होली क्यों मनाई जाती है | Holi Kyu Manaya Jata Hai

होली स्पेशल: घर की सुख-समृद्धि के लिए होली के दिन जरूर करें ये उपाय

हिन्दू धर्म में होली पर्व एक प्रमुख त्योहार होता है। होली का त्योहार दो दिन मनाया जाता है। एक दिन होली जलाई जाती है जिसे होलिका दहन कहते हैं, दूसरे दिन रंगों वाली होली खेली जाती है जिसे धुलंदी भी कहते है। सभी लोग मिलकर एक दूसरे को रंग, अबीर गुलाल लगाते हैं। एक दूसरे के गले लगते है और बधाईयां देते है। होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है। आज के लेख में हम जानेंगे कि वर्ष 2023 में होली का पर्व कब है, इस दिन का क्या महत्व है और होली पर कौन से उपाय करने से जीवन में खुशहाली आयेगी।

होली कब है | Holi Kab Hai | Holika Dahan Kab Hai

इस बार होली पर्व को लेकर असमंजस का वातावरण बना हुआ है। कुछ लोग होलिका दहन 7 मार्च व रंग वाली होली 8 मार्च को बता रहे है तो कुछ 6 मार्च को होलिका दहन और 7 मार्च को रंग वाली होली करने की बात कह रहे है। ऐसे में होली को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है तो आईये हम आपको बताते है कि होलिका दहन और रंग वाली होली किस दिन करना श्रेयस्कर होगा। फाल्गुन पूर्णिमा तिथि की शुरूआत 6 मार्च, 2023, दिन सोमवार को सुबह 04 बजकर 17 मिनट से प्रारम्भ होकर 7 मार्च, 2023 दिन मंगलवार को सुबह 6 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। आपको बता दें कि होलिका दहन प्रदोष काल में किया जाता है। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 07 मार्च को शाम 6ः24 से रात 08ः51 तक का है। इस तरह होलिका दहन का कुल समय लगभग 2 घंटा 30 मिनट का है। ऐसे में इन 2 घंटों में ही होलिका दहन करना शुभ होगा। इस समय ही होलिका की पूजा करना और होलिका दहन करना शुभ होगा।

यह भी पढ़ें : हिन्दू धर्म क्या है, और इसका इतिहास?

होलिका दहन वाले दिन यानि 07 मार्च को भद्राकाल भी है। भद्रा काल में होलिका दहन करना अशुभ माना जाता है क्योंकि भद्रा के स्वामी यमराज होते है। भद्रा 7 मार्च को सुबह 05 बजकर 15 मिनट तक है। इस तरह प्रदोष काल के समय होलिका दहन करना उचित होगा क्योंकि उस समय भद्रा का साया नहीं रहेगा। ऐसे में 7 मार्च को ही होलिका दहन करना श्रेयस्कर होगा और 8 मार्च को रंगों वाली होली खेली जायेगी।

Holi Kyu Manaya Jata Hai Hindiji

होलिका दहन पर इस तरह करे पूजा | Holika Dahan Pooja Vidhi | Holi Par Puja Kaise Kare

होलिका दहन वाले दिन प्रदोष काल में जिस जगह पर होलिका एकत्रित हो। वहां जाकर पूर्व दिशा की ओर मुख कर लें। होलिका में अर्पित की जाने वाली सामग्री जैसे – जल, रोली, अक्षत, फूल, गुड़, साबुत अनाज, गुलाल अपने हाथ में ले ले। कुछ जगह पर गोबर से बने उपलों को भी होलिका में समर्पित किया जाता है। सबसे पहले होलिका की पूजा करें। उसके बाद गुलाल में रंगी मौली, गोबर के उपलों की माला, खिलौनों की माला को होलिका में अर्पित करें। पहली माला पितरों के नाम की होती है, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता की और चैथी माला अपने परिवार के नाम की होती है। इसके बाद होलिका की परिक्रमा करते हुए उसमे कच्चा सूत लपेंटे। आप परिक्रमा अपनी इच्छानुसार 5, 7, 11 बार कर सकते है। होलिका के दोनों तरफ जल अर्पित करें और हाथ जोड़कर अपने परिवार की मंगल कामना की प्रार्थना करें। आज के दिन भगवान नरसिंह की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए।

होलिका दहन के अगले दिन यानि रंग वाली होली के दिन सुबह सवेरे गेहूं की बाली लेकर उसे हल्का सा जला ले। यह कृत्य इस बात का प्रतीक होता कि नये अनाज की पूजा हो गई। होलिका की राख को बहुत पवित्र माना जाता है। इस राख को धुलंडी वाले दिन अपने पूरे शरीर में लगाकर पूजन करना चाहिए। इस दिन पितरों का भी पूजन अवश्य करना चाहिए। अपने सभी पितरों को नमन करे और उनसे प्रार्थना करें कि वह आपके घर-परिवार में सुख-समृद्धि लाएं।

होली क्यों मनाई जाती है | Holi Kyo Manai Jati hai

होली मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है। विष्णु भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद श्री हरि भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। वह हर समय भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। इस बात से हिरण्यकश्यप उस पर क्रोधित रहता था। उसने प्रहलाद को तरह-तरह की यातनाएं दी लेकिन भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति को नहीं छोड़ा। असुर हिरण्यकश्प ने जितने दिन प्रहलाद को कठोर यातनाएं दी। उन दिनों को ही होलाष्टक कहा जाता है। जब हिरण्यकश्प प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से विमुख करने में नाकामयाब रहा तो उसने यह जिम्मेदारी अपनी बहन होलिका को सौंपी। होलिका को यह वरदान था कि आग उसके शरीर को जला नहीं सकती। होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि मे बैठ गई लेकिन श्री हरि भक्त प्रहलाद के शरीर अग्नि से कोई नुकसान नहीं हुआ जबकि होलिका आग में धूं-धूं कर जल गई। बुराई पर अच्छाई की जीत हो गई। इस तरह इस दिन से ही सभी लोग सबसे पहले होलिका को जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते है और अगले दिन सभी लोग एक दूसरे को रंग-अबीर गुलाल लगाकर एक दूसरे को बधाई और शुभकामनाएं देते है।

होली का महत्व निबंध | Holi Ka Mahatva | Holi Essay in Hindi

हिन्दू धर्म का हर त्योहार धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व रखता है। हर त्योहार हमें एक सीख और शिक्षा देता है। इसी तरह होलिका दहन भी हमे एक महत्वपूर्ण शिक्षा देता है। होलिका दहन हमे यह सीख देता है कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है। इस दिन हम समाज में फैली बुराईयों को होलिका की अग्नि में जलाकर समाज में अच्छाई का प्रवेश कराते है। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति सम्पूर्ण विधि विधान से होलिका की पूजा करता है उसको स्वस्थ और सुखी जीवन की प्राप्ति होती है। होली के त्योहार को नई ऋतु के आगमन का प्रतीक भी मानते है। इस दिन से वसंत ऋतु का आगमन भी होता है। होली के दिन को तांत्रिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण दिन माना गया है। इस दिन कई लोग तांत्रिक आराधना भी करते है। यही कारण है कि होली के दिन तंत्र-मंत्र से संबंधित बड़े अनुष्ठान किए जाते हैं।

क्यों जलाई जाती है गेहूं की बाली | Holi Par Gehu Ki Bali Ka Kya Karte Hai

जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया कि धुलंडी वाले दिन गेहूं की बाली को पवित्र अग्नि में जलाया जाता है लेकिन क्या आप जानते है इसके पीछे का क्या कारण है। गेहूं की बाली को नये अनाज के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इस अनाज को होली की पवित्र अग्नि में जलाकर घर में रखने से घर में शुभता का आगमन होता है। होली की अग्नि को भी बहुत पवित्र माना जाता है। इस अग्नि को अपने घर लाकर अपने घर का चूल्हा जलाना चाहिए। कुछ लोग इस अग्नि से अपने घर में अखंड दीपक भी जलाते हैं। इस दीपक को जलाने से घर के सारे कष्ट दूर होते है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इस दीपक को हमेशा घर के दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए। इस दिशा में दीपक को जलाने से घर से नकारात्मक ऊर्जा जाती है और सकारात्मक ऊर्जा (Positive energy) का प्रवेश होता है।

होली के उपाय | Holi Ke Upay

होली के कुछ उपाय भी है। अगर आप आज के दिन इन उपायों को करते है तो आपको जीवन में सफलता मिलेगी और जिंदगी के हर क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त करेंगे तो आईये इन उपायों के बारे में जानते हैं।

यदि आपके पास लक्ष्मी जी का ठहराव ना हो यानि लक्ष्मी जी आती तो हो परन्तु शीघ्र ही चली जाती हो तो होली वाले दिन इस टोटके को करे। एक जटा वाला नारियल लेकर उस पर पान व सुपारी चढ़ाएं। इस नारियल को होलिका की पवित्र अग्नि में समर्पित कर दे। तत्पश्चात मां लक्ष्मी का ध्यान करते हुए होलिका की 11 बार परिक्रमा करें। इस उपाय को करने से आपके पास लक्ष्मी जी का स्थाई वास हो जायेगा। होलिका वाले दिन श्री सूक्त और लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से भी घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है। मां लक्ष्मी के निर्मित हवन करें और उनको केसर मिश्रित खीर का भोग लगाएं। इस खीर को अपने घर-परिवार के सभी सदस्यों में अर्पित करें। खीर का कुछ हिस्सा छोटी कन्याओं में बांटे। ऐसा करने से आपके घर में माता लक्ष्मी का आगमन होगा।

घर से नकारात्मक शक्तियों को दूर करने के लिए होलिका दहन की राख को अपने घर में लाकर इस राख को अपने घर के चारों कोने में डाल दे। इस राख का कुछ हिस्सा अपने घर के गमलों में भी डाले। इस उपाय को करने से घर से आपके घर की नकारात्मक शक्तियां दूर होगी और घर में सकारात्मक वातावरण का वास होगा।

जैसा कि हमने आपको बताया कि इस बार होलिका दहन 7 मार्च, दिन मंगलवार को किया जायेगा। मंगलवार का दिन हनुमान जी का दिन होता है। ऐसे में आज के दिन रामचरित मानस की चैपाई

“जिमि सरिता सागर मंहु जाही, जद्यपि ताहि कामना नाहीं, तिमि सुख संपत्ति बिनहि बोलाएं, धर्मशील पहिं जहि सुभाएं”

का 108 बार तुलसी की माला से जाप करें। जप करने के बाद हवन करें। इस चैपाई को रोजाना अपनी नियमित पूजा के बाद 11 या 21 बार जपें। इस उपाय को करने से आपके घर में माता लक्ष्मी का वास होगा और घर में सुख-समृद्धि आयेगी।

अगर किसी को कर्जा दे दिया हो , उस कर्जें की वापसी में दिक्कते हो रही हो तो होलिका दहन वाले दिन जिस जगह पर होली जल रही हो उस जगह पर अनार की लकड़ी लेकर उस लकड़ी पर उस आदमी का नाम लिखे जिसे कर्जा दिया हो। उस लकड़ी पर हरा गुलाल छिड़कर उसे होलिका की अग्नि में अर्पित करें। आप देखेंगे कि जल्द ही आपको आपका धन वापस मिल जायेगा।

अगर व्यापार में नुकसान हो रहा हो, निरन्तर घाटा ही घाटा हो रहा हो तो व्यापार में घाटे को खत्म करने और अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए होली वाले दिन एक पीला कपड़ा ले लें। इस कपड़े में हल्दी, 11 गोमती चक्र को बांध दे। एक चांदी का सिक्का लेकर उसे काले कपड़े में बांध दे। इसके बाद ‘ऊँ महालक्ष्म्यै नमः’ मंत्र का जाप करते हुए इस कपड़े को होली की पवित्र अग्नि में अर्पित कर दे। आप देखेंगे कि शीघ्र ही आपके व्यापार का नुकसान कम हो जायेगा और बिजनेस में वृद्धि होने लगेगी।

Read Also : उज्जैन महाकाल मंदिर के दर्शन कैसे करें ?

उत्तम स्वास्थ्य के लिए | Health Tips on Holi

घर से बीमारी को दूर करने और स्वस्थ शरीर की प्राप्ति के लिए होलिका दहन वाले दिन परिवार के सभी सदस्य अपने सिर से लेकर पैर तक पूरा नापकर उसके बराबर कच्चा सूत लेकर होलिका में अर्पित करें। सुबह होलिका की राख को अपने घर लाकर पुरूष सदस्य पूरे शरीर पर और महिला सदस्य अपने गले में लगाएं। इस उपाय को करने से परिवार के सभी सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक बना रहेगा और बीमारी का घर में नामोनिशान नहीं रहेगा।

अगर आपके बच्चे का पढ़ाई में मन ना लग रहा हो तो अपने बच्चों के हाथों से पान, नारियल और सुपारी को जिस जगह पर होलिका दहन हो रहा हो वहां पर गरीब लोगों को दान दें। इस उपाय को करने से आपके बच्चे का पढ़ाई में मन लगने लगेगा और वह परीक्षा में अच्छे नंबरों से पास होगा।

अगर आप बेरोजगार है, कई प्रयासों को करने के बाद भी मनचाही नौकरी न मिल रही हो तो होलिका दहन वाले दिन नींबू लेकर उसे अपने ऊपर से 21 बार उतारकर उसे होली की अग्नि में अर्पित कर दे। इस उपाय को करने के बाद होलिका की 11 बार परिक्रमा करें। इस उपाय को करने से आपको अतिशीघ्र नौकरी मिल जायेगी। यदि पहले से कोई नौकरी कर रहे हो तो उसमें पदोन्नति के योग भी बनेंगे।

होलिका वाले दिन गणपति जी की वंदना करना भी बहुत श्रेष्ठकारी होता है। सात कौड़िया व एक शंख लें। इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके तुलसी की माला से ऊँ गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें। इस सामग्री को किसी सुनसान स्थान पर किसी गड्ढ़े में डालकर दबा दें। इस उपाय को करने से आपके जीवन में खुशहाली आयेगी।

घर के वास्तु दोष को ठीक करने के लिए होलिका दहन वाले दिन अपने इष्टदेव का पूजन करें। पूजन के बाद उन्हें गुलाल अर्पित करें। इस उपाय को करने से आपके घर का वास्तुदोष खत्म होगा व घर में सुख शांति का वास होगा।

भूलकर भी ना करें इन चीजों का दान | Holi Par Na Kare Ye Kam

होलिका दहन के दिन दान पुण्य का बहुत महत्व होता है लेकिन ज्यादातर लोग बिना सोचे समझे किसी भी चीज का दान कर देते है। तो आईये हम आपको बताते है कि इस दिन किन चीजों का दान करने से बचना चाहिए।

धुलंडी वाले दिन लोग जिन कपड़ों से होली खेलते है, बाद में उन कपड़ों को किसी गरीब को दान कर देते हैं। भूलकर भी ऐसा ना करें क्योंकि ऐसे कपड़ों का दान करने से आपके घर की खुशहाली चली जायेगी।

लोहे या स्टील के बर्तनों का भी दान होली पर नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से आपको आर्थिक नुकसान होगा। अगर आप दान करना ही चाहते है तो किसी गरीब कन्या को सोने की वस्तु दान कर सकते हैं।

होली वाले दिन भूलकर भी किसी को पैसों का दान नहीं करना चाहिए। पैसों का दान करने से आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है।

सफेद वस्तु शुक्र ग्रह का प्रतीक होती है। ऐसे में अगर होली वाले दिन आप सफेद वस्तु का दान करते हैं तो आपको शुक्र ग्रह की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।

मान्यता अनुसार सरसो के तेल का दान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है लेकिन होली वाले दिन भूलकर भी किसी को तेल का दान नहीं करना चाहिए क्योंकि होलिका दहन पूर्णिमा को होता है।

होली वाले दिन किसी को गिफ्ट में कांच की या उससे बनी वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष

होली का पर्व बुराई पर अच्छाई के प्रतीक का पर्व माना जाता है। होलिका दहन की अग्नि में बुराई रूपी असुर को जलाया जाता है और अच्छाई रूपी देवता की आराधना की जाती है। होलिका की अग्नि में सभी नकारात्मक शक्तियों का दहन किया जाता है। होली पर रंग गुलाल खेलने की परंपरा भी होती है। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको हिन्दूओं के प्रमुख त्योहार होली विषयक आपको सारी जानकारी प्रदान की। उम्मीद करते है हमारे पिछले लेखों की तरह यह लेख भी आपको उत्तम लगा होगा। इस लेख को अपने परिजनों व मित्रों के साथ सोशल मीडिया पर साझा जरूर करें। इसी तरह के धार्मिक व आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

जयश्रीराम

FAQ : ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q.1. होली 2023 में कब है?

Ans. होली का पर्व फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। वर्ष 2023 में होलिका दहन 7 मार्च को है व रंग वाली होली यानि धुलंडी का पर्व 8 मार्च का मनाया जायेगा।

Q.2. होली से क्या बदलाव होता है?

Ans. होली को वसंत ऋतु के आगमन के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। होली के त्योहार से गर्मी शुरू होने लगती है।

होली वाले दिन क्या करते है.

रंग वाली होली के दिन सभी लोग आपस के बैरभाव भुलाकर एक दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते है। छोटे अपने बड़ो के पैर छूकर उनका आर्शीवाद लेते है। बच्चे, बड़े सभी लोग होली की मस्ती में मदहोश रहते है।

Q.3. होलिका दहन वाले दिन किस भगवान की पूजा होती है?

Ans. होलिका दहन वाले होलिका और भक्त प्रह्लाद की पूजा की जाती है। जो भी व्यक्ति होलिका की पूजा करे उसे होलिका की पूजा के पश्चात होलिका के पास बैठकर भगवान नरसिंह की पूजा भी करनी चाहिए।

Q.4. होली वाले दिन क्या न करें?

Ans. कुछ लोग होली के दिन मदिरा का सेवन कर लेते है। होली खुशहाली का पर्व है लेकिन लोग शराब, मदिरा का सेवन कर लड़ाई-झगड़ा करते है। एक दूसरे को अपशब्द कहते है। भूलकर भी इस दिन शराब का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे घर की खुशहाली चली जाती है।

Read Also :

आमलकी एकादशी क्यों मनाई जाती है | Amalaki Ekadashi Vrat Katha

आमलकी एकादशी पर क्यों होती है आंवले के पेड़ की पूजा

हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एकादशी का व्रत जगत के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु को समर्पित होता है। हर माह एकादशी पड़ती है। फाल्गुन माह में जो एकादशी पड़ती है उसे आमलकी एकादशी कहा जाता है। होली से पहले पड़ने के चलते इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। आमलकी का हिन्दी अर्थ भारतीय आंवला होता है। आमलकी एकादशी पर आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। आंवले के पेड़ को हिन्दू धर्म में बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि आंवले के पेड़ में भगवान श्री हरि और माता लक्ष्मी निवास करती हे। आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि फाल्गुन मास की आमलकी एकादशी कब है, इस दिन किस विधि से भगवान श्री हरि की पूजा करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त आमलकी एकादशी के महत्व के बारे में भी आपको बताएंगे।

आमलकी एकादशी कब है | Amla Ekadashi 2023 Date and Time

जैसा कि मैने ऊपर बताया आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी होली से चार दिन पहले पड़ती है। होली का त्योहार इस बार 7 मार्च 2023 को है। इस तरह आमलकी एकादशी 03 मार्च 2023, दिन शुक्रवार को पड़ेगी। आमलकी एकादशी 02 मार्च 2023 दिन गुरूवार को सुबह 06 बजकर 39 मिनट से प्रारम्भ होकर 03 मार्च, 2023 दिन शुक्रवार को सुबह 09 बजकर 11 मिनट तक रहेगी। ऐसे में आमलकी एकादशी का मान 03 मार्च को करना ही श्रेयस्कर होगा। आमलकी एकादशी पर जगत के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 45 मिनट से सुबह 11ः06 मिनट तक रहेगा। आमलकी एकादशी पर इस बार तीन शुभ योग भी बन रहे है। ये योग हैं सर्वार्थ सिद्धि योग, सौभाग्य योग और शोभन योग। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6ः45 से दोपहर 03ः43 तक रहेगा। सौभाग्य योग सुबह 7ः52 से शाम 06ः45 तक रहेगा जबकि शोभन योग शाम 06 बजकर 45 मिनट तक अगले दिन 08‘24 मिनट तक रहेगा। इन शुभ योगों में पूजा करने से श्री हरि भगवान विष्णु का आर्शीवाद मिलता है और जातक के घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।

एकादशी के व्रत का पारण द्वादशी के दिन किया जाता है। ऐसे में दिनांक 04 मार्च, दिन शनिवार को एकादशी व्रत का पारण करना चाहिए। पारण का शुभ समय दिनांक 4 मार्च को सुबह 06ः44 से सुबह 9ः03 तक है। पारण में अनाज खा सकते है लेकिन ध्यान रहे कि द्वादशी के दिन भी चावल खाने से बचना चाहिए। आमलकी एकादशी के व्रत का पारण करने से पहले किसी ब्राहमण को भोजन कराना चाहिए और सामथ्र्यनुसार दक्षिणा देनी चाहिए। ब्राहमण को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।

Amalaki Ekadashi Vrat Katha

Read Also : तिरुपति बालाजी दर्शन नियम?

आमलकी एकादशी पर इस तरह करें पूजा | Amla Ekadashi Puja Vidhi

आमलकी एकादशी वाले दिन ब्रहम मुहूर्त में उठ जाये। उसके बाद स्नान कर ले। स्नान करते समय पवित्र नदियों गंगा, यमुना, सरस्वती आदि का ध्यान करें। स्नान करने के बाद साफ धुले हुए वस्त्र पहन लें। तत्पश्चात अपने पूजा घर में जाकर भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष बैठकर हाथ में जल लेकर एकादशी के व्रत का संकल्प लें। एकादशी की पूजा का सारा सामान रोली, चावल, फूल, अगरबत्ती, चंदन आदि एकत्रित कर ले। इस सामग्री से भगवान विष्णु का पूजन करे।

चूंकि आमलकी एकादशी पर आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व होता है। ऐसे में नियम के अनुसार ही आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले जिस जगह पर आंवले का वृक्ष हो उसके आसपास की जगह को गाय के गोबर से लीपकर पवित्र कर ले। तत्पश्चात जल से भरा कलश पेड़ के समीप रखें। कलश पर चंदन लगाएं। जल में सुगंध डाले और पंच रत्न डालकर कलश को स्थापित करें। आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम की भी आराधना की जाती है। ऐसे में भगवान परशुराम जी का पंचामृत से अभिषेक करते हुए रोली चावल का तिलक लगाएं और उन्हें पीले रंग के फल, फूल अर्पित करे। आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करते हुए आंवले की वृक्ष की परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।

अगर आपके घर के पास कोई आंवले का वृक्ष नहीं है तो आंवला लेकर उसे भगवान विष्णु को समर्पित करना चाहिए। आमलकी एकादशी की कथा पढ़े तथा सपरिवार देशी घी के दीपक या कपूर से भगवान विष्णु की आरती उतारे। भोग के रूप में भगवान श्री हरि को आंवले का भोग ही लगाना चाहिए। इस भोग को घर के अन्य परिजनों में वितरित करें। एकादशी के दिन कुछ भक्तगण रात भर जागरण करते है और पूरी रात श्री हरि भगवान विष्णु के मंत्रों व भजनों को का वाचन करते हैं।

एकादशी के दिन जो भी साधक व्रत रखता है उसे आंवले के बने हुए खाद्य पदार्थों का ही सेवन करना चाहिए। अगर आप उपवास नहीं भी रखते है तो भी एकादशी के दिन आपको अनाज या चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

जैसा कि आपने जाना कि आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी भी कहते है। मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन भोलेनाथ माता पार्वती को काशी की पवित्र नगरी में लाएं थे। ऐसे में रंगभरी एकादशी के दिन भोलेनाथ और माता पार्वती की भी आराधना करनी चाहिए। रंगभरी एकादशी काशी नगरी में विशेष हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इस दिन भोलेनाथ के भक्त शिव शंकर व माता पार्वती को रंग गुलाल लगाते हैं और विधिविधान से भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा-पाठ करते हैं, उनकी आराधना करते हैं।

आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amla Ekadashi Vrat Katha | Amalaki Ekadashi Vrat Katha

आमलकी एकादशी के संबंध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार जब भगवान ब्रहमा की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई तो उन्होंने भगवान विष्णु से जानना चाहा कि उनकी उत्पत्ति क्यों हुई है। किस कार्य को करने के लिए उनका जन्म हुआ है। भगवान ब्रहमा ने इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए श्री हरि भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की। ब्रहमा जी की कठिन तपस्या से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान ब्रहमा को साक्षात दर्शन दिए। भगवान विष्णु को अपने सामने देखकर ब्रहमा जी बहुत भावुक हो गए। उनकी आंखों से आसू निकलने लगे। मान्यता है कि ब्रहमा जी के इन्हीं आंसुओं से आंवला के पेड़ का निर्माण हो गया। भगवान विष्णु ने जगत के सृजनकर्ता ब्रहमा जी से कहा कि आपके आंसुओं से इस पेड़ की उत्पत्ति हुई है क्योंकि आप सृष्टि के सृजनकर्ता हैं। इसलिए इस पेड़ में सभी देवी-देवता वास करेंगे। जिस दिन यह घटना घटित हुई उस दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। भगवान विष्णु ने ब्रहमा जी को वचन दिया कि आज से जो भी जातक आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की विधिविधान से पूजा करेगा। उसे मोक्ष फल की प्राप्ति होगी। ऐसे में आमलकी एकादशी के व्रत रखने वाले जातक को जन्म-मरण के सारे बंधनों से मुक्ति मिलती है और जातक को मोक्ष फल की प्राप्ति होती है।

आमलकी एकादशी का महत्व | Amalaki Ekadashi Mahatva

जो भी श्रद्धालु सच्चे भाव से आमलकी एकादशी का व्रत, उपवास रखता है उसे अपने पूर्व और वर्तमान के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष फल की प्राप्ति होती है। ब्रहम पुराण में आमलकी एकादशी के व्रत की महिमा बताई गई है। इस व्रत की महिमा का वर्णन स्वयं बाल्मीकि जी ने भी विस्तारपूर्वक बताई है।

जो भी जातक आमलकी एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक भगवान श्री हरि की पूजा उपासना करता है और आंवले के पेड़ की पूजा करता है उस जातक के घर में धन और सम्पत्ति में कभी कमी नहीं होती है, उसमें लगातार बढ़ोत्तरी होती है।

शास्त्रों में आमलकी एकादशी के महत्व का वर्णन किया गया है-

वसत्यामलकीवृक्षे,लक्ष्म्या सह जगत्पतिः।

तत्र संपूज्य देवेशं शक्त्या कुर्यात् प्रदक्षिणां।

उपोष्य विधिवत् कल्पं, विष्णुलोके महीयते।।

इस श्लोक के अनुसार आंवले के पेड़ में भगवान श्री हरि और माता लक्ष्मी निवास करती हैं। आवले के पेड़ में देवताओं का निवास होता है। जो भी जातक आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष का पूजन करता है और श्रद्धापूर्वक उसकी परिक्रमा करता है। उस साधक की धन-सम्पत्ति में बढ़ोत्तरी होती है। सभी पापों से उसे मुक्ति मिलती है और भगवान श्री हरि विष्णु का आर्शीवाद प्राप्त होता है।

पुराणों में आवले के पेड़ को आदि पेड़ या देव वृक्ष भी कहा गया है। अगर आप आंवले के पेड़ की पूजा करते है तो आपको समस्त देवताओं का आर्शीवाद मिलता है।

आमलकी एकादशी का व्रत रखने वाले जातक को 1000 गायों के दान के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। आमलकी एकादशी के दिन आंवले का ही सेवन करना चाहिए। साथ ही आंवले का ही दान करना भी सर्वोत्तम होता है।

आमलकी एकादशी का व्रत करने वाले जातक को जीवन में कभी भी कठिन स्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता। ईश्वर उसकी हर परिस्थिति में मदद करते हैं। उस जातक की धन-सम्पदा में वृद्धि होती है। जातक के घर-संसार में खुशहाली आती है।

आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी के दिन काशी मे जमकर होली खेली जाती है। सभी लोग एक दूसरे को रंग लगाते है। अबीर-गुलाल उड़ाते है। इस दिन यहां के मंदिरों में भी विशेष पूजा पाठ की जाती है।

Read Also : उज्जैन महाकाल मंदिर के दर्शन कैसे करें ?

आमलकी एकादशी उपाय | Amalaki Ekadashi Upay

आमलकी एकादशी के दिन कुछ ऐसे अचूक उपाय हैं जिन्हें करके आप अपने जीवन के कष्टों से मुक्ति पा सकते है।

  • अगर पति-पत्नी के मध्य मनमुटाव चल रहा हो, वैवाहिक जीवन की सुख-शांति चली गई हो तो आज के दिन आंवले के जल से ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करते हुए श्री हरि भगवान विष्णु का अभिषेक करें। साथ ही हाथ जोड़कर भगवान विष्णु से अपने वैवाहिक जीवन की सारी परेशानियों को दूर करने की प्रार्थना करें। इस उपाय से वैवाहिक रिश्तों में सुधार आयेगा और आपस का मनमुटाव दूर होगा।
  • दाम्पत्य जीवन से जुड़ा एक और उपाय है जिसे अगर आप कर लेते है तो आपके दाम्पत्य जीवन में खुशहाली आने से कोई नहीं रोक सकता है। आज के दिन आंवले के पेड़ की 7 बार परिक्रमा करें। परिक्रमा के दौरान आंवले के पेड़ में 7 बार कलावा बांधे। इस उपाय को करने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता आयेगी।
  • रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती को लाल रंग का गुलाल चढ़ाये। ऐसा करने से घर में खुशहाली आयेगी और घर में चल रही कलह क्लेश दूर होगा और सकारात्मक ऊर्जा का वास होगा।
  • आर्थिक समस्या को दूर करने के लिए रंगभरी एकादशी के दिन भोलेनाथ का सफेद चंदन और बेल पत्रों से श्रृंगार करें और शिवलिंग पर अबीर और गुलाल चढ़ाएं। शिव चालीसा का पाठ करें और भोलेनाथ की आरती करें। इस उपाय को करने से आपकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी और धन में बरकत बढ़ेगी।
  • कर्ज की समस्या से मुक्ति के लिए भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर विष्णु सहस्रत्रनाम का श्रद्धापूर्वक पाठ करें। पाठ करने के बाद उन्हें आंवला अर्पित करें। इस उपाय को करने से आपका कर्ज उतर जायेगा और जीवन में खुशहाली आयेगी।
  • नौकरी में बाधा आ रही हो। व्यापार में घाटा हो रहा हो तो आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को 21 पीले फूलों की माला बनाकर अर्पित करें। आंवले के पेड़ में जल चढ़ाएं और भगवान श्री हरि विष्णु भगवान से अपने कैरियर में आ रही बाधा को दूर करने की प्रार्थना करें। आप देखेंगे कि इस उपाय को करने से आपके करियर और व्यापार में चली आ रही बाधाएं दूर होगी और व्यापार में बढ़ोत्तरी होगी। भगवान विष्णु की कृपा आप पर बनी रहेगी। नौकरी में पदोन्नति के योग बनेंगे।
  • अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए एक पीले रंग का साफ रूमाल ले। इस रूमाल में गोटा लगा दे और एकादशी के दिन भगवान विष्णु को चढ़ाएं। इस उपाय से आपके मन की सभी इच्छाओं की पूर्ति होगी।

निष्कर्ष

जन्म मरण के सभी बंधनों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष फल की प्राप्ति कराने वाला व्रत आमलकी एकादशी का व्रत होता है। आमलकी एकादशी पर रात्रि जागरण करने से श्री हरि का विशेष आर्शीवाद मिलता है। जो भी जातक सच्चे मन से आमलकी एकादशी का व्रत करता है और व्रत के पश्चात ब्राहमणों को भोजन कराता है और यथाशक्ति दान देता है उस पर श्री हरि भगवान विष्णु की विशेष कृपा बरसती है। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको आमलकी एकादशी के व्रत के बारे में पूरी जानकारी दी। हमें उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास भी है कि यह जानकारी आपको लाभप्रद लगी होगी। इस जानकारी को अपने परिजनों व मित्रों के साथ सोशल मीडिया पर साझा जरूर करें जिससे आमलकी एकादशी के व्रत के बारे में सभी को जानकारी मिले। ऐसे ही धार्मिक और आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

FAQ – ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q.1. आमलकी एकादशी 2023 में कब है?

Ans. आमलकी एकादशी दिनांक 03 मार्च, 2023, दिन शुक्रवार को है।

Q.2. आमलकी एकादशी को और किस नाम से जाना जाता है?

Ans. आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन काशी नगरी में भोलेनाथ के भक्तगण भगवान शिव और माता पार्वती की अबीर-गुलाल से पूजा करते है। काशी में इस दिन विशेष आयोजन होता है।

Q.3 आमलकी एकादशी पर आंवले के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है

Ans. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है आमलकी अर्थात आंवला। इस दिन आंवले के वृक्ष की इसलिए पूजा की जाती है क्योंकि आंवले के पेड़ में सभी देवी-देवताओं का वास होता है।

Q.4. मलकी एकादशी का क्या महत्व है?

Ans. आमलकी एकादशी पर भगवान श्री हरि विष्णु और सभी देवताओं का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। इस दिन से ही हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहार होली का वातावरण भी बनने लगता है। आमलकी एकादशी को होली के प्रारंभ के रूप में भी जाना जाता है।

Read Also :

होलाष्टक कब से लगेगा | Holashtak in Hindi

होलाष्टक विशेष: होलाष्टक क्यों होते हैं अशुभ, भूलकर भी इन दिनों में ना करें ये कार्य

हिन्दू धर्म में होली का त्योहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हर वर्ष फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन होली पर्व मनाया जाता है। होली के पर्व में सभी लोग आपसी बैर भाव भुलाकर एक दूसरे से गले मिलते हैं और रंग लगाते है। पुराणों में बताया गया है कि फाल्गुन पूर्णिमा यानि जिस दिन होलिका दहन होता है उससे आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते है। होलाष्टक को हिन्दू धर्म में अशुभ दिन माना जाता है। इन आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि वर्ष 2023 में होलाष्टक कब से है, इन दिनों में किन कामों को करने की मनाही होती है। इसके अलावा हम आपको यह भी बताएंगे कि होलाष्टक को अशुभ दिन क्यों माना जाता है। तो दोस्तों होलाष्टक के बारे में सम्पूर्ण जानकारी के लिए हमारे साथ इस लेख में अंत तक बने रहिए।

होलाष्टक कब से है | Holashtak 2023 Dates | Holashtak Start and End Date 2023

हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष फागुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर फागुन पूर्णिमा की तिथि तक होलाष्टक होता है। इस तरह यह आठ दिन हुआ लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार से देखे तो यह नौ दिन हुए। वर्ष 2023 में होलाष्टक का आरंभ 27 फरवरी 2023 दिन सोमवार से प्रारंभ होकर 07 मार्च दिन मंगलवार तक रहेगा। इन नौ दिनों में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है। वर्ष 2023 में होलाष्टक 27 फरवरी को सुबह 12 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर 28 फरवरी को 02 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर 27 फरवरी से ही होलाष्टक प्रारंभ हो जायेगा। इस बार होलाष्टक में भद्रा काल भी है। भद्राकाल 27 फरवरी सुबह 06 बजकर 49 मिनट से 01 बजकर 35 मिनट तक हे। फाल्गुन पूर्णिमा यानि जिस दिन होलिका दहन होता है उस दिन होलाष्टक समाप्त हो जायेगा। होलाष्टक समाप्त होने के साथ ही शुभ कार्य एक बार फिर शुरू हो जाएंगे।

holashtak_in _hindi_jaishreeram

Read Also : उज्जैन महाकाल मंदिर के दर्शन

होलाष्टक को क्यों कहा जाता है अशुभ

होलाष्टक क्यों अशुभ होते है। इसको लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। दरअसल फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमासी तक 8 ग्रह उग्र अवस्था में रहते हैं। ये ग्रह हैं सूर्य, चंद्रमा, शनि, शुक्र, गुरु, बुध, मंगल और राहु। अष्टमी को चन्द्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरू, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा तिथि को राहु उग्र रहता है। इन ग्रहों के उग्र रहने से शुभ कार्यों में इनका सहयोग नहीं मिलता है, किसी भी नये कार्य में विघ्न पड़ सकता है जिसके चलते शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।

होलाष्टक के दौरान इन ग्रहों की तीव्रता के चलते वातारवरण में नकारात्मकता का वास हो जाता है। इन नकारात्मक शक्तियों का व्यक्ति के स्वभाव व चित्त पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है। इन नकारात्मक ऊर्जाओं के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ उपाय आपको करने चाहिए जिससे होलाष्टक के दौरान फैली नकारात्मक शक्तियां का नास होता है। इन उपायों के बारे में इसी लेख में आगे बताऊँगा।

होलाष्टक को लेकर एक और मान्यता प्रचलित है। इसके अनुसार राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद हर समय श्री हरि भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से दूर करने के लिए हिरण्यकश्यप ने उसे 8 दिनों तक कठोर यातनाएं दी। आठवें दिन हिरण्यकश्प ने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रहलाद को बैठाकर जलाने का प्रयास किया लेकिन प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका धू-धू करके जल गई। भक्त प्रहलाद ने इन आठ दिनों में जो पीड़ा सही, वही दिन होलाष्टक के माने जाते है। इसी के चलते होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य को करने की मनाही होती है। प्रहलाद के जीवित बचने के चलते ही होली का पर्व मनाया जाता है।

पुराणों में होलाष्टक को लेकर भगवान शिव से संबंधित एक कहानी भी बताई गई है। इसके अनुसार एक बार भगवान शिव कठोर तपस्या में लीन थे। इसी दौरान प्रेम के देवता कामदेव आएं और उन्होंने प्रेम बाण चलाकर भोलेनाथ की तपस्या भंग कर दी। तपस्या भंग होने से भगवान शिव शंकर को बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर प्रेम के देवता कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव के भस्म हो जाने से उनकी पत्नी रति बहुत दुखी हो गई। उसने भोलेनाथ के समक्ष अपने पति को जीवित करने की गुहार लगाई। रति की प्रार्थना सुनकर शिव जी का हदय पसीज गया। उन्होंने रति को आश्वासन दिया कि अगले जन्म में कामदेव और रति का फिर से पुनर्मिलन होगा। ऐसी मान्यता है कि जिस दिन भोलेनाथ ने कामदेव को भस्म किया उस दिन फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। उसी दिन के बाद से होलाष्टक मनाने की परंपरा शुरू हो गई और इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित हो गया।

होलाष्टक में क्या करें

होलाष्टक के दौरान हालांकि शुभ और मांगलिक कार्यो को करने की मनाही होती है लेकिन इस दौरान पूजा-पाठ, दान करना सर्वथा हितकारी होता है।

  • होलाष्टक के समय ही रंगभरी एकादशी, प्रदोष व्रत पड़ता है। ऐसे में इस तिथि को व्रत, पूजन जरूर करना चाहिए। होलाष्टक के दौरान व्रत और दान करने से जीवन के संकटों से मुक्ति मिलती है।
  • होलाष्टक के दौरान भगवान नृसिंह की पूजा आराधना करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त संकट मोचन हनुमान जी की पूजा करने से होलाष्टक के दौरान फैली नकारात्मक ऊर्जाओं का नास होता है। इस दौरान नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
  • होलाष्टक के समय आदित्यहदय स्त्रोत, सुंदरकांड का पाठ और बंगलामुख मंत्र के जाप से आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति होती है।
  • होलाष्टक के दौरान कुछ ग्रह उग्र होते है। ऐसे में इस दौरान उन ग्रहों को शांत करने के लिए उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए।

Read Also : हिन्दी कैलेडर का नया वर्ष, जानिए हिन्दू मासों का महत्व 

होलाष्टक में क्या न करें

  • होलाष्टक के दौरान गृह प्रवेश, मुंडन, उपनयन, सगाई जैसे शुभ कार्य भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इस दौरान अगर घर में किसी बच्चे का जन्म हो तो उसकी छठी भी इस समय नहीं करनी चाहिए। उसे आगे के लिए टाल देना चाहिए।
  • यदि आप कोई नया वाहन खरीदना चाहते है तो इस समय टाल दें। इस समय अगर कोई वाहन क्रय करते है तो वह बार-बार आपके लिए समस्या दे सकता है। हां, आप इतना जरूर कर सकते है कि होलाष्टक लगने से पहले वाहन की बुकिंग करा ले और होली वाले दिन वाहन को खरीदे। होली वाले दिन वाहन खरीदना हर दृष्टि से शुभ साबित होगा।
  • होलाष्ट के दौरान किसी नये व्यवसाय को नहीं शुरू करना चाहिए। अगर पहले से कोई व्यवसाय कर रहे हो तो उसमें कुछ बदलाव कर सकते है लेकिन कोई नया व्यवसाय नहीं डालना चाहिए। अगर नौकरी कर रहे हो तो होलाष्टक के दौरान नौकरी बदलने की भूल ना करें। यह आपके जीवन के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
  • अगर घर में मांगलिक कार्य हुआ हो। बहू या बेटी की पगफेरे के लिए विदाई करनी हो तो उसे होलाष्टक के पहले कर लें। होलाष्टक के दौरान भूलकर भी विदाई का कार्यक्रम नहीं करना चाहिए।

होलाष्टक के उपाय

जैसा कि मैने आपको ऊपर बताया कि होलाष्टक के दौरान वातावरण में नकारात्मक शक्तियां विद्यमान रहती है। इसलिए इस दौरान कुछ उपाय है जिनको करने से इन नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा मिलता है और सकारात्मक शक्तियों का प्रवेश होता है।

  • घर की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए थोड़ी राई ले लें। इस राई को एक कागज में लपेटकर उसे जलती हुई होलिका में डाल दे। ऐसा करने से आपके घर की नकारात्मक ऊर्जा का नास होगा और सकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश करेगी।
  • अगर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हो। बहुत प्रयास के बाद भी धन नहीं बच रहा हो तो होलाष्टक के दौरान माता लक्ष्मी का पूजन करने के बाद श्रीसूक्त का पाठ करना चाहिए। साथ ही इस समय अगर आप नरसिंह स्त्रोत का पाठ करते है तो आपको माता लक्ष्मी का आर्शीवाद प्राप्त होगा और धन संबंधी समस्या दूर हो जायेगी। भगवान श्री हरि के नृसिंह अवतार की पूजा करने से आपको बड़ी से बड़ी समस्या से मुक्ति मिलती है।
  • अगर दाम्पत्य जीवन में कलह, क्लेश का वातावरण व्याप्त हो, पति-पत्नी में लड़ाई झगड़े ज्यादा हो रहे हो। दाम्पत्य जीवन में मधुरता का अभाव हो तो होलिका की राख को एक कागज में लपेट लें। इस राख को घर के किसी कोने में छुपाकर रख दे। इससे कलह-क्लेश का वातावरण समाप्त होगा और दाम्पत्य जीवन में मधुरता आयेगी। एक और टोटका है अगर होलिका की आग में जौ का आटा अर्पित करते हैं तो घर में खुशहाली आती है।
  • जिस दिन होलाष्टक लगे उसी दिन अपने घर के मुख्य दरवाजे के दोनों ओर हल्दी या सिन्दूर से स्वास्तिक बनाएं। इससे नकारात्मक ऊजाएं पहले दिन से आपके घर में नहीं प्रवेश कर पाएंगी।
  • अगर नौकरी में बहुत मेहनत करने के बाद भी प्रमोशन ना मिल रहा है। बेरोजगार व्यक्ति को बहुत प्रयास के बाद भी नौकरी ना मिल रही हो तो होलाष्टक के दौरान शिवलिंग पर 21 गोमती चक्र चढ़ाएं। अगले दिन इनको एक लाल कपड़े में बांधकर अपने आफिस में अपने बैठने की जगह के पास रख दे। इस उपाय को करने से आपकी नौकरी संबंधी बाधाएं जल्द ही दूर हो जायेगी।
  • जैसा कि आपने ऊपर जाना होलाष्टक के दौरान 8 ग्रह उग्र अवस्था में रहते है। ऐसे में उन ग्रहों की शांति के लिए होलाष्टक के दौरान भगवान शिव शंकर की आराधना करने से यह ग्रह शांत होते है। होलाष्टक के समय महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना सर्व हितकारी होता है। महामृत्युंजय मंत्र के जाप से बड़े से बड़ा रोग भी दूर हो जाता है और आपकी सेहत ठीक हो जाती है। अगर होलाष्टक के दौरान आप बेलपत्र पर चंदन से राम लिखकर ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ाते है तो आपके जीवन में अस्वभाविक बदलाव आयेगा।
  • सेहत संबंधी एक और उपाय है। एक नारियल लेकर उसे अपने ऊपर से 7 बार एंटी क्लाक वाइस घुमाये। फिर इस नारियल को होलिका में अर्पित कर दे। इसको करने से लंबे समय से अगर कोई बीमारी चल रही है तो वह खत्म होती है।
  • संतान प्राप्ति का सुख चाहते है तो होलाष्टक के दौरान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। लड्डू गोपाल का श्रृंगार करें और उनको फल-फूल, गुलाल अर्पित करना चाहिए। साथ ही उनके मंत्र श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी का नित्य जाप करना चाहिए। ऐसा करने से आपको शीघ्र ही संतान सुख की प्राप्ति होगी।
  • होलाष्टक के दौरान दान-पुण्य करना भी विशेष फलदायी होता है। इस समय किसी गरीब, जरूरतमंद को अपनी सामथ्र्य के अनुसार दान-दक्षिणा देना चाहिए।
  • होलाष्टक के दौरान सवेरे ब्रहम मुहूर्त में उठकर सूर्यदेव को तांबे के लोटे से अध्र्य देना चाहिए। साथ ही सूर्यदेव के मंत्र ऊँ आदित्य नमः, ऊँ सूर्याय नमः आदि का जाप करना चाहिए। इस जाप को करने से तेज, यश की प्राप्ति होती है। जीवन के सारे कष्ट, परेशानियां दूर होती है।
  • होलाष्टक के दौरान आपको अधिक से अधिक देवताओं का पूजन, उनके निर्मित यज्ञ करना चाहिए। मान्यता है कि इस दौरान किया गया हवन-यज्ञ बहुत ही शुभ फलदाई होता है। रोजाना ईश्वर के विभिन्न रूपों का ध्यान करते हुए भजन करना चाहिए।
  • परिवार में सुख समृद्धि लाना चाहते हैं तो होलाष्टक में रामरक्षास्तोत्र, हनुमान चालीसा व विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से घर में खुशहाली आती है।
  • अगर कन्या के विवाह में बाधा आ रही हो तो कन्या के माता-पिता कात्यायनी मंत्रों का जाप करें। इस मंत्र का जाप करने से कन्या के विवाह में आ रही बाधा दूर होगी और शीघ्र विवाह होगा।
  • अगर आपके बच्चे का पढ़ाई से जी उचट रहा हो, पढ़ाई में मन ना लगता हो तो होलाष्टक के दौरान भगवान गणपति के समक्ष बैठकर गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें। पाठ के पश्चात हवन करें। ऐसा करने से बच्चे का पढ़ाई लिखाई में मन लगने लगेगा और वह तीक्ष्ण बुद्धि हो जायेगा।

निष्कर्ष

होलाष्टक ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी अशुभ माना जाता है। इन आठ दिनों में कोई भी मांगलिक व शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। अगर आप भूल से भी किसी शुभ कार्य को इस दौरान शुरू कर देते है तो आपको विपरीत परिणाम प्राप्त होंगे। अगर आप होलाष्टक के दौरान फैली नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो हमने आपको कुछ उपाय भी बताएं है जिनको अपने जीवन में अपनाकर आप बाधाओं को दूर कर सकते है। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको होलाष्टक संबंधी सभी विषयों पर विस्तार से जानकारी दी। उम्मीद करते हैं यह जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित होगी। इस जानकारी को अपने मित्रों-परिजनों के साथ सोशल मीडिया पर साझा अवश्य करें। आप हमे कमेंट यह जरूर बताएं कि यह लेख आपको कैसा लगा। इसी तरह के लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

FAQ : ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q.1. होलाष्टक कब से है?

Ans. वर्ष 2023 में होलाष्टक का आरंभ 27 फरवरी 2023 दिन सोमवार से प्रारंभ होकर 07 मार्च दिन मंगलवार तक रहेगा। इन नौ दिनों में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है।

Q.2. होलाष्टक क्यों अशुभ होते हैं?

Ans फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमासी तक 8 ग्रह उग्र अवस्था में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र रहने से शुभ कार्यों में इनका सहयोग नहीं मिलता है, किसी भी नये कार्य में विघ्न पड़ सकता है जिसके चलते शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।

Q.3. होलाष्टक में क्या करना चाहिए?

Ans. होलाष्टक के समय में पूजा-पाठ, दान पुण्य करना श्रेष्ठ होता है। होलाष्टक के दौरान भोलेनाथ की आराधना करनी चाहिए। उनके विभिन्न मंत्रों, महामृत्युजय मंत्र का जाप करना चाहिए। हनुमान चालीसा का पाठ, आदित्य हदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।

Q.4. होलाष्टक में कौन से कार्य वर्जित हैं?

Ans. होलाष्टक के दौरान गृह प्रवेश, मुंडन, उपनयन, सगाई जैसे शुभ कार्य भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इस दौरान अगर घर में किसी बच्चे का जन्म हो तो उसकी छठी भी इस समय नहीं करनी चाहिए। उसे आगे के लिए टाल देना चाहिए।

Read Also : अपनी राशि कैसे पता लगाएं

विनायक चतुर्थी : Vinayak Chaturthi Vrat Katha

विनायक चतुर्थी विशेष: विनायक चतुर्थी के दिन क्यों नहीं देखते चांद, जाने इसके पीछे का बड़ा कारण

हिन्दू धर्म में गणेश जी की पूजा का विशेष महत्व है। गणेश जी को प्रथम पूज्य भगवान के रूप में पूजा की जाती है। किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत से पहले भगवान गणेश जी की पूजा करने का विधान है। कई श्रद्धालु भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए उनके निर्मित व्रत भी रखते है। गणेश जी के इन्हीं व्रतों में से एक विनायक चतुर्थी का व्रत भी होता है। पंचांग के अनुसार हर महीने में दो पक्ष होते है। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते है जबकि शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी विनायक चतुर्थी के नाम से जानी जाती है। आज के लेख में हम जानेंगे कि फाल्गुन माह में विनायक चतुर्थी का व्रत कब है, इसका क्या महत्व है और इस दिन किन उपायों को करना श्रेयस्कर है आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

विनायक चतुर्थी कब है | Vinayak Chaturthi Kab Hai 2023

फाल्गुन माह में विनायक चतुथी दिनांक 23 फरवरी, 2023 दिन गुरूवार को प्रातकाल 3 बजकर 24 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 24 फरवरी को दोपहर 01 बजकर 33 तक रहेगी। उदया तिथि के चलते दिनांक 23 फरवरी को ही विनायक चतुर्थी का पूजा व व्रत रखा जायेगा। किसी भी पूजा को करने से पहले शुभ मुहूर्त का ध्यान रखा जाता है। विनायक चतुर्थी का शुभ मुहूर्त 23 फरवरी को सुबह 11ः26 से शुरू होकर दोपहर 01ः43 तक रहेगा। इस मुहूर्त में गणपति बप्पा की विधिवत आराधना करना श्रेयस्कर होगा। इस दिन 4 शुभ योग भी बन रहे हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन भर रहेगा। दिनांक 23 फरवरी को प्रातःकाल 07 बजकर 15 मिनट से शुभ योग प्रारंभ होगा जो रात्रि 08 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। शुभ योग के बाद शुक्ल योग लग जायेगा जो 23 फरवरी को पूरी रात्रि रहेगा और अगले दिन दिनांक 24 फरवरी को भी यही योग रहेगा। विनायक चतुर्थी पर रवि योग भी बन रहा है जो दिनांक 23 फरपरी को सुबह 6ः53 से प्रारंभ होकर दिनांक 24 फरवरी को भोर 03ः44 तक रहेगा। शुभ योगों में पूजा करने से पूजा का दोगुना लाभ मिलता है।

Read Also : सिद्धिविनायक मंदिर की से जुड़ी सारी जानकारी

इस तरह करें पूजा | Vinayak Chaturthi Puja Vidhi

विनायक चतुर्थी वाले दिन ब्रहम मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान कर ले। स्नान करने के बाद साफ धुले हुए वस्त्र पहनकर अपने घर के पूजा स्थल में जाकर वहां की साफ सफाई कर लें। पूजा घर में लकड़ी की एक चैकी लें। उस पर गंगाजल डालकर उसे पवित्र कर लें। चैकी पर गणेश जी की छोटी सी प्रतिमा स्थापित कर दे। प्रतिमा स्थापित करने से पहले गणेश जी को स्नान करवा दें। जमीन पर आसन बिछाए। इसके बाद पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठ जाएं और गणेश जी के यंत्र की स्थापना करें। पूजन की सारी सामग्री फूल, धूप, दीप, कपूर, मौली, रोली, लाल चंदन, फल, प्रसाद के लिए मोदक आदि को एक जगह इकट्ठा कर लें। इसके बाद गणेश जी को मौली, चंदन, लाल चंदन का तिलक लगाएं। इस तिलक को अपने माथे पर भी आर्शीवाद स्वरूप लगाएं। गणेश जी को पुष्प, माला समर्पित करें। गणेश जी के मंत्रों का जाप करते हुए उनकी पूजा-आराधना करें। ‘ऊँ गणपते नमः, वक्रतुण्डाय नमः, सिद्ध लक्ष्मी मनोहरिप्राय नमः इन मंत्रों का जाप करना सर्वदा हितकारी होता है। गणेश जी को धूप, दीप, नैवेद्य, पान का पत्ता और फल अर्पित करें। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को रात में चंद्रमा की पूजा नहीं की जाती है। इस दिन चंद्रमा को देखने से कलंक लगता है। इसके पीछे भी एक कथा है। इस कथा के अनुसार श्रीकृष्ण जी ने चैथ का चांद देखा था जिसके चलते उन पर मणि चोरी का कलंक लगा था। ऐसे में विनायक चतुर्थी को दिन में ही गणेश जी की पूजा करने के बाद रात्रि में व्रत का पारण कर लिया जाता है। पूजा पूर्ण होने के बाद विनायक चतुर्थी की कथा करें। इसके बाद गणेश जी की आरती करें। आरती के बाद गणेश जी को मोदक, फल का भोग लगायें। स्वयं इस प्रसाद को ग्रहण करें और घर के अन्य परिजनों को भी इस प्रसाद को दें।

विनायक चतुर्थी व्रत कथा | Vinayak Chaturthi Vrat Katha

विनायक चतुर्थी की एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक दिन माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे भगवान शिव के साथ बैठी थी। अनायास ही उनके मन में चैपड़ खेलने का विचार आया लेकिन वहां कोई ऐसा नहीं था जो इस बात का निर्णय करता कि चैपड़ में कौन जीता और कौन हारा। शिव जी माता के मन की बात समझ गये। उन्होंने वहीं पास में पड़े तिनके उठाएं और उनसे एक बालक का पुतला बनाकर उसमें प्राण फूंक दिये। बालक को उन्होंने यह जिम्मेदारी सौंपी कि वह देखे कि उनके और माता पार्वती के बीच जो चैपड़ खेली जा रही है उसमें कौन जीता। भगवान शिव और माता पार्वती के बीच तीन बार चैपड़ का खेल हुआ लेकिन हर बार बालक ने भगवान शिव को ही विजेता घोषित कर दिया। बालक के गलत फैसले के चलते माता पार्वजी उस बालक से रूष्ट हो गई और क्रोधवश उन्होंने उस बालक को लंगड़ा होने का श्राप दे दिया। माता पार्वती के श्राप के चलते वह बालक लंगड़ा हो गया। तब उस बालक को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने माता पार्वती से अपने कृत्य के लिए क्षमा मांगी। बालक की करूण पुकार सुनकर माता पार्वती को दया आ गई। उन्होंने उससे कहा कि जब विनायक गणेश चतुर्थी का व्रत पड़े तो तुम विधिविधान से गणेश चतुर्थी का व्रत करना। बालक ने माता के कथानुसार विनायक चतुर्थी वाले दिन गणेश जी का पूजन किया। बालक के विधिवत पूजन से गणेश जी अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने बालक को श्राप से मुक्त कर दिया।

विनायक चतुर्थी पर नहीं देखना चाहिए चंद्रमा

जैसा कि मैने ऊपर के लेख में बताया कि विनायक चतुर्थी वाले दिन चन्द्रमा को देखने से कलंक लगता है इसके पीछे एक कहानी है। इस कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण पर मणि चोरी करने का कलंक लगा था। इससे वे बहुत अपमानित हुए थे। स्वयं नारद जी ने इस विषयक बताया कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को जो भी जातक चंद्रमा के दर्शन कर लेता है उस पर झूठा कलंक लगता है। नारद जी ने आगे बताया कि इसके पीछे चंद्रमा को गणेश जी द्वारा दिया गया श्राप है। नारद जी की बात मानकर ही श्रीकृष्ण जी ने शुक्लपक्ष की गणेश चैथ का व्रत किया था जिससे वह इस कलंक से दोष मुक्त हो गए है।

अगर आज के दिन भूल से चंद्रमा के दर्शन आप कर लें तो घबराएं नहीं। चंद्र दोष के निवारण के लिए श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ करने करना चाहिए। इसके करने से चंद्र दोष समाप्त हो जाता है और मिथ्या कलंक नहीं लगता है। इसके अतिरिक्त एक मंत्र भी है जिसका 108 बाद जाप करने से चंद्र दोष समाप्त होता है। यह मंत्र है –

सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।

विनायक चतुर्थी का महत्व | Vinayak Chaturthi Ka Mehtva

विनायक चतुर्थी के दिन जो भी श्रद्धालु विध्नहर्ता भगवान गणेश की पूरी श्रद्धा भाव से पूजा करते है। उस पर गणपति जी की विशेष कृपा बरसती है और उसके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते है। गणपति जी ज्ञान और धैर्य का आर्शीवाद प्रदान करते हैं।

विनायक चतुर्थी पर गणपति जी के सिद्धिविनायक रूप की आराधना करने से निःसंतान दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती है। संतान के सारे कष्टों के निवारण के उद्देश्य से विनायक चतुर्थी का व्रत विशेष लाभकारी है।

विनायक चतुर्थी के उपाय | Vinayak Chaturthi Ke Upay

विनायक चर्तुािी के कुछ उपाय है जिनको करने से जीवन में किसी तरह की कठिनाई, बाधा हो तो वह दूर होती है और जीवन सुखमय व्यतीत होता है।

विनायक चतुर्थी के दिन हल्दी की पांच गाठें ले और श्री गणाधिपतये नमः मंत्र का 108 बार जाप करते हुए गणेश जी को अर्पित करें। ऐसा करने से नौकरी में अगर किसी तरह की परेशानी आ रही हो। प्रमोशन ना हो रहा है तो उसकी संभावनाएं बढ़ जायेंगी। कैरियर में उन्नति होगी।

आर्थिक समस्या को दूर करने के लिए विनायक चतुर्थी के दुर्वा की 108 गांठे लेकर उनको हल्दी में भिगोकर श्री गजवकत्रम नमो नमः मंत्र का जाप करते हुए गणेश जी को अर्पित करें। ऐसा करने से आर्थिक समस्या दूर होगी। धन संपदा में बढ़ोत्तरी होगी।

वैवाहिक जीवन में कोई समस्या आ रही हो, पति-पत्नी के रिश्ते में अनबन हो तो विनायक चतुर्थी के दिन पान के सादे पत्तों में सिंदूर लगाकर उसे गणपति महाराज के चरणों में अर्पित करें। इस सिंदूर को अपने मस्तक पर लगाएं। इस उपाय को करने से वैवाहिक जीवन में चली आ रही समस्या समाप्त होगी।

अगर प्रेम विवाह करने में कोई अड़चन आ रही तो विनायक चतुर्थी के दिन 5 लौंग और 5 इलायची गणपति जी को अर्पित करें। इसके बाद अपने प्रेम विवाह के सकुशल होने की कामना करें। पूजा के बाद इलायची और लौंग को एक हरे कपड़े में बांधकर अपने पास रख ले। ऐसा करने से प्रेम विवाह में आ रही अड़चन दूर होगी और सकुशल प्रेम विवाह सम्पन्न हो जायेगा।

अगर परिवार में संपत्ति संबंधी कोई विवाद हो, कोर्ट कचहरी मुकदमों में फंसे हो तो इससे छुटकारा पाने के लिए आज के दिन गणपति जी की छोटी प्रतिमा के समरू चांदी का चैकोर टुकड़ा चढ़ाएं और गणपति महाराज से इस विवाद को खत्म करने की प्रार्थना करें। गणपति महाराज के आर्शीवाद से परिवार में प्रेम बढ़ेगा और चल रही संपत्ति विवाद समाप्त होगा।

गणेश जी को 21 लड्डूओं का भोग लगाएं और इन लड्डुओं को गरीबों को दान दें। इसको करने से आपका बुध मजबूत होगा और पढ़ाई में रूचि बढ़ेगी।

Read Also : महाकाल मंदिर के दर्शन कैसे करें ?

विनायक चतुर्थी वाले दिन क्या करें | Vinayak Chaturthi Par Kya Kare

विनायक चतुर्थी वाले दिन जो भी प्रसाद का भोग आप भगवान गणेश को लगाते है उसे गरीबों या ब्राहमणों को अवश्य बांटे। इस दिन किसी जरूरतमंद को भोजन जरूर कराना चाहिए और यथाशक्ति दान भी देना चाहिए।

आज के दिन पूरे दिन भर गणेश जी के मंत्रों को निरन्तर जाप करते रहना चाहिए। इन मंत्रों के जाप से आपके जीवन में सभी परेशानियां दूर हो जायेगी और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी।

गणेश पूजन में परिक्रमा करने का बहुत महत्व है। आज के दिन गणेश जी की पूजा के बाद तीन बार परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।

विनायक चतुर्थी पर गणेश जी की विशेष कृपा बरसती है। ऐसे में आज के दिन शाम को संकटनाशक गणेश स्त्रोत का पाठ अवश्य करना चाहिए। इस पाठ को करने से किसी भी कार्य में आ रही बाधा दूर होती है और करने वाले जातक को धन संबंधी समस्या भी हटती है।

विनायक चतुर्थी का व्रत दिन में होता है और इस व्रत का पारण शाम को किया जाता है। ऐसे में शाम को व्रत के पारण से पहले गणेश चालीसा, संकटनाशक गणेश सत्रोत का पाठ और गणेश जी की आरती जरूर करें।

विनायक चतुर्थी वाले दिन क्या न करें | Vinayak Chaturthi Par Kya Na Kare

इस दिन किसी भी प्रकार का सात्विक भोजन जैसे प्याज, लहसुन का प्रयोग ना करें। सिर्फ सादा भोजन ही करें।

अपने से किसी भी बड़े का अपमान ना करें। ना किसी को अपशब्द बोले। अगर भूल से भी आप किसी का अपमान कर देते है तो आपको इसका फल आपको भुगतना पड़ेगा।

गणेश जी की पूजा में तुलसी दल को डालने की मनाही होती है। ऐसे में किसी भी चीज का भोग लगाते समय उसमें भूलकर भी तुलसी की पत्तिया ंना डाले।

विनायक चतुर्थी को सनातन धर्म में बहुत महत्ता है। इस दिन विधिपूर्वक गणेश जी का व्रत करने से जातक के जीवन की सभी परेशानियां और कष्ट दूर हो जाता है। अगर आप इसी तरह गणेश जी का व्रत करते है तो गणपति बप्पा की कृपा आप पर अवश्य बरसेगी। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको विनायक चतुर्थी के बारे में सारी जानकारी प्रदान की। आप इस लेख को अन्य परिजनों के साथ साझा अवश्य करें। इसी प्रकार के धार्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहें। जयश्रीराम

FAQ | ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. विनायक चतुर्थी कब है

Ans. विनायक चतुर्थी हर माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। फाल्गुन माह में 23 फरवरी, 2023 दिन गुरूवार को विनायक चतुर्थी पड़ेगी।

2. विनायक चतुर्थी पर चंद्रमा क्यों नही देखना चाहिए

Ans. विनायक चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखने से कलंक लगता है। इसके पीछे भी एक कथा है। इस कथा के अनुसार श्रीकृष्ण जी ने चैथ का चांद देखा था जिसके चलते उन पर मणि चोरी का कलंक लगा था।

3. विनायक चतुर्थी पर क्या खाना चाहिए

Ans. विनायक चतुर्थी के दिन एक ही समय फलाहार करना चाहिए। फलाहार में नमक नहीं खाना चाहिए। रात में व्रत का पारण किया जाता है।

4. क्या गणेश जी को तुलसी चढ़ाई जाती है

Ans. विनायक चतुर्थी के व्रत में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है। ऐसे में किसी भी चीज का भोग लगाते समय तुलसी नहीं डालनी चाहिए।

Read Also : हिन्दू धर्म क्या है, और इसकी खूबियां

सोमवती अमावस्या की कथा | Somvati Amavasya Ki Katha

सोमवती अमावस्या विशेष: सोमवती अमावस्या पर कर लें ये उपाय, जीवन की सभी बाधाएं होंगी दूर

हिन्दू धर्म में अमावस्या तिथि का बड़ा महत्व है। हर माह में अमावस्या तिथि पड़ती है। अमावस्या की तिथि को पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। सोमवार के दिन जो अमावस्या पड़ती है उसे सोमवती अमावस्या कहते है। यह साल में एक या दो बार पड़ती है। सोमवती अमावस्या पर माता पार्वती और भोलेनाथ शिव शंकर की पूजा-आराधना की जाती है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है। तो दोस्तों आज के लेख में हम जानेंगे कि वर्ष 2023 में सोमवती अमावस्या कब है, कैसे इस दिन पूजा करनी चाहिए, इस दिन कौन से उपाय करने चाहिए जिनको करने से जीवन की सारी बाधाएं और संकट दूर हो जाएं।

सोमवती अमावस्या कब है | Somvati Amavasya Kab Hai 2023

जैसा कि इस लेख में मैने आपको बताया कि वर्ष में एक या दो बार सोमवती अमावस्या पड़ती है। वर्ष 2023 में सोमवती अमावस्या 20 फरवरी, 2023 दिन सोमवार को पड़ेगी। सोमवती अमावस्या 19 फरवरी, दिन रविवार को शाम को 04ः18 मिनट से शुरू होकर 20 फरवरी को दोपहर 12ः35 पर समाप्त हो जायेगी। सोमवती अमावस्या पर दान और पूजा दोनों करने का विधान होता है लेकिन यह दोनों ही काम शुभ मुहूर्त में करना विशेष फलदायी होता है। सोमवती अमावस्या पर पूजा करने का शुभ मुहूर्त 20 फरवरी को सुबह 09ः50 से 11 बजकर 15 मिनट तक का है जबकि स्नान दान का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 56 मिनट से आरम्भ होकर 08 बजकर 20 मिनट तक का है।

फाल्गुन अमावस्या इस साल परिघ योग में पड़ रही है। यह योग 20 फरवरी को सुबह 07 बजकर 20 मिनट से 11 बजकर 03 मिनट रहेगा। परिघ योग शनि से शासित योग होता है। ऐसे में शनि का प्रभाव ज्यादा पड़ता हे। परिघ योग शत्रु निवारण योग भी होता है। इस योग में आप अपने शत्रुओं को पराजित करने के लिए कोई कदम उठाएंगे तो आपके शत्रु परास्त होंगे और आपको अपने शत्रुओं पर विजय मिलेगी। परिघ योग में शुभ कार्य करना वर्जित होता है। हालांकि इस योग में पूजा-पाठ कर सकते है। परिघ योग के समाप्त होने के बाद शिव योग शुरू हो जायेगा।

सोमवती अमावस्या पर ऐसे करें पूजा | सोमवती अमावस्या पूजा विधि | Somvati Amavasya Puja Vidhi

सोमवती अमावस्या वाले दिन प्रातःकाल उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान कर ले। अमावस्या तिथि पर किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने करना चाहिए। अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो अपने घर के स्नान वाले पानी में गंगाजल मिलाकर पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान करें। अमावस्या के दिन पितरों के निर्मित श्राद्ध कर्म, तर्पण करने से पितरों का आर्शीवाद प्राप्त होता है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा जरूर करनी चाहिए। पीपल के पेड़ में देवताओं का वास होता है। ऐसे में आज के दिन पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है और सारे संकट दूर होते है। आज के दिन गायत्री मंत्र का जाप करना भी सर्वहितकारी होता है इसलिए दिन में अधिक से अधिक बार इस मंत्र का जाप करें। तुलसी के पौधे की परिक्रमा भी अवश्य करनी चाहिए।

Read Also : महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है 

सोमवती अमावस्या का महत्व | Somvati Amavasya Ka Mehtva

सोमवती अमावस्या वाले दिन भोलेनाथ शिव शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है। सोमवती अमावस्या वाले दिन सुहागिन स्त्रियां स्त्रियां पीपल के पेड़ की पूजा करती है। उसमें दूध, जल, चंदन, अक्षत आदि चीजों अर्पित करती है। और कच्चे सूत के धागे को पीपल के पेड़ में 108 बार बांधकर उसकी परिक्रमा करती है। कुछ स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत भी रखती है।

सोमवती अमावस्या वाले दिन मौन रखने का विशेष महत्व होता है। कहते हैं कि आज के दिन मौन व्रत रखने से सहस्र्रत्रों गोदान के बराबर फल की प्राप्ति होती है। इसलिए आज के दिन सुहागिन स्त्रियां मौन व्रत भी रखती हैं। पुराणों में सोमवती अमावस्या के व्रत को अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत के नाम से भी पुकारा गया है। अश्वत्थ यानि पीपल का वृक्ष।

सोमवती अमावस्या के दिन दान, पितरों के निर्मित तर्पण करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन सीधा निकालकर किसी मंदिर में जाकर पितरों के निर्मित दान देना चाहिए। इस बार सोमवती अमावस्या महाशिवरात्रि के तुरंत बाद पड़ रही है। सोमवती अमावस्या पर भी भोलेनाथ और मां गौरी की पूजा होती है। इससे सोमवती अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है।

सोमवती अमावस्या पर 30 वर्ष बाद महासंयोग बन रहा है। कुंभ राशि में चंद्र, शनि और सूर्य एक साथ युति बना रहे है। इन तीनों ग्रहों का एक साथ एक ही घर में होना पितृ कर्म के लिए अनुकूल होता है।

सोमवती अमावस्या व्रत कथा | Somvati Amavasya Vrat Katha | Somvati Amavasya Ki Kahani

सोमवती अमावस्या की पौराणिक कथा के अनुसार एक राज्य में एक ब्राहमण दंपत्ति रहते था। वह अपनी गरीबी से बहुत परेशान थे। आर्थिक तंगी के चलते वह अपनी पुत्री का विवाह भी कर पा रहा थे। एक दिन ब्राहमण दंपत्ति की मुलाकात एक साधु से हुई। उस दंपत्ति ने साधु के सामने अपनी समस्या को रखा और इसे दूर करने का उपाय पूछा। साधु ने उसकी करूण व्यथा को सुनकर उससे कहा कि गांव के पास एक धोबिन अपने बेटे और बहू के साथ रहती है। यदि तुम चाहती हो कि तुम्हारी बेटी का वैधव्य मिट जाएं तो तुम्हारे बेटी को उस धोबिन के घर जाकर उसकी सेवा करनी होगी , तो धोबिन तुम्हारी सेवा से खुश होकर तुम्हारी पुत्री को अपनी मांग का सिंदूर दे देगी। लेकिन ध्यान रहे धोबिन को इस बात का पता नहीं चलना चाहिए। साधु की इस बात को सुनकर ब्राहमण बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अगली ही सुबह अपनी पुत्री को धोबिन के घर उसकी सेवा करने के लिए भेज दिया। उसकी पुत्री धोबिन के घर जाकर काम करने लगी। धोबिन को इस बात की जानकारी नहीं थी, वह सोचने लगी कि उसकी बहू इतनी सुबह उठकर कैसे घर का काम खत्म कर लेती है। धोबिन ने एक दिन जल्दी सुबह उठकर देखा तो वह अचरज रह गई। एक कन्या उसके घर का सारा काम करके चुपचाप चली जाती थी। कन्या उसी तरह उसके घर का काम करती रही। एक दिन धोबिन ने उस कन्या ने पूछा कि तुम मेरी घर का काम क्यों करती हो। ब्राहमण कन्या ने साधु की सारी बातों को धोबिन को बता दिया। धोबिन ने उसकी सेवा से प्रसन्न होकर अपनी मांग का सिंदूर कन्या को दे दिया। ऐसा करते ही धोबिन के पति की मृत्यु हो गई। धोबिन के पति की मृत्यु होने से धोबिन बहुत दुखी हुई। दुखी होकर वह एक पीपल के पेड़ गई और ईंट के 108 टुकड़े लेकर पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने लगी। परिक्रमा के बाद वह उन ईटों को दूसरी दिशा में फेंकने लगी। पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने से उसे भगवान का आर्शीवाद मिला और उसका पति जीवित हो गया। तभी से सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने से सुहागिन स्त्रियों को उनके सुहाग का आर्शीवाद मिलता है।

सोमवती अमावस्या पर करें ये उपाय |

सोमवती अमावस्या पर कुछ उपाय है जिनको करने से जीवन की बाधाएं और संकटों से मुक्ति मिलती है।

  • अगर आर्थिक समस्या का सामना कर रहे हों तो आज के दिन मुठ्ठी भर चावल लेकर भोलेनाथ के मदिर में जाकर शिवलिंग पर अर्पित कर दे। भोलेनाथ की कृपा से आपकी धन संबंधी समस्या दूर हो जाएंगी और सुख समृद्धि में वृद्धि होगी।
  • सेहत अक्सर खराब रहती हो। काफी इलाज के बाद भी ठीक ना हो रही हो तो आज के दिन दूध में गंगाजल डालकर शिवलिंग पर अर्पित करे। ऐसा करने से सेहत की समस्या दूर होगी।
  • कालसर्प दोष निवारण के लिए सोमवती अमावस्या का दिन सबसे उत्तम होता है। इस दोष के निवारण के लिए सोमवती अमावस्या के दिन किसी मंदिर में जाकर शिवलिंग का दूध, दही, घी, शक्कर, शहद से अभिषेक करें। तत्पश्चात इनका पंचामृत बनाकर भोलेनाथ का मंत्र ऊँ नमः शिवाय जपते हुए अभिषेक करें। चांदी के तार से बने नाग-नागिन की पूजा करने के बाद उन्हें सफेद फूल के साथ जल में विसर्जित कर दें। ऐसा करने से आपकी कुंडली में मौजूद काल सर्प दोष खत्म हो जायेगा।
  • महिलाएं अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए आज के दिन पीपल के पेड़ में कच्चे सूत के धागे को 108 बार बांधकर उसकी परिक्रमा करें। पीपल के पेड़ पर दूध और जल अर्पित करें। इसके बाद कुंवारी को यथा संभव दान दे। ऐसा करने से पति की आयु बढ़ती है, उसका मान सम्मान भी बढ़ता है।
  • अपने जीवनसाथी की तरक्की के लिए एक और उपाय है जिसे सोमवती अमावस्या के दिन शाम को करना चाहिए। शाम को घर या मंदिर के ईशान कोण में दीपक जलाएं। इस दीपक में रूई की जगह लाल रंग की बत्ती का उपयोग करें। दिए को जलाने में गाय के घी का इस्तेमाल करें। ऐसा करने से जीवन साथी को नौकरी में पदोन्नति होती है।
  • करियर की समस्या को दूर करने के लिए आज के दिन ओंकार मंत्र का जाप करना चाहिए। अगर आज के दिन रात्रि में रोटी के ऊपर सरसों का तेल लगाकर अगर काले कुत्ते को खिलाएं तो करियर संबंधी सभी समस्याएं दूर होती है।
  • सोमवती अमावस्या के दिन शिव परिवार के एक और सदस्य गणेश जी की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। आज के दिन गणेश जी को सुपारी चढ़ानी चाहिए। इस उपाय को करने से दरिद्रता दूर होती है।

क्या करें इस दिन | सोमवती अमावस्या के दिन क्या करना चाहिए?

अमावस्या के दिन दान-पुण्य का बहुत महत्व है। अतः इस दिन अपनी सामथ्र्यनुसार किसी गरीब को दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। सफेद चीज जैसे दूध, दही आदि का दान करना चाहिए।

पीपल के पेड़ में भगवान का वास होता है। पीपल की जड़ में भगवान श्री हरि विष्णु, तने में भोलेनाथ शिव शंकर तथा अग्र भाग में सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी का वास होता है। इसलिए आज के दिन पीपल के वृक्ष का पूजन अवश्य करना चाहिए। इससे भाग्योदय होता है।

सोमवती अमावस्या के दिन सूर्य देवता को जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है। दरिद्रता दूर होता है।

जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा की स्थिति कमजोर है, उन्हें आज के दिन गाय को दही और चावल खिलाना चाहिए। ऐसा करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है।

Read Also : बद्रीनाथ धाम से जुड़ी सारी जानकारी

क्या न करें इस दिन |

सोमवती अमावस्या के दिन तामसिक भोजन, प्याज, लहसुन, मास मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
आज के दिन महिलाओं को बाल नहीं धोना चाहिए। न ही आज के दिन बालों में तेल लगाना चाहिए। अमावस्या के दिन ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं अमावस्या के दिन बाल धोती है उनके घर में कलह क्लेश का वातावरण बना रहता है। घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर जाती है। परिवार में लड़ाई झगड़े बढ़ते है, घर में लक्ष्मी की हानि होती है।

आज के दिन सुबह देर तक तक नहीं सोना चाहिए, ब्रहम मुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए। अगर आप देर तक सोते है तो घर में दरिद्रता आती है। अमावस्या के दिन दोपहर के समय कभी भी नहीं सोना चाहिए।

अमावस्या पर पति-पत्नी को आपस में संबंध भी नहीं बनाना चाहिए। मान्यता है कि अगर आज दंपत्ति संबंध बनाते है तो उससे संतान होती है तो संतान का जीवन दुखदायी रहता है।

सोमवती अमावस्या हिन्दू धर्म की एक महत्वपूर्ण तिथि है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने, दान पुण्य करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको सोमवती अमावस्या के बारे में सारी जानकारी प्रदान की। उम्मीद करते है यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। इसे सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों, परिजनों के साथ साझा अवश्य करें। आप हमें कमेंट करके यह जरूर बताएं कि हमारे लेख आपको कैसे लग रहे है। आगे आप किस व्रत, त्योहार के विषय में जानकारी चाहते हैं। इसी तरह के आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। जयश्रीराम

FAQ – ज्यादातर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q.1. सोमवती अमावस्या कब है?

Ans. वर्ष 2023 में 20 फरवरी को सोमवती अमावस्या मनाई जायेगी। सोमवार को पड़ने के चलते इसे सोमवती अमावस्या कहते हैं।

Q.2. सोमवती अमावस्या पर कैसे करें पूजा?

Ans. सोमवती अमावस्या वाले दिन भोलेनाथ शिव शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है। सोमवती अमावस्या के दिन सुहागिन स्त्रियां को पीपल के पेड़ की पूजा करती हैं। कच्चे सूत के धागे को पीपल के पेड़ में 108 बार बांधकर उसकी परिक्रमा करती है।

Q.3. सोमवती अमावस्या पर क्या करें?

Ans.अमावस्या के दिन दान-पुण्य का बहुत महत्व है। अतः इस दिन अपनी सामथ्र्यनुसार किसी गरीब को दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। सफेद चीज जैसे दूध, दही आदि का दान करना चाहिए। इस दिन पितरों के निर्मित दान, तर्पण अवश्य करना चाहिए।

Q.4. सोमवती अमावस्या पर क्या न करें?

Ans. आज के दिन महिलाओं को बाल नहीं धोना चाहिए। सुबह देर तक तक नहीं सोना चाहिए, ब्रहम मुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए। बुजुर्गो का अनादर नहीं करना चाहिए। किसी को भी कठोर शब्द नहीं बोलना चाहिए।

Q.5. सोमवती अमावस्या पर मौन क्यों रहते है?

Ans. सोमवती अमावस्या वाले दिन सुहागिन स्त्रियां मौन रहकर व्रत रखती है। पुराणों में लिखा है सोमवती अमावस्या के दिन मौन व्रत रखने से सहस्र्रत्रों गोदान के बराबर फल की प्राप्ति होती है।

Read Also : हिन्दू धर्म क्या है, क्या है इसका इतिहास और इसकी खूबियां

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है | Maha Shivratri Kab Hai

महाशिवरात्रि पर इन नियमों से भोलेनाथ पर चढ़ाएं बेल पत्र, मिलेगी भोलेनाथ की असीम कृपा

हिन्दू धर्म में महाशिवरात्रि पर्व का बहुत महत्व है। वैसे तो साल भर में कुल 12 शिवरात्रि आती हैं। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। बाकी अन्य 11 माह के कृष्ण पक्ष को जो शिवरात्रि पड़ती है वह मासिक शिवरात्रि कहलाती है। इस दिन देवों के देव महादेव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। ऐसी भी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ के 12 ज्योतिलिंग धरती पर प्रकट हुए थे। महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ के भक्त मंदिरों में शिव जी का अलग-अलग वस्तुओं से अभिषेक करते हैं और व्रत करते है। तो आईये आज के लेख में हम जानते है कि साल 2023 में महाशिवरात्रि किस दिन है, कैसे इस दिन पूजा करनी चाहिए, किस नियम से बेलपत्र चढ़ाने चाहिए आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

महाशिवरात्रि कब है | Maha Shivratri Kab Hai 2023 Me

महाशिवरात्रि को पर्व को लेकर इस बार लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कुछ लोग 18 फरवरी, 2023 दिन शनिवार को महाशिवरात्रि मनाने को कह रहे है तो कुछ का कहना है कि महाशिवरात्रि 19 फरवरी, 2023 दिन रविवार को मनानी चाहिए। तो आईये हम आपको बताते है कि किस दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाना चाहिए। पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि 18 फरवरी, 2023 को रात्रि 08ः03 पर शुरू होकर 19 फरवरी, 2023 दिन रविवार को शाम को 04ः19 मिनट पर समाप्त होगी। महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ की पूजा निशिता काल में होती है। अगर आप नहीं जानते कि निशिता काल क्या होता है तो हम आपको बताते है कि निशिता काल रात्रि 12 बजे से भोर में 03 बजे का समय होता है। महाशिवरात्रि में त्रयोदशी के उपरांत चतुर्दशी का योग होना भी अत्यन्त शुभ होता है। ऐसे में महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी, 2023 को मनाना ही श्रेयस्कर होगा।

महाशिवरात्रि पर इस बार भोलेनाथ के भक्तों को महादेव की 2 पर्वों का लाभ मिलेगा। एक तो 18 फरवरी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व है। वहीं इसी दिन भोलेनाथ को समर्पित प्रदोष व्रत भी है। महाशिवरात्रि के दिन प्रदोष व्रत का पड़ना इस पर्व की महत्ता को और भी बढ़ा देता है। महाशिवरात्रि पर इस बार त्रिग्रही योग भी बन रहा है। 17 जनवरी को शनिदेव ने कुंभ राशि में प्रवेश किया था। 13 फरवरी को सूर्यदेव ने भी इस राशि में प्रवेश कर लिया। 18 फरवरी को चंद्रमा भी कुंभ राशि में प्रवेश कर गये। ऐसे में चंद्रमा, सूर्य और शनि के संयोग से त्रिग्रही योग बन रहा है। ज्योतिषयों के अनुसार यह संयोग बहुत ही दुर्लभ होता है। शनिवार 18 फरवरी को दोपहर 03ः35 मिनट से सिद्धि योग भी बन रहा है। इन सभी योगों के मिलने से महाशिवरात्रि का महत्व और भी बढ़ा जाता है।

maha_shivratri_kab_hai_jaishreeram

महाशिवरात्रि पर इस तरह करें पूजा | Maha Shivratri Puja Vidhi | MahaShivratri Pujan Vidhi

महाशिवरात्रि पर ब्रहम मुहूर्त में उठ जाएं। नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान कर लें। स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनकर घर के पूजाघर में जाकर महाशिवरात्रि पूजन की सामग्री इकट्ठा कर लें। हर पूजा को करने का अपना नियम होता है और उसमें अलग-अलग पूजन सामग्री का उपयोग होता है। महाशिवरात्रि की पूजा चार पहरों में की जाती है। इन चारों पहरों में भोलेनाथ की अलग-अलग तरीकों से पूजा की जाती है। भोलेनाथ की पूजा करने से पहले पूजन सामग्री गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, बेलपत्र, भांग, धतूरा, फूल, इत्र, अगरबत्ती, अक्षत, धूपबत्ती आदि एक जगह इकट्ठा कर लें। इसके बाद दूध, दही, घी, शहद और शक्कर को मिलाकर पंचामृत बना लें। इसके बाद भोलेनाथ के मंदिर जाकर गंगाजल से, दूध से, पंचामृत दही से शिवलिंग का अभिषेक करें। शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय हमेशा पीतल, चांदी और कांसे के लोटे का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके बाद भोलनाथ को बेलपत्र अर्पित करें। ध्यान रहें बेलपत्र कटे-फटे ना हो व साफ और स्वच्छ धुले हुए हो। बेलपत्र 11, 21 और 51 के क्रम में ही चढ़ाएं। बेलपत्र चढ़ाने के भी कुछ नियम होते हैं जिनके बारे में मैं आपको इस लेख में आगे बताऊंगा। बेलपत्र चढ़ाते समय शिवजी के मंत्रों का जाप करते रहे। ये मंत्र हैं-


ऊँ नमोः शिवाय

महामृत्युजय मंत्र

ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम।
उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।

भोलेनाथ को भांग, धतूरा अर्पित करें। धूप, दीप नैवेद्य दिखाएं।

शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येऽहं महाफलम। निर्विघ्नमस्तु से चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।‘

इस श्लोक को पढ़कर भोलेनाथ के व्रत का संकल्प लें। महाशिवरात्रि की कथा पढ़े। तत्पश्चात भोलेनाथ की आरती “ऊँ जय शिव ओंकारा करें“। भोलेनाथ के सम्मुख अपनी मनोकामना को रखें। भोलेनाथ शिव शंकर को प्रसाद चढ़ाये। इस प्रसाद को अपने घर के सभी लोगों में वितरित करें।

महाशिवरात्रि की व्रत कथा | Maha Shivratri Vrat Katha | MahaShivratri Story in Hindi

महाशिवरात्रि की कथा के बारे में शिव पुराण में बताया गया है। इस कथा के अनुसार पुरातन समय में एक शिकारी जानवरों का शिकार करके अपने बाल-बच्चों को पालता था। एक बार की बात है वह जंगल में शिकार के लिए गया लेकिन उसे कोई शिकार नहीं मिला। शाम होते-होते जब उसे कोई शिकार नहीं मिला तो थक हारकर उसने बेल के वृक्ष के ऊपर अपना पड़ाव बना लिया। उस पेड़ पर बैठने के लिए उसने कुछ बेल पत्रों को हटाया जो उस बेल के नीचे स्थित शिवलिंग पर गिर गये। शिकारी को अपने शिकार की तलाश करते काफी देर हो गई लेकिन शिकारी को कोई शिकार नहीं मिला तो वह बेलपत्रों की टहनियों को तोड़कर नीचे फेकता रहा जो शिवलिंग पर अर्पित हो गई। दिन भर भूखे रहने के चलते उससे व्रत हो गया और बेलपत्र भी चढ़ गया। उस दिन शिवरात्रि का पर्व था संयोग से उससे पूजा भी हो गई और व्रत भी हो गया। थोड़ी देर बाद उसे एक गर्भवती मृगी दिखाई दी। उसने जैसे ही धनुष चढ़ाया तो उस मृगी ने अपने गर्भ का वासता देकर उससे उसका शिकार ना करने को कहा और बच्चे को जन्म देकर वापस आने का आश्वासन दिया। शिकारी ने मृगणी को छोड़ दिया। धनुष रखने के दौरान कुछ बेलपत्र फिर से शिवलिंग पर आ गिरे। थोड़ी देर बाद उसे एक हिरणी दिखी उसने फिर धनुष चढ़ाया तो हिरणी ने अपने पति से मिलकर वापस आने पर शिकार करने को कहा। शिकारी ने उसका भी शिकार नहीं किया। पर वह सोचने लगा चलो दो शिकार तो मिल गये। रात्रि के अंतिम प्रहर में उसे एक हिरणी अपने बच्चों के साथ दिखी। शिकारी ने फिर धनुष ताना पर हिरणी ने अपने बच्चों को बख्श देने की विनती शिकारी से दी उसने कहा कि इन बच्चों को अपने पति को देकर आने के बाद मेरा शिकार कर लेना। शिकारी को दया आ गई उसने उसे भी जाने दिया। भूखा-प्यासा शिकारी बेलपत्र को तोड़कर शिवलिंग पर फेंकता रहा। शिकार का इंतजार करते-करते सुबह हो गई। शिकारी को एक हिरण तालाब के पास दिखाई दिया उसने धनुष चढ़ाकर उस हिरण को मारने का मन बना लिया। हिरण ने कहा कि अगर तुमने मुझसे पहले आये तीन हिरणों और उनके बच्चों का वध कर दिया हो तो मुझे भी मार डालो। मैं उनका पति हूं। मैं उन सबसे मिलकर वापस तुम्हारे पास आऊँगा। तब तुम मेरा शिकार कर लेना। हिरण का दीन स्वर सुनकर शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया। थोड़ी देर बाद हिरण सपरिवार शिकारी के सामने आ गया जिससे वह उसका शिकार कर सके। हिरण की सत्यता देखकर शिकारी का हदय पिघल गया। उसने उसके परिवार को ना मारकर सदा के लिए हिंसा को छोड़ने का प्रण किया। महाशिवरात्रि के दिन अंजाने में शिकारी से चारों प्रहरों की पूजा करने से भोलेनाथ बहुत प्रसन्न हुए। भोलेनाथ की कृपा से मृत्यु के बाद शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई।

महाशिवरात्रि व्रत में क्या खाएं | Maha Shivratri Vrat Me Kya Khaye

महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने वाले जातक को पूरे दिन कुछ भी नहीं खाना चाहिए। अगर आपको खाली पेट गैस या एसिडिटी की समस्या होती हो तो दिन में फलाहार कर सकते हैं। फलाहार में आप फल, ड्राई फ्रूट, मूंगफली आदि खा सकते है। रात में खाना खा लेना चाहिए क्योंकि शिवरात्रि के व्रत का पारण उसी दिन होता है। खाने में आप कुटू की पूड़ी, साबुदाने की खीर, आलू की सब्जी खा सकते है। खाने में साधारण नमक का उपयोग नहीं करना है सिर्फ सेंधा नमक का ही उपयोग करें।

महाशिवरात्रि इस तरह चढ़ाएं बेलपत्र | Bel Patra on Shivling

महाशिवरात्रि के दिन बहुत सारी चीजें होती है जिनको भोलेनाथ के भक्त चढ़ाकर शिव शंकर भगवान का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। इन्हीं चीजों में एक सबसे उत्तम चीज है बेलपत्र। बेलपत्र भोलेनाथ को बहुत प्रिय है। भगवान शिव शंकर को हर भक्त बेलपत्र अर्पित करता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने का भी एक नियम होता है। इस नियम से अगर आप बेलपत्र शिव जी को चढ़ाते है तो आपको लाभ मिलता है।

महाशिवरात्रि पर जो भी बेलपत्र भोलेनाथ को चढ़ाना चाहिए। उसकी दिशा का ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए। बेलपत्र के हमेशा चिकने भाग को ही शिवलिंग पर रखना चाहिए।

भोलेनाथ को हमेशा 3 पत्र वाला बेलपत्र ही चढ़ाना चाहिए। 3 पत्रों वाले बेलपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने से भगवान शिव शंकर को शांति मिलती है, भोलेनाथ बहुत प्रसन्न होते है और अपने भक्तों की मनवांछित मनोकामना को पूरी करते है।

बेलपत्र चढ़ाते समय हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली का प्रयोग करना चाहिए। बेलपत्र अर्पित करने से पहले शिव जी का जल से अभिषेक करना चाहिए। तत्पश्चात बेलपत्र अर्पित करना चाहिए। बेलपत्र कभी भी अशुद्ध नहीं होता है। अगर पहले किसी ने बेलपत्र पहले चढ़ा दिया है तो उसे फिर से धोकर चढाया जा सकता है। जब भी आप शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाएं तो दूसरे के बेलपत्र उस पर से कभी भी नहीं हटाना चाहिए।

महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ पर बेलपत्र अर्पित करते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र है-

‘‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पण।।‘‘

महाशिवरात्रि पर जो भी भक्त भोलेनाथ को बेलपत्र चढ़ाता है उसकी धन संबंधी समस्या दूर हो जाती है। अगर पति-पत्नी एक साथ मिलकर महाशिवरात्रि को सच्ची श्रद्धा से भगवान शिव पर बेलपत्र चढ़ाते है तो उनके वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है और भोलेनाथ के आर्शीवाद से संतान सुख की प्राप्ति होती है।

महाशिवरात्रि का महत्व | Mahashivratri Ka Mahatva Kya Hai

महाशिवरात्रि का पर्व वह दिन होता है जिस दिन भोलेनाथ के भक्त उनके निर्मित जप, तप और व्रत करते हैं। भोलेनाथ की आराधना करते हैं। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि जो भी भक्त भोलनाथ का सच्चे मन से आराधना करता है और व्रत करता है उस साधक को मृत्यु के उपरांत मोक्ष फल की प्राप्ति होती है। इस तरह महाशिवरात्रि के व्रत को करने से मनुष्य का उद्धार होता है। व्रत रखने वाले जातक के जीवन से सभी दुख, बाधाएं दूर हो जाती है। जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

शिव जी की साधना से घर में सुख-सौभाग्य आता है, धन-धान्य में बढ़ोत्तरी होती है। भगवान आशुतोष जगत के कल्याण करने वाले है। नीलकण्ठ भोलेनाथ की आज के दिन सच्चे मन से पूजा-आराधना करने वाले भक्त को जीवन में कभी भी दुखों का सामना नहीं करना पड़ता।

महाशिवरात्रि पर ध्यान और साधना का विशेष महत्व होता है। अगर आप पूरे साल साधना नहीं कर सकते हैं तो कम से कम आज रात जागकर साधना अवश्य करें। शिवरात्रि वाले दिन निशीथ काल में पूजा आराधना करने से जीवन को नया दृष्टिकोण मिलता है।

महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक का भी विशेष महत्व है। इस दिन किसी पंडित को बुलाकर शिव शंकर भोलेनाथ का रूद्राभिषेक करना चाहिए। मंदिरों में भी इस अवसर पर रूद्राभिषेक होता है। आप किसी मंदिर में भी जाकर रूद्राभिषेक में भाग ले सकते हैं।

जैसा कि हमने आपको बताया कि महाशिवरात्रि की पूजा चार पहरों में की जाती है। आईये जानते हैं कि इन चारों पहरों में किस तरह भोलेनाथ की पूजा करनी चाहिए।

प्रथम पहर में शिवलिंग का दूध से अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद “ऊँ हीं ईशानाय नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए।

द्वितीय पहर में शिवलिंग का दही से अभिषेक करते हुए ऊँ ही अघोराय नमः मंत्र का निरन्तर जप करते रहना चाहिए।

तृतीय पहर में घृत से अभिषेक कर ऊँ हीं वामदेवाय नमः मंत्र का जाप करना चाहिए।

अन्त में चतुर्थ पहर में शहद से भोलेनाथ को अभिषेक कर ऊँ हीं सद्योजाताय नमः मंत्र का जाप करें।

महाशिवरात्रि के उपाय | Maha Shivratri Upay

महाशिवरात्रि के कुछ उपाय है। अगर इन उपायों को आप महाशिवरात्रि के दिन कर लेते हैं तो आपके जीवन में भोलेनाथ के आर्शीवाद से खुशहाली का संचार होगा।

  • महाशिवरात्रि के दिन लाल पेन से एक कागज पर अपनी मनोकामना को लिख दे। इस कागज को मोड़कर घर के बाहर या किसी पार्क में जाकर जमीन के नीचे जाकर दबा दे। उस जगह पर एक पौधा लगा दें। नियमित रूप से उस पौधे को पानी दे। जैसे-जैसे वह पौधा बड़ा होगा, वैसे-वैसे आपकी मनोकामना भी पूर्ण होने लगेगी।
  • पंचमुखी रूद्राक्ष को अपने बाएं हाथ में रखकर दाएं हाथ से उसे बंद कर दे। मन ही मन अपनी मनोकामना को बोले। इसके बाद इसे घर में कहीं ले जाकर रख दें और दिन में एक बार इसको अवश्य देखें।
  • शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ का शहद से अभिषेक करने वाले श्रद्धालु पर भोलेनाथ की कृपा रहती है और भोलेनाथ के आर्शीवाद से उसके जीवन की समस्त समस्याएं दूर होती हैं।
  • अगर आर्थिक समस्या का सामना कर रहे हो तो शिवरात्रि के दिन दही से भोलेनाथ का अभिषेक करें। अभिषेक करते समय 108 बार माता पार्वती के मंत्र ऊँ पार्वती पतये नमः का जाप करते रहे। ऐसा करने से आर्थिक तंगी दूर होती है और जीवन में कभी भी कोई संकट का सामना नहीं करना पड़ता।

निष्कर्ष

महाशिवरात्रि जिसका अर्थ है महा अर्थात महान और शिवरात्रि यानी शिव की रात अर्थात शिव की आराधना की रात्रि। मान्यता है कि जो भी भक्त इस दिन सच्चे मन से भोलेनाथ की उपासना करता है उस जातक का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। उसकी रूठी हुई किस्मत जागृत हो जाती है और उसे भोलेनाथ का आर्शीवाद प्राप्त होता है। भोलेनाथ के अनगिनत भक्त है उन सभी के लिए महाशिवरात्रि का पर्व बेहद खास होता है। तो भक्तों यह भी भोलेनाथ के पवित्र व्रत महाशिवरात्रि की पूरी जानकारी। आपको यह जानकारी अवश्य अच्छी लगी होगी। इसे अपने परिजनों के साथ सोशल मीड़िया पर साझा अवश्य करें जिससे हिन्दू धर्म के व्रत, त्योहारों का व्यापक प्रचार प्रसार हो। ऐसे ही आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहें। जयश्रीराम

FAQ :

Q.1. महाशिवरात्रि कब है?

Ans. महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी, 2023 को हैं। इस दिन भोलेनाथ के भक्त भगवान शिव शंकर की आराधना करते हैं और उनके निर्मित व्रत करते हैं।

Q.2. महाशिवरात्रि पर किसकी पूजा करे

Ans. महाशिवरात्रि वाले दिन भोलेनाथ की पूजा की जाती है। इस दिन भोलेनाथ के भक्त शिवलिंग पर दूध, दही, शहद से भोलेनाथ का अभिषेक करते है।

Q.3. महाशिवरात्रि के दिन क्या खाए.

Ans. महाशिवरात्रि वाले दिन एक ही समय फलाहार करे। महाशिवरात्रि के व्रत में सादा नमक खाना वर्जित होता है। व्रत में सफेद नमक इसलिए नहीं खाया जाता क्योंकि सफेद नमक केमिकल बेस्ड होता है यानी इसे शुद्ध नहीं माना जाता। ऐसे में व्रत रहने वाले जातकों को सेंधा नमक यानी राॅक साॅल्ट का सेवन करना चाहिए।

Q.4. क्या शिवरात्रि व्रत में सोना चाहिए?

Ans. महाशिवरात्रि का व्रत रखने वाले जातकों को रात में सोना नहीं चाहिए। पूरी रात साधना करना चाहिए और शिव जी की आराधना करनी चाहिए।

Q.5.महाशिवरात्रि पर पूरे दिन क्या करे?

Ans. महाशिवरात्रि पर पूरे दिन भगवान शिव के मंत्र ऊँ नमोः शिवाय, शिव रूद्राष्टक और शिव तांडव सत्रोत का पाठ करना चाहिए। महामृत्युत्यजंय मंत्र का जाप करना भी श्रेयस्कर होता है। शिव जी का रूद्राभिषेक मंदिर में जाकर या घर पर ही जरूर करना चाहिए।

हिन्दू धर्म क्या है, क्या है इसका इतिहास और इसकी खूबियां, जानकार आप भी होंगे गर्वित | Hindu Dharm Kya Hai

हिन्दू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। इस धर्म के अनुयायी सम्पूर्ण विश्व में फैले हुए है। मुख्य रूप से भारत, नेपाल और मारीशस में हिन्दुओं की संख्या सर्वाधिक है। हिन्दू धर्म समुद्र की तरह विशाल है। हिन्दू धर्म में बहुत सारी ऐसी चीजें है जो इसे बाकी धर्मों की तुलना से भिन्न तो बनाती ही हैं साथ में एक ऐसा आधार भी देती हैं जो इसे मानने वालों को गर्व भी प्रदान करती हैं। हिन्दू धर्म के कई अनुयायी इस धर्म को सनातन धर्म के नाम से भी पुकारते हैं। हिन्दू धर्म को लेकर अन्य धर्मों के लोग हमेशा भ्रमित रहते है क्योंकि हिन्दू धर्म ईसाई धर्म या इस्लाम के विपरीत, एक गैर-पैगंबर संगठन है। हिंदुओं के लिए कोई यीशु या मोहम्मद नहीं है। हिन्दू कई देवी-देवताओं को मानते हैं। भारत अलग-अलग भाषाएं और संस्कृतियों का देश है इसलिए यहां देवी-देवताओं की संख्या भी अधिक है। ईश्वर का हर स्वरूप अपने आप में पूज्यनीय स्वरूप है। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि ईश्वर निराकार है। वह सर्वेश्वर है अर्थात सर्वोच्च ईश्वर, जिसके पास अनगिनत दिव्य शक्तियाँ हैं। निराकार ईश्वर को ब्रह्म शब्द से संबोधित किया जाता है। जब ईश्वर का स्वरूप होता है, तो उसे परमात्मा शब्द द्वारा संदर्भित किया जाता है। इस सर्वशक्तिमान ईश्वर के तीन मुख्य रूप है। निर्माता, विष्णु, अनुचर और शिव संहारक।

hindu_dharm_kya_hai_jaishreeram

हिन्दू धर्म का इतिहास | Hindu Religion History | Hindu Dharm Ka Itihas

हिन्दू धर्म के इतिहास के विषय में पुराणों में ज्यादा वर्णित नहीं है। इस धर्म को वेदकाल युग से भी पूर्व का माना जाता है, क्योंकि वैदिक काल और वेदों की रचना का काल अलग-अलग माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि स्वायंभुव मनु ने इसकी स्थापना की थी लेकिन इस संबंध में ज्यदा वर्णित नहीं है। विभिन्न शोधों के अनुसार हिन्दू धर्म 24 हजार वर्ष से भी पुराना धर्म हैं। हिंदू धर्म मुख्य रूप से त्रिमूर्ति देवताओं पर केन्द्रित है। त्रिमूर्ति में तीन देवता होते हैं जो दुनिया का निर्माण, रखरखाव और विनाश के लिए जिम्मेदार हैं। इन त्रिमूर्ति में ब्रह्मा (Lord Brahma) पहले देवता हैं। अन्य दो देवताओं में विष्णु (Lord Vishnu) और शिव (Lord Shiva) हैं। ब्रह्मा मुख्य रूप से दुनिया और प्राणियों के निर्माण है। विष्णु ब्रह्मांड के संरक्षक हैं, जबकि शिव जगत को बनाने और फिर इसे नष्ट करने का काम करते है। ब्रह्मा संसार के निर्माणक होने के बाद भी हिंदू धर्म में सबसे कम पूजे जाने वाले देवता हैं। पूरे भारत में उन्हें समर्पित केवल दो मंदिर (Hindu Temple) हैं। अन्य अन्य विष्णु और शिव शंकर के मंदिरों की संख्या असंख्य है।

Read Also : सिद्धिविनायक मंदिर की अनोखी है खासियत, जाने इस मंदिर से जुड़ी सारी जानकारी

वेद कितने होते हैं | Vedas in Hindu Mythology | Vedas in Hindi

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के बारे में जानने का स्रोत वेद व अन्य धर्मग्रन्थ हैं। इन वेद ग्रन्थों की संख्या बहुत अधिक है। वेद, इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘विद्‘ से हुई है। विद् का अर्थ है जानना या ज्ञानार्जन, इसलिये वेद को ‘‘ज्ञान का ग्रंथ कहा जाता है। भारतीय मान्यता में ऐसा वर्णित है कि ज्ञान शाश्वत है अर्थात् सृष्टि की रचना के पूर्व भी ज्ञान था एवं सृष्टि के विनाश के पश्चात् भी ज्ञान ही शेष रह जायेगा। चूँकि वेद ईश्वर के मुख से निकले और ब्रह्मा जी ने उन्हें सुना इसलिये वेद को श्रुति भी कहा जाता हैं।

हिन्दू धर्म में वेदों की संख्या चार हैं। ये वेद हिन्दू धर्म के आधार स्तंभ हैं। ये ‘चतुर्वेद‘ निम्न हैंः – 4 Vedas | Four Vedas Name | Types of Vedas

  • ऋग्वेद,
  • यजुर्वेद,
  • सामवेद,
  • अथर्ववेद

ऋगवेद | Rigveda in Hindi

ऋगवेद चारों संहिताओं में प्रथम गिनी जाती है। ऋग्वेद का इतिहास लगभग 3800 साल पुराना है जबकि 3500 साल तक इसे केवल मौखिक रूप में ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाया जाता रहा था। ऋग्वेद को सनातन धर्म अथवा हिन्दू धर्म का प्रमुख स्रोत माना जाता है। इसमें 1028 सूक्त हैं, जिसमें देवताओं की स्तुति की गयी है। ऋक् संहिता में 10 मंडल, बालखिल्य सहित 1028 सूक्त हैं। यह संहिता सूक्तों अर्थात् स्तोत्रों का भण्डार है। इन सूक्तों में शौनक की अनुक्रमणी के अनुसार 10,627 मंत्र है। वेद मंत्रों के समूह को ‘सूक्त‘ कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद के सूक्त विविध देवताओं की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्रोतों की प्रधानता है। ऋग्वेद का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व सबसे ज्यादा है। चारों वेदों में सर्वाधिक प्राचीन वेद ऋग्वेद से आर्यों की राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। ऋग्वेद अर्थात् ऐसा ज्ञान, जो ऋचाओं में बद्ध हो।

यजुर्वेद | Yajurveda in Hindi

यजुर्वेद ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद है। यजुर्वेद में ऋगवेद के ६६३ मंत्र पाए जाते हैं। फिर भी ये ऋग्वेद से अलग है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘‘यजुस’‘ कहा जाता है। ‘यजुष’् के नाम पर ही इस वेद का नाम यजुष़्वेद वेद (यजुर्वेद) शब्दों की संधि से बना है। यज् जिसका अर्थ समर्पण होता है। यजुर्वेद में यज्ञों और हवनों के नियम और विधान का वर्णन है, अर्थात ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है।

सामवेद | Samaveda in Hindi

चारों वेदों में सबसे छोटा सामवेद है। इस वेद में १८७५ मंत्र है जिसमें ९९ को छोड़ दे तो सभी ऋगवेद के हैं। इसके केवल १७ मन्त्र अथर्ववेद और यजुर्वेद के पाये जाते हैं। फिर भी इसकी महत्ता सबसे ज्यादा है, जिसका मुख्य कारण गीता में कृष्ण द्वारा वेदानां सामवेदोऽस्मि कहना है। सामवेद यह सभी वेदों का सार रूप है क्योंकि इसमें सभी वेदों के चुने हुए अंश शामिल किये गये है। महाभारत में गीता के अतिरिक्त अनुशासन पर्व में भी सामवेद की महत्ता को दर्शाया गया है।

पवित्रतम वेदों में से चैथे वेद अथर्ववेद की संहिता अर्थात मन्त्र भाग है। इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं। अथर्ववेद का अर्थ है अथर्वों का वेद या अभिचार मंत्रों का ज्ञान

अथर्ववेद | Atharvaveda in Hindi

अथर्ववेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं। अथर्ववेद का अर्थ है अथर्वों का वेद या अभिचार मंत्रों का ज्ञान। अथर्ववेद में ब्रह्म की उपासना सम्बन्धी बहुत से मन्त्र हैं। अथर्ववेद में 20 काण्ड, 731 सूक्त है। इसके अतिरिक्त अथर्ववेद में गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 5977 मन्त्र हैं। अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा मानना है कि इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई। कई प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन अथर्ववेद में है। अर्थर्ववेद के बाद से आयुर्वेद में विश्वास किया जाने लगा था। अथर्ववेद गृहस्थाश्रम के अन्दर पतिदृपत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों, मानदृमर्यादाओं का उत्तम विवेचन करता है। अथर्ववेद की एक कड़ी में वर्णन है कि अगर आपको अपनी उपस्थिति से कबूतरों को भगाने के लिए पत्नी या किसी अन्य को पाने के लिए एक जादू की आवश्यकता होती है।

Read Also : बद्रीनाथ धाम से जुड़ी सारी जानकारी

हिन्दू धर्म के देवी देवता | Hindu Gods and Goddesses

ऐसी मान्यता है कि हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं। इन सभी देवी-देवताओं के नाम और उनके स्वरूप अलग-अलग है, लेकिन मान्यता से उलट 33 करोड़ देवी-देवता बल्कि 33 कोटि यानी प्रकार के देवता हैं। पुराणों में इस संबंध में स्पष्ट वर्णन है।

33 कोटि देवताओं के प्रकार | All Hindu Gods

33 कोटि देवी-देवताओं में आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, इंद्र और प्रजापति शामिल हैं। कुछ शास्त्रों में इंद्र और प्रजापति के स्थान पर दो अश्विनी कुमारों को 33 कोटि देवताओं में शामिल किया गया है।

अष्ट वसुओं के नाम निम्न है-

1. आप

2. ध्रुव

3. सोम

4. धर

5. अनिल

6. अनल

7. प्रत्यूष

8. प्रभाष

ग्यारह रुद्रों के नाम निम्न है | Eleven Rudras in Hindu Religion

1. मनु

2. मन्यु

3. शिव

4. महत

5. ऋतुध्वज

6. महिनस

7. उम्रतेरस

8. काल

9. वामदेव

10. भव

11. धृत-ध्वज


बारह आदित्य के नाम | Twelve Aditya in Hindu Dharma

1. अंशुमान

2. अर्यमन

3. इंद्र

4. त्वष्टा

5. धातु

6. पर्जन्य

7. पूषा

8. भग

9. मित्र

10. वरुण

11. वैवस्वत

12. विष्णु

सनातन हिन्दू धर्म में प्रमुख रूप में पांच देवों की उपासना की जाती है। जिन्हें पंचदेव कहते हैं। ये पंचदेव हैं, विष्णु, शिव, गणेश (Lord Ganesha), सूर्य और शक्ति। इन सभी देवी-देवताओं में सबसे शक्तिशाली देवता भगवान शिव हैं। भगवान शिव इस संसार के सृजनकर्ता,पालनकर्ता और संहारकर्ता तीनों हैं।

हिन्दू धर्म की विशेषताएं | Hindu Religion Facts in Hindi

हिन्दू धर्म एक शक्तिशाली धर्म है। हिंदू धर्म के प्रमुख गुणों में उदारता, सहिष्णुता व परोपकार शामिल है। हिन्दू धर्म हमें यह बताता है कि ब्रह्म ही सत्य है। ईश्वर एक ही है और वही प्रार्थनीय तथा पूजनीय है। वही सृष्टा है वही सृष्टि भी। शिव, राम, कृष्ण आदि सभी उस ईश्वर के संदेश वाहक है। हजारों देवी-देवता उसी एक के प्रति नमन हैं। वेद, वेदांत और उपनिषद एक ही परमतत्व को मानते हैं। हिन्दू धर्म को सनातन धर्म भी कहा गया है। सनातन अर्थात शाश्वत जिसका आदि है न अन्त है। सनातन हिन्दू धर्म भाग्य से ज्यादा कर्म पर विश्वास रखता है। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है।

1. हिन्दू धर्म का कोई एक धर्मशास्त्र नहीं है, बल्कि बहुत सारी धार्मिक किताबों को मिलाकर इसे एक
धार्मिक आधार प्रदान करती हैं। गीता, रामायण, महाभारत, उपनिषद् आदि धर्मग्रन्थ इसमें शामिल है।
2. हिन्दू धर्म में 33 कोटि देवी-देवता है। हिन्दू धर्म इकलौता ऐसा धर्म है जिसमें देवी-देवताओं की संख्या समान है और दोनों को एक ही श्रद्धा के साथ पूजा जाता हैं।

  1. कोई भी जीव चैरासी लाख योनियों में भ्रमण करता है। उसे मनुष्य योनि बड़े पुण्य से मिलती है। इस
    जन्म के बाद उसका पुनर्जन्म होता है जन्म मरण के इस चक्र को संसार चक्र कहतें हैं।
  2. हिन्दू धर्म में नास्तिकता को भी स्थान दिया गया है अर्थात जो व्यक्ति ईश्वर के स्वरूप पर विश्वास
    नहीं करता। यह इकलौता ऐसा धर्म है जो नास्तिकों को भी स्वीकृति देता है।
  3. हिन्दू धर्म में 108 को बहुत पवित्र माना गया है। यही कारण है सिद्धी के लिए जिन मालाओं से हम
    जप करते हैं उनमे भी 108 मोती होते हैं।
  4. हिन्दू धर्म की एक सबसे खास बात है जो इसे सब धर्मों से अलग बनाती है वह है, यहां प्रार्थना करना
    का कोई समय निर्धारित नहीं है। दिन हो या रात आप कभी भी ईश्वर को सच्ची श्रद्धा से याद कर सकते हैं। ऊपर वाले को याद करने के लिए कोई एक खास दिन या समय नहीं होता. जब भी आपका दिल करे आप पूजा करने के लिए मंदिर में जा सकते हैं।
  5. सनातन हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की प्रक्रिया से
    गुजरती हुई आत्मा अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। आत्मा के मोक्ष प्राप्त करने से ही यह चक्र समाप्त होता है।
  6. श्राद्ध पक्ष का सनातन हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है। पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए
    मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करने को ही पिंडदान कहा जाता है।
  7. हिन्दू धर्म में दान की बहुत महत्ता है। दान करने का पुण्य की प्राप्ति होती है। वेद और पुराणों में दान
    के महत्व का वर्णन किया गया है।
  8. हिन्दू धर्म में चल और अचल दोनों तरह के देवताओं की पूजा की जाती है। अचल देवता वह है जो
    मूर्ति रूप में विराजमान है जिन्हें हम मंदिरों में देखते है, जबकि चल देवता धरती पर रहने वाला हर जीव है। हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी विशेषता है कि हर जीव में ईश्वर का स्वरूप माना गया है।

Read Also : नाम से राशि कैसे जाने

बद्रीनाथ धाम से जुड़ी सारी जानकारी | Badrinath Kaise Jaye

जय श्री राम मित्रों ! जैसा की आप जानते हैं कि हिन्दू धर्म के चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री है। सनातन धर्म में चार धाम तीर्थ यात्रा का बहुत महत्व है। हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु इन धामों की यात्रा करते हैं। इन्हीं चार धामों में से एक प्रसिद्ध धाम है बद्रीनाथ। बद्रीनाथ मंदिर जिसे बद्रीनारायण के नाम से भी पुकारा जाता है, एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है। बद्रीनारायण धाम श्री हरि भगवान विष्णु को समर्पित है। आज के लेख में हम बद्रीनाथ थाम से जुड़ी सभी जानकारी से आपको रूबरू करवायेंगे। आज की पोस्ट में आप जान पायंगे कि बद्रीनाथ यात्रा कैसे करे, बद्रीनाथ कैसे पहुंचे, हरिद्वार से बद्रीनाथ की दूरी, केदारनाथ से बद्रीनाथ कैसे जाएं, बद्रीनाथ कब जाना चाहिए, बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास, कैसे करें बद्रीनाथ में दर्शन, आदि.

मान्यताओं के अनुसार बद्रीनाथ मंदिर में होते हैं भगवान विष्णु के बद्रीनाथ स्वरूप के दर्शन, तो आइये जानते हैं बद्रीनाथ धाम से जुड़ी सारी जानकारी.

Read Also : सिद्धिविनायक मंदिर की अनोखी है खासियत, जाने इस मंदिर से जुड़ी सारी जानकारी

बद्रीनाथ मंदिर कहां है | ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी | जोशीमठ से बद्रीनाथ की दूरी

बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। अलकनंदा नदी के बाएं तरफ नर और नारायण नाम की दो पर्वत मालाएं है। यह मंदिर इन दोनों पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है। यह मंदिर समुद तट से करीब 3100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसके आसपास बने शहर को बद्रीनाथ के नाम से पुकारा जाता है। मंदिर के सामने नीलकंठ चोटी स्थित है। ऋषिकेश से यह मंदिर करीब 214 किमी की दूरी पर है जबकि जोशीमठ से करीब 45 किमी दूर है। जोशीमठ इस मंदिर का बेस कैम्प भी है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के बद्रीनारायण स्वरूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा इसके बारे में हम आगे लेख में आपको बताएंगे।

badrinath_kaise_aye

बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास | बद्रीनाथ की कहानी | Badrinath ka Itihas

यह मंदिर कितना पुराना है। इसको लेकर कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यह मंदिर वैदिक काल का है जो लगभग 1500 ईसा पूर्व से बनना शुरू हुआ था। हालांकि इस मंदिर के 7वीं और 9वीं सदी में स्थापित होने के प्रमाण मिलते हैं। इसके अनुसार 9वीं शताब्दी में एक भारतीय संत आदि गुरू शंकराचार्या ने 814 से 820 ई तक इस मंदिर का निर्माण किया था। उन्होंने दक्षिण भारत के केरल राज्य के नंदगिरी ब्राहमण को इस मंदिर का मुख्य पुजारी नियुक्त किया। तब से लेकर आज तक यह परंपरा अनवरत जारी है। आज भी यहां का पुजारी दक्षिण भारत से ही होता है।

कैसे पड़ा बद्रीनाथ नाम | Badrinath Dham Mythological Stories

जैसा कि आपने ऊपर के लेख में जाना कि बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु के बद्रीनारायण स्वरूप् की आराधना की जाती है। इसका नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा, इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक बार की बात है जगत के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु गहन तपस्या में लीन थे। जिस जगह वह तपस्या कर रहे थे उसी समय वहां बहुत अधिक बर्फ गिरने लगी। भगवान विष्णु हिमपात से पूरी तरह ढ़क गये। भगवान विष्णु को इस तरह देखकर माता लक्ष्मी परेशान हो गई और उन्होंने भगवान विष्णु के ऊपर बर्फ न पड़े इसके लिए भगवान विष्णु के पास खड़े होकर एक बेर (बदरी) वृक्ष का रूप धारण कर लिया। सारी बर्फ इस वृक्ष पर ही पड़ने लगी। माता लक्ष्मी श्री विष्णु को मौसम की सारे परेशानियों धूप, वर्षा, हिमपात को अपने ऊपर सहन करने लगी और उनके साथ ही तपस्या करने लगीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपनी तपस्या पूरी की तो उन्होंने देखा कि माता लक्ष्मी तो पूरी तरह बर्फ से ढक गई थी। भगवान विष्णु माता ने लक्ष्मी की तपस्या को देखकर उन्हें वरदान दिया कि तुमने मेरे समान ही तप किया है इसलिए इस धाम में मेरी और तुम्हारी पूजा एक साथ होगी। तुमने मेरी रक्षा बदरी के पेड़ से की। इसलिए आज से इस धाम को बबद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा।

कैसा है मंदिर का स्वरूप | Bhagwan Badrinath Ka Mandir Kaisa Hai

बद्रीनाथ मंदिर मुख्य रूप से तीन भागों में बंटा है, गर्भगृह, दर्शनमण्डल और सभामण्डप। बद्रीनाथ धाम को धरती के बैकुंठ के नाम से भी पुकारा जाता है। मंदिर में 15 मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर में सबसे प्रमुख श्री हरि भगवान विष्णु की एक मीटर ऊची प्रतिमा है। यह प्रतिमा काले शालिग्राम पत्थर की बनी हुई है। इसमें भगवान विष्णु ध्यान मुद्रा में बेठे है। विष्णु जी के दाहिने तरफ कुबेर, लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां सुशोभित है। ऐसी मान्यता है कि भक्त जिस रूप में भगवान विष्णु की प्रतिमा देखना चाहते हैं उसे वह उसी रूप में दिखाई देती है। ब्रहमा, विष्णु, महेश आदि के दर्शन इस मूर्ति में परिलक्षित होते हैं। बद्रीनाथ में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है। एक चबूतरा नुमा जगह है जिसे ब्रहम कपाल के नाम से पुकारा जाता है। इस जगह पर लोग अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण करते है। ऐसी मान्यता है कि यहां पितरों का तर्पण करने से उनको मुक्ति मिल जाती है। इससे जुड़ी एक और मान्यता है कि ब्रहम कपाल पर श्री हरि भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने कठोर तपस्या की। इन तपस्या के चलते उनको अगले जन्म में देवता के रूप में जन्म लेने का आर्शीवाद मिला। नर अगले जन्म में अर्जुन रूप में पैदा हुए तो वहीं नारायण का श्रीकृष्ण के रूप में जन्म हुआ।

यहां पर भगवान विष्णु के पैरो के निशान भी है इन निशानों को चरण पादुका कहा जाता है। बद्रीनाथ मंदिर से देखने पर बर्फ की चादर में ढका एक ऊँचां शिखर पर्वत भी दिखाई देता है इसे गढ़वाल क्वीन के नाम से पुकारा जाता है।

इस मंदिर में अखंड दीपक जलता रहता है। जिस जगह पर भगवान विष्णु ने तपस्या की थी वह स्थल तप्त कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। आश्चर्यजनक रूप से इस कुण्ड में का पानी बारहों महीने गर्म रहता है। बद्रीनाथ मंदिर छह महीने खुला रहता है और छह महीने बंद रहता है। कपाट खुलने और बंद होने के समय रावल साड़ी पहन कर माता पार्वती का श्रृंगार करके ही गर्भगृह में प्रवेश किया जाता है।

इस मंदिर में शंख बजाने की पाबंदी है। इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण दोनों ही हैं। धार्मिक कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी बद्रीनाथ थाम में तुलसी रूप में ध्यान कर रही थी। शंखचूर्ण नाम के राक्षस से समस्त देवतागण परेशान थे। तब भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण का वध कर दिया। वध करने के बाद भगवान विष्णु ने शंख नहीं बजाया क्योंकि उनके शंख बजाने से माता लक्ष्मी का ध्यान भंग हो जाता। वहीं मान्यता आज भी चली आ रही है और इसके चलते ही बद्रनाथ मंदिर में शंख नहीं बजाया कि माता लक्ष्मी का ध्यान ना भंग हो जाये।

वैज्ञानिक कारण यह है कि शंख बजाने से प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है। बद्रीनाथ में बर्फ गिरती है। शंख की आवाज से तूफान आने या चट्टान खिसकने का खतरा होता है। इसीलिए बद्रनाथ में शंख नहीं बजाया जाता।

आपको जानकार आश्चर्य होगा कि इस धाम में जो आरती गाई जाती है उसे बदरूद्दीन नाम के मुस्लिम व्यक्ति ने आज से करीब 152 वर्ष लिखा था। मंदिर में चने की कच्ची दाल, गरी का गोला, मिश्री और वनतुलसी की माला का प्रसाद चढ़ता है।

यह भी देखें :

बद्रीनाथ मंदिर कब जाएं | बद्रीनाथ यात्रा कब करे | बद्रीनाथ कब जाना चाहिए

उत्तराखंड की बर्फीलों वादियों में स्थापित होने के चलते बद्रीनाथ में साल भर ठंड बनी रहती है। सदियों में बर्फबारी के चलते यहां भयंकर ठंड होती है यहां का तापमान माइनस से भी नीचे चला जाता है जिससे यात्रा करने में कठिनाई हो सकती है। इसलिए सर्दी में यहां नहीं जाना चाहिए। गर्मी के मौसम में यहां की यात्रा का सबसे उत्तम समय होता है। यह मंदिर छह महीने खुलता है और छह महीने बंद रहता है। बसंत पंचमी पर इस मंदिर के खुलने की तारीख का ऐलान होता है। जबकि विजय दशमी पर मंदिर के कपाट बंद करने की तारीख की घोषणा होती है। आम तौर पर अक्टूबर-नवंबर में कपाट बंद हो जाते हैं क्योंकि उस समय ठंड शुरू हो जाती है। इस वर्ष 2023 में मंदिर के कपाट 27 अप्रैल को सुबह 7 बजे भक्तों के दर्शनार्थ खुल जाएंगे। मंदिर सप्ताह के सातों दिन खुला रहता है। श्रद्धालु सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक भगवान विष्णु के बद्रीनाथ रूप के दर्शन कर सकते है। आप जिस भी मौसम में यहां की यात्रा करें, अपने साथ गर्म कपड़े जरूर रखें।

Read Also : हिन्दू धर्म क्या है, क्या है इसका इतिहास और इसकी खूबियां

बद्रीनाथ मंदिर कैसे जाएं | बद्रीनाथ जाने का रास्ता | Badrinath Jane Ka Rasta

देश के कई बड़े शहरों से बद्रीनाथ के लिए फ्लाइट, ट्रेन और बस सेवा उपलब्ध है। अगर आप फ्लाइट से बद्रीनाथ जाना चाहते हैं तो आपको देहरादून के जाॅली ग्रांट हवाई अड्डे पर उतरना होगा। यह हवाई अड्डा दिल्ली, मुंबई, बैंगलौर, चेन्नई, अहमदाबाद और जयपुर जैसे बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। इन सभी शहरों से यहां के लिए सीधी फ्लाइट सेवा उपलब्ध है। इस हवाई अड्डे से बद्रीनाथ थाम की दूरी करीब-करीब 305 किमी है। हवाई अड्डे पर उतरकर आप यहां से ट्रैक्सी कर ले जो सीधे आपको बद्रीनाथ पर उतार देगी।

रेल से ऐसे जाएं बद्रीनाथ | हरिद्वार से बद्रीनाथ की दूरी | Haridwar to Badrinath Distance

अगर आप ट्रेन से बद्रीनाथ जाना चाहते हैं तो आपको हरिद्वार या देहरादून रेलवे स्टेशन पर उतरना होगा। हैं। हरिद्वार से बद्रीनाथ की दूरी 317 किमी है, वही देहरादून से यह दूरी करीब 328 किमी बैठती है। यह दोनों स्टेशन लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, जैसे कई बड़े स्टेशनों से जुड़े हुए है। अगर आपके शहर से ऋषिकेश के लिए कोई ट्रेन मिलती है तो आप सीधे वहां की ट्रेन भी पकड़ सकते है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी करीब 295 किमी है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ के लिए टैक्सी और बस सेवा उपलब्ध है। यहां पर मैं आपको यह सुझाव देना चाहूंगा कि अगर आपके शहर से देहरादून और हरिद्वार दोनों के लिए ट्रेन उपलब्ध है तो आप देहरादून ना जाकर हरिद्वार जायें। ऐसी सलाह मैं आपको इसलिए दे रहा हूं कि हरिद्वार से बद्रीनाथ के लिए सीधे बस सेवा उपलब्ध है।

बस द्वारा ऐसे जाएं बद्रीनाथ | Haridwar to Badrinath Bus | Badrinath Ki Yatra

अगर आप बस से बद्रीनाथ जाना चाहते हैं तो आपको देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश इन तीनों शहरों में बस द्वारा जा सकते हैं। दिल्ली, लखनऊ जैसे बड़े शहरों से यहां के लिए सीधी बस मिलती है। जहां से आप आसानी से प्राइवेट टैक्सी पकड़कर बद्रीनाथ पहुंच सकते है। जैसा कि मैने ऊपर आपको बताया कि अगर आप आपके शहर से इन तीनों जगहों के लिए बसें है तो आप हरिद्वार के लिए बस पकड़े क्योंकि हरिद्वार से बद्रीनाथ के लिए सीधी बस मिलती है। अंततः बद्रीनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सड़क मार्ग का विकल्प ही चुनना होगा क्योंकि बद्रीनाथ मंदिर के आसपास कोई भी रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट नहीं है। ऐसे में हरिद्वार से ही बद्रीनाथ के लिए बस पकड़नी पड़ेगी। हां अगर आप टैक्सी से बद्रीनाथ जाना चाहते हैं तो देहरादून व ऋषिकेश दोनों जगहों से आपको बद्रीनाथ जाने के लिए टैक्सी मिल जायेगी। उस स्थिति में आपको हरिद्वार जाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी।

अगर आप अपनी गाड़ी से बद्रीनाथ जाना चाहते है तों इसमें बहुत बड़ा रिस्क है क्योंकि बद्रीनाथ में एक ऐसी सड़कों पर आप गाड़ी चलायेंगे जहां एक तरफ पहाड़ है और दूसरी तरफ खाई। ऐसे में आपकी जरा सी गलती आपके लिए जानलेवा साबित हो सकती है। हां अगर आपने इस तरह की सड़कों पर गाड़ी चलाई हो तो आप जरूर अपनी गाड़ी से आये। अन्यथा ऐसे ड्राइवर को अपनी गाड़ी चलाने की जिम्मेदारी सौंपे जिसने इस तरह की सड़को पर गाड़ी चलाई हो। मंदिर से 300-400 मीटर पहले गाड़ी पार्क करा दी जाती है। वहां से पैदल चलकर आप बद्रीनाथ पहुंच सकते हैं। वैसे मेरी आपको एक व्यक्तिगत सलाह है कि बद्रीनाथ के लिए रेल, बस या फ्लाइट सुविधा का ही उपयोग करें। ऐसे मैं इसलिए भी कह रहा हूं कि बद्रीनाथ में हिमपात होता है और ऐसी रोड़ पर गाड़ी चलाना कोई आसान काम नहीं है।

हरिद्वार से बद्रीनाथ का कितना है किराया | Haridwar to Badrinath | Badrinath Yatra Kiraya

सबसे पहले ट्रेन या बस द्वारा हरिद्वार पहुंचे। उसके बाद हरिद्वार से बद्रीनाथ के लिए बस पकड़े। हरिद्वार से सरकारी और निजी कई तरह की बसे बद्रीनाथ के लिए जाती है। अगर आप सुबह हरिद्वार पहुंच जाते है तो पहुंचने के साथ ही सुबह की कोई भी बस में बुकिंग करा ले क्योंकि सुबह के समय बद्रीनाथ की बसों में काफी भीड़ होती है। हरिद्वार से सरकारी बस का किराया 500 से 600 रू0 के बीच है, वहीं प्राइवेट बसों में जाने के लिए आपको जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ेगा। इनका किराया करीब 1000 रू0 तक है। अगर आप किसी ऐप से आॅनलाइन बस बुक करते हैं तो इस पर आपको 100 से 200 रू0 ज्यादा चुकाने पड़ेगे लेकिन इसका एक फायदा है कि इससे आपको अपनी मर्जी की सीट जरूर मिल जायेगी। हरिद्वार से बद्रीनाथ पहुंचने में करीब 10 घंटे लगते हैं। अगर आपको बद्रीनाथ के लिए बस ना मिले तो आप जोशीमठ की बस पकड़ ले। जोशीमठ से बद्रीनाथ बहुत पास है।

बद्रीनाथ में कहां ठहरे | Badrinath Ashram | Hotel in Badrinath | Best Time to Visit Badrinath

बद्रीनाथ में कई सारे आश्रम मौजूद है जहां आप मात्र 200 से 300 रूपये खर्च कर रूक सकते हैं। इसके अलावा यहां जीएमवीएम द्वारा बनाया गया यात्री निवास भी है जिसका किराया करीब 300 रू0 है लेकिन यहां पर आपको अन्य सुविधाएं नहीं मिलेगी। यहां पर डीलक्स और सेमी डीलक्स होटल भी उपलब्ध है जिनका किराया 4000 से 5000 रू0 है। इस किराये में आपका नाश्ता, लंच और डिनर शामिल है। आप ऑनलाइन इन होटलों में बुकिंग कर सकते है ताकि पीक सीजन में आपको कोई परेशानी न हो। यहां का पीक सीजन अप्रैल से मई तक होता है। इस सीजन में भारी भीड़ बद्रीनाथ आती है। ऐसे में इस सीजन में होटल मिलने में दिक्कत होती है। इसलिए आप बद्रीनाथ जाने से पहले ही ऑनलाइन होटल बुक कर लें। अक्टूबर से नवंबर का महीना बद्रीनाथ की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है क्योंकि इस समय भीड़ भी कम होती है और 800 से 1500 रू0 में होटल भी मिल जाते है। हां इस समय आपको ठंड का जरूर सामना करना पड़ेगा क्योंकि यहां पर हिमपात होता है और तापमान माइनस से भी नीचे चला जाता है।

अगर आप यहां महंगे होटलों में ठहरते हैं तो उनके किराये पैकज में ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर शामिल है। अगर आप किसी आश्रम में ठहरते है तो भी यहां पर लंगर चलता है जहां पर जाकर आप खाना खा सकते हैं। किसी होटल में 100 से 150 रू0 में खाने का थाल भी आपको मिल जायेगा।

इस तरह करें बद्रीनाथ में दर्शन | Badrinath Temple Darshan | बद्रीनाथ मन्दिर के टिकट

बद्रीनाथ जाने के लिए आपको ई-पास की जरूरत पड़ती है। आप मंदिर कमेटी की आफीशियल वेबसाइट पर जाकर यहां जाने के लिए अपना पंजीकरण करा सकते है। बद्रीनाथ मंदिर पहुंचने पर एक तप्त कुंड में स्नान करिये जिसका पानी बारह महीने गर्म रहता है। नहाने के बाद आप मंदिर के अंदर जाने के लिए लाइन में लग जाये। अगर आप पीक साइन में बद्रीनाथ गये तो आपको भगवान विष्णु के दर्शन करने के लिए 4-5 घंटे लाइन में लगे रहने होगा लेकिन अगर आप अक्टूबर-नवंबर के महीने में बद्रीनाथ जाते हैं तो आप मुश्किल से 1 से डेढ़ घण्टे में मंदिर के अंदर पहुंच जाएंगे। वहां भगवान बद्रीनाथ की विशाल प्रतिमा मौजूद है। उसके दर्शन करिये और अपनी मनोकामना उनके सम्मुख रखिए। कहते हैं कि इस दर से कोई खाली हाथ नहीं जाता। यहां आने पर लोगों के पाप धुल जाते है। इसके बाद आप ब्रहम कपाल जाइये। यह वही जह है जहां पर लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण करते हैं और उनके निर्मित दान इत्यादि करते हैं।

बद्रीनाथ के आसपास क्या देखें |

अगर आप बद्रीनाथ आये तो यहां पर आसपास कई दर्शनीय स्थल है जहां पर आपको जरूर जाना चाहिए। बद्रीनाथ से एक किमी दूर माणा गांव है। माणा गांव में आप व्यास गुफा और गणेश गणेश गुफा के दर्शन जरूर करिए। यहीं पर सरस्वती माता का एक मंदिर भी है वहां जाकर माता सरस्वती से आर्शीवाद लीजिए। यहीं पर एक शिला भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि जब पांडव स्वर्ग जा रहे थे तो भीम ने शिला डालकर पुल बना दिया था। आप उस शिला के दर्शन भी कर सकते है। इन सब जगहों को आप एक से दो घंटे में घूम सकते है।

बद्रीनाथ भगवान श्री हरि विष्णु का धाम है। इस मंदिर के बारे में एक कहावत मशहूर है-

‘जो जाऐ बद्री, वो ना आये ओदरी’’

इस कहावत का मतलब है कि जो भी व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन करता है उसे वापस माता के गर्भ में नहीं जाना पड़ता। मतलब जो एक बाद बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो भी श्रद्धालु बद्रीनाथ के दर पर सच्चे मन से मनौती करता है उस पर भगवान बदरी अपनी कृपा बरसाते है और श्रद्धालु की इच्छा अवश्य पूर्ण होती है। तो दोस्तों है यह थी भारत के चार थामों में से एक बद्रीनाथ मंदिर की सम्पूर्ण जानकारी। उम्मीद करते है बद्रीनाथ मंदिर के बारे में जानकर आप भी यहां जाने का प्लान अवश्य बनायेंगे। इस लेख को अपने दोस्तों, परिजनों के साथ साझा अवश्य करें जिससे भारत के मंदिरों के बारे में जानकारी सब तक पहुंचे। ऐसे ही धार्मिक और आध्यात्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

जयश्रीराम

यशोदा जयंती कब मनाई जाती है | Yashoda Jayanti Vrat Katha

हिन्दू धर्म में फाल्गुन माह त्योहारों के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण माह है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यशोदा जयंती मनाई जाती है। यह तो हम सभी जानते है कि भगवान श्रीकृष्ण ने माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया था और माता यशोदा ने उनका लालन-पालन किया था। इन्हीं माता यशोदा के जन्मदिन को यशोदा जयंती के रूप में मनाया जाता है। यशोदा जयंती को भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के सभी मंदिरों में श्रीकृष्ण के साथ माता यशोदा की पूजा-उपासना की जाती है। इस पर्व को एक उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। वैसे तो यह पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिणी राज्यों में यह खास तौर पर मनाया जाता है। आज के लेख में हम जानेंगे कि फाल्गुन माह में यशोदा जयंती कब है, कैसे इस दिन पूजा-पाठ करना चाहिए आदि के संबंध में विस्तार से चर्चा करेंगे। 

यशोदा जयंती कब है | Maiya Yashoda Jayanti Kab Hai | Yashoda Jayanti 2023

पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यशोदा जयंती मनाई जाती है। फाल्गुन कृष्ण षष्ठी तिथि दिनांक 11 फरवरी, दिन शनिवार  को सुबह 9ः05 मिनट से प्रारम्भ होकर 12 फरवरी, दिन रविवार को सुबह 9 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार के अनुसार यशोदा जयंती 12 फरवरी 2023 दिन रविवार को मनाना ही सर्वोत्तम होगा। यशोदा जयंती के दिन माता यशोदा और भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और उसके सफल जीवन के लिए पूजा-पाठ करती है और व्रत रखती हैं। 

यशोदा जयंती पर ऐसे करें पूजा-पाठ | Yashoda Jayanti Pooja Vidhi

यशोदा जयंती पाले दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें। यदि ऐसा करना संभव न हो तो अपने घर के नहाने वाले पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर ले। स्नान के बाद साफ-धुले हुए वस्त्र पहन लें। अपने घर के मंदिर की अच्छी तरह से साफ-सफाई करें। घर के मंदिर में एक लकड़ी की छोटी चैकी पर थोड़ा सा गंगाजल डालकर उसे शुद्ध कर लें। उसके बाद उस चैकी पर लाल कपड़ा बिछा दें। चैकी के ऊपर एक तांबे के कलश की स्थापना करें। भगवान श्रीकृष्ण की ऐसी प्रतिमा स्थापित करें जिसमें माता यशोदा उन्हें गोद में लिए हुए हो। माता यशोदा को लाल रंग की चुनरी अर्पित करें। तत्पश्चात माता यशोदा को रोली का तिलक लगाएं। अक्षत चढ़ाए। धूप-दीप जलाएं और माता यशोदा और भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत पूजा आराधना करें। तत्पश्चात यशोदा जयंती की कथा सुने व घर के सभी सदस्य एक साथ मिलकर माता यशोदा और भगवान कृष्ण की आरती करें। फल, फूल, पंजीरी आदि चीजों का भोग लगाए। श्रीकृष्ण जी को मक्खन अत्यन्त प्रिय है। ऐसे में इस दिन श्रीकृष्ण जी को माखन का भोग अवश्य लगाएं। पूजन समाप्त होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण और माता यशोदा का ध्यान करकर अपनी मनोकामना को उनके सम्मुख रखें और उसकी पूर्ति की प्रार्थना करें। पूजन के दौरान अगर कोई गलती हो गई हो उसके लिए क्षमा मांगें। पूजा पूरी होने के बाद प्रसाद स्वयं ग्रहण करें और परिवार के अन्य लोगों को भी इस प्रसाद को वितरित करें। 

Read Also : सिद्धिविनायक मंदिर से जुड़ी सारी जानकारी 

यशोदा जयंती की कथा | Yashoda Jayanti Vrat Katha | Yashoda Jayanti Story in Hindi

यशोदा जयंती की कथा के अनुसार एक बार माता यशोदा ने जगत के पालन श्री हरि भगवान विष्णु की कई दिनों तक घोर तपस्या की। माता यशोदा की कठिन तपस्या से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रकट होकर माता यशोदा से वरदान मांगने को कहा। माता यशोदा ने विष्णु भगवान से मांगा कि मैं चाहती हूं कि आप स्वयं मेरे घर में पुत्र के रूप में जन्म ले। भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि द्वापर युग में जब मेरा जन्म वासुदेव और देवकी के घर में होगा तब आपकी यह इच्छा पूर्ण होगी। मैं भले ही वासुदेव और देवकी के यहां पैदा हूं लेकिन मेरे पालन-पोषण की जिम्मेदारी आपको ही मिलेगी। भगवान विष्णु ने जैसा कहा था वैसा ही हुआ। श्री हरि भगवान विष्णु ने देवती और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में जन्म लिया। कंस ने वासुदेव और देवकी की सातों संतानों की हत्या कर दी इसलिए अपनी संतान की रक्षा के लिए वह उसे नंद और यशोदा के यहां छोड़ आये जिसके बाद से श्रीकृष्ण का लालन-पालन माता यशोदा ने किया। माता यशोदा ने श्रीकृष्ण का पालन पोषण बहुत स्नेह के साथ किया था। वो उनको बहुत स्नेह करती थी। श्रीकृष्ण भी अपनी माता यशोदा से बहुत प्रेम करते थे। श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से समस्त ब्रजवासी मोहित थे। श्रीकृष्ण जी ने अपने बाल्यकाल में बहुत सारे चमत्कार किये थे। गोपियां उन्हें माखन चोर, यशोदा नंदन के नाम से पुकारती थी। एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने मिट्टी खा ली। इस बात से माता यशोदा ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने मना कर दिया। माता यशोदा ने उन्हे डांटकर मुख खोलने को कहा। जब श्रीकृष्ण जी ने अपना मुख खोला तो उनके मुख में सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड के दर्शन हो गये। तब भगवान विष्णु ने माता यशोदा को अपने वचन को याद दिलाया। भगवान श्रीकृष्ण की महिमा बड़ी विशाल है। 

मान्यता है कि यशोदा जयंती के दिन माता यशोदा के साथ श्रीकृष्ण की पूजा करने वाले जातक के सभी दुख दूर हो जाते हैं। स्वयं माता यशोदा की महिमा के बारे में भगवद्गीता में लिखा है कि श्री हरि भगवान विष्णु की जो कृपा यशोदा जी को मिली। वैसी कृपा न ब्रह्माजी को, न शंकर जी और उनकी धर्मपत्नी लक्ष्मीजी को कभी प्राप्त हुई है। 

यशोदा जयंती की एक कथा और प्रचलित है। इस कथा के अनुसार जब राक्षसिनी पूतना भगवान श्रीकृष्ण को मारने के उद्देश्य से गोकुल आई थी तो कृष्ण जी ने दूध के साथ उसके प्राण भी ले लिए। जब पूतना पूतना कृष्ण को लेकर मथुरा की ओर दौड़ी तो उसी समय माता यशोदा के भी प्राण भगवान श्रीकृष्ण के साथ चले गए। उनका शरीर जीवित तब हुआ जब मथुरा की गोपियों ने श्रीकृष्ण जी को उनकी गोद में रखा। तब से ही यशोदा जयंती का पर्व मनाया जाने लगा। 

यशोदा जयंती का महत्व | Yashoda Jayanti Ka Mahatva

यशोदा जयंती संतान और उसके मातृत्व प्रेम का प्रतीक है। यह पर्व माताओं के दृष्टिकोण से बहुत महत्व रखता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की सुख समृद्धि और लंम्बी आयु के लिए व्रत करती है। मान्यता अनुसार अगर निःसंतान महिला इस व्रत को करें तो माता यशोदा और भगवान कृष्ण के आर्शीवाद से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। 

यशोदा जयंती के दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप का पूजन होता है। इस दिन अगर किसी महिला को सपने में कृष्ण जी के बाल स्वरूप के दर्शन हो जाएं तो कृष्ण जी का आर्शीवाद मानना चाहिए। उनके आर्शीवाद से संतान दीर्घायु होती है। जो भी व्यक्ति आज के  दिन माँ यशोदा और श्रीकृष्ण की सच्चे मन से पूजा-आराधना करता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अगर कोई स्त्री सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ यशोदा जयंती के दिन भगवान श्री कृष्ण और यशोदा जी की करती है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

यशोदा जयंती पर माता यशोदा के साथ-साथ श्रीकृष्ण भगवान का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए आज के दिन श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए। 

यशोदा जयंती के दिन गाय को भोजन अवश्य कराएं। पुराणों में वर्णित है कि श्रीकृष्ण जी को गाय बहुत प्रिय थी। ऐसे में अगर आप गाय को भोजन कराते है तो श्रीकृष्ण भगवान प्रसन्न होते है और आपके घर-परिवार में खुशहाली आती है। घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। 

Read Also : हिन्दी कैलेडर का नया वर्ष, जानिए हिन्दू मासों का महत्व

यशोदा जयंती उपाय | Yashoda Jayanti Upay | संतान प्राप्ति के लिए यशोदा जयंती पर करें ये छोटा उपाय 

निःसंतान महिला अगर संतान सुख चाहती है तो यशोदा जयंती के दिन एक छोटा सा उपाय है। माता यशोदा और कृष्ण जी की प्रतिमा के समक्ष एक कद्दू चढ़ाए। इसके बाद इसकी पूजा करें। इस कद्दू को सात बार अपनी नाभि के ऊपर से फिराकर किसी चैराहे पर जाकर रख दें। ऐसा करने से श्रीकृष्ण के आर्शीवाद से जल्द घर में बच्चे की किलकारी गूंज उठेगी। कद्दू को चैराहे पर रखते समय यह अवश्य ध्यान रखे कि आपको ऐसा करते हुए कोई देख न पाए। 

अगर आर्थिक समस्या से जूझ रहे हो, तो यशोदा जयंती पाले दिन तांबे का कलश लें, उसमें गेहूं भर दे। इस कलश को श्रीकृष्ण जी के किसी मंदिर में जाकर चढ़ा दें। ऐसा करने से चली आ रही आर्थिक परेशानी दूर होगी और कमाई में बरकत होगी। 

अगर घर में हर समय कलह-क्लेश का वातावरण बना रहता हो, घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास हो गया है तो घर के वातावरण को ठीक करने व नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए आज के दिन माता यशोदा और कृष्ण जी पर चढ़े कलावे को घर के मुख्य दरवाजे पर बांध दें और मुख्य द्वार पर स्वास्तिक व ऊँ का चिन्ह बनाएं। आप देखेंगे कि कुछ दिनों के अंदर ही आपके घर से नकारात्मक ऊर्जा चली जायेगी और घर में सुख शांति का वास हो जायेगा। 

किसी भी समस्या को दूर करने के लिए दान से बेहतर कोई उपाय नहीं होता। यशोदा जयंती के दिन अपनी साम्थ्र्यनुसार गरीबों और जरूरतमंदों कुछ भी दान करें और श्रीकृष्ण जी से अपनी भूल चूक के लिए क्षमा याचना करें। इससे परिवार में कोई भी संकट होगा तो श्रीकृष्ण जी की कृपा से दूर हो जायेगा। 

माता यशोदा श्रीकृष्ण की पालन-पोषण करने वाली माता है। उन्होंने बहुत स्नेह और प्रेम से श्रीकृष्ण का पालन पोषण किया है। माता यशोदा के वात्सल्य की तुलना संसार की किसी भी माता से नहीं की जा सकती। पुराणों में ऐसा लिखा है कि माता यशोदा के भाग्य में संतान का सुख नहीं था परन्तु भगवान विष्णु के आर्शीवाद से उन्हें माता कहलाने का सौभाग्य मिला। श्रीकृष्ण का बचपन माता यशोदा की गोद में बीता था। ब्रज में आज भी श्रीकृष्ण जी अपने बाल्य स्वरूप रुप में ही पूजे जाते हैं। तो दोस्तों आज के लेख में हमने यशोदा जयंती के बारे में सारी जानकारी विस्तार से आपके समक्ष प्रस्तुत की। उम्मीद करते हैं आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। इस लेख को अपने मित्रों, परिजनों के साथ सोशल मीड़िया पर साझा अवश्य करें। इसी तरह के आध्यात्मिक और धार्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

जयश्रीराम

Read Also : राशि क्या है | कैसे होता है राशि का निर्धारण 

द्विजप्रिय संकष्टी पर इस तरह करें आदि देव गणेश जी की पूजा | Dwijapriya Sankashti Chaturthi

फाल्गुन मास की शुरूआत 06 फरवरी से हो रही है। इस महीने द्विजप्रिय संकटी चतुर्थी, महाशिवरात्रि, सोमवती अमावस्या, होली जैसे बड़े त्योहार पड़ते हैं। फाल्गुन मास का पहला व्रत संकष्टी चतुर्थी का है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। मान्यता के अनुसार गौरी पुत्र भगवान गणेश के चार सिर और चार भुजाएं हैं। भगवान गणेश के इस स्वरूप की आराधना करने से सभी कष्टों का निवारण होता है और स्वस्थ जीवन के साथ सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। निःसंतान दंपत्तियां अगर इस व्रत को रखते हैं तो गणपति देव के आर्शीवाद से संतान सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे में संतान प्राप्ति के इच्छुक दंपत्तियों के लिए यह व्रत काफी महत्व रखता है।

जो भी जातक पूरे विधिविधान से गणेश जी की पूजा करता है उससे गणपति देव प्रसन्न होते है और जातक के सारे दुखों को दूर कर उसके संकटों को हर लेते हैं। आज के लेख में हम जानेंगे कि द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कब है, किस तरह इस दिन पूजा पाठ करें, इसके महत्व आदि पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कब है | Dwijapriya Sankashti Chaturthi Kab Hai

द्विजप्रिय संकष्टी दिनांक 09 फरवरी, 2023 दिन गुरूवार को प्रात 06ः23 मिनट से प्रारम्भ होगी और 10 फरवरी दिन शुक्रवार को सुबह 07ः58 पर समाप्त होगी। हिन्दू धर्म में हर व्रत का मान उदया तिथि के अनुसार किया जाता है लेकिन संकष्टी चतुथी के व्रत का पारण चंद्रमा को अघ्र्य देकर किया जाता है। ऐसे में द्विजप्रिय संकष्टी चतुथी का व्रत 09 फरवरी, दिन गुरूवार को करना ही श्रेयस्कर होगा। द्विजप्रिय संकष्टी पर चंद्रोदय का समय 9 फरवरी 2023 को रात्रि 8 बजकर 32 मिनट है। इस दिन चंद्रमा की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त रात्रि 09 बजकर 25 मिनट है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत बिना चांद को अघ्र्य दिये सम्पूर्ण नहीं होता है। इस बार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर सुकर्मा योग भी पड़ रहा है। सुकर्मा योग 08 फरवरी 2023, दिन बुधवार को शाम 04.31 पर शुरू होकर 09 फरवरी 2023, शाम 04 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। सुकर्मा योग पूजा पाठ के लिए बहुत उत्तम योग माना जाता है।

dwijapriya_sankashti_chaturthi_kabhai_jaishreeram

Read Also : सिद्धिविनायक मंदिर की अनोखी है खासियत, जाने इस मंदिर से जुड़ी सारी जानकारी 

इस तरह करें द्विजप्रिय संकष्टी पर पूजा | Dwijapriya Sankashti Pooja Vidhi

द्विजप्रिय संकष्टी वाले दिन सबसे वहले ब्रहम मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद अपने नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्नान करते पवित्र नदियों का ध्यान करें। स्नान के बाद साफ-धुले हुए वस्त्र पहन ले। चूंकि द्विजप्रिय संकष्टी गुरूवार को पड़ रही है इसलिए गणेश जी की पूजा के दौरान पीले रंग के वस्त्र धारण करें। अपने मंदिर की साफ-सफाई कर लें और मंदिर में भगवान गणेश के समक्ष बैठकर व्रत का संकल्प लें। एक साफ चैकी ले उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछा दे, उस चैकी पर गणेश जी की छोटी सी प्रतिमा को रख दे। गणेश जी को पीले रंग के फूल और माला अर्पित करें क्योंकि गणेश जी को पीला रंग अत्यन्त प्रिय है। धूप, दीप, दिखाएं। गणेश जी को चंदन का तिलक लगाएं और इस तिलक को आर्शीवाद स्वरूप अपने माथे पर लगाये। षोडशोपचार का पाठ करें। गणपति बप्पा को दुर्वा अर्पित करे। ध्यान रहे दुर्वा 11, 21, या 31 के क्रम में हो। हमेशा साफ-सुथरी दुर्वा ही गणेश जी को अर्पित करनी चाहिए। इसलिए किसी मन्दिर के प्रांगण से ही दुर्वा तोड़कर लाये और उन्हें आदि देव गणेश जी को भेंट करें। द्विजप्रिय संकष्टी की व्रत कथा पढ़े। अन्त में गणेश जी की आरती करें। गणेश जी को मोदक अत्यन्त प्रिय है इसलिए उन्हें भोग में मोदक जरूर चढ़ाएं। गौरी पुत्र गणेश जी की पूजा के बाद रात्रि में शुभ मुहूर्त में चंद्रमा को अघ्र्य दे। अगर संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रमा की पूजा और उसको अघ्र्य ना दिया जाये तो द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण नहीं होता है। कहते है कि चंद्रदेव की आराधना करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और चंद्र दोष दूर होता है। साथ ही व्यक्ति शारीरिक व मानसिक तनाव से मुक्ति पाता है क्योंकि चंद्रमा को मन का कारक कहा जाता है। पुराणों में वर्णित है कि चंद्रमा की पूजा को लेकर गणेश जी ने चंद्रमा को यह वरदान दिया था। संकष्टी चतुर्थी व्रत के पुण्य और गणेश जी के आशीर्वाद से संकट दूर होते हैं, धन-धान्य में वृद्धि होती है और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | Dwijapriya Sankashti Story | Dwijapriya Sankashti Vrat Katha

द्विजप्रिय संकष्टी की एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक समय की बात है सभी देवी-देवताओं पर गंभीर संकट आन पड़ा। वे इस संकट के निवारण के लिए भगवान शिव शंकर भोलेनाथ के पास गए और उनसे मदद मांगी। वहां पर गणेश और कार्तिकेय जी भी उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि वे इस संकट को दूर कर सकते हैं और इसका समाधान उनके पास है। उनकी यह बात सुन शंकर जी अचरज में पड़ गये कि आखिर किसको वह देवताओं की समस्या का समाधान करने का कार्य सौंपे। तब उन्हें एक उपाय सौंपा। उन्होंने कार्तिकेय और गणेश जी से कहा कि जो भी पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले उनके पास आयेगा। उसे ही देवताओं के संकट का समाधान निकालने का दायित्व दिया जायेगा। भगवान शिव की यह बात सुनकर कार्तिकेय जी अपने वाहन पर सपार होकर पृथ्वी की परिक्रमा को निकल पड़े। गणेश जी ने अपने बुद्धि का उपयोग करते हुए अपने पिता भगवान शिव और माता पार्वती की ही 7 बार परिक्रमा कर डाली। जब कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस लौटे तो उन्होंने गणेश जी को भगवान शिव के सम्मुख बैठा हुआ देखा। यह देखकर वह गर्वित हो गए और अपने आप को विजेता समझने लगे। भगवान शिव ने गणेश जी से पूछा कि आखिर तुमने पृथ्वी की परिक्रमा क्यों नहीं की। गणेश जी ने उत्तर दिया कि मां-बाप के चरणों में पूरा लोक है। इसी कारण मैने आप दोनों की परिक्रमा की। गणेश जी की यह बात सुनकर भोलेनाथ और माता पार्वती अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने देवताओं के संकट को दूर करने की जिम्मेदारी गणेश जी को सौंप दी। भगवान शिव ने गणेश जी को आर्शीवाद भी दिया जो भी जातक चतुर्थी के दिन विधिवत तुम्हारी पूजा करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अघ्र्य देगा। उसके सारे संकट क्षण भर कट जाएंगे।

Read Also : जानिए हिन्दू मासों का महत्व

द्विजप्रिय संकष्टी महत्व | Dwijapriya Sankashti Ka Mahatva

संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है कठिन समय से मुक्ति पाना। इस दिन व्यक्ति अपने दुःखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति की अराधना करता है। द्विजप्रिय संकष्टी अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण तिथि होती है। इस तिथि की महत्ता इसी बात से परिलक्षित होती है कि इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेशजी के स्मरण करने मात्र से मनुष्य के सभी दुख दूर हो जाते है। सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा जी ने संकष्टी चतुर्थी व्रत की महत्ता को बताते हुए कहा कि जो भी जातक सच्ची श्रद्धा और भक्ति से आज के गणपति जी की पूजा-उपासना करता है उस साधक के सभी दुःख, दर्द और क्लेश दूर हो जाते हैं। साथ ही व्यक्ति के जीवन में सुख, सौभाग्य और समृद्धि का आगमन होता है।

भगवान गणेश के 32 रूप है। द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के इन्हीं रूपों में से उनके छठे स्वरूप की पूजा-आराधना की जाती है। द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वाले साधक को अपने जीवन में अपार धन, सुख, कैरियर में उन्नति व व्यापार में वृद्धि की प्राप्ति होती है। चंद्र दोष का अंत होता है। आज के दिन दूब, सुपारी और फूल से गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है।

द्विजप्रिय संकष्टी का व्रत सूर्योदय से प्रारम्भ होकर व्रत का पारण चंद्र दर्शन के बाद किया जाता है। आज के दिन विधिवत संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने और पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और उत्तम स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है।
ज्योतिष अनुसार इस दिन दान करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन गरीबों और जरुरतमंदों को वस्त्र, भोजन, अनाज आदि का दान करने से घर में बरकत बढ़ती है।

द्विजप्रिय संकष्टी के उपाय | Dwijapriya Sankashti Upay

द्विजप्रिय संकष्टी के कुछ विशेष उपाय है जिन्हें अपनाकर आप भगवान गणेश की कृपा से अपने जीवन की सारी परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं।

गणपति जी की पूजा में दुर्वा चढ़ाने का नियम है। आज के दिन आप गणपति बप्पा को दुर्वा की 11 गांठें अर्पित करें और इसके बाद ‘ऊँ श्रीम गम सौभाग्यः गणपतये वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥’’ मंत्र का तुलसी की माला से 108 बार जप करें। ऐसा करने से आपके सुख-सौभाग्य में वृद्धि होगी। आर्थिक समस्या का कभी भी सामना नहीं करना पड़ेगा। घर में धन-धान्य के भंडार भरे रहेंगे। अगर परिवार में कोई जमीन जायदाद का विवाद हो तो उसका भी समाधान होगा। गणेश जी का एक और मंत्र है मंत्र- ‘ऊँ श्री ऊँ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः‘ की 11 माला का जप करने से कभी भी पैसे की तंगी नहीं होगी।

संकष्टी चतुर्थी वाले दिन गणेश जी के 12 नाम सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन का जप करना बहुत ही सुखदायक होता है। इसके अलावा उनके मंत्र ‘ऊँ गणपते नमः’ ‘गं गणपते नमः’ मंत्रों का जाप करते हुए उन्हें लाल फूल, चंदन अवश्य चढ़ाएं। गणेश जी की प्रतिमा के साथ शिव परिवार की प्रतिमा भी स्थापित करें। ‘ऊँ नमोः शिवाय’ मंत्र का उच्चारण करते हुए शिव प्रतिमा स्थापित करें और उसका विधिवत पूजन करें। ऐसा करने से से आपके शत्रु परास्त होंगे और आपको हर कार्य में सफलता हासिल होगी। इसके अलावा अपार धन-संपत्ति की प्राप्ति के लिए आज के दिन धनदाता गणेश स्तोत्र का पाठ करें।

उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए द्विजप्रिय संकष्टी के दिन गणेश जी को सुपारी अर्पित करें। इस उपाय को करने से आपका स्वास्थ्य बेहतर होगा और शरीर निरोगी बना रहेगा।

गणपति देव की पूजा के समय उनको गेंदे के फूल चढ़ाएं तथा गुण का भोग लगाएं। इस उपाय को करने से आपके सभी कार्य निर्विघ्न सम्पन्न होगे।

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए गणेश जी को सिंदूर अर्पित करें। तत्पश्चात उसका तिलक अपने मस्तक पर लगाएं। मान्यता है कि गणेश जी को सिंदूर अत्यन्त प्रिय है। इसके अलावा सिंदूर को सुख-सौभाग्य के रूप में भी माना जाता है। अगर आप संकष्टी चतुर्थी के दिन इस उपाय को करते हैं तो आपका वैवाहिक जीवन सुखमय बीतेगा और कभी भी कोई अड़चन का सामना नहीं करना पड़ेगा।

संकष्टी चतुर्थी वाले दिन शमी के पेड़ का पूजन अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से आदि देव गणेश अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। अगर आप शमी के पत्तों को भगवान गणेश को चढ़ाते तो आपके घर से दुख, दरिद्रता का नाश होगा। नकारात्मक ऊर्जा हट जायेगी।

करियर या बिजनेस ठीक से नहीं चल रहा हो। उसमें आये दिन कोई न कोई बाधा-परेशानी आ रही हो। व्यापार में घाटा हो रहा हो, नौकरी में पदोन्नति न मिल रही हो तो इन बाधाओं से छुटकारा पाने के लिए गणेश रुद्राक्ष धारण करें। ऐसा करने से आपको लाभ होगा।

Read Also : ज्योतिष क्या है

निष्कर्ष

आदि देव गणेश सभी देवताओं में प्रथम पूजे जाते है। गणपति देव विघ्नहर्ता है। द्विजप्रिय संकष्टी के दिन आपको गणेश जी के साथ माता गौरी की भी विधिवत पूजा करने से आपके ऊपर भगवान गणेश का आर्शीवाद सदैव बना रहेगा।

तो दोस्तों आज के लेख में हमने आपको द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में सारी जानकारी सरल शब्दों में प्रदान की। उम्मीद करते है यह जानकारी आपको लाभप्रद लगी होगी। इस जानकारी को अपने दोस्तों, परिजनों के साथ साझा अवश्य करें जिससे हिन्दू धर्म के व्रत, त्योहारों का व्यापार प्रचार-प्रसार हो। आप कमेंट करके भी हमें बता सकते है कि आपको हमारे लेख कैसे लग रहे है। हमें आपके कमेंटों का इंतजार रहता है। इसी तरह के अन्य आध्यात्मिक और धार्मिक लेखों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे।

जयश्रीराम