उज्जैन महाकाल मंदिर के दर्शन | Ujjain Mahakal Mandir Ke Darshan Kaise Kare

महाकालेश्वर की अनोखी है महिमा, जानिए महाकाल के बारे में सभी कुछ

हिन्दू धर्म में बहुत सारे प्राचीन मंदिर और तीर्थ स्थान है। इन तीर्थ स्थानों में भोलेनाथ के शिवालयों की महिमा अपरम्पार है। देश भर में भोलेनाथ के मंदिरों और शिवालयों की संख्या लाखों में है। इन्हीं शिवालयों में भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंग भी आते है। ये ज्योतिर्लिंग देश के अनेक राज्यों में स्थापित है। इन सभी ज्योतिर्लिंगों का अपना-अपना महत्व है। मान्यता है कि इन ज्योतिर्लिगों में भगवान शिव ज्योति के रूप में विद्यमान है। इन्हीं ज्योतिर्लिगों में से एक है भोलेनाथ का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga) । महाकाल का ज्योतिर्लिंग एक स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है अर्थात यह शिवलिंग स्वयं उत्पन्न हुआ है। आज के लेख में हम भोलेनाथ के इसी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर की महिमा, इसका इतिहास, दर्शन के नियम आदि के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

महाकाल मंदिर कहां है | Mahakal Mandir Kaha Sthit Hai

मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में क्षिप्रा नदी के तट पर भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। इसकी इंदौर से दूरी 50 किमी और भोपाल से लगभग 300 किमी है। इस मंदिर की भस्म आरती समस्त विश्व में विख्यात है। इस मंदिर में रोजाना देश और विदेश से लाखों श्रद्धालु भगवान महाकाल के दर्शन को आते है। कहा जाता है कि काल उसका क्या करें जो भक्त हो महाकाल का। यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है। दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज होते है। ऐसे में दक्षिण मुखी होने के चलते देवों के देव महाकाल के दर्शन मात्र से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।

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महाकाल मंदिर का इतिहास | Mahakal Mandir History | महाकाल की उत्पत्ति कैसे हुई

महाकाल मंदिर के इतिहास के बारे में सही-सही जानकारी मौजूद नहीं है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि महाकाल मंदिर की स्थापना द्वापर युग में हुई थी। भगवान श्रीकृष्ण का पालन पोषण करने वाले पिता नंद जी के आठ पीढ़ी पूर्व इस मंदिर की स्थापना होने की बात कही जाती है। शिवपुराण में भी इस ज्योतिर्लिंग के बारे में बताया गया है। इसके अनुसार इसकी स्थापना गोप नामक बालक ने की। मुगलों और ब्रिटिश शासन के अधीन रहते हुए भी इस सनातन मंदिर ने अपनी पहचान नहीं खोई।

14वीं और 15 वीं समय के प्राचीन ग्रंथों में भी इस मंदिर के बारे में जानकारी मिलती हैं। 18वीं सदी के चैथे दशक ने मराठा राजा पेशवा ने उज्जैन पर शासन करने के लिए अपने सरदार रणजी शिंदे को जिम्मेदारी दी। रणजी शिंदे ने 18वीं सदी के पांचवे दशक में इस मदिर का पुर्नरत्थान किया था। वर्तमान समय में महाकाल मंदिर का जो स्वरूप है वह रणजी शिंदे द्वारा ही बनवाया हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने महाकाल कारिडोर का निर्माण कराकर इसे एक नये स्वरूप दे दिया है।

महाकाल मंदिर का स्वरूप | Ujjain Mahakal Ka Mandir Kaisa Hai

पुरातन समय में महाकाल मंदिर 2 हेक्टेयर में स्थित था। इसका पुननिर्माण करके इसके परिसर को बढ़ाकर 20 हेक्टेयर कर दिया गया है। महाकाल मंदिर का प्रवेश द्वार काफी बड़ा और विशाल है। मंदिर के पीछे की तरफ रूद्रसागर स्थित है जहां पर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थित है। रूद्रसागर के चारो तरफ ऊँची-ऊँची दीवारे है। इन दीवारों पर म्यूरल बनाएं गये है जो कि पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहते है। महाकाल मंदिर का मुख्य भाग तीन भागों में बंटा हुआ है। सबसे नीचे महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। मध्य में ओकांरेश्वर शिवलिंग है जबकि सबसे ऊपर की तरफ नागचंद्रेश्वर मंदिर है जिसके दर्शन सिर्फ नागपंचमी के दिन हो सकते है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान महाकालेश्वर का बहुत बड़ा दक्षिणमुखी शिवलिंग है। गर्भगृह में ही माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की बहुत ही सुन्दर प्रतिमाएं मौजूद हैं। गर्भगृह में ही नंदी दीप स्थापित है, जो हमेशा जलता होता रहता है। नंदी जी की प्रतिमा गर्भगृह के ठीक सामने मौजूद है।

महाकाल मंदिर को पृथ्वी का केन्द्र बिन्दु भी कहते है क्योंकि कर्क रेखा महाकाल मंदिर के शिवलिंग के ऊपर से निकलती है। मंदिर में शिव लीलाओं का वर्णन करती करीब 200 से अधिक मूर्तियां है।

महाकालेश्वर विषयक एक श्लोक प्रसिद्ध है-

‘आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्। भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते।।‘

इसका मतलब है कि आकाश में तारक शिवलिंग, पाताल में हाटकेश्वर शिवलिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही सबसे मान्य शिवलिंग है।

महाशिवरात्रि पर्व से पहले ही समूचा उज्जैन शहर शिवमय हो जाता है। महाशिवरात्रि पर देश व विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा महाकाल के दर्शन को आते है और उनका आशीष पाते है। महाशिवरात्रि से ठीक पहले शिव पार्वती का श्रृंगार किया जाता है। शिवलिंग पर चंदन और भांग चढ़ाया जाता है। माता पार्वती को मेंहदी लगाई जाती है। महाशिवरात्रि वाले दिन शिव बारात निकाली जाती है। भगवान महाकाल दूल्हे की पोशाक में रहते है और माता पार्वती को दुल्हन के रूप में सजाया जाता है। महाशिवरात्रि पर मंदिर में भक्तों के लिए खास इंतजाम किये जाते है। जगह-जगह भंडारा होता है, ठंडाई पीकर महाकाल के भक्त झूमते नाचते गाते है।

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महाकाल मंदिर के दर्शन के नियम | Mahakal Ujjain Mandir Ke Niyam | Ujjain Mahakal Darshan

महाकाल मंदिर में रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते है। इसलिए मंदिर प्रशासन ने महाकाल के दर्शन के लिए नियम बनाएं है। इन नियमों के तहत ही आपको मंदिर में दर्शन मिलते है।

सबसे पहले दर्शन फ्री वाले दर्शन होते है। इस दर्शन में आपको कुछ खर्च नहीं करना पड़ता है। चूंकि यह दर्शन फ्री के होते है इसलिए इसमें लंबी-लंबी लाइन लगती है। आपको महाकाल के दर्शन करने के लिए लगभग डेढ़ से दो घंटे का समय लग जाता है। इसमें शिवलिंग के दर्शन दूर से ही हो पाते हैं।

दूसरे प्रकार के दर्शन 250 रू0 खर्च करके होते हैं। इसमें भक्तों की इंट्री महाकाल मंदिर के दूसरे गेट से होती है। इसमें भीड़ कम होती है जिसके चलते आपको शीघ्र दर्शन हो जाते हैं।

तीसरे प्रकार के दर्शन वह होते है जिसमें आपको महाकाल की सुबह 4 बजे की भस्म आरती के दर्शन होते हैं। महाकाल मंदिर में रोज सुबह 4 बजे भगवान शिव का शमशान की राख से अभिषेक करने के बाद आरती की जाती है जिसे भस्म आरती हैं। भस्म आरती में सिर्फ पुरूषों को ही प्रवेश दिया जाता है। भस्म आरती में भाग लेने का बाद अगर आप शिवलिंग का जल से अभिषेक करना चाहते हैं तो इसके लिए मंदिर प्रशासन द्वारा तय की गई ड्रेस को आपको फालो करना होगा। इसके लिए आपको धोती-कुर्ता पहनना जरूरी है।

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महाकाल मंदिर दर्शन ऑनलाइन बुकिंग | Mahakal Darshan Booking Online | Mahakaleshwar Darshan Booking

भस्म आरती में भाग लेने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से रजिस्ट्रेशन होता है। इसकी ऑनलाइन बुकिंग आप महाकालेश्वर की औफिशियल वेबसाइट पर जाकर निर्धारित शुल्क जमा कर इसमें भाग ले सकते है। आफलाइन बुकिंग के लिए कोई शुल्क नहीं है। इसके लिए कई काउंटर बनाये गये है जो सुबह 7 बजे खुलते हैं। भस्म आरती में शामिल होने के लिए आपको 1 दिन पहले ही टिकट लेना होता है। चैथे प्रकार के दर्शनों के लिए आपको 1500 रू0 खर्च करने पड़ेगे। यह धनराशि खर्च करके आप मंदिर के गर्भगृह में जाकर शिवलिंग पर फूल, माला चढ़ाने के साथ ही आप शिवलिंग का अभिषेक भी कर सकते है।

महाकालेश्वर मंदिर औफिशियल वेबसाइट : https://shrimahakaleshwar.com/

महाकाल मंदिर लाइव दर्शन | Mahakal Mandir Live Darshan

अगर आप उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने अभी नहीं जा सकते तो आप इनके ऑनलाइन दर्शन भी कर सकते हैं. अगर आपके मन में सच्ची श्रद्धा है तो आपको ऑनलाइन दर्शन करके भी बहुत प्रसन्नता होगी.

महाकाल मंदिर के लाइव दर्शन करने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें :

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा | Mahakaleshwar Jyotirlinga Story in Hindi

महाकालेश्वर से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार उज्जयिनी नगर (वर्तमान में उज्जैन) नगर में एक ब्राहमण रहता था। वह ब्राहमण शिव जी का प्राकन्ण भक्त था। हर रोज वह शिव जी की पूजा-आराधना किया करता था। इसी नगर में दूषण नाम का राक्षस रहता था। दूषण शिव भक्तों को परेशान करता था, उनकी पूजा आराधना में विघ्न डालता था। दूषण से परेशान होकर सभी शिव भक्तों ने भगवान शिव के सम्मुख गुहार लगाई। अपने भक्तों की पुकार सुनकर भगवान शिव ने दूषण से ऐसा करने को मना किया लेकिन राक्षसी प्रवृत्ति दूषण ने उनकी बात नहीं मानी और वह ब्राहमणों पर आक्रमण कर दिया। दूषण के इस कृत्य को देखकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए। धरती फाड़कर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने दूषण का वध कर दिया। पुराणों में वर्णित है कि जिस स्थान पर भोलेनाथ प्रकट हुए उसी स्थान पर वह ज्योति के रूप में उनका शिवलिंग स्थापित हो गया।

महाकाल मंदिर की आरती | Mahakal Bhasma Aarti Time | भस्म आरती में क्या होता है?

महाकाल मंदिर में रोजाना सुबह 4 बजे भस्म आरती होती है। कुछ सालों पहले तक शमशान की राख से महाकाल का श्रंगार किया जाता है, हालांकि अब इसमें बदलाव किया गया है। अब कपिला गाय के गोबर के बने कंडो, शमी, पीपल, पलाश आदि की लकड़ियों को जलाकर भस्म तैयार की जाती है। भस्म आरती को देखना हर किसी के नसीब में नहीं होता है, केवल कुछ भाग्यशाली भक्तों को ही इसके दर्शन हो पाते है। भस्म आरती में सिर्फ पुरूष ही भाग ले सकते हैं। महिलाओं को इस आरती को देखने की मनाही है उन्हें भस्म आरती के समय घूंघट ओढ़ना पड़ता है। आरती के समय पुजारी सिर्फ धोती पहनता है और कोई भी वस्त्र पहनना वर्जित होता है। भस्म आरती के पीछे मान्यता है कि भोलेनाथ शमशान के साधक है जिसके चलते भस्म से उनका श्रृंगार किया जाता है। भस्म आरती की भस्म में इतनी शक्ति होती है कि बड़े से बड़ा रोग भी यहां की भस्म से दूर हो जाता है।

भस्म आरती के बाद सुबह 7ः30 बजे दत्योदक आरती होती है जिसमें मंदिर के पुजारी भगवान महाकाल का अनोखा श्रृंगार करते है। दत्योदक आरती के बाद भोलेनाथ को दही चावल का भोग लगाया जाता है। दत्योदक आरती के बाद सुबह 10ः30 बजे महाभोग आरती होती है जिसमें मंदिर प्रशासन द्वारा बनाया गया भोग मंदिर के पुजारी भगवान महाकाल को चढ़ाते है। महाभोग आरती के बाद शाम को 5 से 6 बजे के बीच महाकाल की संध्या होती है। शाम 7ः30 बजे एक बार फिर से संध्या आरती के बाद पुजारी महाकाल का आकर्षक श्रृंगार करते है। इसके बाद महाकाल बाबा विश्राम करते हैं। रात्रि 10ः30 बजे से आधे घंटे तक बाबा की शयन आरती होती है। इस आरती के समय भगवान महाकाल को गुलाब के फूलों से सजाया जाता है।

काल भैरव का दर्शन करना जरूरी

महाकाल में भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा की जाती है। शिव के इस स्वरूप को काल भैरव के नाम से जाना जाता है। महाकाल के दर्शन से पहले काल भैरव के दर्शन करने चाहिए। काल भैरव को उज्जैन का सेनापति कहा जाता है। इसलिए राजा महाकाल के दर्शन करने से पहले सेनापति काल भैरव के दर्शन करना जरूरी होता है। जो भक्त भैरवगढ़ स्थित काल भैरव के मंदिर में बाबा काल भैरव के दर्शन करता है उसके सभी पाप मिट जाते है। उसकी मनोवांछित मनोकामना पूरी होती है। इस मंदिर में बाबा काल भैरव को मदिरा का प्रसाद चढ़ता है। एक प्लेट में मदिरा डालकर काल भैरव के मुख के पास ले जाई जाती है और आश्चर्यजनक रूप से सारी प्लेट की मदिरा खत्म हो जाती है। यह बाबा का चमत्कार से ज्यादा कुछ नहीं है।

उज्जैन महाकाल मंदिर कैसे जाएं? | Ujjain Mahakal Mandir Kaise Jaye

महाकाल में दर्शनों के लिए आप एयरपोर्ट, ट्रेन, बस या स्वयं के साधन से जा सकते हैं। हवाई जहाज से यात्रा के लिए आपको अहिल्याबाई होलकर हवाई अड्डे पर उतरना होगा। यहां से महाकाल मंदिर की दूरी तकरीबन 57 किमी है। यहां उतरकर आप महाकाल मंदिर के लिए कोई बस या टैक्सी पकड़कर वहां पहुंच सकते है।

अगर आप ट्रेन से महाकाल जाना चाहते हैं तो अपने शहर से उज्जैन के लिए ट्रेन पकड़े। देश के लगभग सभी बड़े शहरों लखनऊ, दिल्ली, मुम्बई से यहां के लिए ट्रेन मिलती है। दिल्ली से उज्जैन का किराया 1500 रू0 के आसपास है। उज्जैन से महाकाल मंदिर की दूरी लगभग 2 किमी है। उज्जैन पहुंचकर आप कैब पकड़कर महाकाल पहुंच सकते हैं। अगर आपके शहर से उज्जैन के लिए ट्रेन न मिले तो आप इंदौर के लिए ट्रेन पकड़ लें। इंदौर पहुंचकर वहां से बस द्वारा महाकाल जा सकते है।

आप सड़क द्वारा अपने निजी वाहन से भी महाकाल पहुंच सकते है। दिल्ली से उज्जैन जाने की दूरी करीब 831 किमी है यहां पहुचने के लिए आपको लगभग 15 घंटे लगेंगे। इसके लिए आपको नेशनल हाईवे 48 और 52 पकड़ना होगा।

इनके दर्शन भी जरूरी | Mahakal Mandir Me Inke Darshan Bhi Kare

मंदिरों की नगरी उज्जैन में आप ना सिर्फ महाकाल के दर्शन करें। इसके अलावा शक्ति की देवी माता हरीसिद्धी माता के दर्शन भी अवश्य करने चाहिए। हरिसिद्धी माता का यहां पर शक्तिपीठ है। मान्यता है कि माता हरसिद्धी के दर पे जो भी भक्त सच्चे मन से मांगता है, माता उसकी मनोकामना पूरी करती है। माता हर कार्य को सिद्ध करनी वाली माता है।

उज्जैन में स्थित महाकाल भगवान शिव का पवित्र धाम है। इस दर से कोई भी भक्त निराश नहीं होता है। महाकाल की भस्म आरती समूचे विश्व में विख्यात है।

तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको देवों के देव महादेव के पावन धाम महाकाल के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान की। उम्मीद करते है यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। इस जानकारी को अपने परिजनों, दोस्तों के साथ साझा अवश्य करें। हम आगे भी आपको देश भर के सभी मंदिरों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करते रहेंगे। आप हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न – FAQ

Q.1. महाकाल मंदिर कहां स्थित है?

Ans. महाकाल मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक यह ही अकेला ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है। इस मंदिर में तांत्रिक पूजा भी होती है।

Q.2. महाकाल मंदिर में क्या प्रसिद्ध है

Ans. महाकाल मंदिर की भस्म आरती समूचे विश्व में विख्यात है। यह आरती सुबह 4 बजे होती है। इस आरती में भाग लेने के लिए पुरूषों को धोती-कुर्ता धारण करना होता है। हालांकि महिलाओं को इस आरती को देखने की मनाही है। उन्हें इस समय घूंघट करना पड़ता है।

Q.3. महाकाल मंदिर के सामने से बारात क्यों नहीं निकलती है?

Ans. महाकाल उज्जैन के राजा कहलाते है। राजा के सामने से कोई भी घोड़े पर सवार होकर नहीं निकल सकता।

Q.4. क्या काल भैरव का दर्शन करना जरूरी है?

Ans. काल भैरव को महाकाल का सेनापति कहा जाता है। ऐसे में महाकाल राजा के दर्शन से पहले काल भैरव के दर्शन करना जरूरी होता है। काल भैरव के दर्शन के बिना महाकाल की यात्रा अधूरी रहती है।

Q.5. महाकाल की यात्रा कैसे करें?

Ans. महाकाल जाने के लिए आप ट्रेन, हवाई जहाज, सड़क मार्ग से जा सकते है। देश के सभी स्थानों से महाकाल के लिए सुविधा उपलब्ध है।
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पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा | Papamochani Ekadashi in Hindi

सभी पापों को नष्ट करता है पापमोचिनी एकादशी का व्रत, जाने व्रत की पूरी विधि व कथा

हिन्दू धर्म में व्रत, उपवास का बहुत अधिक महत्व है। व्रत को रखने के पीछे आध्यात्मिक व वैज्ञानिक दोनों कारण होते हैं। व्रत रखने से शरीर स्वस्थ और मन शांत होता है। अलग-अलग तिथियों पर अलग-अलग व्रतों को रखने की परंपरा है। हर व्रत का अलग-अलग महत्व भी होता है। इन्हीं व्रतों में से एक है एकादशी का व्रत। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। हर माह में दो एकादशी पड़ती है एक कृष्ण पक्ष में तो दूसरी शुक्ल पक्ष में। चैत्र मास का प्रारम्भ 8 मार्च से हो चुका है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहा जाता है। साल भर में पड़ने वाली 24 एकादशियों में पापमोचिनी एकादशी अंतिम होती है। पापमोचिनी एकादशी के दिन श्री हरि भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने और व्रत का पालन करने वाले जातक को जाने-अंजाने किये गये सभी पापों से मुक्ति मिलती है। आज के लेख में हम जानेंगे कि चैत्र मास में पापमोचिनी एकादशी कब है, कैसे इस दिन पूजा पाठ करना चाहिए और पापमोचिनी एकादशी का क्या महत्व है आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

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पापमोचिनी एकादशी कब है | Papamochani Ekadashi Kab Hai 2023

पापमोचिनी एकादशी 18 मार्च, 2023 दिन शनिवार को पड़ेगी। पापमोचिनी एकादशी तिथि का आरंभ 17 मार्च रात्रि 11 बजकर 15 मिनट से प्रारंभ होकर 18 मार्च, दिन शनिवार को 11 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। हिन्दू धर्म में हर तिथि को करने से पहले उदया तिथि का मान किया जाता है। ऐसे में पापमोचिनी एकादशी का व्रत दिनांक 18 मार्च को करना ही श्रेयस्कर होगा। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी को किया जाता है। ऐसे में पारण 19 मार्च, दिन रविवार को करना चाहिए। पारण सुबह के समय ही करना चाहिए। पारण का शुभ समय दिनांक 19 मार्च को सुबह 6 बजकर 30 मिनट से 9 बजकर 27 मिनट है।

पापमोचिनी एकादशी पर ऐसे करे पूजा | Papamochani Ekadashi Puja Vidhi

पापमोचिनी एकादशी के दिन प्रातःकाल ब्रहम मुहूर्त में उठ जाएं। इसके बाद पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान कर लें। स्नान के बाद साफ वस्त्र पहन लें। ध्यान रखे जो भी वस्त्र आप धारण करें वह पीले या लाल हो। कभी भी काले वस्त्रों को धारण करके पूजा नहीं करनी चाहिए। अपने पूजा स्थल की पर्याप्त रूप से साफ-सफाई करने के बाद वहां पर भगवान श्री हरि विष्णु जी की तस्वीर स्थापित करें और उनके समक्ष बैठकर एकादशी के व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु को पीले फूल चढ़ाएं। श्री हरि भगवान विष्णु के सम्मुख देशी घी का दीपक जलाएं। पवित्र श्रीमद्भागवत गीता के ग्यारहवें अध्यान का पाठ करें। पूजा के दौरान पूरे समय भगवान विष्णु के पवित्र मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करते रहें। पापमोचिनी एकादशी की कथा करें। तत्पश्चात भगवान विष्णु की आरती करें। केले के पेड़ में जल दें। पूजन समाप्त होने के बाद सूर्य को अघ्र्य देना ना भूले। ऐसा करने से भगवान सूर्य और भगवान विष्णु दोनों का आर्शीवाद प्राप्त होता है। एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु को जो भी भोग लगाये उसमें तुलसी दल को जरूर डाले लेकिन ध्यान रहे कि कभी भी एकादशी के दिन तुलसी को ना तोड़े। तुलसी जी को दशमी के दिन ही तोड़ ले। आज के दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी के चतुर्भुज रूप का दर्शन करना सर्वोत्तम होता है।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा | Papamochani Ekadashi Vrat Katha | Papamochani Ekadashi Story in Hindi

पापमोचिनी एकादशी की एक पुराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में चितस्थ नामक रमणिक वन में इंद्र देव, देवताओं और अप्सराओं के साथ भ्रमण कर रहे थे। वहीं पर मेधावी नाम के ऋषि भी कठोर तपस्या कर रहे थे। मेधावी ऋषि शिव जी के परम भक्त था। अप्सराएं अनुचरी थी वे देवताओं द्वारा किये भी उचित-अनुचित कार्य को करती थी। एक बार की बात है प्रेम के देवता कामदेव ने मंजूघोषा नाम की अप्सरा को ऋषि की तपस्या भंग करने की जिम्मेदारी सौंपी।

मंजूघोषा ने ऋषियों के सामने अपनी मुद्राओं, हाव भाव व कलाओं से अपनी ओर मोहित करने का प्रयास किया। अप्सरा की इन कामुक मुद्राओं से ऋषियों की तपस्या में कोई भंग नहीं पड़ा। इन्हीं ऋषियों में कुछ ऋषि ऐसे भी थे जो किशोरावस्था की दहलीज पर थे। वह अप्सरा की भाव-भंगिमाओं पर मोहित हो गए और रति क्रीडा में लीन हो गए। ऋषि और अप्सराओं को काम क्रीडा करते हुए 57 साल बीत गये। एक दिन मंजूघोषा अप्सरा ने ऋषि के सम्मुख वापस देवलोक जाने की इच्छा रखी। ऋषि को इस बात का एहसास हो गया कि अंजाने में उससे कितना बड़ा अपराध हो गया। उसे इस बात का आत्मज्ञान हो गया कि उससे यह घृणित काम अप्सरा मंजूघोषा के कारण ही हुआ। ऋषि पुत्र क्रोधित हो गया और क्रोध में आकर उसने मंजूघोषा को पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। ऋषि पुत्र के श्राप से अप्सरा दुखी हो गई। उसने ऋषि से इस योनि से मुक्ति का उपाय पूछा। अप्सरा की करुण व्यथा से ऋषि पुत्र का हृदय पिघल गया। ऋषि पुत्र ने अप्सरा को पापमोचनी एकादशी का व्रत करने को कहा। अप्सरा मंजुघोष ने ऋषि पुत्र की आज्ञानुसार पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत के प्रभाव अप्सरा पिशाच योनि से मुक्त होकर देवलोक में वापस चली गई। जो भी व्यक्ति पापमोचनी एकादशी का विधिपूर्वक पूजन व व्रत करता है, उसे उसके सभी पापो से मुक्ति मिलती है । साथ ही उसे उसके सारे संकटों से छुटकारा मिलता है और मृत्यु उपरांत मोक्ष फल की प्राप्ति होती है।

पापमोचनी एकादशी का महत्व | Papamochani Ekadashi Ka Mahatva

पापमोचनी एकादशी के महत्व के बारे में भविष्योत्तर पुराण और हरिवासर पुराण में उल्लेख मिलता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी जातक सच्ची श्रद्धा से पापमोचनी एकादशी का व्रत करता है, उसे 1000 गाय दान करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

पापमोचनी एकादशी का व्रत संतान सुख प्रदान करने वाला व्रत हैं। इस व्रत के प्रभाव से निःसंतान दंपति को संतान सुख की प्राप्ति होती है। जातक के घर में सुख समृद्धि बढ़ती है। जातक को सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।

पापमोचिनी एकादशी व्रत के नियम | Papamochani Ekadashi Vrat Ki Niyam

पापमोचिनी एकादशी के व्रत को आप दो तरह से रख सकते हैं जिसमें से पहला है निर्जल। इसके तहत उपासक को व्रत के दौरान पानी का सेवन नहीं करना होता है, जिसके चलते इसे सिर्फ स्वस्थ व्यक्तियों को ही रखने की सलाह दी जाती है. वहीं पर दूसरा तरीका फलाहार या जलीय व्रत का है जिसमें सिर्फ फलाहार या फिर पानी पीने की छूट होती है. सामान्य लोगों को इसी तरीके से व्रत रखने की सलाह दी जाती है.

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क्या न करें इस दिन | Papamochani Ekadashi Ke Din Kya Na Kare

पापमोचिनी एकादशी के दिन तामसिक भोजन, प्याज, लहसुन, मास मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।

आज के दिन महिलाओं को बाल नहीं धोना चाहिए। न ही आज के दिन बालों में तेल लगाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन जो महिलाएं बाल धोती है उनके घर में कलह क्लेश का वातावरण बना रहता है। घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर जाती है। परिवार में लड़ाई झगड़े बढ़ते है, घर में लक्ष्मी की हानि होती है।

आज के दिन सुबह देर तक तक नहीं सोना चाहिए, ब्रहम मुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए। अगर आप देर तक सोते है तो आपके घर में दरिद्रता का वास हो जाता है।

एकादशी के दिन ब्रहमचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। पति-पत्नी को आपस में संबंध नहीं बनाना चाहिए। मान्यता है कि अगर आज दंपत्ति संबंध बनाते है तो उससे संतान होती है तो संतान का जीवन दुखदायी रहता है।

एकादशी के दिन दोपहर के समय कभी भी नहीं सोना चाहिए। अगर आप दोपहर में सो जाते है तो आपके घर में दरिद्रता आती है।

सारांश

पापमोचिनी एकदाशी का व्रत ररखने वाले जातक के मन में एकाग्रता आती है और मन शांत रहता है. इसके साथ ही धन, आरोग्य और संतान की प्राप्ति के लिए भी पापमोचिनी एकादशी का व्रत सर्वोत्तम हैं। . इस व्रत को रखने से व्यक्ति को मानसिक शांति भी मिलती है। पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखने वाले जातक से जाने-अंजाने में किये गये पापों से मुक्ति मिलती है। तो दोस्तों यह थी पापमोचिनी एकादशी के व्रत के बारे में पूरी जानकारी। उम्मीद करते हैं कि हमारे पिछले लेखों की तरह आपको यह लेख भी पसंद आयेगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ सोशल मीडिया पर साझा जरूर करें। इसी तरह के धार्मिक व अध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम।

FAQ | ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q. पापमोचिनी एकादशी कब है?

Ans. पापमोचिनी एकादशी 17 मार्च, को ही लग जायेगी लेकिन उदया तिथि के मान के चलते पापमोचिनी एकादशी का व्रत व पूजन दिनांक 18 मार्च दिन शनिवार को ही करना सर्वोत्तम होगा।

Q. पापमोचिनी एकादशी का क्या महत्व है?
Ans. पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने वाले जातक को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। उसके सभी कष्टों का निवारण होता है।

Q. पापमोचिनी एकादशी पर क्या न करें?
Ans.पापमोचिनी एकादशी के दिन तामसिक भोजन प्याज, लहसुन, मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन ब्रहमचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए।

Q. पापमोचिनी एकादशी व्रत के क्या नियम है?
Ans. पापमोचिनी एकादशी के व्रत को आप दो तरह से रख सकते हैं जिसमें से पहला है निर्जल। इसके तहत उपासक को व्रत के दौरान पानी का सेवन नहीं करना होता है, जिसके चलते इसे सिर्फ स्वस्थ व्यक्तियों को ही रखने की सलाह दी जाती है। दूसरा तरीके में आप दिन में फलाहार का सेवन कर सकते हैं।

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शीतला अष्टमी कब है, जानिए कैसे करनी चाहिए इस दिन शीतला माता की पूजा

हिंदू धर्म में अनेक व्रत त्योहार होते हैं। हर त्योहार का एक विशेष महत्व होता है। 8 मार्च, 2023 से चैत्र मास की शुरूआत हो गई है। चैत्र मास में अनेक व्रत त्योहार पड़ते हैं। इन्ही त्योहारों में एक हैं शीतला अष्टमी का त्योहार। शीतला अष्टमी का त्योहार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इसे बसोडा के नाम से भी जाना जाता हैं। शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला की पूरे विधि विधान से पूजा-पाठ की जाती हैं। मान्यता अनुसार इस दिन माता शीतला को बासी खाने का भोग लगाया जाता है और शीतला माता को भोग लगाने के बाद परिवार के सभी लोग इस खाने को ग्रहण करते हैं। अधिकतर घरों में माता शीतला की पूजा से पहले घर का चूल्हा भी नहीं जलाया जाता है। तो आइए जानते हैं कि वर्ष 2023 में शीतला अष्टमी कब हैं, कैसे इस दिन माता शीतला की पूजा करनी चाहिए। इस लेख में हम आपको ये भी बताएंगे कि बसौड़े वाले दिन बासी भोजन क्यों किया जाता है।

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शीतला अष्टमी कब है | Sheetala Ashtami Kab Hai 2023

जैसा की मैंने ऊपर बताया शीतला अष्टमी या बसोडे का पर्व चैत्र मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष चैत्र मास की अष्टमी तिथि 15 मार्च को सुबह 6 बजकर 39 मिनट से शुरू होकर शाम को 6 बजकर 31 मिनट तक रहेगी। शीतला अष्टमी की पूजा का शुभ महूर्त सुबह 06 बजकर 20 मिनट से शाम 6 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। इस शुभ महूर्त में ही पूरे विधि विधान के साथ शीतला माता की पूजा करना श्रेयस्कर होगा।

sheetala ashtami kab hai
Sitla Mata Photo

इस तरह करे शीतला माता की पूजा | Sheetala Mata Ki Puja Kaise Kare

माता शीतला को दुर्गा का अवतार मन जाता है। शीतला अष्टमी के एक दिन पहले यानि सप्तमी को माताए और बहने बासी भोजन बना लेती हैं और अष्टमी को माता को भोग लगाती हैं। शीतला अष्टमी के दिन ब्रह्म महूर्त में उठ जाए। नित्य क्रियाओ से निवृत्त होकर स्वच्छ जल से स्नान कर ले। स्नान के पश्चात अपने पूजा घर में जाकर निम्न मंत्र को जपते हुए व्रत का संकल्प ले।

‘मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये‘

व्रत का संकल्प लेने के बाद शीतला माता के मंदिर में जाकर रोली, चावल, दही, राई, पुष्प आदि शीतला माता को अर्पित करे। सप्तमी के दिन बनाया हुआ बासी भोजन यथा मीठे चावल, पूड़ी, गुड़ के गुलगुले, हल्दी, चने की दाल का शीतला माता को भोग लगाया जाता है। एक तांबे के लोटे में जल लेकर शीतला माता के चरणों में अर्पित करें। कुछ जगहों पर पुरुष भी शीतला माता की करते हैं। पूजा करते समय ‘हृं श्रीं शीतलायै नमः‘ मंत्र का निरंतर उच्चारण करते रहे। माता शीतला को अर्पित किये जाये जल को अपने ऊपर डाले, अपनी दोनों आँखों और गले में लगाए। कुछ जल को बचाकर रख ले। तत्पश्चात शीतला स्तोत्र का पाठ करें और शीतला माता की कथा करे। शीतला माता रोगो को दूर करने वाली माता है। वट वृक्ष में शीतला माता का वास होता हैं , ऐसे में आज के दिन वट वृक्ष की भी पूजा आराधना करनी चाहिए। शीतला मंदिर में पूजा करने के बाद घर लौटते समय कोई हरी चीज बाजार से खरीद ले। जिस स्थान पर होली जली हो उस स्थान पर रोली , चावल , गुलगुले चढ़ाये। अपने घर के मुख्य दरवाजे के दोनों तरफ लोटे का पानी डाले और दीवार पर स्वस्तिक का चिन्ह बनाये। ततपश्चात घर में प्रवेश करे। घर के सभी लोगों को माता के मंदिर का जल दे , सभी लोग इसे अपनी आँखों और गले में लगाए। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती है और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है।

इस दिन घर के सभी सदस्यों को बासी भोजन ही करना चाहिए। इस दिन पूजा करने वाली सभी महिलाओं को पूरे दिन ‘वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरराम्, मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्।‘ मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र का अर्थ है मैं पूरी सच्ची श्रद्धा से गर्दभ पर विराजमान, दिगंबरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की वंदना करता/करती हूं। यह मंत्र रोग दूर करने वाला मंत्र हैं , इस मंत्र के जाप से निरोगी काया रहती हैं और व्यक्ति को कोई भी रोग नहीं छू पाता हैं।

शीतला अष्टमी की कथा | Sheetala Mata Ki Katha | Sheetala Ashtmi Story in Hindi

शीतला माता की पूजा को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है , इस कथा के अनुसार एक बार की बात है एक राजा के पुत्र को चेचक (शीतला) निकल गयी। उस राजा के राज्य में एक गरीब किसान का परिवार रहता था , उसके पुत्र को भी शीतला निकली। किसान परिवार ने बीमारी की दौरान किये जाने वाले नियमों को अपनाया। रात दिन माता की पूजा आराधना की, घर में साफ सफाई का विशेष ख्याल रखा। घर में नमक खाने पर पाबंदी थी। न तो किसी सब्जी में छौंक लगता था और न कोई वस्तु भुनी-तली बनाई जाती थी। न किसी गर्म वस्तु का सेवन वह स्वयं करता , न ही शीतला वाले लड़के को देता था। उसके द्वारा किये गए इस उपाय से उसका पुत्र जल्दी ही ठीक हो गया।

इधर जब से राजा के पुत्र को शीतला हुए , उस दिन से उसने भगवती माता की आराधना शुरू कर दी , हर रोज राजा के महल में हवन होता। उसने माता सतचंडी का पाठ शुरू करवा दिया। राजा के राजपुरोहित भी शीतला माता के मंत्रों का निरंतर पाठ करने लगे। राजमहल में रोज तरह-तरह के पकवान बनते , स्वादिष्ट भोजन बनते। इन भोजनो की सुगंध से राजा के पुत्र का इन भोजनों को करने का करता। राजपुत्र की जिद की चलते कोई उसे इन्हे खाने से नहीं रोक सका। चेचक की नियमो को न मानने की चलते उसकी बीमारी बढ़ने लगी , उसके सारे शरीर में बड़े-बड़े फोड़े निकलने लगे। ये देखकर राजा सोच में पड़ गया कि उसने माता की इतनी पूजा की , हवन किया व पाठ किया इसके बावजूद भी उसका पुत्र ठीक होने के बजाये और बीमार क्यों पड़ गया। एक दिन राजा को अपने गुप्तचरों से ज्ञात हुआ कि उसके राज्य के किसान पुत्र को भी शीतला निकली पर वह बिलकुल ठीक हो गया , राजा गहरी सोच में पड़ गया।

एक दिन राजा के गुप्तचरों ने उन्हें बताया कि किसान के पुत्र को भी शीतला निकली थी, पर वह बिलकुल ठीक हो गया है। यह जानकर राजा सोच में पड़ गया कि मैं शीतला की इतनी सेवा कर रहा हूं, पूजा व अनुष्ठान में कोई कमी नहीं, पर मेरा पुत्र अधिक रोगी होता जा रहा है जबकि किसान पुत्र बिना सेवा-पूजा के ही ठीक हो गया। इसी सोच में उसे नींद आ गई। राजा को स्वप्न में श्वेत वस्त्र धारिणी भगवती ने उसे दर्शन दिया। देवी ने कहा- ‘हे राजन्! मैं तुम्हारी सेवा-अर्चना से बहुत प्रसन्न हूं। इसीलिए ही तुम्हारा पुत्र जीवित है। इसके ठीक न होने का बड़ा कारण है वह यह कि जब तुम्हारे पुत्र को शीतला हुए उस समय तुमने शीतला के समय किये जाने वाले नियमों का उल्लंघन किया। तुम्हें ऐसी हालत में नमक का प्रयोग बंद करना चाहिए। नमक का प्रयोग करने से रोगी के फोड़ों में खुजली होती है। घर की सब्जियों में छौंक नहीं लगाना चाहिए था क्योंकि उन सब्जियों की गंध से रोगी का मन उन वस्तुओं को खाने के लिए ललचाता है। रोगी के आस पास किसी को आने जाने नहीं देना चाइये था क्योंकि यह रोग औरों को भी होने का भय रहता है। अब अगर तुम चाहते हो की तुम्हारा पुत्र ठीक हो गाये तो इन नियमों का पालन करो , तुम्हारा पुत्र अवश्य ही ठीक हो जाएगा।‘ राजा को विधि समझाकर देवी अंतघ्यान हो गईं। अगले दिन से ही राजा ने देवी की आज्ञानुसार सभी कार्यों की व्यवस्था कर दी। इससे राजकुमार की सेहत पर अनुकूल प्रभाव पड़ा और वह शीघ्र ही ठीक हो गया। अत जो भी जातक शीतला अष्टमी के दिन माता को शीतल भोजन का भोग लगता हैं और विधि-विधान से माता का पूजन करता हैं उस जातक का शरीर निरोगी रहता हैं उसके सभी कष्टों का निवारण होता है।

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शीतला अष्टमी का महत्व | Sheetala Ashtami Ka Mahatva

शीतला अष्टमी के दिन जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा भाव से देवी शीतला की आराधना करता हैं, उसकी सभी मनोकामना माता पूरी करती है। व्रत करने वाले जातक की काया निरोगी रहती हैं क्योंकि शीतला माता शीतलता प्रदान करने वाली माता हैं।

स्कंद पुराण में शीतला माता के महत्व के विषय में विस्तृत जानकारी दी गई है। इसके अनुसार शीतला माता गधे पर सवार हैं जो हाथों में कलश, सूप और झाडू पकड़े हैं। माता के गले में नीम के पत्तो की माला हैं।

शीतला माता को बासी भोजन अर्पित किया जाता है जो इस बात का प्रतीक होता है कि आज से ग्रीष्म ऋतु की शुरूआत हो गई है और आज के बाद से ताजा भोजन ही करना है। बासी भोजन भूलकर भी नहीं करना है।

शीतला माता शीतलता प्रदान करने वाली माता हैं। इनके पूजन से जातक के बुखार, चेचक, खसरा आदि रोग दूर हो जाते हैं। व्यक्ति की काया निरोगी रहती है। तो दोस्तो ये थी शीतला अष्टमी या बसोड़े से जुड़ी सारी जानकारी। अगर आपको ये लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ साझा अवश्य करें। अगर आपको शीतला अष्टमी के विषय में कोई भी जानकारी चाहिए तो कमेंट बाॅक्स में अवश्य लिखे। ऐसे ही धार्मिक और आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाईट से जुड़े रहे। जय श्री राम।

FAQ – ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्नः

Q. शीतला अष्टमी कब हैं?

Ans. शीतला अष्टमी या बसोड़े का पर्व 15 मार्च, दिन बुधवार को किया जायेगा। इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ शीतला माता की पूजा आराधना करनी चाहिए। शीतला माता सारे मनोरथ को पूरी करने वाली माता है।

Q. शीतला अष्टमी पर किस चीज का भोग लगाया जाता है?

Ans. शीतला अष्टमी पर माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इस भोजन को सप्तमी के दिन ही बना लिया जाता है।

Q. शीतला अष्टमी की पूजा क्यों की जाती है?

Ans. शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा करने से चेचक, खसरा, नेत्र विकार आदि बीमारियों से निजात मिलती है। माता की पूजा से गर्मियों में होने वाले सारे रोग दूर हो जाते हैं।

Q. शीतला अष्टमी पर क्या बनाते हैं?

Ans. शीतला अष्टमी की पूजा के लिए अलग-अलग लोग तरह-तरह के भोजन का भोग लगाते हैं। कुछ लोग मीठे चावल, मालपुआ, दही का भोग लगाते हैं, तो कई जगह पर माता को गुड के गुलगुले, चने की दाल, हलुवा का भोग शीतला माता को लगाया जाता है।

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होली क्यों मनाई जाती है | Holi Kyu Manaya Jata Hai

होली स्पेशल: घर की सुख-समृद्धि के लिए होली के दिन जरूर करें ये उपाय

हिन्दू धर्म में होली पर्व एक प्रमुख त्योहार होता है। होली का त्योहार दो दिन मनाया जाता है। एक दिन होली जलाई जाती है जिसे होलिका दहन कहते हैं, दूसरे दिन रंगों वाली होली खेली जाती है जिसे धुलंदी भी कहते है। सभी लोग मिलकर एक दूसरे को रंग, अबीर गुलाल लगाते हैं। एक दूसरे के गले लगते है और बधाईयां देते है। होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है। आज के लेख में हम जानेंगे कि वर्ष 2023 में होली का पर्व कब है, इस दिन का क्या महत्व है और होली पर कौन से उपाय करने से जीवन में खुशहाली आयेगी।

होली कब है | Holi Kab Hai | Holika Dahan Kab Hai

इस बार होली पर्व को लेकर असमंजस का वातावरण बना हुआ है। कुछ लोग होलिका दहन 7 मार्च व रंग वाली होली 8 मार्च को बता रहे है तो कुछ 6 मार्च को होलिका दहन और 7 मार्च को रंग वाली होली करने की बात कह रहे है। ऐसे में होली को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है तो आईये हम आपको बताते है कि होलिका दहन और रंग वाली होली किस दिन करना श्रेयस्कर होगा। फाल्गुन पूर्णिमा तिथि की शुरूआत 6 मार्च, 2023, दिन सोमवार को सुबह 04 बजकर 17 मिनट से प्रारम्भ होकर 7 मार्च, 2023 दिन मंगलवार को सुबह 6 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। आपको बता दें कि होलिका दहन प्रदोष काल में किया जाता है। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 07 मार्च को शाम 6ः24 से रात 08ः51 तक का है। इस तरह होलिका दहन का कुल समय लगभग 2 घंटा 30 मिनट का है। ऐसे में इन 2 घंटों में ही होलिका दहन करना शुभ होगा। इस समय ही होलिका की पूजा करना और होलिका दहन करना शुभ होगा।

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होलिका दहन वाले दिन यानि 07 मार्च को भद्राकाल भी है। भद्रा काल में होलिका दहन करना अशुभ माना जाता है क्योंकि भद्रा के स्वामी यमराज होते है। भद्रा 7 मार्च को सुबह 05 बजकर 15 मिनट तक है। इस तरह प्रदोष काल के समय होलिका दहन करना उचित होगा क्योंकि उस समय भद्रा का साया नहीं रहेगा। ऐसे में 7 मार्च को ही होलिका दहन करना श्रेयस्कर होगा और 8 मार्च को रंगों वाली होली खेली जायेगी।

Holi Kyu Manaya Jata Hai Hindiji

होलिका दहन पर इस तरह करे पूजा | Holika Dahan Pooja Vidhi | Holi Par Puja Kaise Kare

होलिका दहन वाले दिन प्रदोष काल में जिस जगह पर होलिका एकत्रित हो। वहां जाकर पूर्व दिशा की ओर मुख कर लें। होलिका में अर्पित की जाने वाली सामग्री जैसे – जल, रोली, अक्षत, फूल, गुड़, साबुत अनाज, गुलाल अपने हाथ में ले ले। कुछ जगह पर गोबर से बने उपलों को भी होलिका में समर्पित किया जाता है। सबसे पहले होलिका की पूजा करें। उसके बाद गुलाल में रंगी मौली, गोबर के उपलों की माला, खिलौनों की माला को होलिका में अर्पित करें। पहली माला पितरों के नाम की होती है, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता की और चैथी माला अपने परिवार के नाम की होती है। इसके बाद होलिका की परिक्रमा करते हुए उसमे कच्चा सूत लपेंटे। आप परिक्रमा अपनी इच्छानुसार 5, 7, 11 बार कर सकते है। होलिका के दोनों तरफ जल अर्पित करें और हाथ जोड़कर अपने परिवार की मंगल कामना की प्रार्थना करें। आज के दिन भगवान नरसिंह की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए।

होलिका दहन के अगले दिन यानि रंग वाली होली के दिन सुबह सवेरे गेहूं की बाली लेकर उसे हल्का सा जला ले। यह कृत्य इस बात का प्रतीक होता कि नये अनाज की पूजा हो गई। होलिका की राख को बहुत पवित्र माना जाता है। इस राख को धुलंडी वाले दिन अपने पूरे शरीर में लगाकर पूजन करना चाहिए। इस दिन पितरों का भी पूजन अवश्य करना चाहिए। अपने सभी पितरों को नमन करे और उनसे प्रार्थना करें कि वह आपके घर-परिवार में सुख-समृद्धि लाएं।

होली क्यों मनाई जाती है | Holi Kyo Manai Jati hai

होली मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है। विष्णु भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद श्री हरि भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। वह हर समय भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। इस बात से हिरण्यकश्यप उस पर क्रोधित रहता था। उसने प्रहलाद को तरह-तरह की यातनाएं दी लेकिन भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति को नहीं छोड़ा। असुर हिरण्यकश्प ने जितने दिन प्रहलाद को कठोर यातनाएं दी। उन दिनों को ही होलाष्टक कहा जाता है। जब हिरण्यकश्प प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से विमुख करने में नाकामयाब रहा तो उसने यह जिम्मेदारी अपनी बहन होलिका को सौंपी। होलिका को यह वरदान था कि आग उसके शरीर को जला नहीं सकती। होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि मे बैठ गई लेकिन श्री हरि भक्त प्रहलाद के शरीर अग्नि से कोई नुकसान नहीं हुआ जबकि होलिका आग में धूं-धूं कर जल गई। बुराई पर अच्छाई की जीत हो गई। इस तरह इस दिन से ही सभी लोग सबसे पहले होलिका को जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते है और अगले दिन सभी लोग एक दूसरे को रंग-अबीर गुलाल लगाकर एक दूसरे को बधाई और शुभकामनाएं देते है।

होली का महत्व निबंध | Holi Ka Mahatva | Holi Essay in Hindi

हिन्दू धर्म का हर त्योहार धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व रखता है। हर त्योहार हमें एक सीख और शिक्षा देता है। इसी तरह होलिका दहन भी हमे एक महत्वपूर्ण शिक्षा देता है। होलिका दहन हमे यह सीख देता है कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है। इस दिन हम समाज में फैली बुराईयों को होलिका की अग्नि में जलाकर समाज में अच्छाई का प्रवेश कराते है। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति सम्पूर्ण विधि विधान से होलिका की पूजा करता है उसको स्वस्थ और सुखी जीवन की प्राप्ति होती है। होली के त्योहार को नई ऋतु के आगमन का प्रतीक भी मानते है। इस दिन से वसंत ऋतु का आगमन भी होता है। होली के दिन को तांत्रिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण दिन माना गया है। इस दिन कई लोग तांत्रिक आराधना भी करते है। यही कारण है कि होली के दिन तंत्र-मंत्र से संबंधित बड़े अनुष्ठान किए जाते हैं।

क्यों जलाई जाती है गेहूं की बाली | Holi Par Gehu Ki Bali Ka Kya Karte Hai

जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया कि धुलंडी वाले दिन गेहूं की बाली को पवित्र अग्नि में जलाया जाता है लेकिन क्या आप जानते है इसके पीछे का क्या कारण है। गेहूं की बाली को नये अनाज के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इस अनाज को होली की पवित्र अग्नि में जलाकर घर में रखने से घर में शुभता का आगमन होता है। होली की अग्नि को भी बहुत पवित्र माना जाता है। इस अग्नि को अपने घर लाकर अपने घर का चूल्हा जलाना चाहिए। कुछ लोग इस अग्नि से अपने घर में अखंड दीपक भी जलाते हैं। इस दीपक को जलाने से घर के सारे कष्ट दूर होते है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इस दीपक को हमेशा घर के दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए। इस दिशा में दीपक को जलाने से घर से नकारात्मक ऊर्जा जाती है और सकारात्मक ऊर्जा (Positive energy) का प्रवेश होता है।

होली के उपाय | Holi Ke Upay

होली के कुछ उपाय भी है। अगर आप आज के दिन इन उपायों को करते है तो आपको जीवन में सफलता मिलेगी और जिंदगी के हर क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त करेंगे तो आईये इन उपायों के बारे में जानते हैं।

यदि आपके पास लक्ष्मी जी का ठहराव ना हो यानि लक्ष्मी जी आती तो हो परन्तु शीघ्र ही चली जाती हो तो होली वाले दिन इस टोटके को करे। एक जटा वाला नारियल लेकर उस पर पान व सुपारी चढ़ाएं। इस नारियल को होलिका की पवित्र अग्नि में समर्पित कर दे। तत्पश्चात मां लक्ष्मी का ध्यान करते हुए होलिका की 11 बार परिक्रमा करें। इस उपाय को करने से आपके पास लक्ष्मी जी का स्थाई वास हो जायेगा। होलिका वाले दिन श्री सूक्त और लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से भी घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है। मां लक्ष्मी के निर्मित हवन करें और उनको केसर मिश्रित खीर का भोग लगाएं। इस खीर को अपने घर-परिवार के सभी सदस्यों में अर्पित करें। खीर का कुछ हिस्सा छोटी कन्याओं में बांटे। ऐसा करने से आपके घर में माता लक्ष्मी का आगमन होगा।

घर से नकारात्मक शक्तियों को दूर करने के लिए होलिका दहन की राख को अपने घर में लाकर इस राख को अपने घर के चारों कोने में डाल दे। इस राख का कुछ हिस्सा अपने घर के गमलों में भी डाले। इस उपाय को करने से घर से आपके घर की नकारात्मक शक्तियां दूर होगी और घर में सकारात्मक वातावरण का वास होगा।

जैसा कि हमने आपको बताया कि इस बार होलिका दहन 7 मार्च, दिन मंगलवार को किया जायेगा। मंगलवार का दिन हनुमान जी का दिन होता है। ऐसे में आज के दिन रामचरित मानस की चैपाई

“जिमि सरिता सागर मंहु जाही, जद्यपि ताहि कामना नाहीं, तिमि सुख संपत्ति बिनहि बोलाएं, धर्मशील पहिं जहि सुभाएं”

का 108 बार तुलसी की माला से जाप करें। जप करने के बाद हवन करें। इस चैपाई को रोजाना अपनी नियमित पूजा के बाद 11 या 21 बार जपें। इस उपाय को करने से आपके घर में माता लक्ष्मी का वास होगा और घर में सुख-समृद्धि आयेगी।

अगर किसी को कर्जा दे दिया हो , उस कर्जें की वापसी में दिक्कते हो रही हो तो होलिका दहन वाले दिन जिस जगह पर होली जल रही हो उस जगह पर अनार की लकड़ी लेकर उस लकड़ी पर उस आदमी का नाम लिखे जिसे कर्जा दिया हो। उस लकड़ी पर हरा गुलाल छिड़कर उसे होलिका की अग्नि में अर्पित करें। आप देखेंगे कि जल्द ही आपको आपका धन वापस मिल जायेगा।

अगर व्यापार में नुकसान हो रहा हो, निरन्तर घाटा ही घाटा हो रहा हो तो व्यापार में घाटे को खत्म करने और अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए होली वाले दिन एक पीला कपड़ा ले लें। इस कपड़े में हल्दी, 11 गोमती चक्र को बांध दे। एक चांदी का सिक्का लेकर उसे काले कपड़े में बांध दे। इसके बाद ‘ऊँ महालक्ष्म्यै नमः’ मंत्र का जाप करते हुए इस कपड़े को होली की पवित्र अग्नि में अर्पित कर दे। आप देखेंगे कि शीघ्र ही आपके व्यापार का नुकसान कम हो जायेगा और बिजनेस में वृद्धि होने लगेगी।

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उत्तम स्वास्थ्य के लिए | Health Tips on Holi

घर से बीमारी को दूर करने और स्वस्थ शरीर की प्राप्ति के लिए होलिका दहन वाले दिन परिवार के सभी सदस्य अपने सिर से लेकर पैर तक पूरा नापकर उसके बराबर कच्चा सूत लेकर होलिका में अर्पित करें। सुबह होलिका की राख को अपने घर लाकर पुरूष सदस्य पूरे शरीर पर और महिला सदस्य अपने गले में लगाएं। इस उपाय को करने से परिवार के सभी सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक बना रहेगा और बीमारी का घर में नामोनिशान नहीं रहेगा।

अगर आपके बच्चे का पढ़ाई में मन ना लग रहा हो तो अपने बच्चों के हाथों से पान, नारियल और सुपारी को जिस जगह पर होलिका दहन हो रहा हो वहां पर गरीब लोगों को दान दें। इस उपाय को करने से आपके बच्चे का पढ़ाई में मन लगने लगेगा और वह परीक्षा में अच्छे नंबरों से पास होगा।

अगर आप बेरोजगार है, कई प्रयासों को करने के बाद भी मनचाही नौकरी न मिल रही हो तो होलिका दहन वाले दिन नींबू लेकर उसे अपने ऊपर से 21 बार उतारकर उसे होली की अग्नि में अर्पित कर दे। इस उपाय को करने के बाद होलिका की 11 बार परिक्रमा करें। इस उपाय को करने से आपको अतिशीघ्र नौकरी मिल जायेगी। यदि पहले से कोई नौकरी कर रहे हो तो उसमें पदोन्नति के योग भी बनेंगे।

होलिका वाले दिन गणपति जी की वंदना करना भी बहुत श्रेष्ठकारी होता है। सात कौड़िया व एक शंख लें। इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके तुलसी की माला से ऊँ गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें। इस सामग्री को किसी सुनसान स्थान पर किसी गड्ढ़े में डालकर दबा दें। इस उपाय को करने से आपके जीवन में खुशहाली आयेगी।

घर के वास्तु दोष को ठीक करने के लिए होलिका दहन वाले दिन अपने इष्टदेव का पूजन करें। पूजन के बाद उन्हें गुलाल अर्पित करें। इस उपाय को करने से आपके घर का वास्तुदोष खत्म होगा व घर में सुख शांति का वास होगा।

भूलकर भी ना करें इन चीजों का दान | Holi Par Na Kare Ye Kam

होलिका दहन के दिन दान पुण्य का बहुत महत्व होता है लेकिन ज्यादातर लोग बिना सोचे समझे किसी भी चीज का दान कर देते है। तो आईये हम आपको बताते है कि इस दिन किन चीजों का दान करने से बचना चाहिए।

धुलंडी वाले दिन लोग जिन कपड़ों से होली खेलते है, बाद में उन कपड़ों को किसी गरीब को दान कर देते हैं। भूलकर भी ऐसा ना करें क्योंकि ऐसे कपड़ों का दान करने से आपके घर की खुशहाली चली जायेगी।

लोहे या स्टील के बर्तनों का भी दान होली पर नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से आपको आर्थिक नुकसान होगा। अगर आप दान करना ही चाहते है तो किसी गरीब कन्या को सोने की वस्तु दान कर सकते हैं।

होली वाले दिन भूलकर भी किसी को पैसों का दान नहीं करना चाहिए। पैसों का दान करने से आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है।

सफेद वस्तु शुक्र ग्रह का प्रतीक होती है। ऐसे में अगर होली वाले दिन आप सफेद वस्तु का दान करते हैं तो आपको शुक्र ग्रह की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।

मान्यता अनुसार सरसो के तेल का दान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है लेकिन होली वाले दिन भूलकर भी किसी को तेल का दान नहीं करना चाहिए क्योंकि होलिका दहन पूर्णिमा को होता है।

होली वाले दिन किसी को गिफ्ट में कांच की या उससे बनी वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष

होली का पर्व बुराई पर अच्छाई के प्रतीक का पर्व माना जाता है। होलिका दहन की अग्नि में बुराई रूपी असुर को जलाया जाता है और अच्छाई रूपी देवता की आराधना की जाती है। होलिका की अग्नि में सभी नकारात्मक शक्तियों का दहन किया जाता है। होली पर रंग गुलाल खेलने की परंपरा भी होती है। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको हिन्दूओं के प्रमुख त्योहार होली विषयक आपको सारी जानकारी प्रदान की। उम्मीद करते है हमारे पिछले लेखों की तरह यह लेख भी आपको उत्तम लगा होगा। इस लेख को अपने परिजनों व मित्रों के साथ सोशल मीडिया पर साझा जरूर करें। इसी तरह के धार्मिक व आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

जयश्रीराम

FAQ : ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q.1. होली 2023 में कब है?

Ans. होली का पर्व फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। वर्ष 2023 में होलिका दहन 7 मार्च को है व रंग वाली होली यानि धुलंडी का पर्व 8 मार्च का मनाया जायेगा।

Q.2. होली से क्या बदलाव होता है?

Ans. होली को वसंत ऋतु के आगमन के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। होली के त्योहार से गर्मी शुरू होने लगती है।

होली वाले दिन क्या करते है.

रंग वाली होली के दिन सभी लोग आपस के बैरभाव भुलाकर एक दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते है। छोटे अपने बड़ो के पैर छूकर उनका आर्शीवाद लेते है। बच्चे, बड़े सभी लोग होली की मस्ती में मदहोश रहते है।

Q.3. होलिका दहन वाले दिन किस भगवान की पूजा होती है?

Ans. होलिका दहन वाले होलिका और भक्त प्रह्लाद की पूजा की जाती है। जो भी व्यक्ति होलिका की पूजा करे उसे होलिका की पूजा के पश्चात होलिका के पास बैठकर भगवान नरसिंह की पूजा भी करनी चाहिए।

Q.4. होली वाले दिन क्या न करें?

Ans. कुछ लोग होली के दिन मदिरा का सेवन कर लेते है। होली खुशहाली का पर्व है लेकिन लोग शराब, मदिरा का सेवन कर लड़ाई-झगड़ा करते है। एक दूसरे को अपशब्द कहते है। भूलकर भी इस दिन शराब का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे घर की खुशहाली चली जाती है।

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आमलकी एकादशी पर क्यों होती है आंवले के पेड़ की पूजा

हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एकादशी का व्रत जगत के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु को समर्पित होता है। हर माह एकादशी पड़ती है। फाल्गुन माह में जो एकादशी पड़ती है उसे आमलकी एकादशी कहा जाता है। होली से पहले पड़ने के चलते इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। आमलकी का हिन्दी अर्थ भारतीय आंवला होता है। आमलकी एकादशी पर आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। आंवले के पेड़ को हिन्दू धर्म में बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि आंवले के पेड़ में भगवान श्री हरि और माता लक्ष्मी निवास करती हे। आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि फाल्गुन मास की आमलकी एकादशी कब है, इस दिन किस विधि से भगवान श्री हरि की पूजा करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त आमलकी एकादशी के महत्व के बारे में भी आपको बताएंगे।

आमलकी एकादशी कब है | Amla Ekadashi 2023 Date and Time

जैसा कि मैने ऊपर बताया आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी होली से चार दिन पहले पड़ती है। होली का त्योहार इस बार 7 मार्च 2023 को है। इस तरह आमलकी एकादशी 03 मार्च 2023, दिन शुक्रवार को पड़ेगी। आमलकी एकादशी 02 मार्च 2023 दिन गुरूवार को सुबह 06 बजकर 39 मिनट से प्रारम्भ होकर 03 मार्च, 2023 दिन शुक्रवार को सुबह 09 बजकर 11 मिनट तक रहेगी। ऐसे में आमलकी एकादशी का मान 03 मार्च को करना ही श्रेयस्कर होगा। आमलकी एकादशी पर जगत के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 45 मिनट से सुबह 11ः06 मिनट तक रहेगा। आमलकी एकादशी पर इस बार तीन शुभ योग भी बन रहे है। ये योग हैं सर्वार्थ सिद्धि योग, सौभाग्य योग और शोभन योग। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6ः45 से दोपहर 03ः43 तक रहेगा। सौभाग्य योग सुबह 7ः52 से शाम 06ः45 तक रहेगा जबकि शोभन योग शाम 06 बजकर 45 मिनट तक अगले दिन 08‘24 मिनट तक रहेगा। इन शुभ योगों में पूजा करने से श्री हरि भगवान विष्णु का आर्शीवाद मिलता है और जातक के घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।

एकादशी के व्रत का पारण द्वादशी के दिन किया जाता है। ऐसे में दिनांक 04 मार्च, दिन शनिवार को एकादशी व्रत का पारण करना चाहिए। पारण का शुभ समय दिनांक 4 मार्च को सुबह 06ः44 से सुबह 9ः03 तक है। पारण में अनाज खा सकते है लेकिन ध्यान रहे कि द्वादशी के दिन भी चावल खाने से बचना चाहिए। आमलकी एकादशी के व्रत का पारण करने से पहले किसी ब्राहमण को भोजन कराना चाहिए और सामथ्र्यनुसार दक्षिणा देनी चाहिए। ब्राहमण को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।

Amalaki Ekadashi Vrat Katha

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आमलकी एकादशी पर इस तरह करें पूजा | Amla Ekadashi Puja Vidhi

आमलकी एकादशी वाले दिन ब्रहम मुहूर्त में उठ जाये। उसके बाद स्नान कर ले। स्नान करते समय पवित्र नदियों गंगा, यमुना, सरस्वती आदि का ध्यान करें। स्नान करने के बाद साफ धुले हुए वस्त्र पहन लें। तत्पश्चात अपने पूजा घर में जाकर भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष बैठकर हाथ में जल लेकर एकादशी के व्रत का संकल्प लें। एकादशी की पूजा का सारा सामान रोली, चावल, फूल, अगरबत्ती, चंदन आदि एकत्रित कर ले। इस सामग्री से भगवान विष्णु का पूजन करे।

चूंकि आमलकी एकादशी पर आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व होता है। ऐसे में नियम के अनुसार ही आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले जिस जगह पर आंवले का वृक्ष हो उसके आसपास की जगह को गाय के गोबर से लीपकर पवित्र कर ले। तत्पश्चात जल से भरा कलश पेड़ के समीप रखें। कलश पर चंदन लगाएं। जल में सुगंध डाले और पंच रत्न डालकर कलश को स्थापित करें। आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम की भी आराधना की जाती है। ऐसे में भगवान परशुराम जी का पंचामृत से अभिषेक करते हुए रोली चावल का तिलक लगाएं और उन्हें पीले रंग के फल, फूल अर्पित करे। आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करते हुए आंवले की वृक्ष की परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।

अगर आपके घर के पास कोई आंवले का वृक्ष नहीं है तो आंवला लेकर उसे भगवान विष्णु को समर्पित करना चाहिए। आमलकी एकादशी की कथा पढ़े तथा सपरिवार देशी घी के दीपक या कपूर से भगवान विष्णु की आरती उतारे। भोग के रूप में भगवान श्री हरि को आंवले का भोग ही लगाना चाहिए। इस भोग को घर के अन्य परिजनों में वितरित करें। एकादशी के दिन कुछ भक्तगण रात भर जागरण करते है और पूरी रात श्री हरि भगवान विष्णु के मंत्रों व भजनों को का वाचन करते हैं।

एकादशी के दिन जो भी साधक व्रत रखता है उसे आंवले के बने हुए खाद्य पदार्थों का ही सेवन करना चाहिए। अगर आप उपवास नहीं भी रखते है तो भी एकादशी के दिन आपको अनाज या चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

जैसा कि आपने जाना कि आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी भी कहते है। मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन भोलेनाथ माता पार्वती को काशी की पवित्र नगरी में लाएं थे। ऐसे में रंगभरी एकादशी के दिन भोलेनाथ और माता पार्वती की भी आराधना करनी चाहिए। रंगभरी एकादशी काशी नगरी में विशेष हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इस दिन भोलेनाथ के भक्त शिव शंकर व माता पार्वती को रंग गुलाल लगाते हैं और विधिविधान से भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा-पाठ करते हैं, उनकी आराधना करते हैं।

आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amla Ekadashi Vrat Katha | Amalaki Ekadashi Vrat Katha

आमलकी एकादशी के संबंध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार जब भगवान ब्रहमा की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई तो उन्होंने भगवान विष्णु से जानना चाहा कि उनकी उत्पत्ति क्यों हुई है। किस कार्य को करने के लिए उनका जन्म हुआ है। भगवान ब्रहमा ने इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए श्री हरि भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की। ब्रहमा जी की कठिन तपस्या से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान ब्रहमा को साक्षात दर्शन दिए। भगवान विष्णु को अपने सामने देखकर ब्रहमा जी बहुत भावुक हो गए। उनकी आंखों से आसू निकलने लगे। मान्यता है कि ब्रहमा जी के इन्हीं आंसुओं से आंवला के पेड़ का निर्माण हो गया। भगवान विष्णु ने जगत के सृजनकर्ता ब्रहमा जी से कहा कि आपके आंसुओं से इस पेड़ की उत्पत्ति हुई है क्योंकि आप सृष्टि के सृजनकर्ता हैं। इसलिए इस पेड़ में सभी देवी-देवता वास करेंगे। जिस दिन यह घटना घटित हुई उस दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। भगवान विष्णु ने ब्रहमा जी को वचन दिया कि आज से जो भी जातक आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की विधिविधान से पूजा करेगा। उसे मोक्ष फल की प्राप्ति होगी। ऐसे में आमलकी एकादशी के व्रत रखने वाले जातक को जन्म-मरण के सारे बंधनों से मुक्ति मिलती है और जातक को मोक्ष फल की प्राप्ति होती है।

आमलकी एकादशी का महत्व | Amalaki Ekadashi Mahatva

जो भी श्रद्धालु सच्चे भाव से आमलकी एकादशी का व्रत, उपवास रखता है उसे अपने पूर्व और वर्तमान के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष फल की प्राप्ति होती है। ब्रहम पुराण में आमलकी एकादशी के व्रत की महिमा बताई गई है। इस व्रत की महिमा का वर्णन स्वयं बाल्मीकि जी ने भी विस्तारपूर्वक बताई है।

जो भी जातक आमलकी एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक भगवान श्री हरि की पूजा उपासना करता है और आंवले के पेड़ की पूजा करता है उस जातक के घर में धन और सम्पत्ति में कभी कमी नहीं होती है, उसमें लगातार बढ़ोत्तरी होती है।

शास्त्रों में आमलकी एकादशी के महत्व का वर्णन किया गया है-

वसत्यामलकीवृक्षे,लक्ष्म्या सह जगत्पतिः।

तत्र संपूज्य देवेशं शक्त्या कुर्यात् प्रदक्षिणां।

उपोष्य विधिवत् कल्पं, विष्णुलोके महीयते।।

इस श्लोक के अनुसार आंवले के पेड़ में भगवान श्री हरि और माता लक्ष्मी निवास करती हैं। आवले के पेड़ में देवताओं का निवास होता है। जो भी जातक आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष का पूजन करता है और श्रद्धापूर्वक उसकी परिक्रमा करता है। उस साधक की धन-सम्पत्ति में बढ़ोत्तरी होती है। सभी पापों से उसे मुक्ति मिलती है और भगवान श्री हरि विष्णु का आर्शीवाद प्राप्त होता है।

पुराणों में आवले के पेड़ को आदि पेड़ या देव वृक्ष भी कहा गया है। अगर आप आंवले के पेड़ की पूजा करते है तो आपको समस्त देवताओं का आर्शीवाद मिलता है।

आमलकी एकादशी का व्रत रखने वाले जातक को 1000 गायों के दान के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। आमलकी एकादशी के दिन आंवले का ही सेवन करना चाहिए। साथ ही आंवले का ही दान करना भी सर्वोत्तम होता है।

आमलकी एकादशी का व्रत करने वाले जातक को जीवन में कभी भी कठिन स्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता। ईश्वर उसकी हर परिस्थिति में मदद करते हैं। उस जातक की धन-सम्पदा में वृद्धि होती है। जातक के घर-संसार में खुशहाली आती है।

आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी के दिन काशी मे जमकर होली खेली जाती है। सभी लोग एक दूसरे को रंग लगाते है। अबीर-गुलाल उड़ाते है। इस दिन यहां के मंदिरों में भी विशेष पूजा पाठ की जाती है।

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आमलकी एकादशी उपाय | Amalaki Ekadashi Upay

आमलकी एकादशी के दिन कुछ ऐसे अचूक उपाय हैं जिन्हें करके आप अपने जीवन के कष्टों से मुक्ति पा सकते है।

  • अगर पति-पत्नी के मध्य मनमुटाव चल रहा हो, वैवाहिक जीवन की सुख-शांति चली गई हो तो आज के दिन आंवले के जल से ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करते हुए श्री हरि भगवान विष्णु का अभिषेक करें। साथ ही हाथ जोड़कर भगवान विष्णु से अपने वैवाहिक जीवन की सारी परेशानियों को दूर करने की प्रार्थना करें। इस उपाय से वैवाहिक रिश्तों में सुधार आयेगा और आपस का मनमुटाव दूर होगा।
  • दाम्पत्य जीवन से जुड़ा एक और उपाय है जिसे अगर आप कर लेते है तो आपके दाम्पत्य जीवन में खुशहाली आने से कोई नहीं रोक सकता है। आज के दिन आंवले के पेड़ की 7 बार परिक्रमा करें। परिक्रमा के दौरान आंवले के पेड़ में 7 बार कलावा बांधे। इस उपाय को करने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता आयेगी।
  • रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती को लाल रंग का गुलाल चढ़ाये। ऐसा करने से घर में खुशहाली आयेगी और घर में चल रही कलह क्लेश दूर होगा और सकारात्मक ऊर्जा का वास होगा।
  • आर्थिक समस्या को दूर करने के लिए रंगभरी एकादशी के दिन भोलेनाथ का सफेद चंदन और बेल पत्रों से श्रृंगार करें और शिवलिंग पर अबीर और गुलाल चढ़ाएं। शिव चालीसा का पाठ करें और भोलेनाथ की आरती करें। इस उपाय को करने से आपकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी और धन में बरकत बढ़ेगी।
  • कर्ज की समस्या से मुक्ति के लिए भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर विष्णु सहस्रत्रनाम का श्रद्धापूर्वक पाठ करें। पाठ करने के बाद उन्हें आंवला अर्पित करें। इस उपाय को करने से आपका कर्ज उतर जायेगा और जीवन में खुशहाली आयेगी।
  • नौकरी में बाधा आ रही हो। व्यापार में घाटा हो रहा हो तो आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को 21 पीले फूलों की माला बनाकर अर्पित करें। आंवले के पेड़ में जल चढ़ाएं और भगवान श्री हरि विष्णु भगवान से अपने कैरियर में आ रही बाधा को दूर करने की प्रार्थना करें। आप देखेंगे कि इस उपाय को करने से आपके करियर और व्यापार में चली आ रही बाधाएं दूर होगी और व्यापार में बढ़ोत्तरी होगी। भगवान विष्णु की कृपा आप पर बनी रहेगी। नौकरी में पदोन्नति के योग बनेंगे।
  • अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए एक पीले रंग का साफ रूमाल ले। इस रूमाल में गोटा लगा दे और एकादशी के दिन भगवान विष्णु को चढ़ाएं। इस उपाय से आपके मन की सभी इच्छाओं की पूर्ति होगी।

निष्कर्ष

जन्म मरण के सभी बंधनों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष फल की प्राप्ति कराने वाला व्रत आमलकी एकादशी का व्रत होता है। आमलकी एकादशी पर रात्रि जागरण करने से श्री हरि का विशेष आर्शीवाद मिलता है। जो भी जातक सच्चे मन से आमलकी एकादशी का व्रत करता है और व्रत के पश्चात ब्राहमणों को भोजन कराता है और यथाशक्ति दान देता है उस पर श्री हरि भगवान विष्णु की विशेष कृपा बरसती है। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको आमलकी एकादशी के व्रत के बारे में पूरी जानकारी दी। हमें उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास भी है कि यह जानकारी आपको लाभप्रद लगी होगी। इस जानकारी को अपने परिजनों व मित्रों के साथ सोशल मीडिया पर साझा जरूर करें जिससे आमलकी एकादशी के व्रत के बारे में सभी को जानकारी मिले। ऐसे ही धार्मिक और आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

FAQ – ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q.1. आमलकी एकादशी 2023 में कब है?

Ans. आमलकी एकादशी दिनांक 03 मार्च, 2023, दिन शुक्रवार को है।

Q.2. आमलकी एकादशी को और किस नाम से जाना जाता है?

Ans. आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन काशी नगरी में भोलेनाथ के भक्तगण भगवान शिव और माता पार्वती की अबीर-गुलाल से पूजा करते है। काशी में इस दिन विशेष आयोजन होता है।

Q.3 आमलकी एकादशी पर आंवले के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है

Ans. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है आमलकी अर्थात आंवला। इस दिन आंवले के वृक्ष की इसलिए पूजा की जाती है क्योंकि आंवले के पेड़ में सभी देवी-देवताओं का वास होता है।

Q.4. मलकी एकादशी का क्या महत्व है?

Ans. आमलकी एकादशी पर भगवान श्री हरि विष्णु और सभी देवताओं का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। इस दिन से ही हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहार होली का वातावरण भी बनने लगता है। आमलकी एकादशी को होली के प्रारंभ के रूप में भी जाना जाता है।

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होलाष्टक विशेष: होलाष्टक क्यों होते हैं अशुभ, भूलकर भी इन दिनों में ना करें ये कार्य

हिन्दू धर्म में होली का त्योहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हर वर्ष फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन होली पर्व मनाया जाता है। होली के पर्व में सभी लोग आपसी बैर भाव भुलाकर एक दूसरे से गले मिलते हैं और रंग लगाते है। पुराणों में बताया गया है कि फाल्गुन पूर्णिमा यानि जिस दिन होलिका दहन होता है उससे आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते है। होलाष्टक को हिन्दू धर्म में अशुभ दिन माना जाता है। इन आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि वर्ष 2023 में होलाष्टक कब से है, इन दिनों में किन कामों को करने की मनाही होती है। इसके अलावा हम आपको यह भी बताएंगे कि होलाष्टक को अशुभ दिन क्यों माना जाता है। तो दोस्तों होलाष्टक के बारे में सम्पूर्ण जानकारी के लिए हमारे साथ इस लेख में अंत तक बने रहिए।

होलाष्टक कब से है | Holashtak 2023 Dates | Holashtak Start and End Date 2023

हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष फागुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर फागुन पूर्णिमा की तिथि तक होलाष्टक होता है। इस तरह यह आठ दिन हुआ लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार से देखे तो यह नौ दिन हुए। वर्ष 2023 में होलाष्टक का आरंभ 27 फरवरी 2023 दिन सोमवार से प्रारंभ होकर 07 मार्च दिन मंगलवार तक रहेगा। इन नौ दिनों में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है। वर्ष 2023 में होलाष्टक 27 फरवरी को सुबह 12 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर 28 फरवरी को 02 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर 27 फरवरी से ही होलाष्टक प्रारंभ हो जायेगा। इस बार होलाष्टक में भद्रा काल भी है। भद्राकाल 27 फरवरी सुबह 06 बजकर 49 मिनट से 01 बजकर 35 मिनट तक हे। फाल्गुन पूर्णिमा यानि जिस दिन होलिका दहन होता है उस दिन होलाष्टक समाप्त हो जायेगा। होलाष्टक समाप्त होने के साथ ही शुभ कार्य एक बार फिर शुरू हो जाएंगे।

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होलाष्टक को क्यों कहा जाता है अशुभ

होलाष्टक क्यों अशुभ होते है। इसको लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। दरअसल फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमासी तक 8 ग्रह उग्र अवस्था में रहते हैं। ये ग्रह हैं सूर्य, चंद्रमा, शनि, शुक्र, गुरु, बुध, मंगल और राहु। अष्टमी को चन्द्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरू, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा तिथि को राहु उग्र रहता है। इन ग्रहों के उग्र रहने से शुभ कार्यों में इनका सहयोग नहीं मिलता है, किसी भी नये कार्य में विघ्न पड़ सकता है जिसके चलते शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।

होलाष्टक के दौरान इन ग्रहों की तीव्रता के चलते वातारवरण में नकारात्मकता का वास हो जाता है। इन नकारात्मक शक्तियों का व्यक्ति के स्वभाव व चित्त पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है। इन नकारात्मक ऊर्जाओं के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ उपाय आपको करने चाहिए जिससे होलाष्टक के दौरान फैली नकारात्मक शक्तियां का नास होता है। इन उपायों के बारे में इसी लेख में आगे बताऊँगा।

होलाष्टक को लेकर एक और मान्यता प्रचलित है। इसके अनुसार राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद हर समय श्री हरि भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से दूर करने के लिए हिरण्यकश्यप ने उसे 8 दिनों तक कठोर यातनाएं दी। आठवें दिन हिरण्यकश्प ने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रहलाद को बैठाकर जलाने का प्रयास किया लेकिन प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका धू-धू करके जल गई। भक्त प्रहलाद ने इन आठ दिनों में जो पीड़ा सही, वही दिन होलाष्टक के माने जाते है। इसी के चलते होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य को करने की मनाही होती है। प्रहलाद के जीवित बचने के चलते ही होली का पर्व मनाया जाता है।

पुराणों में होलाष्टक को लेकर भगवान शिव से संबंधित एक कहानी भी बताई गई है। इसके अनुसार एक बार भगवान शिव कठोर तपस्या में लीन थे। इसी दौरान प्रेम के देवता कामदेव आएं और उन्होंने प्रेम बाण चलाकर भोलेनाथ की तपस्या भंग कर दी। तपस्या भंग होने से भगवान शिव शंकर को बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर प्रेम के देवता कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव के भस्म हो जाने से उनकी पत्नी रति बहुत दुखी हो गई। उसने भोलेनाथ के समक्ष अपने पति को जीवित करने की गुहार लगाई। रति की प्रार्थना सुनकर शिव जी का हदय पसीज गया। उन्होंने रति को आश्वासन दिया कि अगले जन्म में कामदेव और रति का फिर से पुनर्मिलन होगा। ऐसी मान्यता है कि जिस दिन भोलेनाथ ने कामदेव को भस्म किया उस दिन फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। उसी दिन के बाद से होलाष्टक मनाने की परंपरा शुरू हो गई और इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित हो गया।

होलाष्टक में क्या करें

होलाष्टक के दौरान हालांकि शुभ और मांगलिक कार्यो को करने की मनाही होती है लेकिन इस दौरान पूजा-पाठ, दान करना सर्वथा हितकारी होता है।

  • होलाष्टक के समय ही रंगभरी एकादशी, प्रदोष व्रत पड़ता है। ऐसे में इस तिथि को व्रत, पूजन जरूर करना चाहिए। होलाष्टक के दौरान व्रत और दान करने से जीवन के संकटों से मुक्ति मिलती है।
  • होलाष्टक के दौरान भगवान नृसिंह की पूजा आराधना करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त संकट मोचन हनुमान जी की पूजा करने से होलाष्टक के दौरान फैली नकारात्मक ऊर्जाओं का नास होता है। इस दौरान नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
  • होलाष्टक के समय आदित्यहदय स्त्रोत, सुंदरकांड का पाठ और बंगलामुख मंत्र के जाप से आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति होती है।
  • होलाष्टक के दौरान कुछ ग्रह उग्र होते है। ऐसे में इस दौरान उन ग्रहों को शांत करने के लिए उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए।

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होलाष्टक में क्या न करें

  • होलाष्टक के दौरान गृह प्रवेश, मुंडन, उपनयन, सगाई जैसे शुभ कार्य भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इस दौरान अगर घर में किसी बच्चे का जन्म हो तो उसकी छठी भी इस समय नहीं करनी चाहिए। उसे आगे के लिए टाल देना चाहिए।
  • यदि आप कोई नया वाहन खरीदना चाहते है तो इस समय टाल दें। इस समय अगर कोई वाहन क्रय करते है तो वह बार-बार आपके लिए समस्या दे सकता है। हां, आप इतना जरूर कर सकते है कि होलाष्टक लगने से पहले वाहन की बुकिंग करा ले और होली वाले दिन वाहन को खरीदे। होली वाले दिन वाहन खरीदना हर दृष्टि से शुभ साबित होगा।
  • होलाष्ट के दौरान किसी नये व्यवसाय को नहीं शुरू करना चाहिए। अगर पहले से कोई व्यवसाय कर रहे हो तो उसमें कुछ बदलाव कर सकते है लेकिन कोई नया व्यवसाय नहीं डालना चाहिए। अगर नौकरी कर रहे हो तो होलाष्टक के दौरान नौकरी बदलने की भूल ना करें। यह आपके जीवन के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
  • अगर घर में मांगलिक कार्य हुआ हो। बहू या बेटी की पगफेरे के लिए विदाई करनी हो तो उसे होलाष्टक के पहले कर लें। होलाष्टक के दौरान भूलकर भी विदाई का कार्यक्रम नहीं करना चाहिए।

होलाष्टक के उपाय

जैसा कि मैने आपको ऊपर बताया कि होलाष्टक के दौरान वातावरण में नकारात्मक शक्तियां विद्यमान रहती है। इसलिए इस दौरान कुछ उपाय है जिनको करने से इन नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा मिलता है और सकारात्मक शक्तियों का प्रवेश होता है।

  • घर की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए थोड़ी राई ले लें। इस राई को एक कागज में लपेटकर उसे जलती हुई होलिका में डाल दे। ऐसा करने से आपके घर की नकारात्मक ऊर्जा का नास होगा और सकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश करेगी।
  • अगर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हो। बहुत प्रयास के बाद भी धन नहीं बच रहा हो तो होलाष्टक के दौरान माता लक्ष्मी का पूजन करने के बाद श्रीसूक्त का पाठ करना चाहिए। साथ ही इस समय अगर आप नरसिंह स्त्रोत का पाठ करते है तो आपको माता लक्ष्मी का आर्शीवाद प्राप्त होगा और धन संबंधी समस्या दूर हो जायेगी। भगवान श्री हरि के नृसिंह अवतार की पूजा करने से आपको बड़ी से बड़ी समस्या से मुक्ति मिलती है।
  • अगर दाम्पत्य जीवन में कलह, क्लेश का वातावरण व्याप्त हो, पति-पत्नी में लड़ाई झगड़े ज्यादा हो रहे हो। दाम्पत्य जीवन में मधुरता का अभाव हो तो होलिका की राख को एक कागज में लपेट लें। इस राख को घर के किसी कोने में छुपाकर रख दे। इससे कलह-क्लेश का वातावरण समाप्त होगा और दाम्पत्य जीवन में मधुरता आयेगी। एक और टोटका है अगर होलिका की आग में जौ का आटा अर्पित करते हैं तो घर में खुशहाली आती है।
  • जिस दिन होलाष्टक लगे उसी दिन अपने घर के मुख्य दरवाजे के दोनों ओर हल्दी या सिन्दूर से स्वास्तिक बनाएं। इससे नकारात्मक ऊजाएं पहले दिन से आपके घर में नहीं प्रवेश कर पाएंगी।
  • अगर नौकरी में बहुत मेहनत करने के बाद भी प्रमोशन ना मिल रहा है। बेरोजगार व्यक्ति को बहुत प्रयास के बाद भी नौकरी ना मिल रही हो तो होलाष्टक के दौरान शिवलिंग पर 21 गोमती चक्र चढ़ाएं। अगले दिन इनको एक लाल कपड़े में बांधकर अपने आफिस में अपने बैठने की जगह के पास रख दे। इस उपाय को करने से आपकी नौकरी संबंधी बाधाएं जल्द ही दूर हो जायेगी।
  • जैसा कि आपने ऊपर जाना होलाष्टक के दौरान 8 ग्रह उग्र अवस्था में रहते है। ऐसे में उन ग्रहों की शांति के लिए होलाष्टक के दौरान भगवान शिव शंकर की आराधना करने से यह ग्रह शांत होते है। होलाष्टक के समय महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना सर्व हितकारी होता है। महामृत्युंजय मंत्र के जाप से बड़े से बड़ा रोग भी दूर हो जाता है और आपकी सेहत ठीक हो जाती है। अगर होलाष्टक के दौरान आप बेलपत्र पर चंदन से राम लिखकर ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ाते है तो आपके जीवन में अस्वभाविक बदलाव आयेगा।
  • सेहत संबंधी एक और उपाय है। एक नारियल लेकर उसे अपने ऊपर से 7 बार एंटी क्लाक वाइस घुमाये। फिर इस नारियल को होलिका में अर्पित कर दे। इसको करने से लंबे समय से अगर कोई बीमारी चल रही है तो वह खत्म होती है।
  • संतान प्राप्ति का सुख चाहते है तो होलाष्टक के दौरान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। लड्डू गोपाल का श्रृंगार करें और उनको फल-फूल, गुलाल अर्पित करना चाहिए। साथ ही उनके मंत्र श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी का नित्य जाप करना चाहिए। ऐसा करने से आपको शीघ्र ही संतान सुख की प्राप्ति होगी।
  • होलाष्टक के दौरान दान-पुण्य करना भी विशेष फलदायी होता है। इस समय किसी गरीब, जरूरतमंद को अपनी सामथ्र्य के अनुसार दान-दक्षिणा देना चाहिए।
  • होलाष्टक के दौरान सवेरे ब्रहम मुहूर्त में उठकर सूर्यदेव को तांबे के लोटे से अध्र्य देना चाहिए। साथ ही सूर्यदेव के मंत्र ऊँ आदित्य नमः, ऊँ सूर्याय नमः आदि का जाप करना चाहिए। इस जाप को करने से तेज, यश की प्राप्ति होती है। जीवन के सारे कष्ट, परेशानियां दूर होती है।
  • होलाष्टक के दौरान आपको अधिक से अधिक देवताओं का पूजन, उनके निर्मित यज्ञ करना चाहिए। मान्यता है कि इस दौरान किया गया हवन-यज्ञ बहुत ही शुभ फलदाई होता है। रोजाना ईश्वर के विभिन्न रूपों का ध्यान करते हुए भजन करना चाहिए।
  • परिवार में सुख समृद्धि लाना चाहते हैं तो होलाष्टक में रामरक्षास्तोत्र, हनुमान चालीसा व विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से घर में खुशहाली आती है।
  • अगर कन्या के विवाह में बाधा आ रही हो तो कन्या के माता-पिता कात्यायनी मंत्रों का जाप करें। इस मंत्र का जाप करने से कन्या के विवाह में आ रही बाधा दूर होगी और शीघ्र विवाह होगा।
  • अगर आपके बच्चे का पढ़ाई से जी उचट रहा हो, पढ़ाई में मन ना लगता हो तो होलाष्टक के दौरान भगवान गणपति के समक्ष बैठकर गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें। पाठ के पश्चात हवन करें। ऐसा करने से बच्चे का पढ़ाई लिखाई में मन लगने लगेगा और वह तीक्ष्ण बुद्धि हो जायेगा।

निष्कर्ष

होलाष्टक ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी अशुभ माना जाता है। इन आठ दिनों में कोई भी मांगलिक व शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। अगर आप भूल से भी किसी शुभ कार्य को इस दौरान शुरू कर देते है तो आपको विपरीत परिणाम प्राप्त होंगे। अगर आप होलाष्टक के दौरान फैली नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो हमने आपको कुछ उपाय भी बताएं है जिनको अपने जीवन में अपनाकर आप बाधाओं को दूर कर सकते है। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको होलाष्टक संबंधी सभी विषयों पर विस्तार से जानकारी दी। उम्मीद करते हैं यह जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित होगी। इस जानकारी को अपने मित्रों-परिजनों के साथ सोशल मीडिया पर साझा अवश्य करें। आप हमे कमेंट यह जरूर बताएं कि यह लेख आपको कैसा लगा। इसी तरह के लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

FAQ : ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q.1. होलाष्टक कब से है?

Ans. वर्ष 2023 में होलाष्टक का आरंभ 27 फरवरी 2023 दिन सोमवार से प्रारंभ होकर 07 मार्च दिन मंगलवार तक रहेगा। इन नौ दिनों में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है।

Q.2. होलाष्टक क्यों अशुभ होते हैं?

Ans फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमासी तक 8 ग्रह उग्र अवस्था में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र रहने से शुभ कार्यों में इनका सहयोग नहीं मिलता है, किसी भी नये कार्य में विघ्न पड़ सकता है जिसके चलते शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।

Q.3. होलाष्टक में क्या करना चाहिए?

Ans. होलाष्टक के समय में पूजा-पाठ, दान पुण्य करना श्रेष्ठ होता है। होलाष्टक के दौरान भोलेनाथ की आराधना करनी चाहिए। उनके विभिन्न मंत्रों, महामृत्युजय मंत्र का जाप करना चाहिए। हनुमान चालीसा का पाठ, आदित्य हदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।

Q.4. होलाष्टक में कौन से कार्य वर्जित हैं?

Ans. होलाष्टक के दौरान गृह प्रवेश, मुंडन, उपनयन, सगाई जैसे शुभ कार्य भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इस दौरान अगर घर में किसी बच्चे का जन्म हो तो उसकी छठी भी इस समय नहीं करनी चाहिए। उसे आगे के लिए टाल देना चाहिए।

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विनायक चतुर्थी : Vinayak Chaturthi Vrat Katha

विनायक चतुर्थी विशेष: विनायक चतुर्थी के दिन क्यों नहीं देखते चांद, जाने इसके पीछे का बड़ा कारण

हिन्दू धर्म में गणेश जी की पूजा का विशेष महत्व है। गणेश जी को प्रथम पूज्य भगवान के रूप में पूजा की जाती है। किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत से पहले भगवान गणेश जी की पूजा करने का विधान है। कई श्रद्धालु भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए उनके निर्मित व्रत भी रखते है। गणेश जी के इन्हीं व्रतों में से एक विनायक चतुर्थी का व्रत भी होता है। पंचांग के अनुसार हर महीने में दो पक्ष होते है। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते है जबकि शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी विनायक चतुर्थी के नाम से जानी जाती है। आज के लेख में हम जानेंगे कि फाल्गुन माह में विनायक चतुर्थी का व्रत कब है, इसका क्या महत्व है और इस दिन किन उपायों को करना श्रेयस्कर है आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

विनायक चतुर्थी कब है | Vinayak Chaturthi Kab Hai 2023

फाल्गुन माह में विनायक चतुथी दिनांक 23 फरवरी, 2023 दिन गुरूवार को प्रातकाल 3 बजकर 24 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 24 फरवरी को दोपहर 01 बजकर 33 तक रहेगी। उदया तिथि के चलते दिनांक 23 फरवरी को ही विनायक चतुर्थी का पूजा व व्रत रखा जायेगा। किसी भी पूजा को करने से पहले शुभ मुहूर्त का ध्यान रखा जाता है। विनायक चतुर्थी का शुभ मुहूर्त 23 फरवरी को सुबह 11ः26 से शुरू होकर दोपहर 01ः43 तक रहेगा। इस मुहूर्त में गणपति बप्पा की विधिवत आराधना करना श्रेयस्कर होगा। इस दिन 4 शुभ योग भी बन रहे हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन भर रहेगा। दिनांक 23 फरवरी को प्रातःकाल 07 बजकर 15 मिनट से शुभ योग प्रारंभ होगा जो रात्रि 08 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। शुभ योग के बाद शुक्ल योग लग जायेगा जो 23 फरवरी को पूरी रात्रि रहेगा और अगले दिन दिनांक 24 फरवरी को भी यही योग रहेगा। विनायक चतुर्थी पर रवि योग भी बन रहा है जो दिनांक 23 फरपरी को सुबह 6ः53 से प्रारंभ होकर दिनांक 24 फरवरी को भोर 03ः44 तक रहेगा। शुभ योगों में पूजा करने से पूजा का दोगुना लाभ मिलता है।

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इस तरह करें पूजा | Vinayak Chaturthi Puja Vidhi

विनायक चतुर्थी वाले दिन ब्रहम मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान कर ले। स्नान करने के बाद साफ धुले हुए वस्त्र पहनकर अपने घर के पूजा स्थल में जाकर वहां की साफ सफाई कर लें। पूजा घर में लकड़ी की एक चैकी लें। उस पर गंगाजल डालकर उसे पवित्र कर लें। चैकी पर गणेश जी की छोटी सी प्रतिमा स्थापित कर दे। प्रतिमा स्थापित करने से पहले गणेश जी को स्नान करवा दें। जमीन पर आसन बिछाए। इसके बाद पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठ जाएं और गणेश जी के यंत्र की स्थापना करें। पूजन की सारी सामग्री फूल, धूप, दीप, कपूर, मौली, रोली, लाल चंदन, फल, प्रसाद के लिए मोदक आदि को एक जगह इकट्ठा कर लें। इसके बाद गणेश जी को मौली, चंदन, लाल चंदन का तिलक लगाएं। इस तिलक को अपने माथे पर भी आर्शीवाद स्वरूप लगाएं। गणेश जी को पुष्प, माला समर्पित करें। गणेश जी के मंत्रों का जाप करते हुए उनकी पूजा-आराधना करें। ‘ऊँ गणपते नमः, वक्रतुण्डाय नमः, सिद्ध लक्ष्मी मनोहरिप्राय नमः इन मंत्रों का जाप करना सर्वदा हितकारी होता है। गणेश जी को धूप, दीप, नैवेद्य, पान का पत्ता और फल अर्पित करें। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को रात में चंद्रमा की पूजा नहीं की जाती है। इस दिन चंद्रमा को देखने से कलंक लगता है। इसके पीछे भी एक कथा है। इस कथा के अनुसार श्रीकृष्ण जी ने चैथ का चांद देखा था जिसके चलते उन पर मणि चोरी का कलंक लगा था। ऐसे में विनायक चतुर्थी को दिन में ही गणेश जी की पूजा करने के बाद रात्रि में व्रत का पारण कर लिया जाता है। पूजा पूर्ण होने के बाद विनायक चतुर्थी की कथा करें। इसके बाद गणेश जी की आरती करें। आरती के बाद गणेश जी को मोदक, फल का भोग लगायें। स्वयं इस प्रसाद को ग्रहण करें और घर के अन्य परिजनों को भी इस प्रसाद को दें।

विनायक चतुर्थी व्रत कथा | Vinayak Chaturthi Vrat Katha

विनायक चतुर्थी की एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक दिन माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे भगवान शिव के साथ बैठी थी। अनायास ही उनके मन में चैपड़ खेलने का विचार आया लेकिन वहां कोई ऐसा नहीं था जो इस बात का निर्णय करता कि चैपड़ में कौन जीता और कौन हारा। शिव जी माता के मन की बात समझ गये। उन्होंने वहीं पास में पड़े तिनके उठाएं और उनसे एक बालक का पुतला बनाकर उसमें प्राण फूंक दिये। बालक को उन्होंने यह जिम्मेदारी सौंपी कि वह देखे कि उनके और माता पार्वती के बीच जो चैपड़ खेली जा रही है उसमें कौन जीता। भगवान शिव और माता पार्वती के बीच तीन बार चैपड़ का खेल हुआ लेकिन हर बार बालक ने भगवान शिव को ही विजेता घोषित कर दिया। बालक के गलत फैसले के चलते माता पार्वजी उस बालक से रूष्ट हो गई और क्रोधवश उन्होंने उस बालक को लंगड़ा होने का श्राप दे दिया। माता पार्वती के श्राप के चलते वह बालक लंगड़ा हो गया। तब उस बालक को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने माता पार्वती से अपने कृत्य के लिए क्षमा मांगी। बालक की करूण पुकार सुनकर माता पार्वती को दया आ गई। उन्होंने उससे कहा कि जब विनायक गणेश चतुर्थी का व्रत पड़े तो तुम विधिविधान से गणेश चतुर्थी का व्रत करना। बालक ने माता के कथानुसार विनायक चतुर्थी वाले दिन गणेश जी का पूजन किया। बालक के विधिवत पूजन से गणेश जी अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने बालक को श्राप से मुक्त कर दिया।

विनायक चतुर्थी पर नहीं देखना चाहिए चंद्रमा

जैसा कि मैने ऊपर के लेख में बताया कि विनायक चतुर्थी वाले दिन चन्द्रमा को देखने से कलंक लगता है इसके पीछे एक कहानी है। इस कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण पर मणि चोरी करने का कलंक लगा था। इससे वे बहुत अपमानित हुए थे। स्वयं नारद जी ने इस विषयक बताया कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को जो भी जातक चंद्रमा के दर्शन कर लेता है उस पर झूठा कलंक लगता है। नारद जी ने आगे बताया कि इसके पीछे चंद्रमा को गणेश जी द्वारा दिया गया श्राप है। नारद जी की बात मानकर ही श्रीकृष्ण जी ने शुक्लपक्ष की गणेश चैथ का व्रत किया था जिससे वह इस कलंक से दोष मुक्त हो गए है।

अगर आज के दिन भूल से चंद्रमा के दर्शन आप कर लें तो घबराएं नहीं। चंद्र दोष के निवारण के लिए श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ करने करना चाहिए। इसके करने से चंद्र दोष समाप्त हो जाता है और मिथ्या कलंक नहीं लगता है। इसके अतिरिक्त एक मंत्र भी है जिसका 108 बाद जाप करने से चंद्र दोष समाप्त होता है। यह मंत्र है –

सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।

विनायक चतुर्थी का महत्व | Vinayak Chaturthi Ka Mehtva

विनायक चतुर्थी के दिन जो भी श्रद्धालु विध्नहर्ता भगवान गणेश की पूरी श्रद्धा भाव से पूजा करते है। उस पर गणपति जी की विशेष कृपा बरसती है और उसके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते है। गणपति जी ज्ञान और धैर्य का आर्शीवाद प्रदान करते हैं।

विनायक चतुर्थी पर गणपति जी के सिद्धिविनायक रूप की आराधना करने से निःसंतान दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती है। संतान के सारे कष्टों के निवारण के उद्देश्य से विनायक चतुर्थी का व्रत विशेष लाभकारी है।

विनायक चतुर्थी के उपाय | Vinayak Chaturthi Ke Upay

विनायक चर्तुािी के कुछ उपाय है जिनको करने से जीवन में किसी तरह की कठिनाई, बाधा हो तो वह दूर होती है और जीवन सुखमय व्यतीत होता है।

विनायक चतुर्थी के दिन हल्दी की पांच गाठें ले और श्री गणाधिपतये नमः मंत्र का 108 बार जाप करते हुए गणेश जी को अर्पित करें। ऐसा करने से नौकरी में अगर किसी तरह की परेशानी आ रही हो। प्रमोशन ना हो रहा है तो उसकी संभावनाएं बढ़ जायेंगी। कैरियर में उन्नति होगी।

आर्थिक समस्या को दूर करने के लिए विनायक चतुर्थी के दुर्वा की 108 गांठे लेकर उनको हल्दी में भिगोकर श्री गजवकत्रम नमो नमः मंत्र का जाप करते हुए गणेश जी को अर्पित करें। ऐसा करने से आर्थिक समस्या दूर होगी। धन संपदा में बढ़ोत्तरी होगी।

वैवाहिक जीवन में कोई समस्या आ रही हो, पति-पत्नी के रिश्ते में अनबन हो तो विनायक चतुर्थी के दिन पान के सादे पत्तों में सिंदूर लगाकर उसे गणपति महाराज के चरणों में अर्पित करें। इस सिंदूर को अपने मस्तक पर लगाएं। इस उपाय को करने से वैवाहिक जीवन में चली आ रही समस्या समाप्त होगी।

अगर प्रेम विवाह करने में कोई अड़चन आ रही तो विनायक चतुर्थी के दिन 5 लौंग और 5 इलायची गणपति जी को अर्पित करें। इसके बाद अपने प्रेम विवाह के सकुशल होने की कामना करें। पूजा के बाद इलायची और लौंग को एक हरे कपड़े में बांधकर अपने पास रख ले। ऐसा करने से प्रेम विवाह में आ रही अड़चन दूर होगी और सकुशल प्रेम विवाह सम्पन्न हो जायेगा।

अगर परिवार में संपत्ति संबंधी कोई विवाद हो, कोर्ट कचहरी मुकदमों में फंसे हो तो इससे छुटकारा पाने के लिए आज के दिन गणपति जी की छोटी प्रतिमा के समरू चांदी का चैकोर टुकड़ा चढ़ाएं और गणपति महाराज से इस विवाद को खत्म करने की प्रार्थना करें। गणपति महाराज के आर्शीवाद से परिवार में प्रेम बढ़ेगा और चल रही संपत्ति विवाद समाप्त होगा।

गणेश जी को 21 लड्डूओं का भोग लगाएं और इन लड्डुओं को गरीबों को दान दें। इसको करने से आपका बुध मजबूत होगा और पढ़ाई में रूचि बढ़ेगी।

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विनायक चतुर्थी वाले दिन क्या करें | Vinayak Chaturthi Par Kya Kare

विनायक चतुर्थी वाले दिन जो भी प्रसाद का भोग आप भगवान गणेश को लगाते है उसे गरीबों या ब्राहमणों को अवश्य बांटे। इस दिन किसी जरूरतमंद को भोजन जरूर कराना चाहिए और यथाशक्ति दान भी देना चाहिए।

आज के दिन पूरे दिन भर गणेश जी के मंत्रों को निरन्तर जाप करते रहना चाहिए। इन मंत्रों के जाप से आपके जीवन में सभी परेशानियां दूर हो जायेगी और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी।

गणेश पूजन में परिक्रमा करने का बहुत महत्व है। आज के दिन गणेश जी की पूजा के बाद तीन बार परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।

विनायक चतुर्थी पर गणेश जी की विशेष कृपा बरसती है। ऐसे में आज के दिन शाम को संकटनाशक गणेश स्त्रोत का पाठ अवश्य करना चाहिए। इस पाठ को करने से किसी भी कार्य में आ रही बाधा दूर होती है और करने वाले जातक को धन संबंधी समस्या भी हटती है।

विनायक चतुर्थी का व्रत दिन में होता है और इस व्रत का पारण शाम को किया जाता है। ऐसे में शाम को व्रत के पारण से पहले गणेश चालीसा, संकटनाशक गणेश सत्रोत का पाठ और गणेश जी की आरती जरूर करें।

विनायक चतुर्थी वाले दिन क्या न करें | Vinayak Chaturthi Par Kya Na Kare

इस दिन किसी भी प्रकार का सात्विक भोजन जैसे प्याज, लहसुन का प्रयोग ना करें। सिर्फ सादा भोजन ही करें।

अपने से किसी भी बड़े का अपमान ना करें। ना किसी को अपशब्द बोले। अगर भूल से भी आप किसी का अपमान कर देते है तो आपको इसका फल आपको भुगतना पड़ेगा।

गणेश जी की पूजा में तुलसी दल को डालने की मनाही होती है। ऐसे में किसी भी चीज का भोग लगाते समय उसमें भूलकर भी तुलसी की पत्तिया ंना डाले।

विनायक चतुर्थी को सनातन धर्म में बहुत महत्ता है। इस दिन विधिपूर्वक गणेश जी का व्रत करने से जातक के जीवन की सभी परेशानियां और कष्ट दूर हो जाता है। अगर आप इसी तरह गणेश जी का व्रत करते है तो गणपति बप्पा की कृपा आप पर अवश्य बरसेगी। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको विनायक चतुर्थी के बारे में सारी जानकारी प्रदान की। आप इस लेख को अन्य परिजनों के साथ साझा अवश्य करें। इसी प्रकार के धार्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहें। जयश्रीराम

FAQ | ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. विनायक चतुर्थी कब है

Ans. विनायक चतुर्थी हर माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। फाल्गुन माह में 23 फरवरी, 2023 दिन गुरूवार को विनायक चतुर्थी पड़ेगी।

2. विनायक चतुर्थी पर चंद्रमा क्यों नही देखना चाहिए

Ans. विनायक चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखने से कलंक लगता है। इसके पीछे भी एक कथा है। इस कथा के अनुसार श्रीकृष्ण जी ने चैथ का चांद देखा था जिसके चलते उन पर मणि चोरी का कलंक लगा था।

3. विनायक चतुर्थी पर क्या खाना चाहिए

Ans. विनायक चतुर्थी के दिन एक ही समय फलाहार करना चाहिए। फलाहार में नमक नहीं खाना चाहिए। रात में व्रत का पारण किया जाता है।

4. क्या गणेश जी को तुलसी चढ़ाई जाती है

Ans. विनायक चतुर्थी के व्रत में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है। ऐसे में किसी भी चीज का भोग लगाते समय तुलसी नहीं डालनी चाहिए।

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सोमवती अमावस्या की कथा | Somvati Amavasya Ki Katha

सोमवती अमावस्या विशेष: सोमवती अमावस्या पर कर लें ये उपाय, जीवन की सभी बाधाएं होंगी दूर

हिन्दू धर्म में अमावस्या तिथि का बड़ा महत्व है। हर माह में अमावस्या तिथि पड़ती है। अमावस्या की तिथि को पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। सोमवार के दिन जो अमावस्या पड़ती है उसे सोमवती अमावस्या कहते है। यह साल में एक या दो बार पड़ती है। सोमवती अमावस्या पर माता पार्वती और भोलेनाथ शिव शंकर की पूजा-आराधना की जाती है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है। तो दोस्तों आज के लेख में हम जानेंगे कि वर्ष 2023 में सोमवती अमावस्या कब है, कैसे इस दिन पूजा करनी चाहिए, इस दिन कौन से उपाय करने चाहिए जिनको करने से जीवन की सारी बाधाएं और संकट दूर हो जाएं।

सोमवती अमावस्या कब है | Somvati Amavasya Kab Hai 2023

जैसा कि इस लेख में मैने आपको बताया कि वर्ष में एक या दो बार सोमवती अमावस्या पड़ती है। वर्ष 2023 में सोमवती अमावस्या 20 फरवरी, 2023 दिन सोमवार को पड़ेगी। सोमवती अमावस्या 19 फरवरी, दिन रविवार को शाम को 04ः18 मिनट से शुरू होकर 20 फरवरी को दोपहर 12ः35 पर समाप्त हो जायेगी। सोमवती अमावस्या पर दान और पूजा दोनों करने का विधान होता है लेकिन यह दोनों ही काम शुभ मुहूर्त में करना विशेष फलदायी होता है। सोमवती अमावस्या पर पूजा करने का शुभ मुहूर्त 20 फरवरी को सुबह 09ः50 से 11 बजकर 15 मिनट तक का है जबकि स्नान दान का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 56 मिनट से आरम्भ होकर 08 बजकर 20 मिनट तक का है।

फाल्गुन अमावस्या इस साल परिघ योग में पड़ रही है। यह योग 20 फरवरी को सुबह 07 बजकर 20 मिनट से 11 बजकर 03 मिनट रहेगा। परिघ योग शनि से शासित योग होता है। ऐसे में शनि का प्रभाव ज्यादा पड़ता हे। परिघ योग शत्रु निवारण योग भी होता है। इस योग में आप अपने शत्रुओं को पराजित करने के लिए कोई कदम उठाएंगे तो आपके शत्रु परास्त होंगे और आपको अपने शत्रुओं पर विजय मिलेगी। परिघ योग में शुभ कार्य करना वर्जित होता है। हालांकि इस योग में पूजा-पाठ कर सकते है। परिघ योग के समाप्त होने के बाद शिव योग शुरू हो जायेगा।

सोमवती अमावस्या पर ऐसे करें पूजा | सोमवती अमावस्या पूजा विधि | Somvati Amavasya Puja Vidhi

सोमवती अमावस्या वाले दिन प्रातःकाल उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान कर ले। अमावस्या तिथि पर किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने करना चाहिए। अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो अपने घर के स्नान वाले पानी में गंगाजल मिलाकर पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान करें। अमावस्या के दिन पितरों के निर्मित श्राद्ध कर्म, तर्पण करने से पितरों का आर्शीवाद प्राप्त होता है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा जरूर करनी चाहिए। पीपल के पेड़ में देवताओं का वास होता है। ऐसे में आज के दिन पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है और सारे संकट दूर होते है। आज के दिन गायत्री मंत्र का जाप करना भी सर्वहितकारी होता है इसलिए दिन में अधिक से अधिक बार इस मंत्र का जाप करें। तुलसी के पौधे की परिक्रमा भी अवश्य करनी चाहिए।

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सोमवती अमावस्या का महत्व | Somvati Amavasya Ka Mehtva

सोमवती अमावस्या वाले दिन भोलेनाथ शिव शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है। सोमवती अमावस्या वाले दिन सुहागिन स्त्रियां स्त्रियां पीपल के पेड़ की पूजा करती है। उसमें दूध, जल, चंदन, अक्षत आदि चीजों अर्पित करती है। और कच्चे सूत के धागे को पीपल के पेड़ में 108 बार बांधकर उसकी परिक्रमा करती है। कुछ स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत भी रखती है।

सोमवती अमावस्या वाले दिन मौन रखने का विशेष महत्व होता है। कहते हैं कि आज के दिन मौन व्रत रखने से सहस्र्रत्रों गोदान के बराबर फल की प्राप्ति होती है। इसलिए आज के दिन सुहागिन स्त्रियां मौन व्रत भी रखती हैं। पुराणों में सोमवती अमावस्या के व्रत को अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत के नाम से भी पुकारा गया है। अश्वत्थ यानि पीपल का वृक्ष।

सोमवती अमावस्या के दिन दान, पितरों के निर्मित तर्पण करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन सीधा निकालकर किसी मंदिर में जाकर पितरों के निर्मित दान देना चाहिए। इस बार सोमवती अमावस्या महाशिवरात्रि के तुरंत बाद पड़ रही है। सोमवती अमावस्या पर भी भोलेनाथ और मां गौरी की पूजा होती है। इससे सोमवती अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है।

सोमवती अमावस्या पर 30 वर्ष बाद महासंयोग बन रहा है। कुंभ राशि में चंद्र, शनि और सूर्य एक साथ युति बना रहे है। इन तीनों ग्रहों का एक साथ एक ही घर में होना पितृ कर्म के लिए अनुकूल होता है।

सोमवती अमावस्या व्रत कथा | Somvati Amavasya Vrat Katha | Somvati Amavasya Ki Kahani

सोमवती अमावस्या की पौराणिक कथा के अनुसार एक राज्य में एक ब्राहमण दंपत्ति रहते था। वह अपनी गरीबी से बहुत परेशान थे। आर्थिक तंगी के चलते वह अपनी पुत्री का विवाह भी कर पा रहा थे। एक दिन ब्राहमण दंपत्ति की मुलाकात एक साधु से हुई। उस दंपत्ति ने साधु के सामने अपनी समस्या को रखा और इसे दूर करने का उपाय पूछा। साधु ने उसकी करूण व्यथा को सुनकर उससे कहा कि गांव के पास एक धोबिन अपने बेटे और बहू के साथ रहती है। यदि तुम चाहती हो कि तुम्हारी बेटी का वैधव्य मिट जाएं तो तुम्हारे बेटी को उस धोबिन के घर जाकर उसकी सेवा करनी होगी , तो धोबिन तुम्हारी सेवा से खुश होकर तुम्हारी पुत्री को अपनी मांग का सिंदूर दे देगी। लेकिन ध्यान रहे धोबिन को इस बात का पता नहीं चलना चाहिए। साधु की इस बात को सुनकर ब्राहमण बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अगली ही सुबह अपनी पुत्री को धोबिन के घर उसकी सेवा करने के लिए भेज दिया। उसकी पुत्री धोबिन के घर जाकर काम करने लगी। धोबिन को इस बात की जानकारी नहीं थी, वह सोचने लगी कि उसकी बहू इतनी सुबह उठकर कैसे घर का काम खत्म कर लेती है। धोबिन ने एक दिन जल्दी सुबह उठकर देखा तो वह अचरज रह गई। एक कन्या उसके घर का सारा काम करके चुपचाप चली जाती थी। कन्या उसी तरह उसके घर का काम करती रही। एक दिन धोबिन ने उस कन्या ने पूछा कि तुम मेरी घर का काम क्यों करती हो। ब्राहमण कन्या ने साधु की सारी बातों को धोबिन को बता दिया। धोबिन ने उसकी सेवा से प्रसन्न होकर अपनी मांग का सिंदूर कन्या को दे दिया। ऐसा करते ही धोबिन के पति की मृत्यु हो गई। धोबिन के पति की मृत्यु होने से धोबिन बहुत दुखी हुई। दुखी होकर वह एक पीपल के पेड़ गई और ईंट के 108 टुकड़े लेकर पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने लगी। परिक्रमा के बाद वह उन ईटों को दूसरी दिशा में फेंकने लगी। पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने से उसे भगवान का आर्शीवाद मिला और उसका पति जीवित हो गया। तभी से सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने से सुहागिन स्त्रियों को उनके सुहाग का आर्शीवाद मिलता है।

सोमवती अमावस्या पर करें ये उपाय |

सोमवती अमावस्या पर कुछ उपाय है जिनको करने से जीवन की बाधाएं और संकटों से मुक्ति मिलती है।

  • अगर आर्थिक समस्या का सामना कर रहे हों तो आज के दिन मुठ्ठी भर चावल लेकर भोलेनाथ के मदिर में जाकर शिवलिंग पर अर्पित कर दे। भोलेनाथ की कृपा से आपकी धन संबंधी समस्या दूर हो जाएंगी और सुख समृद्धि में वृद्धि होगी।
  • सेहत अक्सर खराब रहती हो। काफी इलाज के बाद भी ठीक ना हो रही हो तो आज के दिन दूध में गंगाजल डालकर शिवलिंग पर अर्पित करे। ऐसा करने से सेहत की समस्या दूर होगी।
  • कालसर्प दोष निवारण के लिए सोमवती अमावस्या का दिन सबसे उत्तम होता है। इस दोष के निवारण के लिए सोमवती अमावस्या के दिन किसी मंदिर में जाकर शिवलिंग का दूध, दही, घी, शक्कर, शहद से अभिषेक करें। तत्पश्चात इनका पंचामृत बनाकर भोलेनाथ का मंत्र ऊँ नमः शिवाय जपते हुए अभिषेक करें। चांदी के तार से बने नाग-नागिन की पूजा करने के बाद उन्हें सफेद फूल के साथ जल में विसर्जित कर दें। ऐसा करने से आपकी कुंडली में मौजूद काल सर्प दोष खत्म हो जायेगा।
  • महिलाएं अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए आज के दिन पीपल के पेड़ में कच्चे सूत के धागे को 108 बार बांधकर उसकी परिक्रमा करें। पीपल के पेड़ पर दूध और जल अर्पित करें। इसके बाद कुंवारी को यथा संभव दान दे। ऐसा करने से पति की आयु बढ़ती है, उसका मान सम्मान भी बढ़ता है।
  • अपने जीवनसाथी की तरक्की के लिए एक और उपाय है जिसे सोमवती अमावस्या के दिन शाम को करना चाहिए। शाम को घर या मंदिर के ईशान कोण में दीपक जलाएं। इस दीपक में रूई की जगह लाल रंग की बत्ती का उपयोग करें। दिए को जलाने में गाय के घी का इस्तेमाल करें। ऐसा करने से जीवन साथी को नौकरी में पदोन्नति होती है।
  • करियर की समस्या को दूर करने के लिए आज के दिन ओंकार मंत्र का जाप करना चाहिए। अगर आज के दिन रात्रि में रोटी के ऊपर सरसों का तेल लगाकर अगर काले कुत्ते को खिलाएं तो करियर संबंधी सभी समस्याएं दूर होती है।
  • सोमवती अमावस्या के दिन शिव परिवार के एक और सदस्य गणेश जी की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। आज के दिन गणेश जी को सुपारी चढ़ानी चाहिए। इस उपाय को करने से दरिद्रता दूर होती है।

क्या करें इस दिन | सोमवती अमावस्या के दिन क्या करना चाहिए?

अमावस्या के दिन दान-पुण्य का बहुत महत्व है। अतः इस दिन अपनी सामथ्र्यनुसार किसी गरीब को दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। सफेद चीज जैसे दूध, दही आदि का दान करना चाहिए।

पीपल के पेड़ में भगवान का वास होता है। पीपल की जड़ में भगवान श्री हरि विष्णु, तने में भोलेनाथ शिव शंकर तथा अग्र भाग में सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी का वास होता है। इसलिए आज के दिन पीपल के वृक्ष का पूजन अवश्य करना चाहिए। इससे भाग्योदय होता है।

सोमवती अमावस्या के दिन सूर्य देवता को जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है। दरिद्रता दूर होता है।

जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा की स्थिति कमजोर है, उन्हें आज के दिन गाय को दही और चावल खिलाना चाहिए। ऐसा करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है।

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क्या न करें इस दिन |

सोमवती अमावस्या के दिन तामसिक भोजन, प्याज, लहसुन, मास मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
आज के दिन महिलाओं को बाल नहीं धोना चाहिए। न ही आज के दिन बालों में तेल लगाना चाहिए। अमावस्या के दिन ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं अमावस्या के दिन बाल धोती है उनके घर में कलह क्लेश का वातावरण बना रहता है। घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर जाती है। परिवार में लड़ाई झगड़े बढ़ते है, घर में लक्ष्मी की हानि होती है।

आज के दिन सुबह देर तक तक नहीं सोना चाहिए, ब्रहम मुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए। अगर आप देर तक सोते है तो घर में दरिद्रता आती है। अमावस्या के दिन दोपहर के समय कभी भी नहीं सोना चाहिए।

अमावस्या पर पति-पत्नी को आपस में संबंध भी नहीं बनाना चाहिए। मान्यता है कि अगर आज दंपत्ति संबंध बनाते है तो उससे संतान होती है तो संतान का जीवन दुखदायी रहता है।

सोमवती अमावस्या हिन्दू धर्म की एक महत्वपूर्ण तिथि है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने, दान पुण्य करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको सोमवती अमावस्या के बारे में सारी जानकारी प्रदान की। उम्मीद करते है यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। इसे सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों, परिजनों के साथ साझा अवश्य करें। आप हमें कमेंट करके यह जरूर बताएं कि हमारे लेख आपको कैसे लग रहे है। आगे आप किस व्रत, त्योहार के विषय में जानकारी चाहते हैं। इसी तरह के आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

FAQ – ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q.1. सोमवती अमावस्या कब है?

Ans. वर्ष 2023 में 20 फरवरी को सोमवती अमावस्या मनाई जायेगी। सोमवार को पड़ने के चलते इसे सोमवती अमावस्या कहते हैं।

Q.2. सोमवती अमावस्या पर कैसे करें पूजा?

Ans. सोमवती अमावस्या वाले दिन भोलेनाथ शिव शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है। सोमवती अमावस्या के दिन सुहागिन स्त्रियां को पीपल के पेड़ की पूजा करती हैं। कच्चे सूत के धागे को पीपल के पेड़ में 108 बार बांधकर उसकी परिक्रमा करती है।

Q.3. सोमवती अमावस्या पर क्या करें?

Ans.अमावस्या के दिन दान-पुण्य का बहुत महत्व है। अतः इस दिन अपनी सामथ्र्यनुसार किसी गरीब को दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। सफेद चीज जैसे दूध, दही आदि का दान करना चाहिए। इस दिन पितरों के निर्मित दान, तर्पण अवश्य करना चाहिए।

Q.4. सोमवती अमावस्या पर क्या न करें?

Ans. आज के दिन महिलाओं को बाल नहीं धोना चाहिए। सुबह देर तक तक नहीं सोना चाहिए, ब्रहम मुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए। बुजुर्गो का अनादर नहीं करना चाहिए। किसी को भी कठोर शब्द नहीं बोलना चाहिए।

Q.5. सोमवती अमावस्या पर मौन क्यों रहते है?

Ans. सोमवती अमावस्या वाले दिन सुहागिन स्त्रियां मौन रहकर व्रत रखती है। पुराणों में लिखा है सोमवती अमावस्या के दिन मौन व्रत रखने से सहस्र्रत्रों गोदान के बराबर फल की प्राप्ति होती है।

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महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है | Maha Shivratri Kab Hai

महाशिवरात्रि पर इन नियमों से भोलेनाथ पर चढ़ाएं बेल पत्र, मिलेगी भोलेनाथ की असीम कृपा

हिन्दू धर्म में महाशिवरात्रि पर्व का बहुत महत्व है। वैसे तो साल भर में कुल 12 शिवरात्रि आती हैं। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। बाकी अन्य 11 माह के कृष्ण पक्ष को जो शिवरात्रि पड़ती है वह मासिक शिवरात्रि कहलाती है। इस दिन देवों के देव महादेव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। ऐसी भी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ के 12 ज्योतिलिंग धरती पर प्रकट हुए थे। महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ के भक्त मंदिरों में शिव जी का अलग-अलग वस्तुओं से अभिषेक करते हैं और व्रत करते है। तो आईये आज के लेख में हम जानते है कि साल 2023 में महाशिवरात्रि किस दिन है, कैसे इस दिन पूजा करनी चाहिए, किस नियम से बेलपत्र चढ़ाने चाहिए आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

महाशिवरात्रि कब है | Maha Shivratri Kab Hai 2023 Me

महाशिवरात्रि को पर्व को लेकर इस बार लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कुछ लोग 18 फरवरी, 2023 दिन शनिवार को महाशिवरात्रि मनाने को कह रहे है तो कुछ का कहना है कि महाशिवरात्रि 19 फरवरी, 2023 दिन रविवार को मनानी चाहिए। तो आईये हम आपको बताते है कि किस दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाना चाहिए। पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि 18 फरवरी, 2023 को रात्रि 08ः03 पर शुरू होकर 19 फरवरी, 2023 दिन रविवार को शाम को 04ः19 मिनट पर समाप्त होगी। महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ की पूजा निशिता काल में होती है। अगर आप नहीं जानते कि निशिता काल क्या होता है तो हम आपको बताते है कि निशिता काल रात्रि 12 बजे से भोर में 03 बजे का समय होता है। महाशिवरात्रि में त्रयोदशी के उपरांत चतुर्दशी का योग होना भी अत्यन्त शुभ होता है। ऐसे में महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी, 2023 को मनाना ही श्रेयस्कर होगा।

महाशिवरात्रि पर इस बार भोलेनाथ के भक्तों को महादेव की 2 पर्वों का लाभ मिलेगा। एक तो 18 फरवरी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व है। वहीं इसी दिन भोलेनाथ को समर्पित प्रदोष व्रत भी है। महाशिवरात्रि के दिन प्रदोष व्रत का पड़ना इस पर्व की महत्ता को और भी बढ़ा देता है। महाशिवरात्रि पर इस बार त्रिग्रही योग भी बन रहा है। 17 जनवरी को शनिदेव ने कुंभ राशि में प्रवेश किया था। 13 फरवरी को सूर्यदेव ने भी इस राशि में प्रवेश कर लिया। 18 फरवरी को चंद्रमा भी कुंभ राशि में प्रवेश कर गये। ऐसे में चंद्रमा, सूर्य और शनि के संयोग से त्रिग्रही योग बन रहा है। ज्योतिषयों के अनुसार यह संयोग बहुत ही दुर्लभ होता है। शनिवार 18 फरवरी को दोपहर 03ः35 मिनट से सिद्धि योग भी बन रहा है। इन सभी योगों के मिलने से महाशिवरात्रि का महत्व और भी बढ़ा जाता है।

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महाशिवरात्रि पर इस तरह करें पूजा | Maha Shivratri Puja Vidhi | MahaShivratri Pujan Vidhi

महाशिवरात्रि पर ब्रहम मुहूर्त में उठ जाएं। नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान कर लें। स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनकर घर के पूजाघर में जाकर महाशिवरात्रि पूजन की सामग्री इकट्ठा कर लें। हर पूजा को करने का अपना नियम होता है और उसमें अलग-अलग पूजन सामग्री का उपयोग होता है। महाशिवरात्रि की पूजा चार पहरों में की जाती है। इन चारों पहरों में भोलेनाथ की अलग-अलग तरीकों से पूजा की जाती है। भोलेनाथ की पूजा करने से पहले पूजन सामग्री गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, बेलपत्र, भांग, धतूरा, फूल, इत्र, अगरबत्ती, अक्षत, धूपबत्ती आदि एक जगह इकट्ठा कर लें। इसके बाद दूध, दही, घी, शहद और शक्कर को मिलाकर पंचामृत बना लें। इसके बाद भोलेनाथ के मंदिर जाकर गंगाजल से, दूध से, पंचामृत दही से शिवलिंग का अभिषेक करें। शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय हमेशा पीतल, चांदी और कांसे के लोटे का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके बाद भोलनाथ को बेलपत्र अर्पित करें। ध्यान रहें बेलपत्र कटे-फटे ना हो व साफ और स्वच्छ धुले हुए हो। बेलपत्र 11, 21 और 51 के क्रम में ही चढ़ाएं। बेलपत्र चढ़ाने के भी कुछ नियम होते हैं जिनके बारे में मैं आपको इस लेख में आगे बताऊंगा। बेलपत्र चढ़ाते समय शिवजी के मंत्रों का जाप करते रहे। ये मंत्र हैं-


ऊँ नमोः शिवाय

महामृत्युजय मंत्र

ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम।
उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।

भोलेनाथ को भांग, धतूरा अर्पित करें। धूप, दीप नैवेद्य दिखाएं।

शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येऽहं महाफलम। निर्विघ्नमस्तु से चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।‘

इस श्लोक को पढ़कर भोलेनाथ के व्रत का संकल्प लें। महाशिवरात्रि की कथा पढ़े। तत्पश्चात भोलेनाथ की आरती “ऊँ जय शिव ओंकारा करें“। भोलेनाथ के सम्मुख अपनी मनोकामना को रखें। भोलेनाथ शिव शंकर को प्रसाद चढ़ाये। इस प्रसाद को अपने घर के सभी लोगों में वितरित करें।

महाशिवरात्रि की व्रत कथा | Maha Shivratri Vrat Katha | MahaShivratri Story in Hindi

महाशिवरात्रि की कथा के बारे में शिव पुराण में बताया गया है। इस कथा के अनुसार पुरातन समय में एक शिकारी जानवरों का शिकार करके अपने बाल-बच्चों को पालता था। एक बार की बात है वह जंगल में शिकार के लिए गया लेकिन उसे कोई शिकार नहीं मिला। शाम होते-होते जब उसे कोई शिकार नहीं मिला तो थक हारकर उसने बेल के वृक्ष के ऊपर अपना पड़ाव बना लिया। उस पेड़ पर बैठने के लिए उसने कुछ बेल पत्रों को हटाया जो उस बेल के नीचे स्थित शिवलिंग पर गिर गये। शिकारी को अपने शिकार की तलाश करते काफी देर हो गई लेकिन शिकारी को कोई शिकार नहीं मिला तो वह बेलपत्रों की टहनियों को तोड़कर नीचे फेकता रहा जो शिवलिंग पर अर्पित हो गई। दिन भर भूखे रहने के चलते उससे व्रत हो गया और बेलपत्र भी चढ़ गया। उस दिन शिवरात्रि का पर्व था संयोग से उससे पूजा भी हो गई और व्रत भी हो गया। थोड़ी देर बाद उसे एक गर्भवती मृगी दिखाई दी। उसने जैसे ही धनुष चढ़ाया तो उस मृगी ने अपने गर्भ का वासता देकर उससे उसका शिकार ना करने को कहा और बच्चे को जन्म देकर वापस आने का आश्वासन दिया। शिकारी ने मृगणी को छोड़ दिया। धनुष रखने के दौरान कुछ बेलपत्र फिर से शिवलिंग पर आ गिरे। थोड़ी देर बाद उसे एक हिरणी दिखी उसने फिर धनुष चढ़ाया तो हिरणी ने अपने पति से मिलकर वापस आने पर शिकार करने को कहा। शिकारी ने उसका भी शिकार नहीं किया। पर वह सोचने लगा चलो दो शिकार तो मिल गये। रात्रि के अंतिम प्रहर में उसे एक हिरणी अपने बच्चों के साथ दिखी। शिकारी ने फिर धनुष ताना पर हिरणी ने अपने बच्चों को बख्श देने की विनती शिकारी से दी उसने कहा कि इन बच्चों को अपने पति को देकर आने के बाद मेरा शिकार कर लेना। शिकारी को दया आ गई उसने उसे भी जाने दिया। भूखा-प्यासा शिकारी बेलपत्र को तोड़कर शिवलिंग पर फेंकता रहा। शिकार का इंतजार करते-करते सुबह हो गई। शिकारी को एक हिरण तालाब के पास दिखाई दिया उसने धनुष चढ़ाकर उस हिरण को मारने का मन बना लिया। हिरण ने कहा कि अगर तुमने मुझसे पहले आये तीन हिरणों और उनके बच्चों का वध कर दिया हो तो मुझे भी मार डालो। मैं उनका पति हूं। मैं उन सबसे मिलकर वापस तुम्हारे पास आऊँगा। तब तुम मेरा शिकार कर लेना। हिरण का दीन स्वर सुनकर शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया। थोड़ी देर बाद हिरण सपरिवार शिकारी के सामने आ गया जिससे वह उसका शिकार कर सके। हिरण की सत्यता देखकर शिकारी का हदय पिघल गया। उसने उसके परिवार को ना मारकर सदा के लिए हिंसा को छोड़ने का प्रण किया। महाशिवरात्रि के दिन अंजाने में शिकारी से चारों प्रहरों की पूजा करने से भोलेनाथ बहुत प्रसन्न हुए। भोलेनाथ की कृपा से मृत्यु के बाद शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई।

महाशिवरात्रि व्रत में क्या खाएं | Maha Shivratri Vrat Me Kya Khaye

महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने वाले जातक को पूरे दिन कुछ भी नहीं खाना चाहिए। अगर आपको खाली पेट गैस या एसिडिटी की समस्या होती हो तो दिन में फलाहार कर सकते हैं। फलाहार में आप फल, ड्राई फ्रूट, मूंगफली आदि खा सकते है। रात में खाना खा लेना चाहिए क्योंकि शिवरात्रि के व्रत का पारण उसी दिन होता है। खाने में आप कुटू की पूड़ी, साबुदाने की खीर, आलू की सब्जी खा सकते है। खाने में साधारण नमक का उपयोग नहीं करना है सिर्फ सेंधा नमक का ही उपयोग करें।

महाशिवरात्रि इस तरह चढ़ाएं बेलपत्र | Bel Patra on Shivling

महाशिवरात्रि के दिन बहुत सारी चीजें होती है जिनको भोलेनाथ के भक्त चढ़ाकर शिव शंकर भगवान का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। इन्हीं चीजों में एक सबसे उत्तम चीज है बेलपत्र। बेलपत्र भोलेनाथ को बहुत प्रिय है। भगवान शिव शंकर को हर भक्त बेलपत्र अर्पित करता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने का भी एक नियम होता है। इस नियम से अगर आप बेलपत्र शिव जी को चढ़ाते है तो आपको लाभ मिलता है।

महाशिवरात्रि पर जो भी बेलपत्र भोलेनाथ को चढ़ाना चाहिए। उसकी दिशा का ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए। बेलपत्र के हमेशा चिकने भाग को ही शिवलिंग पर रखना चाहिए।

भोलेनाथ को हमेशा 3 पत्र वाला बेलपत्र ही चढ़ाना चाहिए। 3 पत्रों वाले बेलपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने से भगवान शिव शंकर को शांति मिलती है, भोलेनाथ बहुत प्रसन्न होते है और अपने भक्तों की मनवांछित मनोकामना को पूरी करते है।

बेलपत्र चढ़ाते समय हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली का प्रयोग करना चाहिए। बेलपत्र अर्पित करने से पहले शिव जी का जल से अभिषेक करना चाहिए। तत्पश्चात बेलपत्र अर्पित करना चाहिए। बेलपत्र कभी भी अशुद्ध नहीं होता है। अगर पहले किसी ने बेलपत्र पहले चढ़ा दिया है तो उसे फिर से धोकर चढाया जा सकता है। जब भी आप शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाएं तो दूसरे के बेलपत्र उस पर से कभी भी नहीं हटाना चाहिए।

महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ पर बेलपत्र अर्पित करते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र है-

‘‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पण।।‘‘

महाशिवरात्रि पर जो भी भक्त भोलेनाथ को बेलपत्र चढ़ाता है उसकी धन संबंधी समस्या दूर हो जाती है। अगर पति-पत्नी एक साथ मिलकर महाशिवरात्रि को सच्ची श्रद्धा से भगवान शिव पर बेलपत्र चढ़ाते है तो उनके वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है और भोलेनाथ के आर्शीवाद से संतान सुख की प्राप्ति होती है।

महाशिवरात्रि का महत्व | Mahashivratri Ka Mahatva Kya Hai

महाशिवरात्रि का पर्व वह दिन होता है जिस दिन भोलेनाथ के भक्त उनके निर्मित जप, तप और व्रत करते हैं। भोलेनाथ की आराधना करते हैं। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि जो भी भक्त भोलनाथ का सच्चे मन से आराधना करता है और व्रत करता है उस साधक को मृत्यु के उपरांत मोक्ष फल की प्राप्ति होती है। इस तरह महाशिवरात्रि के व्रत को करने से मनुष्य का उद्धार होता है। व्रत रखने वाले जातक के जीवन से सभी दुख, बाधाएं दूर हो जाती है। जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

शिव जी की साधना से घर में सुख-सौभाग्य आता है, धन-धान्य में बढ़ोत्तरी होती है। भगवान आशुतोष जगत के कल्याण करने वाले है। नीलकण्ठ भोलेनाथ की आज के दिन सच्चे मन से पूजा-आराधना करने वाले भक्त को जीवन में कभी भी दुखों का सामना नहीं करना पड़ता।

महाशिवरात्रि पर ध्यान और साधना का विशेष महत्व होता है। अगर आप पूरे साल साधना नहीं कर सकते हैं तो कम से कम आज रात जागकर साधना अवश्य करें। शिवरात्रि वाले दिन निशीथ काल में पूजा आराधना करने से जीवन को नया दृष्टिकोण मिलता है।

महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक का भी विशेष महत्व है। इस दिन किसी पंडित को बुलाकर शिव शंकर भोलेनाथ का रूद्राभिषेक करना चाहिए। मंदिरों में भी इस अवसर पर रूद्राभिषेक होता है। आप किसी मंदिर में भी जाकर रूद्राभिषेक में भाग ले सकते हैं।

जैसा कि हमने आपको बताया कि महाशिवरात्रि की पूजा चार पहरों में की जाती है। आईये जानते हैं कि इन चारों पहरों में किस तरह भोलेनाथ की पूजा करनी चाहिए।

प्रथम पहर में शिवलिंग का दूध से अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद “ऊँ हीं ईशानाय नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए।

द्वितीय पहर में शिवलिंग का दही से अभिषेक करते हुए ऊँ ही अघोराय नमः मंत्र का निरन्तर जप करते रहना चाहिए।

तृतीय पहर में घृत से अभिषेक कर ऊँ हीं वामदेवाय नमः मंत्र का जाप करना चाहिए।

अन्त में चतुर्थ पहर में शहद से भोलेनाथ को अभिषेक कर ऊँ हीं सद्योजाताय नमः मंत्र का जाप करें।

महाशिवरात्रि के उपाय | Maha Shivratri Upay

महाशिवरात्रि के कुछ उपाय है। अगर इन उपायों को आप महाशिवरात्रि के दिन कर लेते हैं तो आपके जीवन में भोलेनाथ के आर्शीवाद से खुशहाली का संचार होगा।

  • महाशिवरात्रि के दिन लाल पेन से एक कागज पर अपनी मनोकामना को लिख दे। इस कागज को मोड़कर घर के बाहर या किसी पार्क में जाकर जमीन के नीचे जाकर दबा दे। उस जगह पर एक पौधा लगा दें। नियमित रूप से उस पौधे को पानी दे। जैसे-जैसे वह पौधा बड़ा होगा, वैसे-वैसे आपकी मनोकामना भी पूर्ण होने लगेगी।
  • पंचमुखी रूद्राक्ष को अपने बाएं हाथ में रखकर दाएं हाथ से उसे बंद कर दे। मन ही मन अपनी मनोकामना को बोले। इसके बाद इसे घर में कहीं ले जाकर रख दें और दिन में एक बार इसको अवश्य देखें।
  • शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ का शहद से अभिषेक करने वाले श्रद्धालु पर भोलेनाथ की कृपा रहती है और भोलेनाथ के आर्शीवाद से उसके जीवन की समस्त समस्याएं दूर होती हैं।
  • अगर आर्थिक समस्या का सामना कर रहे हो तो शिवरात्रि के दिन दही से भोलेनाथ का अभिषेक करें। अभिषेक करते समय 108 बार माता पार्वती के मंत्र ऊँ पार्वती पतये नमः का जाप करते रहे। ऐसा करने से आर्थिक तंगी दूर होती है और जीवन में कभी भी कोई संकट का सामना नहीं करना पड़ता।

निष्कर्ष

महाशिवरात्रि जिसका अर्थ है महा अर्थात महान और शिवरात्रि यानी शिव की रात अर्थात शिव की आराधना की रात्रि। मान्यता है कि जो भी भक्त इस दिन सच्चे मन से भोलेनाथ की उपासना करता है उस जातक का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। उसकी रूठी हुई किस्मत जागृत हो जाती है और उसे भोलेनाथ का आर्शीवाद प्राप्त होता है। भोलेनाथ के अनगिनत भक्त है उन सभी के लिए महाशिवरात्रि का पर्व बेहद खास होता है। तो भक्तों यह भी भोलेनाथ के पवित्र व्रत महाशिवरात्रि की पूरी जानकारी। आपको यह जानकारी अवश्य अच्छी लगी होगी। इसे अपने परिजनों के साथ सोशल मीड़िया पर साझा अवश्य करें जिससे हिन्दू धर्म के व्रत, त्योहारों का व्यापक प्रचार प्रसार हो। ऐसे ही आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहें। जयश्रीराम

FAQ :

Q.1. महाशिवरात्रि कब है?

Ans. महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी, 2023 को हैं। इस दिन भोलेनाथ के भक्त भगवान शिव शंकर की आराधना करते हैं और उनके निर्मित व्रत करते हैं।

Q.2. महाशिवरात्रि पर किसकी पूजा करे

Ans. महाशिवरात्रि वाले दिन भोलेनाथ की पूजा की जाती है। इस दिन भोलेनाथ के भक्त शिवलिंग पर दूध, दही, शहद से भोलेनाथ का अभिषेक करते है।

Q.3. महाशिवरात्रि के दिन क्या खाए.

Ans. महाशिवरात्रि वाले दिन एक ही समय फलाहार करे। महाशिवरात्रि के व्रत में सादा नमक खाना वर्जित होता है। व्रत में सफेद नमक इसलिए नहीं खाया जाता क्योंकि सफेद नमक केमिकल बेस्ड होता है यानी इसे शुद्ध नहीं माना जाता। ऐसे में व्रत रहने वाले जातकों को सेंधा नमक यानी राॅक साॅल्ट का सेवन करना चाहिए।

Q.4. क्या शिवरात्रि व्रत में सोना चाहिए?

Ans. महाशिवरात्रि का व्रत रखने वाले जातकों को रात में सोना नहीं चाहिए। पूरी रात साधना करना चाहिए और शिव जी की आराधना करनी चाहिए।

Q.5.महाशिवरात्रि पर पूरे दिन क्या करे?

Ans. महाशिवरात्रि पर पूरे दिन भगवान शिव के मंत्र ऊँ नमोः शिवाय, शिव रूद्राष्टक और शिव तांडव सत्रोत का पाठ करना चाहिए। महामृत्युत्यजंय मंत्र का जाप करना भी श्रेयस्कर होता है। शिव जी का रूद्राभिषेक मंदिर में जाकर या घर पर ही जरूर करना चाहिए।

हिन्दू धर्म क्या है, क्या है इसका इतिहास और इसकी खूबियां, जानकार आप भी होंगे गर्वित | Hindu Dharm Kya Hai

हिन्दू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। इस धर्म के अनुयायी सम्पूर्ण विश्व में फैले हुए है। मुख्य रूप से भारत, नेपाल और मारीशस में हिन्दुओं की संख्या सर्वाधिक है। हिन्दू धर्म समुद्र की तरह विशाल है। हिन्दू धर्म में बहुत सारी ऐसी चीजें है जो इसे बाकी धर्मों की तुलना से भिन्न तो बनाती ही हैं साथ में एक ऐसा आधार भी देती हैं जो इसे मानने वालों को गर्व भी प्रदान करती हैं। हिन्दू धर्म के कई अनुयायी इस धर्म को सनातन धर्म के नाम से भी पुकारते हैं। हिन्दू धर्म को लेकर अन्य धर्मों के लोग हमेशा भ्रमित रहते है क्योंकि हिन्दू धर्म ईसाई धर्म या इस्लाम के विपरीत, एक गैर-पैगंबर संगठन है। हिंदुओं के लिए कोई यीशु या मोहम्मद नहीं है। हिन्दू कई देवी-देवताओं को मानते हैं। भारत अलग-अलग भाषाएं और संस्कृतियों का देश है इसलिए यहां देवी-देवताओं की संख्या भी अधिक है। ईश्वर का हर स्वरूप अपने आप में पूज्यनीय स्वरूप है। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि ईश्वर निराकार है। वह सर्वेश्वर है अर्थात सर्वोच्च ईश्वर, जिसके पास अनगिनत दिव्य शक्तियाँ हैं। निराकार ईश्वर को ब्रह्म शब्द से संबोधित किया जाता है। जब ईश्वर का स्वरूप होता है, तो उसे परमात्मा शब्द द्वारा संदर्भित किया जाता है। इस सर्वशक्तिमान ईश्वर के तीन मुख्य रूप है। निर्माता, विष्णु, अनुचर और शिव संहारक।

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हिन्दू धर्म का इतिहास | Hindu Religion History | Hindu Dharm Ka Itihas

हिन्दू धर्म के इतिहास के विषय में पुराणों में ज्यादा वर्णित नहीं है। इस धर्म को वेदकाल युग से भी पूर्व का माना जाता है, क्योंकि वैदिक काल और वेदों की रचना का काल अलग-अलग माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि स्वायंभुव मनु ने इसकी स्थापना की थी लेकिन इस संबंध में ज्यदा वर्णित नहीं है। विभिन्न शोधों के अनुसार हिन्दू धर्म 24 हजार वर्ष से भी पुराना धर्म हैं। हिंदू धर्म मुख्य रूप से त्रिमूर्ति देवताओं पर केन्द्रित है। त्रिमूर्ति में तीन देवता होते हैं जो दुनिया का निर्माण, रखरखाव और विनाश के लिए जिम्मेदार हैं। इन त्रिमूर्ति में ब्रह्मा (Lord Brahma) पहले देवता हैं। अन्य दो देवताओं में विष्णु (Lord Vishnu) और शिव (Lord Shiva) हैं। ब्रह्मा मुख्य रूप से दुनिया और प्राणियों के निर्माण है। विष्णु ब्रह्मांड के संरक्षक हैं, जबकि शिव जगत को बनाने और फिर इसे नष्ट करने का काम करते है। ब्रह्मा संसार के निर्माणक होने के बाद भी हिंदू धर्म में सबसे कम पूजे जाने वाले देवता हैं। पूरे भारत में उन्हें समर्पित केवल दो मंदिर (Hindu Temple) हैं। अन्य अन्य विष्णु और शिव शंकर के मंदिरों की संख्या असंख्य है।

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वेद कितने होते हैं | Vedas in Hindu Mythology | Vedas in Hindi

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के बारे में जानने का स्रोत वेद व अन्य धर्मग्रन्थ हैं। इन वेद ग्रन्थों की संख्या बहुत अधिक है। वेद, इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘विद्‘ से हुई है। विद् का अर्थ है जानना या ज्ञानार्जन, इसलिये वेद को ‘‘ज्ञान का ग्रंथ कहा जाता है। भारतीय मान्यता में ऐसा वर्णित है कि ज्ञान शाश्वत है अर्थात् सृष्टि की रचना के पूर्व भी ज्ञान था एवं सृष्टि के विनाश के पश्चात् भी ज्ञान ही शेष रह जायेगा। चूँकि वेद ईश्वर के मुख से निकले और ब्रह्मा जी ने उन्हें सुना इसलिये वेद को श्रुति भी कहा जाता हैं।

हिन्दू धर्म में वेदों की संख्या चार हैं। ये वेद हिन्दू धर्म के आधार स्तंभ हैं। ये ‘चतुर्वेद‘ निम्न हैंः – 4 Vedas | Four Vedas Name | Types of Vedas

  • ऋग्वेद,
  • यजुर्वेद,
  • सामवेद,
  • अथर्ववेद

ऋगवेद | Rigveda in Hindi

ऋगवेद चारों संहिताओं में प्रथम गिनी जाती है। ऋग्वेद का इतिहास लगभग 3800 साल पुराना है जबकि 3500 साल तक इसे केवल मौखिक रूप में ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाया जाता रहा था। ऋग्वेद को सनातन धर्म अथवा हिन्दू धर्म का प्रमुख स्रोत माना जाता है। इसमें 1028 सूक्त हैं, जिसमें देवताओं की स्तुति की गयी है। ऋक् संहिता में 10 मंडल, बालखिल्य सहित 1028 सूक्त हैं। यह संहिता सूक्तों अर्थात् स्तोत्रों का भण्डार है। इन सूक्तों में शौनक की अनुक्रमणी के अनुसार 10,627 मंत्र है। वेद मंत्रों के समूह को ‘सूक्त‘ कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद के सूक्त विविध देवताओं की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्रोतों की प्रधानता है। ऋग्वेद का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व सबसे ज्यादा है। चारों वेदों में सर्वाधिक प्राचीन वेद ऋग्वेद से आर्यों की राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। ऋग्वेद अर्थात् ऐसा ज्ञान, जो ऋचाओं में बद्ध हो।

यजुर्वेद | Yajurveda in Hindi

यजुर्वेद ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद है। यजुर्वेद में ऋगवेद के ६६३ मंत्र पाए जाते हैं। फिर भी ये ऋग्वेद से अलग है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘‘यजुस’‘ कहा जाता है। ‘यजुष’् के नाम पर ही इस वेद का नाम यजुष़्वेद वेद (यजुर्वेद) शब्दों की संधि से बना है। यज् जिसका अर्थ समर्पण होता है। यजुर्वेद में यज्ञों और हवनों के नियम और विधान का वर्णन है, अर्थात ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है।

सामवेद | Samaveda in Hindi

चारों वेदों में सबसे छोटा सामवेद है। इस वेद में १८७५ मंत्र है जिसमें ९९ को छोड़ दे तो सभी ऋगवेद के हैं। इसके केवल १७ मन्त्र अथर्ववेद और यजुर्वेद के पाये जाते हैं। फिर भी इसकी महत्ता सबसे ज्यादा है, जिसका मुख्य कारण गीता में कृष्ण द्वारा वेदानां सामवेदोऽस्मि कहना है। सामवेद यह सभी वेदों का सार रूप है क्योंकि इसमें सभी वेदों के चुने हुए अंश शामिल किये गये है। महाभारत में गीता के अतिरिक्त अनुशासन पर्व में भी सामवेद की महत्ता को दर्शाया गया है।

पवित्रतम वेदों में से चैथे वेद अथर्ववेद की संहिता अर्थात मन्त्र भाग है। इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं। अथर्ववेद का अर्थ है अथर्वों का वेद या अभिचार मंत्रों का ज्ञान

अथर्ववेद | Atharvaveda in Hindi

अथर्ववेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं। अथर्ववेद का अर्थ है अथर्वों का वेद या अभिचार मंत्रों का ज्ञान। अथर्ववेद में ब्रह्म की उपासना सम्बन्धी बहुत से मन्त्र हैं। अथर्ववेद में 20 काण्ड, 731 सूक्त है। इसके अतिरिक्त अथर्ववेद में गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 5977 मन्त्र हैं। अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा मानना है कि इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई। कई प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन अथर्ववेद में है। अर्थर्ववेद के बाद से आयुर्वेद में विश्वास किया जाने लगा था। अथर्ववेद गृहस्थाश्रम के अन्दर पतिदृपत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों, मानदृमर्यादाओं का उत्तम विवेचन करता है। अथर्ववेद की एक कड़ी में वर्णन है कि अगर आपको अपनी उपस्थिति से कबूतरों को भगाने के लिए पत्नी या किसी अन्य को पाने के लिए एक जादू की आवश्यकता होती है।

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हिन्दू धर्म के देवी देवता | Hindu Gods and Goddesses

ऐसी मान्यता है कि हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं। इन सभी देवी-देवताओं के नाम और उनके स्वरूप अलग-अलग है, लेकिन मान्यता से उलट 33 करोड़ देवी-देवता बल्कि 33 कोटि यानी प्रकार के देवता हैं। पुराणों में इस संबंध में स्पष्ट वर्णन है।

33 कोटि देवताओं के प्रकार | All Hindu Gods

33 कोटि देवी-देवताओं में आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, इंद्र और प्रजापति शामिल हैं। कुछ शास्त्रों में इंद्र और प्रजापति के स्थान पर दो अश्विनी कुमारों को 33 कोटि देवताओं में शामिल किया गया है।

अष्ट वसुओं के नाम निम्न है-

1. आप

2. ध्रुव

3. सोम

4. धर

5. अनिल

6. अनल

7. प्रत्यूष

8. प्रभाष

ग्यारह रुद्रों के नाम निम्न है | Eleven Rudras in Hindu Religion

1. मनु

2. मन्यु

3. शिव

4. महत

5. ऋतुध्वज

6. महिनस

7. उम्रतेरस

8. काल

9. वामदेव

10. भव

11. धृत-ध्वज


बारह आदित्य के नाम | Twelve Aditya in Hindu Dharma

1. अंशुमान

2. अर्यमन

3. इंद्र

4. त्वष्टा

5. धातु

6. पर्जन्य

7. पूषा

8. भग

9. मित्र

10. वरुण

11. वैवस्वत

12. विष्णु

सनातन हिन्दू धर्म में प्रमुख रूप में पांच देवों की उपासना की जाती है। जिन्हें पंचदेव कहते हैं। ये पंचदेव हैं, विष्णु, शिव, गणेश (Lord Ganesha), सूर्य और शक्ति। इन सभी देवी-देवताओं में सबसे शक्तिशाली देवता भगवान शिव हैं। भगवान शिव इस संसार के सृजनकर्ता,पालनकर्ता और संहारकर्ता तीनों हैं।

हिन्दू धर्म की विशेषताएं | Hindu Religion Facts in Hindi

हिन्दू धर्म एक शक्तिशाली धर्म है। हिंदू धर्म के प्रमुख गुणों में उदारता, सहिष्णुता व परोपकार शामिल है। हिन्दू धर्म हमें यह बताता है कि ब्रह्म ही सत्य है। ईश्वर एक ही है और वही प्रार्थनीय तथा पूजनीय है। वही सृष्टा है वही सृष्टि भी। शिव, राम, कृष्ण आदि सभी उस ईश्वर के संदेश वाहक है। हजारों देवी-देवता उसी एक के प्रति नमन हैं। वेद, वेदांत और उपनिषद एक ही परमतत्व को मानते हैं। हिन्दू धर्म को सनातन धर्म भी कहा गया है। सनातन अर्थात शाश्वत जिसका आदि है न अन्त है। सनातन हिन्दू धर्म भाग्य से ज्यादा कर्म पर विश्वास रखता है। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है।

1. हिन्दू धर्म का कोई एक धर्मशास्त्र नहीं है, बल्कि बहुत सारी धार्मिक किताबों को मिलाकर इसे एक
धार्मिक आधार प्रदान करती हैं। गीता, रामायण, महाभारत, उपनिषद् आदि धर्मग्रन्थ इसमें शामिल है।
2. हिन्दू धर्म में 33 कोटि देवी-देवता है। हिन्दू धर्म इकलौता ऐसा धर्म है जिसमें देवी-देवताओं की संख्या समान है और दोनों को एक ही श्रद्धा के साथ पूजा जाता हैं।

  1. कोई भी जीव चैरासी लाख योनियों में भ्रमण करता है। उसे मनुष्य योनि बड़े पुण्य से मिलती है। इस
    जन्म के बाद उसका पुनर्जन्म होता है जन्म मरण के इस चक्र को संसार चक्र कहतें हैं।
  2. हिन्दू धर्म में नास्तिकता को भी स्थान दिया गया है अर्थात जो व्यक्ति ईश्वर के स्वरूप पर विश्वास
    नहीं करता। यह इकलौता ऐसा धर्म है जो नास्तिकों को भी स्वीकृति देता है।
  3. हिन्दू धर्म में 108 को बहुत पवित्र माना गया है। यही कारण है सिद्धी के लिए जिन मालाओं से हम
    जप करते हैं उनमे भी 108 मोती होते हैं।
  4. हिन्दू धर्म की एक सबसे खास बात है जो इसे सब धर्मों से अलग बनाती है वह है, यहां प्रार्थना करना
    का कोई समय निर्धारित नहीं है। दिन हो या रात आप कभी भी ईश्वर को सच्ची श्रद्धा से याद कर सकते हैं। ऊपर वाले को याद करने के लिए कोई एक खास दिन या समय नहीं होता. जब भी आपका दिल करे आप पूजा करने के लिए मंदिर में जा सकते हैं।
  5. सनातन हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की प्रक्रिया से
    गुजरती हुई आत्मा अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। आत्मा के मोक्ष प्राप्त करने से ही यह चक्र समाप्त होता है।
  6. श्राद्ध पक्ष का सनातन हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है। पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए
    मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करने को ही पिंडदान कहा जाता है।
  7. हिन्दू धर्म में दान की बहुत महत्ता है। दान करने का पुण्य की प्राप्ति होती है। वेद और पुराणों में दान
    के महत्व का वर्णन किया गया है।
  8. हिन्दू धर्म में चल और अचल दोनों तरह के देवताओं की पूजा की जाती है। अचल देवता वह है जो
    मूर्ति रूप में विराजमान है जिन्हें हम मंदिरों में देखते है, जबकि चल देवता धरती पर रहने वाला हर जीव है। हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी विशेषता है कि हर जीव में ईश्वर का स्वरूप माना गया है।

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