंग के फूल (गेंदा, कनेर) अर्पित करें। इसके बाद भगवान की प्रतिमा पर माला चढ़ाएं व श्री हरि की प्रतिमा पर चंदन लगाएं। भगवान विष्णु की चालीसा पढ़े और तुलसी की माला लेकर भगवान श्री हरि के शक्तिशाली मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके बाद एकादशी व्रत की कथा करे। तत्पश्चात भगवान विष्णु जी को फल व पंचामृत का भोग लगाएं व इस प्रसाद को सबको बांटे। एकादशी को शाम के समय इस श्री हरि का भजन अवश्य करें। भगवान विष्णु के सम्मुख अपनी मनोकामना को रखें। पूरे दिन व्रत करने के बाद अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, साम्थ्र्य अनुसार दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें। एकादशी के अगले दिन वस्त्र या अन्न का दान करना सर्वोत्तम होता है। एकादशी व्रत के पारण करने का उचित समय 20 दिसंबर सुबह 08 बजकर 05 मिनट से 09 बजकर 13 मिनट तक है। व्रत के पारण के पश्चात केवल सात्विक भोजन ही खाना चाहिए।

सफला एकादशी पर क्या करें | Safla Ekadashi Me Kya Kare

सफला एकादशी के दिन तुलसी दल युक्त खीर बनाकर भगवान विष्णु को भोग लगाये। इससे श्री हरि भगवान विष्णु प्रसन्न होते है और साधक की सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

सफला एकादशी पर घर में तुलसी व आंवले का पौधा जरूर लगाये। आंवले के पौधे में श्री हरि विष्णु जी निवास करते हैं। भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। तुलसी के पौधे लगाने से घर में पवित्रता आती है लेकिन ध्यान रहे तुलसी का पौधा पूर्व दिशा में ही होना चाहिए। एकादशी वाले दिन गेंदे का फूल लगाना भी शुभ होता है। अतः सफला एकादशी के दिन घर के उत्तर दिशा में गेंदे का पौधा अवश्य लगाये।

इस एकादशी पर दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। यथासंभव आपको व्रत के पारण के पश्चात दान अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी आर्थिक स्थिति सुधरती है।

सफला एकादशी वाले दिन गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने पर अद्वितीय फल की प्राप्ति होती है। इस पाठ को करने से पितरों का आर्शीवाद प्राप्त होता है और घर की सुख-समृद्धि में बढ़ोत्तरी होती है।

सफला एकादशी वाले दिन घर की छत पर पीला ध्वजा जरूर लगाएं। ऐसा करने से घर में खुशहाली आती है।
जैसा कि नाम से जाहिर है सफला एकादशी यानि हर कार्य में सफलता दिलाने वाली एकादशी। इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है और वह जीवन का सुख भोगकर मृत्यु के पश्चात गोकुल धाम को प्राप्त होता है।

पुराणों में वर्णित है कि सफला एकादशी वाले दिन गोधूली बेला में भजन कीर्तन करने से श्रेष्ठ यज्ञों के समान पुण्य मिलता है।

सफला एकादशी पर क्या न करें | Safla Ekadashi Par Kya Na Kare

सफला एकादशी के दिन किसी को भी अपशब्द न बोले। अगर आप भूलवश भी किसी को अपशब्द बोल देते है तो ऐसा करने वाले व्यक्ति के जीवन के लिए अमगंलकारी साबित होता है।

एकादशी के दिन भूलकर भी किसी गरीब को बासी भोजन न खिलाएं। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपके घर की बरकत चली जाती है।

जो जातक एकादशी का व्रत नहीं रखते है उनको भी सफला एकादशी के दिन प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा का सेवन का सेवन नहीं करना चाहिए।

एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित होता है। साथ ही साथ एकादशी की पूजा में भगवान विष्णु को चावल भी नहीं चढ़ाना चाहिए। पुराणों में ऐसा वर्णित है कि इस दिन चावल चावल खाना कीड़े खाने के बराबर होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल खाने वाले व्यक्ति को रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म मिलता है।

इस दिन क्रोध भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से एकादशी के व्रत का पुण्य प्रताप नहीं मिलता है। सफला एकादशी वाले दिन न बाल कटवाने चाहिए और न ही दाढ़ी बनवाना चाहिए

इस दिन पेड-पौधों की पत्तियों को भी नहीं तोड़ना चाहिए। तुलसी के पौधे से पत्ती एक दिन पहले ही तोड़ लेना चाहिए। इस दिन वृक्ष से पत्ते न तोड़ें, गिरे हुए पत्ते का प्रयोग करें।

सफला एकादशी के दिन शाम के वक्त यानी गोधूलि बेला में सोना नहीं चाहिए। इस समय भगवान श्री हरि का भजन कीर्तन करना चाहिए। इस दिन झूठ भी नहीं बोलना चाहिए।

एकादशी के दिन पति और पत्नी दोनों को ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। इस दिन आपस में लड़ाई झगड़ा भी नहीं करना चाहिए और दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए।

सफला एकदशी का महत्व | Saphala Ekadashi Importance

पीपल के वृक्ष में देवताओं का निवास होता है। ऐसे में अगर आप सफला एकादशी के दिन पीपल के वृक्ष में जल देते है और उसके नीचे दिया जलाते है तो श्री हरि भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते है और ऐसा करने वाले जातक को भगवान श्री विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

अगर आप नौकरी ढूंढ रहे है और काफी तलाश के बाद भी आपको नौकरी नहीं मिल रही है तो सफला एकादशी वाले दिन पीपल के वृक्ष में जल अर्पित करने के बाद शाम को पीपल के नीचे चैमुखा दीया बनाकर उसमें सरसों का तेल डाल कर जलाएं। ऐसा करने से आपको अतिशीघ्र नौकरी मिल जायेगी।

1 हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी उतना लाभ नहीं मिलता जितना सफला एकादशी के व्रत करने से मिलता है।

सफला एकादशी वाले दिन करें ये महाप्रयोग | Ekadashi December 2022 Maha Prayog

सफला एकादशी जीवन में सफलता दिलाने वाली एकादशी है। अगर आप अपने जीवन में किसी तरह के परेशानियों से जूझ रहे है तो इस एकादशी के दिन कुछ महाप्रयोग को करके अपने जीवन की तकलीफों को दूर कर सकते है।
अगर नौकरी में सफलता नहीं मिल रही है। प्रमोशन अटका पड़ा है तो सफला एकादशी के दिन अपने दाहिने हाथ में जल और पीले फूल लेकर नौकरी में सफलता का वरदान भगवान श्री हरि विष्णु जी से मांगे। भगवान श्री हरि के सामने गाय के घी का दीपक जलाएं और उनके सम्मुख बैठकर नारायण कवच का पाठ करें। अगर आप सफला एकादशी के दिन से लगातार 11 दिन तक ऐसा करते है तो आपकी नौकरी में चली आ रही परेशानी खत्म होगी और आप सफलता का स्वाद अवश्य चखेंगे।

अगर आप आर्थिक रूप से परेशान चल रहे हैं। धन आ रहा हो लेकिन टिक न रहा हो तो सफला एकादशी के दिन से रोज सुबह जल में लाल फूल डालकर भगवान सूर्य देव को अर्पित करें। साथ ही साथ रोज शाम को अपने पूजा स्थल पर घी का चैमुखी दीपक जलाएं। ऐसा करने से चली आ रही आर्थिक परेशानी दूर होगी और आपको धन का लाभ होगा।

भगवान विष्णु के मंत्रों का करे जाप | Lord Vishnu Mantra

एकादशी के दिन दिन श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें। श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से जीवन में सफलता का आगमन होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का तुलसी की माला से जाप अवश्य जप करें।

सफला एकदशी का व्रत जीवन में सफलता प्रदान करने वाला व्रत है। सफला एकादशी के महाप्रयोग को करके आप अपने जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति प्रदान कर सकते है।

आज हमने भगवान श्री हरि के उत्तम व्रत सफला एकादशी के संबंध में सम्पूर्ण जानकारी आपको प्रदान की। आशा करते है यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो इसे शेयर अवश्य करें जिससे हिन्दू धर्म के व्रत-त्योहारों का व्यापक प्रसार हो। ऐसे ही अन्य महत्वपूर्ण लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।